सोहराबुद्दीन मामला: जज बदले जाने पर लॉयर्स एसोसिएशन ने चीफ जस्टिस को पत्र लिखा

पत्र में एसोसिएशन ने दावा किया है कि जस्टिस मोहिते डेरे का ट्रांसफर संदेहपूर्ण है क्योंकि वे इस मामले में सीबीआई के रवैये को लेकर लगातार जांच एजेंसी को फटकार चुकी हैं.

पत्र में एसोसिएशन ने दावा किया है कि जस्टिस रेवती मोहिते डेरे का ट्रांसफर संदेहपूर्ण है क्योंकि वे इस मामले में सीबीआई के रवैये को लेकर उसे फटकार चुकी थीं.

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फोटो: पीटीआई

सोहराबुद्दीन मामले की सुनवाई कर रही जज के बदलने के 3 दिन बाद बुधवार को बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन ने बॉम्बे हाईकोर्ट की कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखते हुए इस मामले में ‘सुधारात्मक कदम’ उठाने के लिए कहा है.

कार्यवाहक चीफ जस्टिस विजया के. ताहिलरमानी को लिखे पत्र में एसोसिएशन ने दावा किया है कि जस्टिस रेवती मोहिते डेरे का ट्रांसफर इस दृष्टि से संदेहपूर्ण है कि वे लगातार इस मामले में सीबीआई के रवैये को लेकर जांच एजेंसी को फटकार चुकी हैं.

मालूम हो कि सोहराबुद्दीन के भाई रुबाबुद्दीन ने मामले में कुछ आईपीएस अफसरों को आरोपमुक्त किए जाने के निचली अदालत के फैसले को चुनौती दे रखी है.

वहीं, सीबीआई ने भी पूर्व आईपीएस अधिकारी एनके अमीन और एक अन्य पुलिसकर्मी को आरोपमुक्त किए जाने को चुनौती दी है. इन याचिकाओं पर जस्टिस डेरे पांच आवेदनों में से चार के सभी पक्षकारों की जिरह का ज्यादातर हिस्सा सुन चुकी थीं.

जस्टिस मोहिते डेरे 9 फरवरी से सोहराबुद्दीन मामले की रोजाना सुनवाई कर रही थीं, जिस दौरान उन्होंने कहा था कि सीबीआई आरोपमुक्त किए गए लोगों के खिलाफ सभी साक्ष्यों को रिकॉर्ड पर रखने में विफल रही.

24 फरवरी को बॉम्बे हाईकोर्ट की वेबसाइट पर प्रकाशित नोटिस के अनुसार, अब जस्टिस डेरे आपराधिक समीक्षा आवेदनों की सुनवाई नहीं करेंगी और अग्रिम जमानत अर्जी के ही मामले ही देखेंगी.

सोहराबुद्दीन मामला अब जस्टिस एनडब्ल्यू सांबरे की नई एकल पीठ के पास रहेगा. वे ही अापराधिक समीक्षा आवेदनों को सुनेंगे.

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जस्टिस रेवती मोहिते डेरे (फोटो: entranceindia.com)

इस बारे ने रुबाबुद्दीन के वकील गौतम तिवारी का कहना है कि वे एक्टिंग चीफ जस्टिस से मांग करेंगे कि मामले को जस्टिस डेरे की कोर्ट में ही चलने दिया जाए क्योंकि वे काफी सुनवाई कर चुकी हैं.

बॉम्बे हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार ऑफिस का कहना है कि इस तरह से कोर्ट के तबादले होना ‘रूटीन’ है जबकि बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन ने अपने पत्र में इस कदम पर संदेह जाहिर किया है.

इस पत्र में उन्होंने लिखा है, ‘चीफ जस्टिस की शक्तियों को सभी परंपराओं के अनुरूप और सबसे महत्वपूर्ण बड़े सार्वजनिक हित को ध्यान में रखते हुए प्रयोग किया जाना चाहिए.’ इस पत्र में सुप्रीम कोर्ट के 4 वरिष्ठतम जजों द्वारा चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को अदालत में मामलों के बंटवारे को लेकर की गयी प्रेस कॉन्फ्रेंस का जिक्र भी किया गया है.

लॉयर्स एसोसिएशन का यह भी कहना है कि

‘यहां यह ध्यान दिलाना जरूरी है कि इस मामले में सीबीआई द्वारा दायर चार्जशीट में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह समेत 38 आरोपियों के नाम थे, जिसमें से 15 को ट्रायल कोर्ट द्वारा आरोपमुक्त किया जा चुका है… इस पृष्ठभूमि में जस्टिस मोहिते डेरे से यह जिम्मेदारी लेना लोगों के न्यायपालिका में विश्वास को काम करते हुए जनता को गलत संकेत देता है.’

लॉयर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अहमद अबिदी ने द वायर  से बात करते हुए कहा, ‘मुझे विश्वास है कि बॉम्बे हाईकोर्ट की परंपरा को ध्यान में रखते हुए कार्यवाहक चीफ जस्टिस उचित जवाब देंगी.’

लॉयर्स एसोसिएशन ने जस्टिस ताहिलरमानी से आग्रह किया कि तत्काल ‘सुधारात्मक कदम’ उठाया जाए ताकि न्याय हो सके.

BLA Letter 1

BLA Letter 2

24 फरवरी को बॉम्बे हाईकोर्ट के 70 में से 26 जजों के असाइनमेंट में बदलाव किया गया है. रजिस्ट्रार ऑफिस के एक अधिकारी के मुताबिक, ‘कुछ महीनों के अंतराल पर जजों को नए केस दिए जाते हैं. यह नोटिस समय-समय पर हाईकोर्ट की वेबसाइट पर लगाए जाते हैं. अगर किसी भी समय कोई जज कोई महत्वपूर्ण मामला देख रहा होता है तो वह मामला हैंड-ओवर प्रक्रिया पूरी होने के बाद अगले जज को दे दिया जाता है.

हालांकि किसी नए जज को मामला सौंपने का अर्थ उसके नए सिरे से शुरू होने जैसा होता है. हाईकोर्ट का यह फैसला ऐसे समय में आया है जब इस मामले में जस्टिस मोहिते डेरे राजस्थान पुलिस के अधिकारी राजकुमार पांडियन को आरोप मुक्त करने को दी गयी चुनौती याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी की जिरह सुन रही थीं. जेठमलानी को अपनी बहस 26 फरवरी को खत्म करनी थी, जिसके बाद गुजरात पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी डीजी वंजारा को बरी किये जाने पर बहस होनी थी.

अब तक हुई सुनवाई में जस्टिस मोहिते डेरे ने कहा था कि सीबीआई आरोप मुक्त किए गए लोगों के खिलाफ सभी साक्ष्यों को रिकॉर्ड पर रखने में विफल रही. अभियोग लगाने वाली एजेंसी का यह प्रथम कर्तव्य है कि वह अदालत के समक्ष सभी साक्ष्यों को रखे, लेकिन इस मामले में अदालत द्वारा कई बार पूछने पर भी सीबीआई ने केवल उन्हीं दो अधिकारियों की भूमिका के बारे में बहस की जिन्हें आरोप मुक्त करने को उसने चुनौती दी है.

साथ ही उन्होंने यह भी कहा था, ‘अभियोजन पक्ष के पूरे मामले को लेकर अभी भी अस्पष्टता है क्योंकि मुझे सीबीआई की ओर से पर्याप्त मदद नहीं मिल रही.’

जस्टिस डेरे ने कई बार सीबीआई को फटकारा था. साथ ही इस मामले में लगातार बयान से मुकर रहे गवाहों को सुरक्षा देने के बारे में भी सवाल किये थे.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)