…जब गोरखपुर में हुए उपचुनाव में हार गए थे मुख्यमंत्री, छोड़ना पड़ा था पद

गोरखपुर में सत्ताधारी दल के उपचुनाव में हारने की कहानी नई नहीं है.

गोरखपुर में सत्ताधारी दल के उपचुनाव में हारने की कहानी नई नहीं है.

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिभुवन नारायण सिंह. (फोटो साभार: दैनिक जागरण)
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिभुवन नारायण सिंह ठीक बीच में सफेद कपड़ों में चश्मा लगाए हुए. (फोटो साभार: दैनिक जागरण)

गोरखपुर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा को मिली हार ने इस सीट के इतिहास की ओर झांकने पर विवश किया है.

इस सीट की बात करें तो अतीत में भी यहां सत्ताधारी दल के उपचुनाव में हारने का इतिहास रहा है. दैनिक जागरण के गोरखपुर एडिशन में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 1969 में इस सीट पर हुए उपचुनाव में सत्ताधारी दल को हार का सामना करना पड़ा था. उस समय प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी.

अभी मिली हार को छोड़ दें तो 1989 से योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री चुने जाने तक गोरखपुर सीट पर गोरखनाथ मठ का भगवा परचम लहराता रहा है.

1989 से 2014 के लोग सभा चुनावों तक इस सीट पर महंत अवैद्यनाथ के बाद योगी आदित्यनाथ चुनाव मैदान में रहते थे.

पिछले 28 सालों से गोरखपुर लोकसभा सीट भाजपा की परंपरागत सीट रही है. 1991 से चाहे वो अवैद्यनाथ हों या फिर योगी आदित्यनाथ, दोनों भाजपा के ही टिकट पर यहां चुनाव लड़े हैं.

वर्ष 2017 में योगी आदित्यनाथ के प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद गोरखपुर सीट ख़ाली हो गई थी. इलाहाबाद में फूलपुर के साथ गोरखपुर सीट पर बीते 11 मार्च को उपचुनाव हुए थे.

फूलपुर लोकसभा सीट केशव प्रसाद मौर्य के उप मुख्यमंत्री बनाए जाने की वजह से ख़ाली हुई थी. बीते बुधवार को हुई मतगणना के बाद भाजपा को दोनों ही सीटों पर हार का सामना करना पड़ा.

बहरहाल दैनिक जागरण की रिपोर्ट के अनुसार, गोरखपुर लोकसभा सीट की बात करें तो 1967 में गोरखनाथ पीठ के तत्कालीन महंत दिग्विजयनाथ गोरखपुर से चुनाव जीतकर संसद में पहुंचे थे, हालांकि वे अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके थे.

उनके ब्रह्मलीन (मृत्यु के बाद) होने के बाद 1969 में इस सीट पर उपचुनाव हुआ था. महंत दिग्विजय नाथ के उत्तराधिकारी महंत अवैद्यनाथ चुनाव मैदान में उतरे थे.

उस वक़्त उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी हालांकि सत्ताधारी दल के उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा था और महंत अवैद्यनाथ ने उपचुनावों में जीत हासिल की थी.

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिभुवन नारायण सिंह.
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिभुवन नारायण सिंह.

इसके बाद वर्ष 1971 में गोरखपुर ज़िले की मानीराम विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुआ था. इसमें भी सत्ताधारी दल के उम्मीदवार के हारने का मिथक क़ायम हुआ.

इस चुनाव में मुख्यमंत्री रहते हुए त्रिभुवन नारायण सिंह उर्फ टीएन सिंह ने चुनाव में उतरे और उन्हें हार का सामना करना पड़ा. टीएन सिंह 18 अक्टूबर 1970 से चार अक्टूबर 1971 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे थे.

उस समय उत्तर प्रदेश में कांग्रेस (ओ) के अलावा जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी और भारतीय क्रांति दल की गठबंधन सरकार बनी थी और कांग्रेस (ओ) के सदस्य टीएन सिंह को विधायक दल का नेता चुना गया था.

दरअसल उस समय उत्‍तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह की सरकार ख़तरे में पड़ गई और उन्‍हें कार्यकाल पूरा होने से पहले हटना पड़ा. ऐसे में टीएन सिंह को उत्तर प्रदेश की कमान सौंप दी गई.

टीएन सिंह पहले ऐसे नेता थे जो बिना किसी सदन का सदस्य रहते हुए मुख्यमंत्री बनाए गए थे. इसी वजह से उनकी मुख्यमंत्री पद पर नियुक्ति को उच्चतन न्यायालय में चुनौती दी गई थी.

रिपोर्ट के अनुसार, उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने दुनिया भर में प्रचलित लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं का हवाला देते हुए उनकी नियुक्त जायज़ ठहराया था. हालांकि शीर्ष अदालत ने छह महीने के अंदर उन्हें किसी एक सदन का सदस्य होने का निर्देश भी दिया था.

सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार, 1971 में टीएन सिंह मानीराम विधानसभा सीट से सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस (ओ) की ओर चुनाव मैदान में उतरे थे. दैनिक जागरण की रिपोर्ट के अनुसार, गोरखनाथ मठ का उन्हें समर्थन भी हासिल था.

इस सीट से कांग्रेस ने रामकृष्ण द्विवेदी को अपना उम्मीदवार बनाया था. बताया जाता था कि यह सीट प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गई थी.

यहां तक कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी कांग्रेस उम्मीदवार रामकृष्ण द्विवेदी के पक्ष में चुनाव प्रचार करने के लिए गोरखपुर आई हुई थीं. इस चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार ने मुख्यमंत्री टीएन सिंह को 16 हज़ार मतों से हराकर उपचुनाव में जीत हासिल की थी.

टीएन सिंह साल 1979 से लेकर 1981 तक पश्‍चिम बंगाल के राज्‍यपाल भी रहे थे. तीन अगस्‍त 1982 को उनका निधन हो गया था.