नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन ने कहा कि भाजपा नीत राजग सरकार महिलाओं के लिए न्याय और सशक्तिकरण की बात करती है, लेकिन उसकी यह मंशा बजट में नहीं दिखी.
नई दिल्ली: श्रमिक मुद्दों की अनदेखी किए जाने पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समर्थित भारतीय मज़दूर संघ और अन्य केंद्रीय श्रमिक संगठनों ने मोदी सरकार के आख़िरी पूर्ण बजट की कड़ी आलोचना की है.
संगठनों का कहना है कि बजट में सरकार ने आम लोगों का कोई ध्यान नहीं रखा है और श्रमिक मुद्दों की इसमें पूरी तरह अनदेखी की गई है. बजट से नाखुश भारतीय मज़दूर संघ ने देशव्यापी विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया है.
संघ के महासचिव बृजेश उपाध्याय ने एक बयान में कहा, ‘यद्यपि पहली बार किसी बजट में ग्रामीण विकास, कृषि, स्वास्थ्य और बुनियादी विकास इत्यादि पर इतना जोर दिया है, लेकिन इसमें श्रमिक चिंताओं की पूर्णतया अनदेखी की गई है.’
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार में सबसे कम वेतन पाने वाले आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, आशा कर्मचारियों और अन्य योजनाकर्मियों को बजट में कोई राहत नहीं प्रदान की गई है.
उन्होंने कहा कि मध्यम वर्ग के कर्मचारी भी बजट से नाखुश हैं क्योंकि एक तो कर छूट की सीमा नहीं बढ़ाई गई है और ऊपर से आयकर पर उपकर को 3% से बढ़ाकर 4% कर दिया गया है.
यह ऐसे समय में किया गया है जब बजट में करदाताओं की संख्या 41% बढ़ने का दावा किया गया है.
भारतीय मज़दूर संघ के अनुसार कर्मचारियों को भी बीमा कंपनियों के विलय का बोझ झेलना होगा और इस मामले में उनके रोजगार सुरक्षा, स्थानांतरण और पदोन्नति को लेकर सरकार की ओर से कोई भरोसा नहीं दिया गया है.
उन्होंने कहा कि श्रम कानूनों में बदलाव से जुड़े मुद्दों पर अभी त्रिपक्षीय बैठक में चर्चा किया जाना बाकी है और तभी इन पर अंतिम निर्णय होगा.
श्रमिक संगठन एटक की महासचिव अमरजीत कौर ने कहा कि राजग सरकार का बजट आम आदमी, बेरोजगार और कमजोर तबकों की चिंताओं को दूर करने में विफल रहा है.
बजट में की गई महिलाओं की अनदेखी : एनएफआईडब्ल्यू
महिलाओं से संबद्ध एक संगठन ने कहा है कि केंद्रीय बजट में महिलाओं की अनदेखी की गई है.
नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन (एनएफआईडब्ल्यू) ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि यह निराशाजनक है कि केंद्रीय बजट में महिलाओं, ख़ासकर असंगठित क्षेत्र से जुड़ी महिलाओं की अनदेखी की गई है.
संगठन ने कहा कि भाजपा नीत राजग सरकार हालांकि महिलाओं के लिए न्याय और सशक्तिकरण की बात करती है, लेकिन उसकी यह मंशा बजट में नहीं दिखी. संगठन ने आगे कहा कि तथाकथित ‘महिला अनुकूल’ कानूनों के क्रियान्वयन के लिए इस साल के बजट में आवंटन लगभग ‘ना’ के बराबर है.