कौन हैं संजय निषाद, जिनकी निषाद पार्टी ने योगी को उनके गढ़ में मात दी

गोरखपुर से ग्राउंड रिपोर्ट: गोरक्षपीठ को निषादों का बताने वाले संजय उन चंद लोगों में हैं, जो गोरखपुर में रहते हुए हिंदू युवा वाहिनी को दंगा करने वाला, मुसलमानों, दलितों, अति पिछड़ों और निषादों पर अत्याचार करने वाला ‘संगठित गिरोह’ बताते रहे हैं.

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डॉ. संजय निषाद. (फोटो साभार: फेसबुक/निषाद पार्टी)

गोरखपुर से ग्राउंड रिपोर्ट: गोरक्षपीठ को निषादों का बताने वाले संजय उन चंद लोगों में हैं, जो गोरखपुर में रहते हुए हिंदू युवा वाहिनी को दंगा करने वाला, मुसलमानों, दलितों, अति पिछड़ों और निषादों पर अत्याचार करने वाला ‘संगठित गिरोह’ बताते रहे हैं.

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एक चुनावी सभा के दौरान निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. संजय निषाद. (फोटो साभार: फेसबुक/निषाद पार्टी)

लोकसभा उपचुनाव में सपा द्वारा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के किले को फतह कर लेने में जिस शख़्स की सबसे अधिक चर्चा हो रही है, वह हैं निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. संजय कुमार निषाद.

चार वर्ष पहले संजय निषाद के बारे में चंद लोग या निषाद समुदाय के बीच कार्य करने वाले ही जानते थे, लेकिन आज उन्हें ऐसे शख़्स के रूप में चिह्नित किया जा रहा है जिसने योगी आदित्यनाथ की अजेय सीट पर भाजपा के पराजय की कथा बुनी.

संजय निषाद कौन हैं? क्या करते हैं? उन्होंने निषाद पार्टी कब और क्यों बनाई? उनकी राजनीति क्या है? यह ऐसे सवाल हैं, जिन्हें सब जानना चाहते हैं.

वर्ष 2013 में निषाद पार्टी बनाने वाले संजय निषाद एक दशक पहले तक गोरखपुर के गीता वाटिका रोड पर अपनी इलेक्ट्रो होम्योपैथी की क्लीनिक चलाते थे.

इस चिकित्सा विधि में माना जाता है कि लिम्फ और ब्लड सिस्टम में बाधा आने से बीमारी होती है जिसका इलाज पौधों से प्राप्त माइक्रो या मिनिरल सॉल्ट्स से बनी दवाई से की जा सकती है.

डॉ. संजय क्लीनिक चलाने के साथ-साथ इलेक्ट्रो होम्योपैथी को मान्यता दिलाने के लिए भी संघर्ष करते रहे. उन्होंने 2002 में पूर्वांचल मेडिकल इलेक्ट्रो होम्योपैथी एसोसिएशन का गठन किया. वह इसके अध्यक्ष बने. इस विधा को मान्यता दिलाने के लिए वह सुप्रीम कोर्ट भी गए.

वह राजनीति में दो दशक से सक्रिय रहे हैं. वह सबसे पहले बामसेफ से जुड़े. वह कैम्पियरगंज विधानसभा से एक बार चुनाव भी लड़ चुके हैं लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली.

इसके बाद वह अपनी जाति की राजनीति से जुट गए. वर्ष 2008 में उन्होंने ऑल इंडिया बैकवर्ड एंड माइनॉरिटी वेलफेयर मिशन और शक्ति मुक्ति महासंग्राम नाम के दो संगठन बनाए.

उन्होंने निषाद पार्टी से पहले राष्ट्रीय निषाद एकता परिषद बनायी और बतौर राष्ट्रीय अध्यक्ष निषादों की विभिन्न उपजातियों को एक करने का प्रयास किया.

उन्होंने ‘मछुआ समुदाय की 553 जातियों को एक मंच पर लाने’ की मुहिम शुरू की. उन्होंने निषादों को बताया कि निषाद वंशीय समुदाय की सभी पर्यायवाची जातियों को एक मानते हुए अनुसूचित जाति में शामिल करने पर समाज का फायदा होगा.

देश के 14 राज्यों में निषाद वंशीय अनुसूचित जाति में शामिल भी हैं. उत्तर प्रदेश में निषाद वंश की सात पर्यायवाची जातियां- मंझवार, गौड़, तुरहा, खरोट, खरवार, बेलदार, कोली अनुसूचित जाति में शामिल हैं, लेकिन अन्य उपजातियों को ओबीसी में रखा गया है.

उनके अनुसार, निषाद वंशीय समाज की सभी जातियां संवैधानिक रूप से अनुसूचित जाति में हैं, इस बात को सिर्फ परिभाषित करने की जरूरत है जिसे अब तक नहीं किया गया है.

उन्होंने निषादों को उनकी राजनीतिक ताकत बतायी और एक दल से दूसरे दल में जाने के बजाय एक पार्टी में उनको संगठित होने को कहा.

 

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निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. संजय निषाद. (फाइल फोटो: मनोज सिंह)

उनका कहना है कि यूपी में निषाद वंशीय 17 फीसदी हैं और वे 152 विधानसभा सीटों पर प्रभावशाली स्थिति में हैं. यदि हम एकजुट हो गए तो हमें कोई अनदेखा नहीं कर सकता.

डॉ. संजय पहली बार तब सुर्खियों में आए जब उन्होंने 7 जून 2015 को गोरखपुर से सटे सहजनवा क्षेत्र के कसरावल गांव के पास निषादों को अनुसूचित जाति में शामिल किए जाने की मांग को लेकर रेलवे ट्रैक को जाम कर दिया था.

उनके साथ सैकड़ों की संख्या में निषाद समाज के लोग थे जिनमें बड़ी संख्या युवाओं की थी. इनमें तमाम युवक पूर्वांचल के अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के भी थे.

पुलिस ने जब उन्हें हटाने की कोशिश की तो हिंसक झड़प हुई. पुलिस फायरिंग में अखिलेश निषाद नाम का युवक मारा गया. भीड़ ने कई वाहनों में तोड़-फोड़ की और उसे आग के हवाले कर दिया.

उस समय समाजवादी पार्टी की सरकार थी. अखिलेश सरकार ने इस घटना पर सख्ती की और संजय निषाद सहित तीन दर्जन लोगों पर मुकदमा दर्ज किया.

डॉ. संजय भूमिगत हो गए लेकिन अन्य लोग गिरफ्तार हुए और जेल गए. बाद में उन्होंने सरेंडर किया और जमानत पर रिहा हुए.

इस घटना से उन्हें काफी चर्चा मिली. इस शोहरत का उपयोग उन्होंने निषाद पार्टी को मजबूत बनाने में किया. गांव-गांव निषाद पार्टी का संगठन बनाया.

महिलाओं और युवाओं को विशेष रूप से जोड़ा गया. मैरून टोपी और झंडा पार्टी की पहचान बनी. कार्यकर्ताओं को बाकायदा प्रशिक्षण दिया गया और उन्हें ‘निषादों का इतिहास’, ‘निषाद संस्कृति’ और ‘निषाद सभ्यता’ के बारे में बताया गया.

संजय ने खुद एक पुस्तिका ‘निषादों का इतिहास’ लिखी है. उनकी एक दूसरी किताब ‘भारत का असली मालिक कौन’ है.

निषादों का इतिहास में वह लिखते हैं- निषादों का इतिहास बहुत पुराना है. विश्व की सबसे प्राचीन ऋग्वेद में निषादों का उल्लेख है. रामायण और महाभारत में कई-कई बार निषादों का उल्लेख है. महर्षि वाल्मीकि ने जो पहला श्लोक लिखा है, उसमें निषाद शब्द आया है. महाभारत के रचयिता महर्षि वेद व्यास भी एक महान महर्षि निषाद थे. महाभारत में निषाद देश के राजा वीरसेन के पुत्र नल-दमयंती पर अनेक महाकाव्य लिखा गया है.

डॉ. संजय लिखते हैं, ‘वह निषादों का इतिहास इसलिए प्रस्तुत कर रहे हैं ताकि अतीत का स्मरण दिलाकर वर्तमान में इन्हें संगठित करके एक सशक्त वर्ग के रूप में ला सकें जिससे व्यवस्था एवं राजनीतिक परिवर्तन हो सके.’

डॉ. संजय निषाद. (फोटो साभार: फेसबुक/निषाद पार्टी)
डॉ. संजय निषाद. (फोटो साभार: फेसबुक/निषाद पार्टी)

वह कहते हैं- निषादों का इतिहास संपूर्ण जगत के इतिहास का सार है. निषादों का इतिहास किसी जाति का इतिहास नहीं हैं. निषादों का इतिहास आदि मानव का इतिहास है. निषादों का इतिहास उस आदि संस्कृति का इतिहास है जब मानव ने स्थायी आवास बनाकर रहना सीखा था. निषादों का इतिहास हमारी सभ्यता का प्रारंभिक इतिहास है. वह यह भी कहते हैं कि सिंधु सभ्यता के निर्माता ‘आद्य निषाद’ थे. आदिम अग्नेय वंशी निषाद लोग ही भारत वर्ष के सच्चे आदिवासी जनजाति हैं.

उन्होंने ‘भारत का असली मालिक कौन’ में लिखा कि निषाद वंश में अनेक राजा-महाराजा थे. हम राजवंश कुल के हैं. हमारे महाराजा गुह्राज निषाद का वैभवशाली किला इलाहाबाद के ऋंग्वेरपुर में मौजूद है. बुद्ध काल में कोलियों-निषादों की राजधानी रामग्राम (वर्तमान में गोरखपुर का रामगढ़) और मछेन्द्रनाथ (मत्स्येन्द्रनाथ) का गोरखनाथ मंदिर, गोरखपुर में है.

उन्होंने इस किताब में कहा- निषादों ने ही कुदाल और छड़ी बनाकर उससे खोद कर झूम प्रणाली से खेती करने की विधि का अविष्कार किया.

डॉ. संजय के अनुसार, निषादों ने कभी भी गुलामी नहीं की और मनुस्मृति के सिद्धांत को स्वीकार नहीं किया. वे पंचम वर्ण निषाद के रूप में रहे. निषादों ने अंग्रेजों से लड़ते हुए शहादत दी. इनमें तिलका मांझी, सिद्धों माझी, झूरी बिंद, मौकू एवं भीमा केवट, लक्ष्मी बाई के तोपची शंकर, भवानी, जुब्बा साहनी, माती कश्यम, अवंती बाई लोधी, समाधान निषाद, लोचन निषाद, महादेव केवट, नेवास कुमार मांझी आदि के नाम उल्लेखनीय है.

उनके अनुसार, अंग्रेजों से लोहा लेने के कारण ही निषादों पर क्रिमिनल टाइब्स एक्ट 1871 लगाया और उन्हें प्रताड़ित किया. इस कारण पूरे देश में निषाद लोग अलग-अलग प्रदेशों में अलग उपजातियों के नाम से बिखर गए.

निषाद पार्टी का पूरा नाम, ‘निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल’ है. चूंकि जाति से कोई राजनीतिक दल रजिस्टर्ड नहीं हो सकता, इसलिए पार्टी का नाम ‘निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल’ रखा गया जिसका संक्षिप्त नाम ‘NISHAD’ यानी ‘निषाद’ हुआ.

इस तरह से उन्होंने जाति की पहचान बनाने के उद्देश्य से सोच समझ कर यह नाम रखा और यही नाम लोगों में प्रचलित भी हुआ.

निषाद पार्टी ने अपनी ताकत का पहला सार्वजनिक प्रदर्शन गोरखपुर में जुलाई 2016 में किया. बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा ने निषादों का वोट हासिल करने के लिए मुकेश साहनी को स्टार प्रचारक बनाया था.

मुकेश साहनी बिहार के दरभंगा के रहने वाले हैं और मुंबई में फिल्मों के सेट डिजाइनिंग के कारोबार से जुड़े हैं. वह निषाद विकास संघ के अध्यक्ष हैं और अपने नाम के आगे ‘सन आॅफ मल्लाह’ लिखते हैं.

उन्होंने बिहार चुनाव में भाजपा के समर्थन की घोषणा की. भाजपा ने स्टार प्रचारक का दर्जा दिया और उनके नाम से अखबारों में खूब विज्ञापन दिए गए, जिसमें कहा गया था कि ‘आगे बड़ी लड़ाई है, एनडीए में भलाई है.’

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एक कार्यक्रम के दौरान कार्यकर्ताओं को संबोधित करते डॉ. संजय निषाद. (फाइल फोटो: मनोज सिंह)

भाजपा के साथ जुड़ने के पहले वह नीतीश कुमार के साथ थे. उनके द्वारा कैंपेन करने के बावजूद भाजपा बिहार में बुरी तरह हारी. हालांकि उनका कहना था कि उनकी वजह से बिहार के 7 फीसदी निषाद वंशीय समाज ने भाजपा को वोट दिया था, लेकिन नीतीश और लालू की एकता के कारण यादव, मुस्लिम और कोइरी-कुर्मी एकजुट हो गए और 41 फीसदी वोट लेकर सरकार में आ गए.

2017 के विधानसभा चुनाव के पहले मुकेश साहनी उत्तर प्रदेश आए. उन्होंने राष्ट्रीय मछुआरा आयोग गठित करने और मांझी, मल्लाह, केवट और उसकी पर्यायवाची जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की मांग को लेकर रथ यात्राएं निकालनी शुरू की.

उन्होंने निषाद समाज में पैठ बनाने के लिए गोरखपुर में डेरा डाला. उन्होंने ही 10 जुलाई 2016 को विश्व मछुआरा दिवस पर सम्मेलन कर गोरखपुर के निषाद मंदिर में पूर्व सांसद फूलन देवी की मूर्ति लगाने की घोषणा की.

मुकेश साहनी की यह पहल स्थानीय निषाद नेताओं को पसंद नहीं आई. यह भी चर्चा थी कि वह भाजपा के लिए निषादों को जोड़ने के लिए यह सब कर रहे हैं. निषाद पार्टी ने मौका देख उनसे बात की और कहा कि वह मिल-जुलकर फूलन देवी की मूर्ति स्थापित करेंगे.

इसके बाद निर्णय हुआ कि 25 जुलाई को फूलन देवी की शहादत दिवस पर बाघागाड़ा में उनकी 30 फीट उंची प्रतिमा लगाई जाए. यह विशालकाय मूर्ति मुकेश साहनी ने मुंबई से बनवाकर मंगाई थी. इसी दिन चम्पा देवी पार्क में विशाल रैली करने की भी घोषणा की गई.

लेकिन जिला प्रशासन ने अनुमति नहीं होने की बात कहकर प्रतिमा स्थापित नहीं होने दी. प्रतिमा तो स्थापित नहीं हुई लेकिन 25 जुलाई 2016 को निषाद पार्टी, राष्ट्रीय निषाद एकता परिषद और राष्ट्रीय निषाद विकास संघ ने रामगढ़ताल के किनारे चम्पा देवी पार्क में बड़ी रैली की.

रैली में 25 हजार से अधिक लोग जुटे. पूरा मैदान मैरून टोपी और झंडे से पट गया और ‘जय निषाद राज’ के नारे से गुंजायमान हो गया. प्रशासन द्वारा मूर्ति जब्त कर लेने पर रैली स्थल पर फूलन देवी का फ्लैक्स का विशाल कटआउट लगा दिया गया.

डॉ. संजय निषाद. (फोटो साभार: फेसबुक/निषाद पार्टी)
डॉ. संजय निषाद. (फोटो साभार: फेसबुक/निषाद पार्टी)

इस रैली में भीड़ निषाद पार्टी ने ही जुटाई थी. इस रैली में सपा, बसपा, भाजपा पर निषाद समाज को बांटने का आरोप लगाया गया.

रैली में मुकेश साहनी के चंद समर्थक ही थे. इस रैली के बाद मुकेश साहनी हवा हो गए और आज उनके बारे में बहुत कम लोगों को पता है कि वे क्या कर रहे हैं. इसी रैली में निषाद पार्टी ने डॉ. अयूब की पीस पार्टी से दोस्ती की शुरुआत की.

पूर्व सांसद फूलन देवी की मूर्ति तो अब तक स्थापित नहीं हो पायी लेकिन निषाद पार्टी काफी आगे बढ़ गई. फूलन देवी की मूर्ति आज भी बाघागाड़ा के पास सड़क किनारे एक घर के सामने रखी हुई है.

2017 के चुनाव में निषाद पार्टी ने पीस पार्टी के साथ गठबंधन किया और 72 स्थानों पर चुनाव लड़ा. निषाद पार्टी सिर्फ एक सीट ज्ञानपुर जीत पाई. यहां पर बाहुबली नेता विजय मिश्रा विजयी हुए लेकिन जीतने के बाद वह निषाद पार्टी के साथ नजर नहीं आए. अब वह बीजेपी के नजदीक चले गए हैं.

निषाद पार्टी को विधानसभा चुनावों में कुल 5,40,539 वोट मिले. कई सीटों- पनियरा, कैम्पियरगंज, सहजनवा, खजनी, तमकुहीराज, भदोही, चंदौली में उसे दस हजार से अधिक वोट मिले.

डॉ. संजय कुमार निषाद गोरखपुर ग्रामीण सीट से चुनाव लड़े, लेकिन 34,869 वोट पाकर हार गए. यह चुनाव तो वह नहीं जीत पाए लेकिन हाल ही में हुए उपचुनाव में सपा से अपने बेटे प्रवीण निषाद को चुनाव लड़ाकर सांसद जरूर बना दिया.

विधानसभा चुनाव में उन्होंने किराए पर हेलीकॉप्टर लिया था और कई दिन तक हेलीकॉप्टर से चुनावी सभाओं में जाते रहे. इन सभाओं में संजय निषाद का हेलीकॉप्टर से प्रचार पर निकलने का विशेष रूप से उल्लेख किया जाता था.

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गोरखपुर लोकसभा पर हुए उपचुनाव में मिली जीत के बाद डॉ. संजय निषाद के बेटे और प्रवीण कुमार निषाद. (फोटो: पीटीआई)

उनकी सभाओं की ड्रोन कैमरे से रिकार्डिंग की जाती थी और उसे सोशल मीडिया पर डाला जाता था.

2017 के विधानसभा चुनाव तक वह भाजपा, बसपा के साथ-साथ सपा पर भी जमकर प्रहार करते थे, लेकिन अब वह कह रहे हैं कि उन्होंने अपने बेटे प्रवीण निषाद को सपा की गोद में डाल दिया है. पार्टी उनका जो चाहे उपयोग करे.

उधर, सपा के अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव निषाद पार्टी को सपा का छोटा भाई बता रहे हैं. जाहिर है कि निषाद पार्टी अपना स्वतंत्र हैसियत बनाए रखते हुए सपा के साथ आने वाले चुनाव में गठबंधन बनाए रखना चाहती है.

पार्टी बनाने के बाद संजय ने अपने दो बेटों को नौकरी छुड़ाकर पार्टी के काम में लगा दिया. गोरखपुर से सांसद बने उनके बेटे प्रवीण निषाद 2008 में बीटेक करने के बाद 2009 से 2013 तक राजस्थान के भिवाड़ी में एक प्राइवेट कंपनी में बतौर प्रोडक्शन इंजीनियर नौकरी कर रहे थे. छोटे बेटे श्रवण निषाद को भी उन्होंने पार्टी से जोड़ दिया. उनका एक बेटा और बेटी राजनीति से दूर हैं.

संजय आरएसएस, भाजपा और हिंदू युवा वाहिनी के ख़िलाफ़ हमेशा से बहुत आक्रामक रहे हैं. वह आरएसएस और हिंदू युवा वाहिनी को समाजद्रोही संगठन कहते हैं तो भाजपा को ‘भारत जलाओ पार्टी’.

वह गोरखपुर में रहते हुए उन चंद लोगों में हैं, जिन्होंने हिंदू युवा वाहिनी के लिए सख्त शब्दों को प्रयोग करने का साहस किया.

2017 में एक पत्रकार वार्ता के दौरान उन्होंने हिंदू युवा वाहिनी को दंगा करने वाला और मुसलमानों, दलितों, अति पिछड़ों व निषादों पर अत्याचार करने वाला ‘संगठित गिरोह’ कहा.

वह हमेशा से गोरखपुर के गोरक्षपीठ को निषादों का बताते रहे हैं. उनका कहना है कि ‘गोरक्षपीठ को निषाद वंश के घीवर परिवार में जन्मे महाराजा मत्स्येन्द्र नाथ ने स्थापित किया था, जिस पर बाद में मनुवादियों ने कब्जा कर लिया.’

निषाद पार्टी के एक कार्यक्रम में डॉक्टर संजय निषाद. (फोटो साभार: फेसबुक/निषाद पार्टी)
निषाद पार्टी के एक कार्यक्रम में डॉक्टर संजय निषाद. (फोटो साभार: फेसबुक/निषाद पार्टी)

वह निषाद सहित दलितों, पिछड़ों को भारत का मूल निवासी बताते हैं और कहते हैं कि भारत के मूल निवासियों को पीढ़ी दर पीढ़ी गुलाम बनाए रखने की साजिश और मानसिकता का नाम ही मनुवाद है.

संजय हमेशा कोट-टाई पहने रैलियों और सभाओं में देखे जाते हैं और विशेष अंदाज में हाथ हिलाते हुए अपने को निषाद समाज के मसीहा के रूप में प्रस्तुत करते हैं. उनके समर्थक उन्हें ‘महामना’ संबोधित करने लगे हैं.

पार्टी कार्यकर्ता और समर्थक सोशल मीडिया पर दर्जनों वॉट्सऐप ग्रुप चलाते हैं. एकलव्य मानव संदेश न्यूज नाम से वेबसाइट और यूट्यूब चैनल चलाया जाता है, जिस पर निषाद समाज की खबरें और संजय निषाद के ‘संदेश’ प्रसारित होते हैं.

गायक दरोगा जुल्मी निषाद ने निषाद पार्टी के लिए तमाम गीत लिखे और गाए हैं. इसमें से एक है- डॉ. संजय निषाद के बतिया दिल में बइठाएंगे, अबकी बार अपनी पार्टी निषाद को जिताएंगे…

उनका दूसरा गाना निषाद पार्टी की महत्वाकांक्षा का व्यक्त करता है- बनी एक दिन आपन सरकार, करत रहअ आपन प्रचार…

संजय के आॅफिस में निषाद समाज के जिन पुरखों की तस्वीर लगी है, उसमें वास्कोडिगामा और कोलंबस भी हैं. वह कहते हैं कि ये दोनों नाविक थे, इसलिए निषाद वंशीय हैं. हमारा समुदाय अंतराष्ट्रीय है. समुद्र, नदी, पोखरों पर जिनकी भी आजीविका और गतिविधि हैं, वह सब निषाद वंशीय हैं.

फिलहाल निषाद पार्टी ने गोरखपुर में ‘गोरखपुर में रहना है तो योगी-योगी कहना है’ के नारे के समानांतर ‘जय निषाद राज’ के नारे को स्थापित कर दिया है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और गोरखपुर फिल्म फेस्टिवल के आयोजकों में से एक हैं.)