देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक भारतीय स्टेट बैंक समेत अन्य सरकारी बैंक एनपीए और गलत ढंग से दिए गए ऋण की भरपाई के चलते पिछले दो वित्त वर्षों से घाटे में चल रहे हैं.
नई दिल्ली: देश के वित्त मंत्री हर वर्ष बजट में सरकारी बैंकों को उनका कामकाज चलाने के लिए एक निश्चित राशि का प्रावधान करते हैं. इसी कड़ी में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को घाटे से उबारने के लिए केंद्र सरकार ने पिछले 11 साल में लगभग 2.6 लाख करोड़ रुपये की पूंजी डाली है.
टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, वित्त मंत्री के तौर पर प्रणब मुख़र्जी, पी चिदंबरम और अरुण जेटली के कार्यकाल में यह रकम सार्वजनिक बैंकों की दी गई है.
सार्वजनिक बैंकों के पुनर्पूंजीकरण (रीकैपिटलाइजेशन) के लिए इस वित्तीय वर्ष और अगले वित्त वर्ष के लिए दिए गए 1.45 लाख करोड़ रुपये को अलग कर दें तो सरकार 2010-11 और 2016-17 के बीच 1.15 करोड़ रुपये बैंकों को दे चुकी है.
बैंकों को दी गई रकम 2जी के कैग द्वारा अनुमानित घाटे से भी ज्यादा है. यह रकम इस वर्ष ग्रामीण विकास के लिए आवंटित की गई राशि के दोगुने से ज्यादा है.
इस दौरान बैंकों का लाभ 1.8 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया. मगर देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) समेत अन्य सरकारी बैंक एनपीए और गलत ढंग से दिए गए ऋण की भरपाई के चलते पिछले दो वित्त वर्षों से घाटे में चल रहे हैं.
इस साल भी बैंकों की हालत में बदलाव होता नहीं दिख रहा है क्योंकि देश के सबसे बड़े कर्ज देने वाले बैंक एसबीआई ने पिछले 18 सालों में पहली बार तिमाही घाटा दर्ज किया है. वहीं, बैंक ऑफ बड़ौदा के अलावा अन्य बैंकों का भी प्रदर्शन खराब रहा है.
रेटिंग एजेंसी केयर के मुताबिक, ‘एनपीए की बात करें तो ऐसा नहीं लगता कि पब्लिक सेक्टर बैंकों का बुरा दौर समाप्त हो गया है.’