राहुल गांधी के उपाध्यक्ष बनने के बाद से कांग्रेस को 24 चुनावों में हार का सामना करना पड़ा है. पार्टी की हालत यह हो गई है कि इसके साथ गठबंधन करने वाले दलों की भी लुटिया डूब जा रही है.
गोवा के नवनिर्वाचित कांग्रेस विधायक विश्वजीत पी. राणे ने एक समाचार चैनल से बातचीत में कहा, ‘विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए जनादेश मिला था, लेकिन हमने मौका गंवा दिया और ऐसा हमारे नेताओं की मूर्खता की वजह से हुआ है.’ गोवा के पांच बार मुख्यमंत्री रहे प्रताप सिंह राणे के पुत्र विश्वजीत ने कहा, ‘मेरे दिमाग में कई विचार आ रहे हैं. कई बार मुझे लगता है कि मैं गलत पार्टी में हूं.’
हालांकि ऐसा बयान देने वाले विश्वजीत पहले नेता नहीं हैं. कांग्रेस को मिल रही लगातार हार के लिए शीर्ष नेतृत्व को जिम्मेदार मानने वाले नेताओं की लंबी सूची है. बहुत सारे नेताओं ने इसके चलते कांग्रेस पार्टी भी छोड़ दी है. गौरतलब है कि कांग्रेस अपनी स्थापना के बाद से सबसे बुरे दौर से गुज़र रही है.
हालिया पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव में सिर्फ पंजाब में वह सरकार बनाने में सफल हुई है. उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से उनका सफाया हो गया है. मणिपुर और गोवा जैसे छोटे राज्यों में वह सरकार बनाने में सफल नहीं हो पा रही है. देश में सबसे लंबे समय तक शासन करने वाली पार्टी अब लोकसभा में दहाई के आंकड़ों में सिमटी है. दस से ज्यादा राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों से लोकसभा में उसका कोई प्रतिनिधि नहीं है.
पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच संवादहीनता के आरोप लग रहे हैं. नेतृत्व के स्तर पर भी असमंजस की स्थिति है. बूढ़े हो चुके नेताओं और नए चेहरों के बीच गुटबाजी चल रही है. विपक्ष के रूप में उसकी भूमिका भी बेहतरीन नहीं रही है. भ्रष्टाचार का आरोप अब भी पार्टी को परेशान कर रहा है.
अगर हम 2013 से गिनती करें तो कांग्रेस को त्रिपुरा, नगालैंड, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड, जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, असम, केरल, पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ा है.
बिहार के महागठबधंन को छोड़ दिया जाए तो इस दौरान पार्टी ने जिन राज्यों में गठबंधन कर चुनाव लड़ा उनमें भी बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा है. पार्टी ने पश्चिम बंगाल में लेफ्ट के साथ गठबंधन किया. वहां दोनों का सूपड़ा साफ हो गया. यही हाल उत्तर प्रदेश का हुआ. पार्टी ने यहां समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया लेकिन उसे दहाई का आंकड़ा भी नसीब नहीं हुआ. जानकारों का मानना है कि अगर सपा ने कांग्रेस से गठबंधन नहीं किया होता तो वह ज्यादा बेहतर स्थिति में होती.
अब सोशल मीडिया पर चुटकुला चल रहा है कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी अपनी ही पार्टी के लिए बल्कि सहयोगी दलों के लिए भी ‘राहु’ साबित हो रहे हैं. वह जिसके साथ भी मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं उसे भी हार का सामना करना पड़ रहा है.
वेबसाइट आज तक की एक रिपोर्ट के अनुसार 2013 में कांग्रेस उपाध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी को 24 चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है. हालांकि अब भी पार्टी और विश्लेषकों का एक धड़ा यह मानता है कि राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाया जाए.
वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई कहते हैं, ‘कांग्रेस पार्टी को नेतृत्व के भ्रम की स्थिति को दूर करना होगा. अगर राहुल गांधी को राजनीति करनी है तो सामने आकर कमान संभालनी होगी.’
वैसे देखा जाए तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के बीमार पड़ने के बाद से कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ही पार्टी के सारे फैसले ले रहे हैं. ऐसे में उनकी ताजपोशी महज औपचारिकता भर है. अगर हम लोकसभा चुनाव को मानदंड माने तो राहुल गांधी या कांग्रेस पार्टी में ऐसा कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है जो लगे कि वह उस हार से उबर चुके हैं.
भ्रष्टाचार का भूत अब भी कांग्रेस का पीछा नहीं छोड़ रहा है. राहुल गांधी अपने भाषणों से जनता तो दूर अपने कार्यकर्ताओं में उत्साह नहीं भर पा रहे हैं. वे जनता के सामने कोई विजन नहीं पेश कर पा रहे हैं.
खून का सौदागर जैसे बयान देकर राहुल समेत पूरी कांग्रेस पार्टी जनता को मोदी से डराने की कोशिश कर रही है, लेकिन चुनाव दर चुनाव यह बात पुख्ता होती जा रही है कि जनता को इससे ज्यादा मोदी की विकासवादी छवि और बहुसंख्यक तुष्टीकरण की राजनीति भा रही है.
ऐसे में लगता है कांग्रेस पार्टी जनता को समझ पाने में बुरी तरह से नाकाम हो रही है. लोकसभा समेत अन्य राज्यों में विपक्ष के रूप में भी कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है. पार्टी बस इसी इंतजार में बैठी हुई है कि जब सत्तारूढ़ दल बुरा करेगी तो उसे मौका मिल जाएगा. ऐसे में वो हार के नए कीर्तिमान रच रहे हैं.
कुछ साल पहले कांग्रेस का नारा, ‘जन-जन से नाता है, हमें सरकार चलाना आता है’ था, लेकिन आज के हालत में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व पार्टी चला पाने में भी बुरी तरह असफल साबित हो रहा है. परिवारवाद, गुटबाजी, भितरघात, आपसी कलह ये सब इस पार्टी में दिख रहे हैं.
वहीं कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की एक खराबी यह भी है कि वे नियमित रूप से बोलते भी नहीं हैं. पांच राज्यों के परिणाम आने के बाद से राहुल गांधी गायब हैं. ऐसे में अब वक्त आ गया है जब कांग्रेस नेतृत्व हार की गंभीरता समझते हुए आत्ममंथन करे.