एक्सक्लूसिव: जागरण में भाजपा के पक्ष में छपे एग्ज़िट पोल के पीछे आरएसएस कार्यकर्ता का हाथ

यह तो साफ है कि दैनिक जागरण द्वारा उत्तर प्रदेश चुनाव के पहले चरण के ठीक बाद उस एग्ज़िट पोल का प्रकाशन भाजपा की जीत सुनिश्चित करने के लिए बनाई गयी एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा था, पर इस ‘चुनावी पटकथा’ का लेखक कौन था, इस पर अब तक रहस्य बना हुआ है.

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यह तो साफ़ है कि दैनिक जागरण द्वारा उत्तर प्रदेश चुनाव के पहले चरण के ठीक बाद उस एग्ज़िट पोल का प्रकाशन भाजपा की जीत सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा था, पर इस ‘चुनावी पटकथा’ का लेखक कौन था, इस पर अब तक रहस्य बना हुआ है.

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भाजपा केे सत्ता में आने के दो साल पूरा होने के मौके पर आयोजित विकास पर्व के दौरान भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के साथ गुलाबी शर्ट में दैनिक जागरण एग्जीक्यूटिव तन्मय शंकर. (क्रेडिट: तन्मय शंकर फेसबुक पेज)

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में पहले दौर के मतदान के ठीक बाद हिंदी अख़बार ‘दैनिक जागरण’ द्वारा प्रकाशित एग्ज़िट पोल एक सीनियर बिज़नेस एग्जीक्यूटिव द्वारा भेजा गया था. द वायर को मिली जानकारी के अनुसार जागरण के यह एग्जीक्यूटिव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े कार्यकर्ता भी हैं.

इस पोल में भाजपा को उसके प्रतिद्वंद्वियों से आगे बताया गया था. हालांकि जल्द ही इस पोल को वेबसाइट से हटा दिया गया पर इससे मिले ‘संदेश’ को भाजपा और संघ कार्यकर्ताओं द्वारा पूरे उत्तर प्रदेश में ह्वाट्सऐप के ज़रिये फैला दिया गया.

चुनाव आयोग द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार चुनाव ख़त्म होने तक किसी भी तरह के एग्ज़िट पोल का प्रकाशन करना मना है. इस एग्ज़िट पोल के प्रकाशन के बाद चुनाव आयोग द्वारा दर्ज शिकायत के आधार पर उत्तर प्रदेश पुलिस ने दैनिक जागरण के ऑनलाइन संपादक शेखर त्रिपाठी को गिरफ्तार कर लिया, जबकि संस्थान के सीईओ संजय गुप्ता के अनुसार यह एग्ज़िट पोल विज्ञापन विभाग द्वारा छापा गया था.

अब यह बात सामने आई है कि यह विवादित एग्ज़िट पोल अख़बार को तन्मय शंकर द्वारा भेजा गया था, जो उस समय जागरण प्रकाशन और एमएमआई ऑनलाइन लिमिटेड (जागरण समूह की डिजिटल इकाइयां संभालने वाली कंपनी) के बिज़नेस और मार्केटिंग हेड थे. और इसका प्रकाशन एमएमआई की हेड सुकृति गुप्ता की सहमति से था.

10 फरवरी को तन्मय द्वारा विभिन्न संपादकीय विभागों को भेजे हुए एक ईमेल में पेज एक के स्लॉट पर http://rdiindia.com द्वारा किए गए एक प्री-पोल एनालिसिस यानी चुनाव पूर्व विश्लेषण को छापने की बात कही गई है.

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10 फरवरी 2017 को तन्मय शंकर द्वारा दैनिक जागरण की एडिटोरियल टीम को भेजा गया ईमेल

ईमेल में तन्मय द्वारा दिए गए इस एग्ज़िट पोल का स्रोत ‘http://rdiindia.com’ नाम की वेबसाइट को बताया गया है और मेल में दिख रही जानकारी के अनुसार उन्हें ये मेल किसी ‘सुनील आर’ ने ‘[email protected]’ नाम के ईमेल एड्रेस से भेजा है. यह यूआरएल गुड़गांव की एक ह्यूमन रिसोर्स कंपनी ‘रिसोर्स डेवलपमेंट इंटरनेशनल’ का है, पर इसका किसी भी तरह के चुनावी सर्वे से कोई लेना-देना नहीं है. हालांकि मेल आईडी में दिख रहे ‘आरडीआई’ नाम की एक और कंपनी ‘रिसर्च डेवलपमेंट इनीशिएटिव’ भी है, जो पहले चुनावी सर्वे करवा चुकी है और इसके प्रमोटर देवेंद्र कुमार अरुण जेटली और वसुंधरा राजे जैसे भाजपा के बड़े नेताओं के साथ काम कर चुके हैं.

हालांकि जब चुनाव आयोग की शिकायत में रिसोर्स डेवलपमेंट इंटरनेशनल का नाम आया था, तब ही इसके हेड राजीव गुप्ता ने साफ़ किया था कि उनका इस एग्ज़िट पोल से कोई संबंध नहीं है और जागरण द्वारा कंपनी का नाम समझने में ज़रूर कोई ग़लतफ़हमी हुई है. वहीं रिसर्च डेवलपमेंट इनीशिएटिव के देवेंद्र कुमार ने द वायर से बात करते हुए स्पष्ट कहा था कि उन्हें जागरण द्वारा प्रकाशित किसी भी एग्ज़िट पोल के बारे में कोई जानकारी नहीं है और न ही उनकी कंपनी ऐसे किसी मामले में जुड़ी है.

इस सारे मामले को तन्मय शंकर ही सुलझा सकते हैं.

द वायर द्वारा ‘सुनील आर’ नाम के व्यक्ति के बारे में पूछने पर तन्मय शंकर ने कहा कि वे नहीं जानते कि ये व्यक्ति कौन है. न ही तन्मय ये बता पाए कि उन्होंने ईमेल में http://rdiindia.com का नाम चुनावी एजेंसी के रूप में क्यों लिखा.

रिसर्च डेवलपमेंट इनीशिएटिव के दफ्तर में कॉल करने पर ‘सुनील आर’ नाम के इस व्यक्ति के बारे में कोई जानकारी हासिल नहीं हुई न ही इस ईमेल एड्रेस [email protected] पर भेजे गए सवालों का ही कोई जवाब आया.

यहां हो सकता है कि उत्तर प्रदेश पुलिस और चुनाव आयोग तन्मय शंकर को ही इस पूरे मामले में ज़िम्मेदार मानें, पर जागरण के इस कर्मचारी का फेसबुक पेज उनके राजनीतिक संबंधों के बारे में काफ़ी कुछ बताता है, जिससे इस पूरे घटनाक्रम के पीछे छिपे चेहरों को पहचाना जा सकता है.

द वायर के साथ हुए सवाल-जवाबों के बाद तन्मय अपने फेसबुक प्रोफाइल की बहुत सारी जानकारी संपादित कर दी है, जिससे उनके आरएसएस से सम्बद्ध होने का पता चलता, पर उनके ऐसा करने से पहले लिए गए स्क्रीनशॉट और तस्वीरें अलग कहानी बयां करते हैं.

19 फरवरी को लिखी गई उनकी एक फेसबुक पोस्ट कहती है, ‘आज दो महापुरुषों का जन्मदिवस है जिन्होंने अपना जीवन हिंदू समाज की एकता और स्वाभिमान जागरण में लगा दिया. संघ के द्वितीय सर संघचालक प. पू श्री गुरु जी का और छत्रपति शिवाजी महाराज. जन्मदिवस पर शुभकामनाएं’

यहां गुरुजी से आशय ‘गुरु गोलवलकर’ से है.

तन्मय द्वारा इस तरह आरएसएस से अपने संबंध को छिपाने का यह प्रयास शक़ पैदा करता है कि कहीं विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत की संभावनाएं बढ़ाने की इस रणनीति में तन्मय को किसी मोहरे के तरह तो इस्तेमाल नहीं किया गया.

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2015 में आरएसएस की रैली में हिस्सा लेते तन्मय शंकर (बाएं). साभार: तन्मय का फेसबुक प्रोफाइल पेज

इसके लिए समझते हैं कि इस विवादित एग्ज़िट पोल किस तरह ‘रिप्रजेंटेशन ऑफ पीपल एक्ट’ का हनन था. पहले चरण के मतदान में भाजपा के पिछड़ने के बाद खुद को भाजपा और मोदी फैन कहने वाले सेफोलॉजिस्ट प्रवीण पाटिल द्वारा किए गए इस चुनावी विश्लेषण पर ध्यान दीजिए. उन्होंने 21 फरवरी को लिखा है,

‘शनिवार 11 फरवरी को जब उत्तर प्रदेश चुनावों में के पहले चरण में पश्चिमी यूपी के ‘जाट बहुल’ इलाकों से भाजपा के ख़राब प्रदर्शन की खबरें आना शुरू हुईं, मुझे पिछले बिहार विधानसभा चुनावों की याद आ गई. वहां जीत की बात करते-करते भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था. ऐसा क्यों हुआ यह बहस का अलग मुद्दा है पर आमतौर पर किसी भी लंबे चुनाव के दौर में ख़राब शुरुआत होना पार्टी के उत्साह के लिए अच्छा नहीं माना जाता, वो भी वहां जहां छोटी-से-छोटी ख़बर भी कैडर में ख़लबली मचा देती हो. भाजपा और संघ में दबे स्वर में यह चर्चाएं शुरू हो चुकी थीं कि कोई तो गड़बड़ हुई है.’

वे आगे लिखते हैं, ‘आरएसएस संगठनात्मक रूप में सामाजिक-राजनीतिक नेटवर्क बनाने में तो कुशल है पर इन लड़ाइयों में चालबाज़ी की ज़रूरत होती है, वहां यह असफल हो जाती है.’ बस यहीं अमित शाह को समाधान मिला. पाटिल लिखते हैं…

‘सिर्फ एक आदमी ही भाजपा की इस कमजोरी को समझ पाया है और अब इस संस्था को रणनीतिक रूप से भी सुदृढ़ बना रहा है. इसलिए शनिवार शाम को उत्तर प्रदेश में पहले चरण के मतदान ख़त्म होने के बाद भाजपा ने इस मौके को बिहार की तरह हाथ से जाने नहीं दिया. बजाय हतोत्साहित होने के वे हर स्तर पर इससे लड़ने के लिए सामने आए. मिसाल के तौर पर, हिंदी माध्यम के मीडिया से आई कई रिपोर्टों में कहा गया, ‘भाजपा पश्चिमी यूपी में ज़बर्दस्त जीत दर्ज करवाने वाली है’, यहां तक कि एक ‘लीक एग्ज़िट पोल’ के साथ पार्टी के उद्देश्य लिखा हुआ एक संदेश भी ह्वाट्सऐप पर शेयर किया जाने लगा. कैडर के मनोबल को गिरने नहीं दिया जा सकता था, खासकर उन इलाकों में जहां अगले ही चरण में मतदान था. फिर हमने देखा की लखनऊ और कानपुर में युद्ध स्तर पर प्रचार शुरू हुआ. सामन्यतया इन्हीं दो बड़े शहरों से छोटे सेंटरों पर जानकारी पहुंचती है, इसलिए यहां प्रचार दोगुनी तेज़ी से होने लगा. उदाहरण के लिए, दूसरे चरण में आज़म खान के क्षेत्र रामपुर में ह्वाट्सऐप का एक मैसेज खूब चला जहां लखनऊ के किसी अख़बार के सूत्रों के हवाले से उत्तर प्रदेश के ‘90% हिंदुओं के साथ आने की’ बात कही गई थी. अमित भाई शाह को बिहार से सबक मिल चुका था और वो इस बार इस मौके को ऐसे हाथ से जाने नहीं दे सकते थे.’

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तन्मय शंकर का फेसबुक प्रोफाइल पेज

वरिष्ठ पत्रकार विद्या सुब्रह्मण्यम ने पहली बार मुझे इस लेख के बारे में बताया. फिर विद्या ने 7 मार्च को लिखे एक लेख  में कहा, ‘मुझे नहीं पता कि पाटिल साहब को कोई भीतरी जानकारी है या वो सिर्फ़ अंदाज़ा लगा रहे हैं, पर वो जो कह रहे हैं बिल्कुल वैसा ही दूसरे चरण के मतदान के बाद हुआ है. मैं उस वक़्त पश्चिमी यूपी में ही थी जब दैनिक जागरण ने वो एग्ज़िट पोल प्रकाशित किया था, जहां आंकड़ों में बाकियों से पीछे छूटने के बावजूद भाजपा को जीतते हुए बताया गया था. हालांकि दिलचस्प बात यह थी कि चुनाव आयोग के आदेश पर इस एग्ज़िट पोल को फ़ौरन ही हटा दिया गया था पर उस समय मेरी गाड़ी के ड्राइवर समेत मैं ढेरों लोगों से मिली, जो इसी पोल को सही बता रहे थे.’

क्या दैनिक जागरण द्वारा ग़ैर-क़ानूनी रूप से प्रकाशित यह ‘लीक एग्ज़िट पोल’ भाजपा और संघ द्वारा चुनावी जीत सुनिश्चित करने की रणनीति का हिस्सा था? कौन है यह सुनील आर, जिसने इस अख़बार से जुड़े संघ कार्यकर्ता तक यह पोल पहुंचाया? कौन था जिसने जागरण के मालिक-संजय और सुकृति गुप्ता को कानून के ख़िलाफ़ जाने वाले इस एग्ज़िट पोल को छापने के लिए राज़ी किया?

इस सब के बीच बेचारे तन्मय शंकर को अख़बार से हटाकर जागरण-एमएमआई के दूसरे वेंचर thebakerymart.com में ट्रांसफर कर दिया गया है, पर फिर भी कई कड़ियां ऐसी हैं कि अगर उत्तर प्रदेश पुलिस और चुनाव आयोग चाहे तो उन्हें जोड़कर इस मामले के पीछे छिपे असली चेहरों को सामने ला सकते हैं.

 

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