मामले में अब तक 30 गवाह बयान से मुकरे. नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कोर्ट ने कहा कि गवाहों को सुरक्षा देना सीबीआई का दायित्व. मूक दर्शक नहीं बनी रह सकती.
सोमवार को गुजरात के चर्चित सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर मामले की सुनवाई के दौरान दो और गवाहों के अपने बयान से मुकरने के बाद हाईकोर्ट ने सीबीआई से पूछा कि उसने गवाहों की सुरक्षा के लिए क्या कदम उठाए हैं, जिससे वे ‘निडर’ होकर अपनी गवाही दे सकें.
कोर्ट की यह टिप्पणी इस मामले में अभियोजन पक्ष द्वारा पेश गवाहों के लगातार पहले दिए गए बयानों से मुकरने के बाद आई है. 23 पूर्व पुलिस अधिकारियों सहित अन्य आरोपियों की सुनवाई में अब तक पेश 40 गवाहों में सोमवार तक 30 गवाह अपने बयान से मुकर चुके हैं.
मामले को सुन रही जस्टिस रेवती मोहिते डेरे ने कहा कि यह सीबीआई की जिम्मेदारी है कि वे अपने गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित करे, जिससे वे बिना किसी डर या दबाव के स्पेशल कोर्ट के सामने गवाही दे सकें.
जस्टिस मोहिते डेरे ने कहा, ‘क्या यह सुनिश्चित करना सीबीआई की जिम्मेदारी नहीं है कि उसके गवाह सुरक्षित हों, जिससे वे बिना किसी डर के आरोपी के खिलाफ गवाही दे सकें. जब स्पेशल कोर्ट के सामने इतने गवाह बयान से पलट चुके हैं, ऐसे में क्या सीबीआई उन्हें कोई सुरक्षा दे रही है. सिर्फ चार्जशीट दाखिल करने से आपकी जिम्मेदारी खत्म नहीं हो जाती. गवाहों को सुरक्षा देना आपका दायित्व है.’
मालूम हो कि सोहराबुद्दीन के भाई रुबाबुद्दीन द्वारा पुलिस अधिकारियों डीजी वंजारा, दिनेश एमएन और राजकुमार पांडियन को बरी करने के ख़िलाफ़ दायर याचिका सहित कोर्ट सीबीआई द्वारा राजस्थान पुलिस के कॉन्स्टेबल और गुजरात पुलिस के अधिकारी एनके अमीन को बरी करने के ख़िलाफ़ दो याचिकाओं की सुनवाई कर रहा था.
एनके अमीन गुजरात पुलिस के अधिकारी हैं, जिन पर सोहराबुद्दीन, उनकी पत्नी कौसर बी और उसके साथी तुलसीराम प्रजापति के कथित फर्जी एनकाउंटर की साजिश में शामिल होने का आरोप है.
अमीन पर आरोप साबित करने के लिए सीबीआई ने नाथूबा जडेजा को पेश किया था, जो 2005 में एनकाउंटर से पहले उस गाड़ी को चला रहे थे, जिसमें कथित तौर पर सोहराबुद्दीन और उनकी पत्नी को आरोपी तक ले जाया गया था.
हाईकोर्ट में पेश सीबीआई रिकॉर्ड के अनुसार जडेजा ने जांच एजेंसी को दिए बयान में कहा था कि उन्होंने अमीन को एनकाउंटर की जगह और साथ ही उस जगह भी देखा था, जहां कथित तौर पर कौसर बी के शव को जलाया गया था.
अमीन के वकील महेश जेठमलानी ने इन आरोपों को नकारते हुए बताया कि जडेजा ने पहली बार गुजरात एटीएस के सामने दिसंबर 2005 में बयान देने के बाद कई बार अपना बयान बदला और आखिर में इससे पीछे हट गए.
जेठमलानी ने यह भी कहा कि जडेजा का बयान मजिस्ट्रेट के सामने रिकॉर्ड नहीं हुआ था, इसलिए इसे सबूत के रूप में स्वीकार्य नहीं माना जा सकता. साथ ही हाल ही में मुंबई के स्पेशल सीबीआई कोर्ट के सामने वे अपने बयान से मुकर भी गए हैं.
इस पर जस्टिस मोहिते डेरे ने सीबीआई से सवाल किया कि क्या उन्होंने जडेजा या बार-बार बयान बदल रहे गवाहों के खिलाफ कोई कानूनी कदम उठाया या झूठी गवाही का कोई मामला दर्ज किया है.
इस पर सीबीआई के वकील अनिल सिंह ने जवाब देने के लिए वक्त मांगा, जिस पर नाराज जस्टिस मोहिते डेरे ने कहा कि वे (सीबीआई) एक मूक दर्शक बने नहीं रह सकते.
उन्होंने कहा, ‘अगर आपका यह रवैया है तो आपको यह केस चलाने की जरूरत नहीं है. आप गवाहों को क्या सुरक्षा दे रहे हैं? वे अपने बयान से पलट रहे हैं. क्या इसी गंभीरता से सीबीआई यह ट्रायल चलाना चाहती है?’
उन्होंने यह भी कहा कि इस मामले में कोर्ट को सीबीआई से जिस तरह का सहयोग मिलना चाहिए, वह नहीं मिल रहा है.
ज्ञात हो कि इस मामले कि सीबीआई के स्पेशल कोर्ट में प्रतिदिन सुनवाई हो रही है, जहां सोमवार को पेश तीन गवाहों में से दो अपने बयान से पलट गए.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार इन दोनों को अहमदाबाद में दिसंबर 2006 में गुजरात एटीएस द्वारा पंच गवाह (जिसके सामने मामले का पंचनामा भरा गया हो) के रूप में पेश किया गया था.
इन दोनों ने 2010 में दर्ज बयान में कहा था कि वे मामले के एक आरोपी मुकेश परमार (तत्कालीन एटीएस डीएसपी) से मिले थे, लेकिन सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान वे इस बात से मुकर गए.
(समाचार एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)