दिल्ली: वायु प्रदूषण के बीच लोक नायक अस्पताल में सांस की दवाओं का संकट, मरीज़ परेशान

उत्तर भारत में बढ़ते वायु प्रदूषण के बीच दिल्ली के लोक नायक अस्पताल में श्वसन रोगों की दवाओं की भारी कमी सामने आई है. ओपीडी मरीज़ों को नेब्युलाइज़र, इनहेलर और सिरप नहीं मिल रहे, जिससे गरीब मरीजों को निजी मेडिकल दुकानों से महंगी दवाएं खरीदनी पड़ रही हैं.

(फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स)

नई दिल्ली: उत्तर भारत में वायु प्रदूषण की समस्या के बीच राष्ट्रीय राजधानी के अस्पतालों में बाह्य रोगी (ओपीडी) की संख्या सामान्य से लगभग 20% बढ़ गई है, दिल्ली सरकार द्वारा संचालित सबसे बड़े अस्पताल में श्वसन रोगों के इलाज की दवाओं की कमी सामने आ रही है.

इंडियन एक्सप्रेस को यह जानकारी मरीजों ने दी है. लोक नायक अस्पताल में, जहां हर सर्दी में वायु प्रदूषण के कारण सांस की समस्याओं की शिकायतें बढ़ जाती हैं, नेब्युलाइज़र की दवाएं, खांसी की सिरप, मल्टीविटामिन और कई तरह के इनहेलर जैसी जरूरी दवाएं उपलब्ध नहीं हैं. इसकी वजह से मरीजों को ये दवाएं निजी मेडिकल दुकानों से खरीदनी पड़ रही हैं.

लोक नायक अस्पताल के ओपीडी मरीजों ने अख़बार के रिपोर्टर को जो पर्चे दिखाए, उनमें कई दवाओं पर फार्मेसी कर्मचारियों ने लाइन खींच दी थी या ‘उपलब्ध नहीं’ लिख दिया था. मरीजों का कहना है कि उन्हें ये दवाएं बाहर से खरीदने की सलाह दी गई.

दिल्ली सरकार द्वारा संचालित अस्पतालों में आम तौर पर मरीजों को मुफ्त दवाइयां दी जाती हैं. इन अस्पतालों में आने वाले कई मरीज आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं और उनके लिए बाहर से लिखी गई दवाइयां खरीदना मुश्किल होता है. बताया गया है कि मीटर्ड-डोज इनहेलर (एमडीआई) की कीमत आमतौर पर प्रति यूनिट कुछ सौ रुपये से लेकर एक हजार रुपये से भी अधिक होती है.

दरियागंज की रहने वाली निशा ने बताया कि उनके 7 वर्षीय बेटे नमन के लिए लिखी गई ब्रॉमहेक्सिन सिरप और एक मल्टीविटामिन सिरप अस्पताल की फार्मेसी में उपलब्ध नहीं थे. ब्रॉमहेक्सिन आमतौर पर बलगम पिघलाने, खांसी कम करने और ब्रोंकाइटिस से पीड़ित मरीजों में सीने की जकड़न दूर करने के लिए दी जाती है.

निशा ने कहा कि वे कई वर्षों से लोक नायक अस्पताल आ रही हैं और पिछले कुछ सालों में यहां की दवाओं की अलमारियां लगातार खाली होती जा रही हैं. उन्होंने कहा, ‘यहां कुछ भी नहीं मिलता… हमेशा दवाइयां बाहर से ही लेनी पड़ती हैं.’

निशा ने बताया कि उनका बेटा पिछले दो हफ्तों से बीमार है और इस दौरान कई बार उसकी नाक से खून भी निकला है. उन्होंने कहा, ‘मेरी कोई आमदनी नहीं है और मेरे पति पास के एक स्कूल में पढ़ाते हैं. मुझे बेटे की बहुत चिंता हो रही है.’

मयूर विहार में सिक्योरिटी गार्ड के तौर पर काम करने वाले 46 वर्षीय प्रेम कुमार ने अख़बार को बताया कि उन्हें लगातार खांसी और सांस फूलने की समस्या के लिए लिखी गई टिओवा एमडीआई, एनएसी 600 टैबलेट और ब्रॉमहेक्सिन दवा अस्पताल में नहीं मिल सकी. प्रेम ने कहा कि वह एक घंटे से ज़्यादा लाइन में खड़े रहे, लेकिन अंत में उन्हें बताया गया कि दवाइयां उपलब्ध नहीं हैं. उन्होंने कहा, ‘अब बाहर से ही लेनी पड़ेगी, खर्च तो आएगा ही.’

नरेला के 20 वर्षीय छात्र लक्ष्मण ने बताया कि उन्हें अपनी मां के लिए लिखी गई ब्यूडेकोर्ट और इप्राट्रोपियम दवाएं नहीं मिल सकीं. उन्होंने कहा, ‘मेरी अभी कोई आमदनी नहीं है, और जब दवाएं उपलब्ध नहीं होतीं तो बहुत परेशानी होती है.’

इप्राट्रोपियम एक ब्रोंकोडायलेटर दवा है, जो क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिज़ीज़ (सीओपीडी) और कुछ मामलों में अस्थमा जैसी सांस संबंधी बीमारियों में दी जाती है. यह एयरोसोल या नेब्युलाइज़र सॉल्यूशन के साथ-साथ नेज़ल स्प्रे के रूप में भी उपलब्ध होती है. ब्यूडेकोर्ट एक ब्रांडेड दवा है, जिसमें कॉर्टिकोस्टेरॉइड ब्यूडेसोनाइड होता है, और इसका उपयोग मुख्य रूप से अस्थमा और सीओपीडी के दीर्घकालिक नियंत्रण या रखरखाव उपचार के लिए किया जाता है.

इंडियन एक्सप्रेस ने जब लोक नायक अस्पताल से फार्मेसी में दवाओं की कमी को लेकर आई शिकायतों पर बयान मांगा, तो उन्होंने इनकार कर दिया. वहीं, दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री के कार्यालय ने भी इस संबंध में टिप्पणी के अनुरोधों का कोई जवाब नहीं दिया.

अस्पताल के सूत्रों ने आरोप लगाया कि कई महीनों से हर तरह के नेब्युलाइज़र और खांसी की सिरप, साथ ही कई इनहेलर दवाएं उपलब्ध नहीं हैं. एक सूत्र ने कहा, ‘फिलहाल केवल अस्थालिन (सल्बुटामोल/एल्ब्युटेरॉल का ब्रांड नाम), जो अस्थमा और सीओपीडी जैसी सांस की बीमारियों में इस्तेमाल होती है, ही उपलब्ध है.’

दिल्ली के एक स्वास्थ्य अधिकारी ने बताया कि अस्पताल के लिए दवाओं की आख़िरी ख़रीद अक्टूबर में की गई थी. उन्होंने कहा, ‘यह वास्तविक ज़रूरत का लगभग 25 प्रतिशत ही था.’

इस अधिकारी के अनुसार, दवाओं की कमी की एक वजह सरकार का यह फैसला भी है कि स्थानीय स्तर पर दवाओं की ख़रीद बंद कर दी जाए और सारी ख़रीद केंद्रीय ख़रीद एजेंसी (सीपीए) के ज़रिये की जाए, जिसमें टेंडर की प्रक्रिया शामिल होती है.