कई पुलिसकर्मियों ने अपने उन पुराने सहकर्मी, जो इस मामले में आरोपी हैं, को पहचानने से इनकार कर दिया है.
गुजरात के चर्चित सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर मामले की सुनवाई बीते दो महीनों से मुंबई के विशेष सीबीआई कोर्ट में रोज हो रही है. 2005 में हुई सोहराबुद्दीन, उनकी पत्नी कौसर बी व तुलसीदास प्रजापति की हत्या में कथित तौर पर गुजरात पुलिस के अधिकारियों का हाथ था.
23 पूर्व पुलिस अधिकारियों सहित अन्य आरोपियों की सुनवाई में अभियोजन पक्ष द्वारा अब तक पेश 40 गवाहों में बुधवार तक 27 गवाह अपने बयान से मुकर चुके हैं.
मालूम हो कि गुजरात के इस चर्चित एनकाउंटर मामले में मुख्य आरोपी के रूप में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह समेत गुजरात पुलिस के कई आला अधिकारियों के नाम थे.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार 29 नवंबर को जब से ट्रायल कोर्ट द्वारा मामले की मीडिया रिपोर्टिंग पर रोक लगाई गई, तबसे अदालत में करीब 40 गवाहों से इस मामले में पूछताछ की थी. इस दौरान कई पुलिसकर्मियों ने अपने पुराने सहकर्मियों, जो इस मामले में आरोपी हैं, को पहचानने से इनकार कर दिया.
इन गवाहों में वो चश्मदीद भी शामिल हैं, जिन्होंने पहले जांच के दौरान बयान दिया था कि उन्होंने नवंबर 2005 में सोहराबुद्दीन, कौसर बी और तुलसी प्रजापति को बस से अपहृत होते देखा था. इस बार उन्होंने ऐसा होने से साफ इनकार कर दिया.
अभियोजन पक्ष द्वारा अदालत को बताया गया कि ऐसे ही एक गवाहों का एक समूह अपने पिछले बयान की पुष्टि करने में विफल रहा है. इन गवाहों ने नवंबर 2005 में सोहराबुद्दीन, कौसर बी और तुलसीराम प्रजापति के सांगली (महाराष्ट्र) में एक बस से हुए कथित अपहरण के बारे में गवाही दी थी. इन गवाहों में दो सहयात्री, बस का ड्राईवर, क्लीनर और एक अन्य व्यक्ति शामिल हैं.
अपने पिछले बयानों में इन यात्रियों, ड्राईवर और क्लीनर ने पुलिस को बताया था कि 23 नवंबर 2005 को रात के 1.30 बजे एक क्वालिस उनकी बस के सामने आकर रुकी. इसमें से 3 लोग आकर बस में चढ़े, जिनमें से एक के पास बंदूक थी.
इन गवाहों ने बताया कि उन्होंने बुरका पहने एक महिला और दो आदमियों को बस ले जाते हुए देखा था. लेकिन पिछले महीने वे इस बयान से मुकर गए.
यहां तक कि जब इन गवाहों को उनके द्वारा मजिस्ट्रेट के सामने दिए गए बयानों के बारे में याद दिलाया गया, तब भी वे इस वाकये से मुकर गए. अभियोजन पक्ष द्वारा कहा गया कि क्योंकि तीन लोगों की मौत हो चुकी है, इसलिए ये गवाह झूठ बोल रहे हैं. इस पर भी गवाह अपनी बात पर अड़े रहे और कहा कि वे नहीं जानते कि पिछले बयान में क्या लिखा है.
गवाहों ने सीबीआई जांच के दौरान तीनों मृतकों की तस्वीर पर दिए गए दस्तखत तो पहचाने, लेकिन मृतकों को पहचानने से मना कर दिया.
इनके अलावा, मुख्य गवाहों में से अपने बयानों में मुकरने वालों में वो पुलिस वाले भी हैं, जिन्होंने कथित तौर पर सोहराबुद्दीन का अपहरण किया, उसकी मुठभेड़ की साजिश रची और फिर उसकी पत्नी कौसर बी को मारा.
इनमें से कई ने तो अपने पिछले बयानों से भी साफ इनकार किया,जहां उन्होंने उन पुलिस अधिकारियों के नाम बताये थे, जिनके अंदर वे काम कर रहे थे.
इनमें से एक पुलिस कॉन्स्टेबल भी हैं, जो गुजरात की एंटी-टेररिस्ट स्क्वाड (एटीएस) की गाड़ी चलाया करते थे. सीबीआई के मुताबिक इस कॉन्स्टेबल ने बताया था कि वे नवंबर 2005 में नरसिंह धाबी, संतराम शर्मा और अजय परमार की उस पुलिस टीम का हिस्सा थे, जो हैदराबाद गयी थी. हालांकि कोर्ट में उन्होंने इस बात से इनकार कर दिया.
कोर्ट में उन्होंने कहा कि वे एटीएस अहमदाबाद का हिस्सा थे लेकिन वे किसी और राज्य में नहीं गए. 2005 में गुजरात सीआईडी द्वारा उन्हें उनके मुताबिक बयान देने के लिए मजबूर किया गया. वे कोर्ट में मौजूद किसी आरोपी को नहीं पहचानते.
एक और गवाह जिसने पहले जांच एजेंसी को बताया थे कि एक आरोपी ने गाड़ियों की एंट्री की असल लोकेशन छुपाने के मकसद से गाड़ियों की लॉग बुक में फेरबदल की थी, 23 दिसंबर को अपने इस बयान से मुकर गया. उसने कहा कि वो महज एक ड्राईवर है, उसे लॉग बुक के बारे में कोई जानकारी नहीं है.
जब उससे पूछा गया कि वो कोर्ट में मौजूद किसी आरोपी पुलिस वाले को पहचानते हैं, तब उन्होंने बिना देखे ही तुरंत न कह दिया. इस पर अभियोजन पक्ष ने कहा कि वे एक बार आरोपियों को देख तो लें.
एक और सुनवाई के दौरान एक और गवाह जो आरोपियों को पहचानने से मना कर रहा था, उसे जज एसजे शर्मा ने कहा कि ये पुलिस अधिकारी रिटायर हो चुके हैं, गवाह को इनसे नहीं डरना चाहिए.
इसके अलावा अपने बयान से मुकरने वालों में सोहराबुद्दीन की बहन भी हैं. सोहराबुद्दीन की बहन हैदराबाद की एक जेल में बंद हैं, जहां से वे वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से अदालत में पेश हुईं.
उन्होंने कहा कि सीबीआई ने उनके भाई के कथित एनकाउंटर के बाद उनसे कोई पूछताछ नहीं की. उन्होंने इस बात से इनकार किया कि उन्होंने सीबीआई को नहीं बताया कि सोहराबुद्दीन और कौसर बी नवंबर 2005 में उसके भाई के घर गए थे.
इन सब गवाहों के अलावा अपने बयानों से मुकरने वालों में कथित अपहरण में इस्तेमाल हुई क्वालिस गाड़ी के मालिक, उस फार्म हाउस (जहां सोहराबुद्दीन और कौसर बी को कथित तौर पर रखा गया था) में काम करने वाले, उस क्रेन और टेम्पो सर्विस में काम करने वाले जिन्होंने कथित तौर पर कौसर बी का शव ठिकाने लगाया था, भी शामिल हैं.
बीते नवंबर में स्पेशल जज एसजे शर्मा ने 22 आरोपियों के ख़िलाफ़ आरोप तय किए थे, जिनमें क़त्ल, आपराधिक षड्यंत्र, सबूत मिटने के आरोप थे. शुरुआत में 38 आरोपी थे, जिनमें से 15 को बरी कर दिया गया है. एक आईपीएस अधिकारी विपुल अग्रवाल पर आरोप तय करने पर बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा रोक लगाई गई है.