फिलिस्तान पर मोदी सरकार के बदले रुख़ का अर्थ यह है कि इज़रायल के फिलिस्तीनी ज़मीन पर अवैध क़ब्ज़े को लेकर भारत का रवैया नरम हो गया है.
नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी फिलिस्तीन का आधिकारिक दौरा करनेवाले पहले प्रधानमंत्री हो सकते हैं, लेकिन 10 फरवरी को रामल्ला में अपने तीन घंटे के पड़ाव में उन्होंने एक और चीज पहली बार की. फिलिस्तीन को लेकर भारत का अब तक का मत यह रहा था कि फिलिस्तीन को पूर्ण स्वतंत्रता और राज्य की मान्यता हासिल करने के लिए यह जरूरी है कि इजरायल पूर्वी यरुशलम समेत फिलिस्तीनी इलाके में किए गए अपने सभी अवैध कब्जे समाप्त करे, लेकिन नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत के इस पक्ष में नरमी आ गई है.
फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास की उपस्थिति में दिए गए एक पहले से तैयार भाषण में मोदी ने एक ‘संप्रभु, स्वतंत्र’ फिलिस्तीन का समर्थन किया, लेकिन उन्होंने ऐसा करते हुए दो विशेषणों को गायब कर दिया- ‘अविभाजित’ और ‘व्यवहारिक’.
ये फिलिस्तीन को लेकर भारतीय कूटनीति की किताब से गायब होनेवाले नए शब्द हैं. इससे पहले हम इजरायल और फिलिस्तीन के बीच संघर्ष की समाप्ति के लिए – ‘दो राज्य के समाधान’ (टू स्टेट सॉल्यूशन) और ‘पूर्वी यरुशलम को भविष्य के ‘फिलिस्तीन की राजधानी’ बनाने की बात को भारतीय कूटनीति की किताब से गायब होता देख चुके हैं.
इजरायल-फिलिस्तीन मामलों पर नजर रखनेवाले जानकार भारत के पक्ष में बदलाव का संभावित कारण अमेरिका द्वारा प्रस्तावित और इजरायल द्वारा समर्थित एक नई शांति योजना को मान रहे हैं, जिस पर शायद भारत ने भी दांव लगाने का मन बना लिया है.
10 फरवरी को प्रधानमंत्री मोदी ने (जो जॉर्डन के राजा से मुलाकात के बाद हेलीकॉप्टर से जॉर्डन की राजधानी अम्मान से रामल्ला पहुंचे थे) राष्ट्रपति अब्बास के बगल में खड़े होकर हिंदी में कहा – ‘भारत फिलिस्तीन के शांपिपूर्ण माहौल में शीघ्र एक संप्रभु, स्वतंत्र देश बनने की आशा करता है.’
शब्द-प्रयोग में यह बदलाव मोदी द्वारा फिलिस्तीन को लेकर भारत के परंपरागत पक्ष के स्पष्टीकरण के दो महीने से भी कम समय के बाद आया है. 25 नवंबर को उन्होंने ‘फिलिस्तीनी जनता के साथ एकजुटता के अंतरराष्ट्रीय दिवस’ के मौके पर एक बयान जारी किया था. उन्होंने कहा था, ‘हम जल्द से जल्द एक संप्रभु, स्वतंत्र, अविभाजित और व्यवहारिक फिलिस्तीन राज्य के सपने के पूरे होने की आशा करते हैं, जो इजरायल के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व में रह सके.’
मई, 2017 में नई दिल्ली में भी अब्बास के बगल में खड़े होकर मोदी ने सार्वजनिक तौर पर ‘संप्रभु, स्वतंत्र, अविभाजित और व्यवहारिक’ फिलिस्तीन की उम्मीद जताई थी. भारत ने मोदी की इजरायल यात्रा से पहले फिलिस्तीनी राष्ट्रपति को भारत आने का निमंत्रण दिया था.
भारतीय कूटनीतिक परंपरा को तोड़ते हुए यात्रा का यह कार्यक्रम सिर्फ इजरायल तक सीमित था और फिलिस्तीन इसमें शामिल नहीं था.
नई दिल्ली के इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस में पश्चिमी एशिया के विशेषज्ञ पीआर कुमारस्वामी ने उस समय कहा था कि मोदी द्वारा ‘संयुक्त’ फिलिस्तीन का जिक्र भारत के मौजूदा इजरायली सरकार से अलग राय को दिखाता है, जो ‘एक राज्य के समाधान’ (वन स्टेट सॉल्यूशन)- यानी ‘फिलिस्तीनी राज्य के बगैर इजरायल’ के पक्ष में झुक रही है.
उन्होंने इस ओर ध्यान दिलाया कि फिलिस्तीनी जनता करीब एक दशक से व्यावहारिक तौर पर दो अलग राजनीतिक इलाकों में रह रही है- एक, फिलिस्तीनी नेशनल अथॉरिटी के तले वेस्ट बैंक (पश्चिमी तट) और दूसरा गाजा जिस पर इस्लामी फिलिस्तीनी पार्टी हमास का शासन है.
एक अविभाजित और व्यवहारिक फिलिस्तीन के लिए समर्थन का मतलब है कब्जा किए गए पश्चिमी तट में जमीन (और भूमिगत जल-स्रोतों) के बड़े क्षेत्र में बस्तियां बसाने की इजरायली कोशिशों का विरोध करना. लेकिन,मोदी और इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के बीच आपसी गरमाहट के बढ़ने के बाद भारतीय पक्ष इजरायली कब्जे को लेकर अपने विरोध को कम करता दिख रहा है.
अपने सेवाकाल के दौरान भारत की पश्चिमी एशिया नीति से जुड़े रहे एक पूर्व भारतीय राजनयिक ने कहा कि ‘अविभाजित’ और ‘व्यवहारिक’ शब्द को हटाने का मतलब संभवतः यह है कि नई दिल्ली ने यह मान लिया है कि 1967 से पूर्व की, यानी इजरायल द्वारा पश्चिमी बैंक और गाज़ा पर अवैध कब्जा करने से पहले की, सीमारेखा पर लौटना अब संभव नहीं है.
उन्होंने कहा, ‘फिलिस्तीनी क्षेत्र अब आपस में जुड़े हुए नहीं रह गए हैं. वे चारों तरफ बिखरे हुए हैं और उनके बीच में इजरायली जमीनें हैं.’
मोदी का नया सिद्धांत इजरायल के सत्ताधारी दल लिकुद पार्टी के अनुरूप ही है, जिसका यह मानना है कि इजरायल की सुरक्षा के लिहाज से फिलिस्तीनियों की पहुंच बंदरगाहों और हवाई अड्डों तक नहीं होनी चाहिए.
जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में वेस्ट एशियन स्टडीज के प्रोफेसर एके पाशा का कहना है कि भारत द्वारा ‘अविभाजित’ और ‘व्यवहारिक’ शब्द को हटाए जाने को ‘जमीनी हकीकतों के आईने में देखे जाने की जरूरत है, जिसे वर्तमान शांति योजना में इजरायलियों द्वारा निर्विवाद तथ्य के तौर पर पेश किया जा रहा है.’
2006 से 2008 के बीच फिलिस्तीन में भारतीय राजनयिक प्रतिनिधि रहे ज़िक्रुर रहमान ने कहा, जैसा कि मोदी के बयान से पता चलता है, फिलिस्तीन को लेकर भारत के पक्ष में निश्चित ही बड़ा बदलाव आया है.
उन्होंने द वायर से कहा, ‘इजरायल के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व में रहनेवाले संप्रभु, स्वतंत्र और आपस में जुड़े फिलिस्तीन, जिसकी राजधानी पूर्वी यरुशलम होगी, को लेकर रहे भारत के ऐतिहासिक पक्ष और दृढ़ समर्थन को दोहराया नहीं जा रहा है… भारत इससे कतरा रहा है.’
रहमान ने यह भी कहा कि यह जरूर है कि भारतीय प्रधानमंत्री ने फिलिस्तीन की यात्रा की, लेकिन भारत के सार्वजनिक बयानों को देखें, तो यह इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के घोषित पक्ष के समर्थन में एक सोचे-समझे बदलाव को दिखाता है. उन्होंने कहा, इजरायली जमीन पर तथ्यों का निर्माण कर रहे हैं और जिन्हें जमीनी हकीकत का नाम दिया जा रहा है.’
पाशा ने इस ओर ध्यान दिलाया कि इजरायल, ईरान के खिलाफ अरब जगत के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने की कोशिश के तहत फिलिस्तीन के मुद्दे पर मिस्र, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) जैसी क्षेत्रीय शक्तियों के साथ पींगें बढ़ा रहा है.
लेकिन, रहमान ने कहा, किसी अरब देश के लिए पूर्वी यरुशलम जैसे केंद्रीय मसले को छोड़ देना बहुत कठिन होगा. अमेरिकी दूतावास को यरुशलम लेकर जाने के डोनाल्ड ट्रंप के फैसले के बाद भारत ने एक कमजोर सी प्रतिक्रिया दी थी, जिसके बाद फिलिस्तीनी राजदूत को नई दिल्ली से ज्यादा मजबूत बयान देने के लिए कहना पड़ा.
भारत ने हालांकि, संयुक्त राष्ट्र महासभा में अरब लीग द्वारा प्रायोजित उस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया जिसमें अमेरिका को यरुशलम की स्थिति में बदलाव लाने वाला कोई कदम नहीं उठाने के लिए कहा गया था.
मोदी के रामल्ला भाषण में दो-राष्ट्र प्रस्ताव का जिक्र न होना समझ में आनेवाला था, क्योंकि पिछले एक साल से यह विचार भारतीय कूटनीतिक बयानों से गैरहाजिर रहा है. मई, 2017 में फिलिस्तीनी राष्ट्रपति की यात्रा के दौरान भी मोदी ने इसका हवाला नहीं दिया था.
मोदी की रामल्ला यात्रा के दौरान भारत और फिलिस्तीन के बीच पांच करार हुए, जिसमें एक 3 करोड़ अमेरिकी डॉलर की लागत के एक सुपरस्पेशलिटी अस्पताल का निर्माण, एक स्त्री सशक्तिकरण केंद्र, एक राष्ट्रीय प्रिंटिंग प्रेस, दो स्कूल और एक नए स्कूल की एक मंजिल का निर्माण शामिल है. भारत फिलिस्तीन में एक कूटनीतिक संस्थान खोलने के लिए भी राजी हो गया है.
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