भारतीय प्रतिभाएं दुनिया को आकर्षित करती हैं, लेकिन गिने-चुने ही मानवता के काम आ सके: प्रणब

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि आईआईटी, आईआईएम, एनआईटी, मेडिकल के क्षेत्र में तैयार प्रतिभाएं बड़ी-बड़ी कंपनियों में चली जाती हैं. लेकिन सीवी रमण के बाद किसी भारतीय को नोबेल पुरस्कार नहीं मिला है.

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Kolkata: Former President Pranab Mukherjee addresses a special session on 'Prospects for Economic Growth and the Policy Imperatives for India' in Kolkata on Wednesday evening. PTI Photo by Swapan Mahapatra (PTI2_28_2018_000219B)
Kolkata: Former President Pranab Mukherjee addresses a special session on 'Prospects for Economic Growth and the Policy Imperatives for India' in Kolkata on Wednesday evening. PTI Photo by Swapan Mahapatra (PTI2_28_2018_000219B)

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि आईआईटी, आईआईएम, एनआईटी, मेडिकल के क्षेत्र में तैयार प्रतिभाएं बड़ी-बड़ी कंपनियों में चली जाती हैं. लेकिन सीवी रमण के बाद किसी भारतीय को नोबेल पुरस्कार नहीं मिला है.

Kolkata: Former President Pranab Mukherjee addresses a special session on 'Prospects for Economic Growth and the Policy Imperatives for India' in Kolkata on Wednesday evening. PTI Photo by Swapan Mahapatra (PTI2_28_2018_000219B)
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि देश में हर साल अलग-अलग क्षेत्रों में बड़ी संख्या में ‘प्रतिभाएं’ सामने आती हैं और दुनिया को आकर्षित करती है लेकिन इनमें से गिने-चुने लोग ही ऐसे शोध तथा नवोन्मेष में लगे हैं जो मानवता के काम आ सके.

प्रणब मुखर्जी ने कहा कि आईआईटी, आईआईएम, एनआईटी, मेडिकल के क्षेत्र में तैयार होने वाली प्रतिभाएं बड़ी-बड़ी कंपनियों, उद्योगों, कॉरपोरेट क्षेत्रों में चली जाती हैं. इससे एक तरह की संतुष्टि मिल सकती है. लेकिन हमें यह तथ्य ध्यान में रखना होगा कि सीवी रमण के बाद किसी भारतीय को भारत के संस्थान में काम करते हुए नोबेल पुरस्कार नहीं मिला है.

‘क्यूएस-इरा’ उच्च शिक्षा रेटिंग प्रणाली का शुभारंभ करते हुए पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि डॉ. हरगोविंद खुराना, अमर्त्य सेन आदि को नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ लेकिन उन्हें यह सम्मान तब मिला जब वे देश से बाहर काम कर रहे थे. इसका अर्थ है कि कहीं न कहीं इस संदर्भ में हम विफल रहे हैं.

प्रणब मुखर्जी ने कहा, ‘हमें इस पर विचार करना होगा कि उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद हमारी प्रतिभाएं वैज्ञानिक बनें, नवोन्मेष करें और ऐसी व्यवस्था तैयार करने में सहभागी बने जो मानवता के काम आ सके.’

उन्होंने कहा कि जब वे राष्ट्रपति थे तब वह शिक्षा से जुड़े हर मंच पर शिक्षा की गुणवत्ता के विषय पर बोलते रहे. शिक्षा की गुणवत्ता का बेहतर होना सर्वाधिक जरूरी है.

पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि सरकार ने सकल नामांकन दर को 24 प्रतिशत से बढ़ाकर 30 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा है जो एक स्वागत योग्य कदम है. लेकिन इसे और आगे बढ़ाया जाना चाहिए.

प्रणब मुखर्जी ने कहा कि भारत में दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता है और यह सबसे युवा देश है. आज 65 प्रतिशत आबादी 35 वर्ष आयु वर्ग की है और साल 2030 तक कामकाजी युवा आबादी की औसत आयु 29 वर्ष हो जाएगी.

उन्होंने कहा कि इतनी विशाल संख्या में भारत की युवा आबादी दुनिया के रोजगार बाजार की मांगों की आपूर्ति कर सकती है और यह भारत के लिए फायदे की स्थिति बन सकती है. लेकिन अगर हम 15 से 25 वर्ष के आयु वर्ग के युवाओं को ठीक से शिक्षित नहीं कर पाएंगे तब हम दुनिया के रोजगार बाजार की जरूरतों को पूरा नहीं कर पाएंगे और ऐसी स्थिति में यह बोझ बन सकता है.

पूर्व राष्ट्रपति ने कारपोरेट क्षेत्रों समेत शिक्षा के सभी पक्षकारों से कहा कि समय तेजी से बीत रहा है और हमें यह ध्यान देना होगा कि युवा कार्यबल का समुचित उपयोग किया.

उन्होंने कहा कि दुनिया के अनेक हिस्सों में हम खबरों के माध्यम से इस विषय पर दुष्परिणाम को देख रहे हैं.

इस अवसर पर क्यूएस-इरा इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के सीईओ अश्चिन फर्नाडिस ने कहा कि भारत में शैक्षणिक संस्थाओं की रेटिंग करने के लिए पहली बार समग्र आयामों पर विचार करते हुए एक रेटिंग प्रणाली पेश की गई है. इसमें अंतरराष्ट्रीय मानदंडों को समाहित करते हुए घरेलू स्थिति को ध्यान में रखा गया है.

क्यूएस इंटेलीजेंस एजेंसी के निदेशक बेन सोवटर ने कहा कि इस रेटिंग व्यवस्था को तैयार करते हुए छात्र, अभिभावक समेत विविध पक्षकारों की राय को समाहित किया गया है.