कल वे बाबा साहेब को राम भक्त बताने की भी कोशिश कर सकते हैं: प्रकाश आंबेडकर

भीमराव आंबेडकर के दोनों पोते प्रकाश आंबेडकर और आनंद आंबेडकर ने उनके नाम बदलने के निर्णय की आलोचना करते हुए इसे भाजपा की वोट बैंक की राजनीति करार दिया है.

/
आनंदराज आंबेडकर और प्रकाश आंबेडकर (फोटो: फेसबुक)

भीमराव आंबेडकर के दोनों पोते प्रकाश आंबेडकर और आनंद आंबेडकर ने उनके नाम बदलने के निर्णय की आलोचना करते हुए इसे भाजपा की वोट बैंक की राजनीति करार दिया है.

आनंदराज आंबेडकर और प्रकाश आंबेडकर (फोटो: फेसबुक)
आनंदराज आंबेडकर और प्रकाश आंबेडकर (फोटो: फेसबुक)

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा डॉ. भीमराव आंबेडकर का नाम बदलने के निर्णय की आंबेडकर के दोनों पोते प्रकाश आंबेडकर और आनंद आंबेडकर ने आलोचना की है. आंबेडकर के नाम में रामजी जोड़ने को दोनों ने ही भाजपा की वोटबैंक की राजनीति करार दिया है.

सीएनएन-न्यूज़ 18 को दिए अपने बयान में प्रकाश ने कहा, ‘भाजपा 2019 के चुनावों से पहले अपना खुद का एजेंडा खड़ा करना चाहती है. वे मतदाताओं को यह तक बताने की कोशिश कर सकते हैं कि आंबेडकर भी राम भक्त थे.’

दरअसल, उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाइक ने आंबेडकर के नाम में रामजी जोड़ने का सुझाव दिया था, जिसके बाद योगी सरकार ने विधानसभा में प्रस्ताव पास कर राज्य के सभी सरकारी रिकॉर्ड और स्कूल की किताबों में भीमराव आंबेडकर को बदलकर भीमराव रामजी आंबेडकर कर दिया है. उन्होंने इसके पीछे का तर्क दिया था कि महाराष्ट्र में नाम में पिता का भी नाम लिखने की परंपरा है और आंबेडकर महाराष्ट्र के थे, इसलिए यह कदम उठाया गया है.

प्रकाश ने बताया कि उनके दादा बतौर हस्ताक्षर में ही रामजी का इस्तेमाल करते थे और हर जगह वो सिर्फ भीमराव आंबेडकर ही लिखते थे.

भाजपा की तरफ से मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्या ने सरकार के फैसले का बचाव करते हुए कहा है कि बीआर आंबेडकर का नाम अभी तक सही तरीके से नहीं इस्तेमाल किया गया है और सरकार सिर्फ उस गलती में सुधार कर रही है.

वहीं, दूसरे पोते आनंद आंबेडकर का कहना है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने नाम में बदलाव करने से पहले परिवार से कोई संपर्क नहीं किया.

आनंद ने आगे कहा, ‘अभी मुझे ड्राफ्ट या सरकारी आदेश की कॉपी नहीं मिली है, जैसे ही मिलती है मैं आगे क्या करना है उस पर विचार करूंगा.’

आनंद ने कहा कि उनके दादा को अपने नाम में अपने पिता ‘रामजी मालोजी सकपाल’ का नाम लगाने में गर्व महसूस होता था. वे ब्रिटिश सेना में काम करते थे और महाराष्ट्र में नाम में पिता का नाम बहुत ही सामान्य बात है. यह भी अफवाह फैलाई गई कि बीआर आंबेडकर ने अपने नाम में से पिता का नाम हटा दिया है.

आनंद कहते हैं, ‘मराठी भाषा में दादाजी हमेशा अपने पूरे नाम ‘भीमराव रामजी आंबेडकर’ के साथ हस्ताक्षर करते थे, बाकी हिंदी और अंग्रेजी जैसी अन्य भाषा में वे बीआर आंबेडकर का इस्तेमाल करते थे. सवाल यह है कि अभी नाम में रामजी क्यों जोड़ा गया? इसके पीछे का राजनीतिक उद्देश्य क्या है?’

आंबेडकर के नाम में बदलाव पर भाजपा सांसद उदित राज ने भी आपत्ति जताई है. उनका कहना है कि आंबेडकर ने हमेशा अपना नाम बीआर आंबेडकर ही लिखा है.

उदित आगे कहते हैं, ‘उनके मृत्यु के इतने साल बाद नाम बदलने के पीछे क्या तर्क है? यह बिल्कुल गैरजरूरी है. उनका नाम बदलने की जरूरत नहीं थी, भले ही उन्होंने संविधान के ड्राफ्ट में हस्ताक्षर में रामजी का इस्तेमाल किया था. मुझे इसके पीछे कोई तर्क नहीं दिखता. उन्होंने मरते दम तक चुना कि वे अपने नाम में रामजी का इस्तेमाल नहीं करेंगे.’

साहित्यकार कांचा इलैया ने भी उदित राज के विचारों का समर्थन करते हुए कहा, ‘बाबा साहेब ने भले ही संविधान के ड्राफ्ट में हस्ताक्षर करते हुए रामजी का इस्तेमाल किया होगा, लेकिन अपने रोजाना जीवनकाल में उन्होंने कभी भी पूरा नाम नहीं लिखा. भाजपा सरकार का निर्णय तथ्यात्मक रूप से सही है, लेकिन वैचारिक तौर पर वे आंबेडकर के ब्राह्मणवाद विरोधी नीति के खिलाफ हैं. उत्तर भारत में बहुत दलित लोग नाम में राम का इस्तेमाल करते थे. यहां तक कि कांशीराम भी इस्तेमाल करते थे, लेकिन इस राम का भगवान राम से कोई लेना देना है.’

वे आगे कहते हैं कि बीआर आंबेडकर 1956 में बौद्ध धर्म में शामिल हो गए थे और उन्होंने शपथ ली थी कि वे भगवान राम की पूजा नहीं करेंगे और न ही पुनर्जन्म में विश्वास करेंगे, जबकि हिंदू धर्म के अनुसार विष्णु ने भगवान राम के रूप में जन्म लिया था.

बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के प्रवक्ता सुधीरन भदौरिया ने कहा कि यह सब प्रतीकात्मक है. यह वह नहीं है जो इस देश का दलित चाहता है. सरकार ने उन्हें हर मोर्चे पर छला है.

योगी आदित्यनाथ पहले अपने असली नाम ठाकुर अजीत सिंह बिष्ट का इस्तेमाल क्यों नहीं कर रहे?

जेडीयू राष्ट्रीय महासचिव श्याम रजक (फोटो: फेसबुक)
जेडीयू राष्ट्रीय महासचिव श्याम रजक (फोटो: फेसबुक)

दैनिक जागरण की खबर के अनुसार, जेडीयू विधायक और राष्ट्रीय महासचिव श्याम रजक ने भी उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लिए गए निर्णय की आलोचना की है.

रजक ने आंबेडकर के नाम में रामजी जोड़े जाने को साजिश करार दिया है और कहा है कि मनुवादी सोच के लोगों द्वारा देश में आवश्यक एजेंडे को बदलने के कुचक्र के तहत ऐसा किया जा रहा है.

योगी आदित्यनाथ पर निशाना साधते हुए रजक ने कहा कि कि योगी आदित्यनाथ पहले अपना असली नाम ठाकुर अजीत सिंह बिष्ट का इस्तेमाल क्यों नहीं कर रहे?

उन्होंने आगे कहा, ‘यूपी सरकार द्वारा डा. अांबेडकर के संबंध में अधिसूचना मनुवाद का एजेंडा लागू करने का प्रयास है. यह दलितों को अपने अधिकार के लिए संघर्ष करने के एजेंडे से भटकाने का प्रयास है. बाबा साहेब के नाम में से केवल ‘रामजी’ का चुना जाना क्या भाजपा द्वारा उनके शुद्धीकरण का प्रयास है? उनका पूरा नाम डॉ. भीमराव रामजी सकपाल अांबेडकर था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पूरा नाम नरेंद्र भाई दामोदर भाई मोदी क्यों नहीं लिया जा रहा?’

जदयू नेता ने कहा कि यह सही है कि बाबा साहेब के पिता का नाम रामजी था और महाराष्ट्र की परंपरा के मुताबिक उन्होंने इसे अपने नाम में शामिल किया, लेकिन यह भी सत्य है कि अंबेडकर उनका पारिवारिक नाम नहीं था, यह नाम उन्हें उनके शिक्षक ने दिया था. बाबा साहेब का पारिवारिक नाम सकपाल था.

रजक ने आगे कहा कि अगड़ी जाति का वर्चस्व कायम रखने के इच्छुक लोग शुद्धिकरण के बहुत शौकीन हैं. ऐसा कर वह दलितों का अपमान करते हैं. बाबा साहेब की मूर्ति तोड़ने वाले लोग रामजी लिखकर क्या साबित करना चाहते हैं?

योगी सरकार पर हमला बोलते हुए उन्होंने कहा, ‘आदित्यनाथ सरकार ने यह काम उस समय किया है जब दलित संविधान में सुनिश्चित किए गए अपने अधिकारों की प्राप्ति के लिए संघर्ष कर रहे हैं और उन पर हर तरफ से हमले किए जा रहे हैं. एससी-एसटी एक्ट को कमजोर किया जा रहा है.