बॉम्बे हाईकोर्ट ने सीबीआई से यह भी पूछा कि वह क्यों नहीं चाहती कि मामले की सुनवाई जल्द हो.
मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को सीबीआई से सवाल किया कि वह सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों समेत कई लोगों को आरोप मुक्त करने की याचिका पर जल्द सुनवाई के पक्ष में क्यों नहीं है.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार कोर्ट द्वारा यह सवाल सीबीआई के इस याचिका की सुनवाई के स्थगन की मांग के बाद किया गया था. जस्टिस रेवती मोहिते डेरे ने केंद्रीय जांच एजेंसी से पूछा, ‘पिछले साल 28 नवंबर से सुनवाई शुरू हुई थी, क्या आपको रिहाई की इन अपीलों पर जल्द सुनवाई के लिए सतर्क नहीं होना चाहिए? आप इसके लिए बेचैन क्यों नहीं हैं?’
ज्ञात हो कि सोहराबुद्दीन शेख के भाई रूबाबुद्दीन ने हाईकोर्ट में एक पुनरीक्षण याचिका दायर की है, जिसमें अगस्त 2016 और अगस्त 2017 के बीच डीजी वंजारा (सेवानिवृत्त), राजकुमार पांडियन और दिनेश एमएन को मामले से आरोप मुक्त करने के निचली अदालत के आदेश को चुनौती दी गई है.
जस्टिस रेवती मोहिते डेरे की पीठ ने यह भी कहा कि वह सोहराबुद्दीन के भाई रूबाबुद्दीन और सीबीआई की याचिकाओं पर रोजाना आधार पर सुनवाई करेंगी.
साथ ही हाईकोर्ट ने सीबीआई से यह भी कहा कि वह उन पुलिस अधिकारियों के नामों की सूची सौंपें, जिन्हें सोहराबुद्दीन शेख मुठभेड़ मामले में आरोपमुक्त किए जाने को चुनौती दी गई है और साथ ही यह भी बताए कि आरोप पत्र में उनकी क्या भूमिका बताई गई थी.
न्यायाधीश ने कहा, ‘एक चार्ट सौंपें- जिसमें जिन लोगों को आरोप मुक्त किये जाने को चुनौती दी गई है उनका नाम, उनपर सीबीआई ने क्या आरोप और धाराएं लगाई थीं… इसे बताया जाए.’ मामले पर सुनवाई नौ फरवरी से शुरू होगी.
निचली अदालत ने इस अवधि के दौरान आरोप पत्र में सीबीआई द्वारा नामजद 38 में से 15 लोगों को आरोप मुक्त कर दिया था. इस मामले में आरोप मुक्त किये गए लोगों में आईपीएस अधिकारी एनके अमीन, गुजरात पुलिस के कई अधिकारी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी शामिल हैं.
हालांकि केंद्रीय जांच एजेंसी ने केवल अमीन और पुलिस कॉन्स्टेबल दलपत सिंह राठौड़ को आरोप मुक्त किये जाने को चुनौती दी है. मुंबई में विशेष सीबीआई अदालत ने पुलिस अधिकारियों को इस आधार पर आरोप मुक्त कर दिया था कि सीबीआई उनके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिये पूर्व अनुमति हासिल करने में विफल रही.
पिछली सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय ने पूछा था कि क्या महज पूर्व अनुमति का अभाव आरोपियों को आरोप मुक्त करने के लिये पर्याप्त था. जस्टिस मोहिते-डेरे ने यह भी पूछा था कि सीबीआई ने मामले में वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों को आरोप मुक्त करने को क्यों चुनौती नहीं दी थी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)