इरोम शर्मिला: 16 साल का संघर्ष और 90 वोट

इरोम पीपुल्स रिइंसर्जेंस एंड जस्टिस अलाएंस नाम की पार्टी बनाकर चुनाव मैदान में उतरी थीं. इरोम से ज़्यादा नोटा को मिले वोट.

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इरोम पीपुल्स रिइंसर्जेंस एंड जस्टिस अलाएंस नाम की पार्टी बनाकर चुनाव मैदान में उतरी थीं. इरोम से ज़्यादा नोटा को मिले वोट.

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इरोम शर्मिला. (फोटो: अखिल कुमार)

इस बार मणिपुर विधानसभा चुनाव इस मामले में ख़ास रहा क्योंकि 16 साल के अनशन के बाद मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला चुनाव मैदान में थीं. इरोम ने सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (आफस्पा) के ख़िलाफ़ 16 वर्ष तक भूख हड़ताल की थी. भूख हड़ताल ख़त्म करने के बाद वह इस उम्मीद के साथ चुनाव में उतरी थीं कि जीत के बाद वे राजनीति में आएंगी और इस क़ानून को ख़त्म करेंगी.

हालांकि ऐसा हो नहीं सका. मणिपुर की जनता ने संघर्ष की राजनीति की जगह उस यथास्थितिवादी राजनीति का चुनाव किया जिसके ख़िलाफ़ इरोम 16 वर्षों से लड़ रही थीं. इरोम विधानसभा चुनाव में थउबल सीट से मुख्यमंत्री ओकराम ईबोबी सिंह के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ीं, लेकिन उन्हें मात्र 90 वोट ही मिल सके. इस सीट पर उनसे ज़्यादा वोटा नोटा (नन आॅफ द अबव) को मिला. 143 लोगों ने नोटा पर बटन दबाया, जबकि इरोम को मात्र 90 वोट मिले. मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह ने चुनाव जीत लिया है.

मणिपुर के मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह ने भाजपा के एल. बसंत सिंह को 10,400 मतों से हराकर जीत हासिल की. ओकराम इबोबी सिंह को 18,649 वोट मिले. इस सीट से भाजपा उम्मीदवार लीतानथेम बसंता सिंह को 8179 वोट मिले.

तृणमूल कांग्रेस के लीशांगथेम सुरेश सिंह को 144 मत मिले. जबकि निर्दलीय प्रत्याशी डॉ. अकोइजम मंगलेमजाओ सिंह को 66 वोट मिले. इस सीट पर इरोम शर्मिला चौथे स्थान पर रहीं.

मणिपुर की आयरन लेडी कहलाने वाली इरोम शर्मिला ने जब अपनी भूख हड़ताल ख़त्म की थी तो उन्हें काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था. समाजशास्त्री नंदिनी सुंदर ने ट्वीट किया, ‘कम से कम 90 लोगों में कुछ नैतिकता और कुछ आशा बची थी.’

कथाकार मैत्रेयी पुष्पा ने अपनी फेसबुक वॉल पर लिखा, इरोम शर्मिला, तुम को तुम्हारे राज्य में केवल नब्बे वोट मिले हैं. तुमने स्त्रियों की सुरक्षा के लिए सोलह साल अनशन उपवास रख कर संघर्ष किया. क्या इस राज्य में नब्बे ही औरतें थीं? नहीं, वोट इसलिये नहीं मिले क्योंकि तुम्हारे ऊपर किसी आका की कृपा नहीं थी, तुमने अपने संघर्ष के दम पर यह फ़ैसला लिया था. मगर हमारे देश की स्त्रियां अपना फ़ैसला आज भी अपने पुरुषों पर छोड़ती हैं.’

संजीव सचदेवा ने फेसबुक पर लिखा है, ‘इरोम शर्मिला तेरी हार तुझे मिले हुए मात्र 90 वोट साबित करते हैं कि जनता को उसके लिए भूखे रहने वाले नेता नहीं पसंद बल्कि हवाई जहाज से उड़ने वाले नोट छीनने वाले खाऊ नेता ही पसंद हैं. तेरी हार यहां के प्रजातंत्र के गिरे हुए स्तर को साबित करती है.’