कभी-कभी कुछ जज सरकार चलाने का प्रयास करते हैं: रविशंकर प्रसाद

क़ानून मंत्री ने कहा कि राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा उपाध्यक्ष की नियुक्ति में प्रधानमंत्री की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. फिर क्या ग़लत है कि अगर वे अपने क़ानून मंत्री के ज़रिये हाईकोर्ट के जजों की भी नियुक्ति करते हैं?

New Delhi: Law Minister Ravi Shankar Prasad speaks to media after the passage of Muslim Women (Protection of Rights of Marriage) Bill, 2017 by the Lok Sabha, outside Parliament in New Delhi on Thursday. PTI Photo by Kamal Singh (PTI12_28_2017_000162B)

क़ानून मंत्री ने कहा कि राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा उपाध्यक्ष की नियुक्ति में प्रधानमंत्री की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. फिर क्या ग़लत है कि अगर वे अपने क़ानून मंत्री के ज़रिये हाईकोर्ट के जजों की भी नियुक्ति करते हैं?

New Delhi: Law Minister Ravi Shankar Prasad speaks to media after the passage of Muslim Women (Protection of Rights of Marriage) Bill, 2017 by the Lok Sabha, outside Parliament in New Delhi on Thursday. PTI Photo by Kamal Singh (PTI12_28_2017_000162B)
(फोटो: पीटीआई)

केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने रविवार को पटना में आयोजित एक समारोह में कहा कि न्यायपालिका को अपनी सीमाएं नहीं लांघनी चाहिए.

प्रसाद ने भारत में राज्य न्यायाधिकरणों के द्वितीय राष्ट्रीय सम्मलेन के समापन समारोह को संबोधित करते हुए कहा, ‘देश के संविधान में विधायिका को कानून बनाने, कार्यपालिका को उसे क्रियान्वित करने और न्यायपालिका को उसकी व्याख्या करने का अधिकार दिया गया है. इस लक्ष्मण रेखा को न्यायपालिका द्वारा लांघा नहीं जाना चाहिए. ’

टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार, उन्होंने आगे कहा, ‘कानून बनाने का काम उन पर छोड़ा जाना चाहिए जिन्हें कानून बनाने के लिए चुना गया है और शासन चलाने का काम उन पर जिन्हें शासन चलाने के लिए चुना गया हो. शासन और उत्तरदायित्व साथ-साथ चलने चाहिए. कभी-कभी मैं कुछ न्यायाधीशों की ऐसी प्रवृत्ति देखता हूं कि वे शासन को भी चलाना चाहते हैं. वे शासन को अपने हाथ में नहीं ले सकते. अगर वे ऐसा करते हैं, तो उन्हें इसके लिए उत्तरदायी ठहराया जाएगा.’

मंत्री ने उच्चतम न्यायालय से गुहार लगाई कि वे स्वयं का आत्मनिरीक्षण करे और पता लगाए कि 1993 में कॉलेजियम व्यवस्था के अस्तित्व में आने के बाद से इसने कैसा काम किया है?

प्रसाद ने कहा, ‘मुझे कोई समस्या नहीं कि अगर मुद्दे पर राष्ट्रीय स्तर पर बहस होती है.’ इस मौके पर पटना हाईकोर्ट के तीन सेवारत जज जस्टिस अनिल कुमार उपाध्याय, जस्टिस राजीव रंजन प्रसाद और जस्टिस मोहित कुमार शाह भी मौजूद थे.

रविशंकर प्रसाद आगे बोले, ‘प्रस्तावित राष्ट्रीय न्यायाधीश नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) में उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, दो अन्य उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश, कानून मंत्री और दो प्रतिष्ठित व्यक्ति शामिल थे. एनजेएसी को ठुकराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर राजनेता (कानून मंत्री) जजों की नियुक्ति का हिस्सा होते हैं तो न्यायिक स्वतंत्रता पर सवाल उठेगा.’

उन्होंने सवाल पूछा, ‘देश के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा उपसभापति की नियुक्ति में प्रधानमंत्री की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. वही सशस्त्र बलों के तीनों मुखिया की नियुक्ति करते हैं, मुख्य चुनाव आयुक्त, यूपीएससी और कैग अध्यक्ष नियुक्त करते हैं. फिर क्या गलत है कि अगर प्रधानमंत्री अपने कानून मंत्री के जरिए हाईकोर्ट के जजों की भी नियुक्ति करते हैं?’

दैनिक जागरण की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने कहा कि देश में गणतंत्र लागू होने के बाद 1950 से 1993 तक देश के कानून मंत्री को जजों की नियुक्ति का अधिकार था. लेकिन, 1993 में कॉलेजियम व्यवस्था लागू कर दी गई. इसके बाद यह कहा जाने लगा कि सरकार द्वारा नियुक्त जज सरकार का पक्षधर होगा. लेकिन, 1993 के बाद ही देश की न्यायिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार के मामले उजागर हुए.

उन्होंने यह भी कहा कि देश के नागरिकों को हर तरह की सुविधा उपलब्ध कराने का दायित्व यदि किसी चुनी हुई सरकार पर है तो लोगों को समय पर न्याय दिलाना भी सरकार का ही दायित्व होना चाहिए.

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक,  कानून मंत्री ने कहा, ‘न्यायाधिकरणों में नियुक्ति का अधिकार न्यायपालिका की बजाय सरकार के पास होना चाहिए. योग्य लोगों को ही न्यायिक पदों पर नियुक्त किया जाना चाहिए. सिस्टम पारदर्शी होना चाहिए, ताकि न्यायाधिकरणों को जो भूमिका दी गई है, उसका निर्वहन सही तरीके से हो सके. मैं न्यायपालिका का सम्मान करता हूं, लेकिन कभी-कभी ऐसा लगता है कि कुछ जज सरकार चलाने का प्रयास करते हैं.’

उन्होंने कहा, भारत का संविधान स्पष्ट है. सुप्रीम कोर्ट को इस बात की भी समीक्षा करनी चाहिए कि कॉलेजियम सिस्टम आने के पूर्व जितने जजों की बहाली हुई थी, उसमें क्या बुराई थी और 1993 में कॉलेजियम सिस्टम आने के बाद जो बहाली हुई, उसमें क्या कमी थी?

वहीं, कार्यक्रम में मौजूद ऊर्जा मंत्री विजेंद्र प्रसाद यादव ने कहा कि न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका तीनों संविधान से बंधे हुए हैं. लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि तीनों एक-दूसरे को गड़बड़ बताते हैं. समाज के प्रति सबकी जिम्मेदारी समान है. उन्होंने कहा कि कहां है गरीबों के लिए न्याय? जितना खर्च न्यायपालिका पर किया जाता है उसके अनुपात में क्या हमें परिणाम मिल रहे हैं?