जज लोया की मौत की न्यायिक या एसआईटी जांच हो: प्रशांत भूषण

एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान भूषण ने दावा किया कि जज लोया की मौत दिल का दौरा पड़ने से नहीं हुई है जैसा कि सरकारी अधिकारी दावा कर रहे हैं.

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वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण. (फोटो: पीटीआई)

एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान भूषण ने दावा किया कि जज लोया की मौत दिल का दौरा पड़ने से नहीं हुई है जैसा कि सरकारी अधिकारी दावा कर रहे हैं.

वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण. (फोटो: पीटीआई)
वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण. (फोटो: पीटीआई)

नागपुर: वकील से सामाजिक कार्यकर्ता बने प्रशांत भूषण ने सोहराबुद्दीन शेख़ फ़र्ज़ी मुठभेड़ कांड की सुनवाई करने वाले जज बीएच लोया की मौत की न्यायिक जांच या विशेष जांच दल द्वारा जांच कराए जाने की बीते शनिवार को मांग की.

शनिवार को नागपुर में एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान भूषण ने दावा किया कि लोया की मौत दिल का दौरा पड़ने से नहीं हुई है जैसा कि सरकारी अधिकारी दावा कर रहे हैं. उन्होंने मांग की कि इसकी जांच होनी चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘मैं याचिका दायर कर लोया की मौत की न्यायिक जांच या एसआईटी जांच की मांग करूंगा. यदि यह दिल का दौरा नहीं था तब इस बात की जांच होनी चाहिए कि मौत की वजह क्या थी.’

उन्होंने दावा किया, ‘सीबीआई यह जांच नहीं कर सकती है क्योंकि उस पर ढेर सारा सरकारी दबाव होता है. सरकार चाहती है कि इस मामले को तत्काल ख़ारिज कर दिया जाए.’

सोहराबुद्दीन शेख़ एनकाउंटर मामले की सुनवाई कर रहे लोया की एक दिसंबर 2014 को उस वक्त मौत हो गई थी, जब वह अपने एक सहकर्मी की बेटी की शादी में नागपुर गए थे. जज लोया की मौत की संदिग्ध परिस्थितियों पर उनके परिजनों द्वारा बीते नवंबर में सवाल उठाए गए थे.

इसके बाद मौत की जांच की जनहित याचिकाओं की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है, जहां 5 फरवरी को हुई सुनवाई में याचिकाकर्ताओं के वकीलों द्वारा मामले में दाख़िल दस्तावेजों में पाई गई विसंगतियों की ओर इशारा किया गया था.

ग़ौरतलब है कि विपक्षी सांसदों ने भी बीते 9 फरवरी को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को एक ज्ञापन सौंपकर सीबीआई की विशेष अदालत के जज बृजगोपाल हरकिशन लोया की मौत के मामले में न्यायालय की निगरानी में एसआईटी जांच कराने की मांग की है.

सांसदों ने कहा था कि उन्हें सीबीआई या एनआईए की जांच पर भरोसा नहीं है. कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और द्रमुक सहित कई राजनीतिक पार्टियों के सांसदों ने राष्ट्रपति से मुलाकात की और मांगों से युक्त ज्ञापन सौंपा था.

इस ज्ञापन पर तृणमूल कांग्रेस, सपा, एनसीपी, द्रमुक, राजद, आम आदमी पार्टी और वामपंथी पार्टियों सहित 15 पार्टियों के 114 सांसदों ने दस्तख़त किए थे.

मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले की सीबीआई जांच के आदेश दिए गए थे, तब दो बातें स्पष्ट रूप से कही गई थीं, पहली- इस मामले की सुनवाई गुजरात से बाहर हो, दूसरी- एक ही जज इस जांच को शुरू से अंत तक देखे.

लेकिन शीर्ष अदालत के दूसरे आदेश की अवहेलना हुई. मामले की जांच की शुरुआत जज जेटी उत्पत ने की, लेकिन अचानक वे इससे हट गए. 6 जून 2014 को जज उत्पत ने अमित शाह को इस मामले की सुनवाई में उपस्थित न होने को लेकर फटकार लगाई और उन्हें 26 जून को पेश होने का आदेश दिया. लेकिन 25 जून को 2014 को उत्पत का तबादला पुणे सेशन कोर्ट में हो गया.

इसके बाद जज बृजगोपाल लोया आए, जिन्होंने भी अमित शाह के उपस्थित न होने पर सवाल उठाए. उन्होंने सुनवाई की तारीख़ 15 दिसंबर 2014 तय की, लेकिन 1 दिसंबर 2014 को ही उनकी मौत हो गई.

उनके बाद सीबीआई स्पेशल कोर्ट में यह मामला जज एमबी गोसावी देख रहे थे, जिन्होंने दिसंबर 2014 के आखिर में अमित शाह को इस मामले से बरी करते हुए कहा कि उन्हें अमित शाह के ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं मिला.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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