पटना विश्वविद्यालय: छात्रसंघ चुनाव के नतीजों पर सवाल क्यों उठ रहे हैं?

बीते शनिवार चुनाव परिणाम आने के बाद से ही छात्र अध्यक्ष पद के विजेता के नामांकन में गड़बड़ी और चुनाव में धांधली का आरोप लगाते हुए चुनाव रद्द करने की मांग कर रहे हैं.

बीते शनिवार चुनाव परिणाम आने के बाद से ही छात्र अध्यक्ष पद के विजेता के नामांकन में गड़बड़ी और चुनाव में धांधली का आरोप लगाते हुए चुनाव रद्द करने की मांग कर रहे हैं.

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फोटो साभार: फेसबुक

बिहार के तीन सबसे अहम दल राजद, जदयू और भाजपा हैं. इनके शीर्ष नेता क्रमशः लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार और सुशील मोदी हैं. आज पक्ष-विपक्ष की राजनीति के शीर्ष पर मौजूद ये नेता पटना विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति की उपज हैं.

उसी पटना विश्वविद्यालय में पांच वर्षों बाद बीते शनिवार को छात्रसंघ चुनाव यानी पुसु चुनाव संपन्न हुए. लेकिन यह चुनाव विवादों में आ गया है. एक ओर अध्यक्ष पद पर चुने गए दिव्यांशु भारद्वाज के नामांकन पर सवाल उठ रहे हैं तो दूसरी ओर छात्र संगठनों द्वारा चुनाव में धांधली के आरोप लगाए जा रहे हैं.

बीते तीन दशक से ज्यादा समय में यह दूसरा मौका था जब पुसु चुनाव हुए. इस चुनाव में सेंट्रल पैनल के पांच महत्त्वपूर्ण पदों में से तीन पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने जीत दर्ज की. साथ ही पुसु अध्यक्ष पद पर जीतने वाले दिव्यांशु भारद्वाज भी एबीवीपी के बागी उम्मीदवार के बतौर ही चुनाव में उतरे थे.

कभी एबीवीपी के नेता रहे सुशील मोदी ने पुसु चुनाव परिणामों को राष्ट्रवादी शक्तियों को जीत बताया. उन्होंने ट्विटर पर लिखा, ‘पटना विश्वविद्यालय के छात्रों ने महागठबंधन (राजद-कांग्रेस) और वामपंथी विचार के उम्मीदवारों को पराजित कर स्पष्ट संदेश दिया कि वे बिहार के इस गौरवशाली परिसर को आतंकवाद और कश्मीर जैसे मुद्दे पर राष्ट्रविरोधी नारेबाजी का मंच नहीं बनने देंगे.’

एबीवीपी के अलावा सांसद पप्पू यादव की पार्टी जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) के अपेक्षाकृत नए-नवेले छात्र संगठन जन अधिकार छात्र परिषद का प्रदर्शन भी बेहतर रहा. सेंट्रल पैनल के संयुक्त सचिव पद पर इस संगठन के आजाद चांद ने जीत दर्ज की तो अध्यक्ष पद पर संगठन के प्रदेश अध्यक्ष गौतम आनंद ने दिव्यांशु भारद्वाज को कड़ी टक्कर दी.

साथ ही छात्र परिषद के चार काउंसलर भी जीते हैं. गौरतलब है कि पप्पू यादव ने चुनाव के ठीक पहले पटना विश्वविद्यालय के आस-पास सस्ता भोजन उपलब्ध कराना भी शुरू किया. उन्होंने छात्रों को बीस रुपये में भरपेट खाना उपलब्ध कराने के लिए पटना कॉलेज के सामने ‘पप्पू-रंजीत जन आहार कैंटीन’ की शुरुआत की है.

चुनाव प्रचार करते राजद-एनएसयूआई के प्रत्याशी (फोटो: मनीष शांडिल्य)
चुनाव प्रचार करते राजद-एनएसयूआई के प्रत्याशी (फोटो: मनीष शांडिल्य)

पटना यूनिवर्सिटी के दो बड़े वामपंथी छात्र संगठनों, आॅल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन यानी एआईएसएफ और आॅल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन यानी आईसा ने इस बार का चुनाव मिलकर लड़ा था लेकिन सेंट्रल पैनल में इस गठबंधन का कोई प्रत्याशी नहीं जीत पाया.

2012 में अट्ठाइस साल बाद जब पुसु का पिछला चुनाव हुआ था तब अलग-अलग लड़ने के बावजूद एआईएसएफ ने सेंट्रल पैनल के उपाध्यक्ष और महासचिव पद पर जीत दर्ज की थी, जबकि अध्यक्ष पद पर आईसा बहुत कड़े मुकाबले में एबीवीपी से हारा था.

इस बार एआईएसएफ के लिए राहत की बात यह रही कि काउंसलर के कुल तेईस पदों में से छह पद उसके खाते में गए. सबसे ज्यादा काउंसलर एआईएसएफ के ही जीते हैं.

दिव्यांशु भारद्वाज पर लगे आरोपों पर जन अधिकार छात्र परिषद के प्रदेश अध्यक्ष गौतम आनंद कहते हैं, ‘भारद्वाज ने साल 2014 में पटना यूनिवर्सिटी के बीएन कॉलेज में राजनीतिक शास्त्र विभाग में आॅनर्स की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया. इसकी परीक्षा में असफल होने पर उन्होंने उसी सत्र में बिना माइग्रेशन सर्टिफिकेट लिए किसी अन्य विश्वविद्यालय में बीए ऑनर्स में दाखिला ले लिया और फिर उस डिग्री के आधार पर पटना यूनिवर्सिटी के स्नातकोत्तर विभाग में नामांकन कराया. हमारा आरोप है कि एक ही सत्र में उन्होंने नियमित छात्र के रूप में दो जगह नामांकन कैसे कराया और फिर एक ही विश्वविद्यालय में दो-दो बार रजिस्ट्रेशन कैसे संभव हो गया.’

गौतम के संगठन सहित कई दूसरे संगठन भी गलत तरीके से नामांकन कर चुनाव लड़ने को लेकर दिव्यांशु के निर्वाचन को रद्द करने की मांग कर रहे हैं.

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फोटो: मनीष शांडिल्य

वहीं चुनावों में धांधली के बारे में एआईएसएफ के राज्य सचिव सुशील कुमार के आरोप हैं, ‘काउंसलर चुनाव में हमारे संगठन ने सबसे बड़ी जीत दर्ज की लेकिन सेंट्रल पैनल में हमारा कोई उम्मीदवार नहीं जीता, यह तथ्य चुनाव में गड़बड़ियों की ओर साफ-साफ इशारा करता है.’

वे आगे कहते हैं, ‘कई स्तरों पर चीजें सामने आई हैं. मतदान के दौरान स्याही का प्रयोग नहीं हुआ जिससे बोगस मतदान हुआ. इसके अलावे बूथ कैप्चरिंग, बिना आई कार्ड के मतदान की बातें भी सामने आई हैं. मतपेटियों पर सील नहीं लगाया गया. इसके साथ-साथ मतगणना के समय भी गड़बड़ी हुई. बूथ के अनुसार मतगणना का प्रावधान है मगर ऐसा नहीं किया गया. हमने मतदान से लेकर मतगणना तक इसके खिलाफ आवाज उठाई लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा हमें धमकाया गया. मुख्य चुनाव अधिकारी ने तो शनिवार सुबह से फोन का जवाब तक नहीं दिया.’

एआईएसएफ मतगणना के बाद से ही छात्रसंघ चुनाव रद्द करने की मांग के लिए विरोध प्रदर्शन कर रहा है. इस मुद्दे पर उसकी तैयारी राज्यपाल से मिलने से लेकर अदालत का दरवाजा खटखटाने तक की है. एआईएसएफ के अलावा छात्र जदयू, छात्र लोजपा, एआईडीएसओ समेत कई दूसरे संगठन भी छात्रसंघ चुनाव रद्द करने की मांग कर रहे हैं.

इन आरोपों पर पटना यूनिवर्सिटी के वीसी प्रोफेसर रासबिहारी सिंह कहते हैं, ‘दिव्यांशु के नामांकन संबंधी आरोपों की जांच चल रही है. इसके आधार पर सही कदम उठाया जाएगा.’

वहीं चुनाव में हुए अनियमितता के आरोपों पर उनका कहना हैं, ‘सभी आरोप गलत हैं. चुनाव के दौरान मैंने खुद घूम-घूमकर देखा. कोई गड़बड़ी नहीं हुई. लेकिन हम ही चुनाव कराए हैं तो हम इसकी क्या जांच करेंगे. हम पर ही आरोप हैं तो हम कैसे जांच करें. वे चाहे तो राज्य सरकार, राज्यपाल या हाई कोर्ट से जांच की मांग कर सकते हैं.’

छात्राओं ने नहीं दिखाई दिलचस्पी

इस बार छात्रसंघ चुनाव में विद्यार्थियों ने मतदान में खुलकर हिस्सा नहीं लिया. करीब 43 फीसदी विद्यार्थियों ने ही वोट डाला. खासकर छात्राओं ने बहुत कम दिलचस्पी दिखाई.

पटना विश्वविद्यालय इस मायने में संभवतः अकेला विश्वविद्यालय है जहां आधी से ज्यादा तादाद छात्राओं की है. करीब बीस हजार वोटरों में केवल दो महिला काॅलेजों पटना वीमेंस काॅलेज और मगध महिला महाविद्यालय में ही आठ हजार के करीब वोटर हैं लेकिन इन दो काॅलेजों में कुल मिलाकर करीब 27 फीसदी ही मतदान हुआ.

चुनाव में महिला प्रत्याशियों की भागीदारी भी कम देखी गई. 154 उम्मीदवारों में सिर्फ 35 छात्राएं ही चुनावी मैदान में थीं.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)

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