गोबिंदगढ़ क़िला: बाज़ार के हाथों में इतिहास का ज़िम्मा

अमृतसर के गोबिंदगढ़ क़िले में इतिहास की निशानियां सुरक्षित रहनी चाहिए, लेकिन पुरातात्विक विभाग को इमारत का ज़िम्मा देने के बजाय पंजाब सरकार ने बॉलीवुड अभिनेत्री दीपा साही को इसे वर्चुअल रियलिटी थीम पार्क में बदलने की ज़िम्मेदारी सौंपी है.

/

अमृतसर के गोबिंदगढ़ क़िले में इतिहास की निशानियां सुरक्षित रहनी चाहिए, लेकिन पुरातात्विक विभाग को इमारत का ज़िम्मा देने के बजाय पंजाब सरकार ने बॉलीवुड अभिनेत्री दीपा साही को इसे वर्चुअल रियलिटी थीम पार्क में बदलने की ज़िम्मेदारी सौंपी है.

Gobindgarh Fort FB5
गोबिंदगढ़ किला (सभी फोटो साभार: Gobindgarh Fort/facebook)

मैं गई तो थी सिखों की आन-बान व शान रहे राजा रणजीत सिंह का गोबिंदगढ़ का किला देखने पर अंदर जाते ही लगा किसी चौपाटी पर आ गए हैं. फुल वॉल्यूम म्यूजिक पर लड़के-लड़कियों का भांगड़ा, खाने-पीने की दुकानें और जगह-जगह निर्माण कार्य.

तय करना मुश्किल था कि यह ऐतिहासिक स्मारक है या फिर कोई ऐसा स्थल जिसका रंगारंग समारोहों के लिए विस्तार किया जा रहा है. नया निर्माण किले के भीतर ही नहीं, चारों ओर सुरक्षा के लिए बनी उसकी बेहद चौड़ी खाइयों तक में किया जा रहा था.

पूछने पर वहां मौजूद गार्डों को भी उस निर्माण के बारे में कुछ पता नहीं था बस वे इतना ही कह पाए कि ‘लगता है यहां कई कुछ नया बनेगा.’

हरमंदिर साहिब व अमृतसर शहर की मुसलमानों के बाहरी व भीतरी हमलों से सुरक्षा के लिए भंगी रियासत के प्रमुख गुज्जर सिंह ने इस किले की नींव 18वीं शताब्दी में रखी थी. तब वह सिख जत्थों के लिए बनाया गया छोटा-सा किला था, जिसे बाद में राजा रणजीत ने नए सिरे से बनवाया और सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह के नाम पर इसका नामकरण किया.

पंजाब पर अंग्रेजों का राज हो जाने पर 1849 में यह किला भी उनके पास चला गया और फिर आजादी के बाद भारतीय सेना के कब्जे में रहा. छावनी क्षेत्र में होने के कारण आम जनता की नजर में यह कभी आया ही नहीं.

यही कारण है कि आज भी अमृतसर के अधिकतर लोगों को शहर में इस किले के होने की जानकारी नहीं है. हैरिटेज के प्रति कुछ जागरूक लोगों के लगातार दबाव बनाए जाने के बाद 2009 में सेना ने किला केंद्र सरकार को सौंप दिया. तब तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसकी चाबी पंजाब सरकार को दे दी.

होना तो यह चाहिए था कि जनता के लिए खोले जाने से पहले इसकी मरम्मत व संरक्षण के लिए इसे राज्य के पुरातात्विक विभाग को सौंपा जाता और ‘पंजाब का शेर’ कहे जाने वाले राजा रणजीत सिंह की ऐतिहासिक धरोहर के रूप में जनता के लिए खोला जाता. पर पूरा किला सौंप दिया गया मुंबई की फिल्म अभिनेत्री दीपा साही को, इसे ‘वर्चुअल रियलिटी थीम पार्क’ में बदलने के लिए.

Deepa Sahi Gobindgarh Fort FB
किले के एक कार्यक्रम में अभिनेत्री दीपा साही

मायानगरी की अभिनेत्री की फर्म का नाम भी मायानगरी है और उन्हें रचनी भी एक मायानगरी ही है. उनसे यह उम्मीद करना कि वे इस ऐतिहासिक इमारत की ऐतिहासिकता को बचाए रखेंगी, उनके प्रति ज्यादती होगी. खासतौर से तब जब सरकार ने खुद उसे यह काम सौंपा हो और अंजाम देने के लिए धरोहर से छेड़छाड़ की पूरी व खुली छूट दी हो.

ऐतिहासिक स्थल पर हाट बाजार लगाने व रंगमंच चलाने के बारे में पूछे जाने पर केंद्रीय पुरातात्विक विभाग के पूर्व निदेशक डॉ. जमाल का कहना था, ‘यह अनाधिकृत व अवैध है. लालकिले में उसके दरवाजे पर कुछ दुकानें लगती हैं तो इसलिए कि वह बादशाहों के जमाने में भी लगती थीं. पर ऐसा नहीं कि किले के भीतर भी दुकानें व चाट-पकौड़ी के ठेले लगा दिए जाएं. पूरी दुनिया में ऐसा कहीं नहीं होता कि ऐतिहासिक स्मारक को व्यावसायिक केंद्र में बदल दिया जाए. अगर कोई ऐसा करता है तो वह गलत है. फिर चाहे वह स्मारक सरकार के अपने नियंत्रण में ही क्यों न हो.’

किले का बाजारीकरण किया जा रहा है, यह मुख्य द्वार पर प्रवेश टिकट लेने के साथ ही समझ आ जाता है. टिकट की कीमत 160 रुपये से लेकर 400 रुपये से ऊपर तक बताई जाती है, जिसमें थ्रीडी शो से लेकर भंगड़ा, गिद्दा, मोटर राइड, शाॅपिंग व हाट बाजार, खाना-पीना सब कुछ कर सकते हैं.

केवल घूमने की टिकट 25 रु. की है और वह आपको अंदर के टिकट काउंटर पर जाकर मिलती है. किले के बाहर तोप को देखकर लगता है कि आप किसी सैनिक इमारत में दाखिल हो रहे हैं.

अंदर के द्वार पर लगा घंटा उसके ऐतिहासिक होने का एहसास कराता है पर उसके बाद अंदर जाते ही वह एहसास खत्म हो जाता है. फव्वारे, हरी-भरी घास, कॉफी हाउस और माइक पर पंजाबी गीत और उस पर होता भंगड़ा, चारों ओर बिखरी तारे, दरियां. आप सोच में पड़ जाते है कि आप क्या देखने आए हैं!

तोषाखाना में गए तो फर्श- दीवारे सब आधुनिक साजो-सामान से संवरे हुए थे. नई टेक्नोलाॅजी से उस समय के सिक्कों को देखना तो आसान था पर तोषाखाना राजा रणजीत सिंह के समय क्या था और अंग्रेजों ने इसे कैसे अपने बारूदखाने में बदला, इसका वहां कुछ पता नहीं चल रहा था.

Gobindgarh Fort Collage

इसी तरह उसके ठीक सामने की इमारत में सीढ़ियां चढ़कर ऊपर पहुंचे तो उसके कमरों के फर्श व दीवारें आधुनिक मटीरियल से बदले जा चुके थे, कमरों में कुछ पुतले खड़े कर दिए गए थे, जो नए थे.

संभवतया किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम में काम आते हो, जिन्हें वहां सहेजकर खड़ा कर दिया गया था. बताने वाला कोई गाइड था नहीं सो वहां तैनात गार्डों ने ही बताया कि जनरल डायर इसी कमरे में आकर रहे थे और उसके ठीक सामने फांसीघर है.

हालांकि यह दोनों ही सूचनाएं गलत थीं और राजा रणजीत के समय यह इमारत किस काम आती थी यह उन्हें पता नहीं था. इसके बाद चार इमारतें और थीं, जिनमें से तीन पर प्रतिबंधित क्षेत्र लिखा हुआ था.

बची हुई एक इमारत का निचला हिस्सा दुकानों में तब्दील हो चुका है और ऊपर के हिस्से में थ्रीडी शो चलता है, जिसमें वर्चुअल स्टाइल में राजा रणजीत सिंह का इतिहास बताया जाता है. यहां फर्श और दीवारें उस नानकशाही ईंट के थे, जो उस समय इस्तेमाल की जाती थीं.

पर ये भी अधिक दिन रहने वाले नहीं क्योंकि किले के नवीनीकरण में हाट बाजार निर्माण के पहले चरण के बाद इस ढांचे को वर्चुअल रिएल्टी शो में बदलने का दूसरा चरण शुरू हो चुका है, जिसमें खाइयों में नया निर्माण चल रहा है और यां काम फिर प्रतिबंधित इमारतों में चलेगा.

इस चरण में यहां होटल, रेस्टोरेंट व काॅटेज बनेंगे. बॉलीवुड शो के लिए स्टेज बनाएं जाएंगे. पिछले आठ साल से किले के संरक्षण का काम कर रही दीपा साही अब तक यह पता नहीं लगा पाई कि कौन-सी इमारत क्या थी, किसने बनवाई और उसका उपयोग क्या था.

किले का निर्माण व इस्तेमाल राजा रणजीत सिंह और अंग्रेज प्रशासन दोनों ने ही किया. इस मायने में दोनों के निशान वहां होने चाहिए. पर अभी तो न वहां राजा रणजीत सिंह हैं न अंग्रेज. अभी तो दीपा साही की मायानगरी है और किले को मायानगरी में तब्दील करते उसके कारीगर व मजदूर.

कसूर दीपा साही का नहीं, उनका तो यही प्रोजेक्ट था, जिसे बादल सरकार ने मंजूरी दी. और अब कांग्रेस राज में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने उसके काम की सराहना करते हुए इस काम के लिए उसे खुलकर सहयोग देने की घोषणा अमृतसर में पिछले दिनों ही की है.

इतना ही नहीं वे तो दीपा के काम से इतने खुश हैं कि अमृतसर में एक और म्यूजियम का जिम्मा भी उसे देने जा रहे हैं. तो कहा जा सकता है कि आज जब स्वर्ण मंदिर व वाघा बार्डर की वजह से अमृतसर पर्यटन के नक्शे पर ऊपर आ रहा है तो पंजाब सरकार इसकी धरोहरों को भागीदारी मोड पर निजी व्यावससिक हाथों में सौंप दोनों हाथों से उन्हें लूटने व लुटाने में लगी हुई है.

ऐसा नहीं कि इसके खिलाफ लोग बोले नहीं पर लुटेरी सरकारें इन आवाजों को अपने कानों तक आने ही कहां देती है. सो, गोबिंदगढ़ किले से तो शुरूआत हुई है. अब आगे किसकी बारी है? टाउनहॉल!

(नीलम गुप्ता स्वतंत्र पत्रकार हैं.)

pkv games bandarqq dominoqq