न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर सुप्रीम कोर्ट के उन चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों में से एक हैं जिन्होंने हाल ही में मामलों के आवंटन समेत कई समस्याओं को उठाते हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी.
बेंगलुरु: उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर ने युवाओं से लोक नीति के सबसे बड़े दस्तावेज़- ‘भारतीय संविधान’ का आदर करने के लिए कहा. भारतीय संविधान को देश के लिए बड़ी कुर्बानी देने वाले स्वतंत्रता सेनानियों ने तैयार किया था.
शनिवार को एक कार्यक्रम में न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने कहा, ‘सबसे बड़ी लोक नीति भारतीय संविधान ख़ुद है और जिस केंद्र ने उसे तैयार किया वह है संविधान सभा.’
न्यायमूर्ति चेलमेश्वर शीर्ष न्यायालय के उन चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों में से एक हैं जिन्होंने हाल ही में मामलों के आवंटन समेत कई समस्याओं को उठाते हुए प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के ख़िलाफ़ बगावत कर दी थी.
उन्होंने कहा कि संविधान सभा के प्रत्येक सदस्य के व्यापक ज्ञान और इसके सदस्यों के बड़े अनुभव ने संवैधानिक दस्तावेज़ को समृद्ध बनाया. इसमें स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि देश का राजनीतिक भविष्य कैसा होना चाहिए. उन्होंने कहा कि दस्तावेज़ों में प्रत्येक शब्द अपना अनुभव और ज्ञान दर्शाता है.
वह बेगलुरु में एक शैक्षणिक संस्थान में एक विभाग के उद्घाटन समारोह को संबोधित कर रहे थे.
न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने कहा कि वह इस बात से वाकिफ़ हैं कि ज़रूरत के अनुसार समय-समय पर संविधान में संशोधन किया गया.
न्यायमूर्ति चेलमेश्वर को अदालत में संन्यासी बताते हुए भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश एमएन वेंकटचलैया ने कहा, ‘न्याय, सच और साहस उनकी आत्मा के साथी हैं. उनके व्यक्तित्व के आयामों का आकलन करना असंभव है.’
उच्चतम न्यायालय में 12 जनवरी को तब संकट उत्पन्न हो गया था जब चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ ने भारत के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नेतृत्व में शीर्ष न्यायालय के कामकाज की खुले तौर पर आलोचना की थी.
देश के इतिहास में पहली बार प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले सुप्रीम के इन न्यायाधीशों ने कहा कि कुछ ऐसे मुद्दे हैं जो देश के शीर्ष न्यायालय को प्रभावित कर रहे हैं और यहां सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है.
उच्चतम न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों ने प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की ओर से रोस्टर तैयार करने और मामलों के आवंटन के तौर-तरीकों पर ऐतराज़ जताते हुए कहा था कि यह अधिकार न्यायालय के प्रभावी कामकाज के लिए दिया गया है और यह अपने साथियों पर प्रधान न्यायाधीश के उच्च प्राधिकार को क़ानूनी या तथ्यात्मक रूप से मान्यता नहीं देता.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)