मक्का मस्जिद ब्लास्ट: असीमानंद समेत सभी 5 आरोपी बरी

हैदराबाद में एनआईए की विशेष अदालत ने दिया फैसला, कहा एनआईए द्वारा दिए गए सबूत काफ़ी नहीं.

New Delhi: **FILE** File photo of Mecca Masjid blast accused Swami Aseemanand who was acquitted by a special NIA court in Hyderabad on Monday. PTI Photo (PTI4_16_2018_000050B)
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हैदराबाद में एनआईए की विशेष अदालत ने दिया फैसला, कहा एनआईए द्वारा दिए गए सबूत काफ़ी नहीं.

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मक्का मस्जिद विस्फोट कांड के आरोपी स्वामी असीमानंद को हैदराबाद में विशेष एनआईए अदालत ने बरी कर दिया. (फोटो: पीटीआई)

हैदराबाद: वर्ष 2007 के मक्का मस्जिद विस्फोट मामले में हैदराबाद की एक विशेष आतंक रोधी अदालत ने स्वामी असीमानंद और चार अन्य को बीते 16 अप्रैल को बरी कर दिया. अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपियों के ख़िलाफ़ एक भी आरोप साबित नहीं कर सका.

18 मई 2007 को रिमोट कंट्रोल के ज़रिये 400 साल से अधिक पुरानी मस्जिद में जुमे की नमाज़ के दौरान शक्तिशाली विस्फोट को अंजाम दिया गया था. इसमें नौ लोगों की मौत हो गई थी और 58 अन्य घायल हुए थे.

असीमानंद के वकील जेपी शर्मा के अनुसार, एनआईए मामलों के लिए विशेष न्यायाधीश के रवींद्र रेड्डी ने कहा, ‘अभियोजन (एनआईए) किसी भी आरोपी के ख़िलाफ़ एक भी आरोप साबित नहीं कर सका, इसलिए सभी को बरी किया जाता है.’

न्यायाधीश ने कड़ी सुरक्षा के बीच फ़ैसला सुनाया.

कथित ‘भगवा आतंक’ के बहुचर्चित मामले में फैसला सुनाए जाने के दौरान अदालत कक्ष में मीडिया के प्रवेश पर रोक लगा दी गई थी.

असीमानंद को 2007 के अजमेर दरगाह आतंकी हमला मामले में भी पिछले साल बरी कर दिया गया था. वह 2007 के समझौता एक्सप्रेस विस्फोट मामले में भी आरोपी हैं.

असीमानंद के अतिरिक्त देवेंद्र गुप्ता, लोकेश शर्मा, भरत मोहनलाल रतेश्वर उर्फ भरत भाई और राजेंद्र चौधरी को भी बरी किया गया है.

यद्यपि इस मामले में 10 आरोपी थे, लेकिन उनमें से सिर्फ़ पांच के ख़िलाफ़ ही मुक़दमा चलाया गया. दो अन्य आरोपी संदीप वी. डांगे और रामचंद्र कालसांगरा फ़रार हैं जबकि सुनील जोशी की हत्या कर दी गई. दो अन्य के ख़िलाफ़ जांच चल रही है.

बम विस्फोट मस्जिद के वजूखाना के पास हुआ था जब नमाज़ी वहां वजू कर रहे थे. बाद में दो और आईईडी पाए गए थे, जिसे पुलिस ने निष्क्रिय कर दिया था.

इस घटना के विरोध में हिंसक प्रदर्शन और दंगे हुए थे. इसके बाद पुलिस कार्रवाई में और लोग मारे गए थे.

मामले की शुरुआत में पुलिस ने जांच की. उसके बाद सीबीआई को मामला सौंप दिया गया और आख़िरकार 2011 में एनआईए को जांच की ज़िम्मेदारी सौंप दी गई. एनआईए देश की अग्रणी आतंक रोधी जांच एजेंसी है.

सीबीआई ने एक आरोप पत्र दायर किया था. एनआईए ने बाद में मामले में पूरक आरोप पत्र दाख़िल किए थे.

दिल्ली में एनआईए प्रवक्ता ने सुनवाई के दौरान कहा कि आदेश का अध्ययन करने के बाद एजेंसी भावी क़दम के बारे में फैसला करेगी.

फैसले से उत्साहित भाजपा ने दावा किया कि इसने कांग्रेस की ‘तुष्टीकरण की राजनीति’ का पर्दाफ़ाश कर दिया है, जबकि कांग्रेस ने एनआईए के कामकाज को लेकर सवाल उठाए.

भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने वोट की खातिर लंबे समय तक हिंदुओं को ‘बदनाम’ किया है और मांग की कि पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ‘भगवा आतंक’ और ‘हिंदू आतंक’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करने के लिये माफी मांगें.

वहीं एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने दावा किया कि एनआईए ने सही तरीके से मामले में कार्रवाई नहीं की, जिससे आरोपी बरी हो गए.

क्या था पूरा मामला

18 मई 2007 को जुमे की नमाज के दौरान हैदराबाद की ऐतिहासिक मक्का मस्जिद में बम विस्फोट हुआ था, जिसमें नौ लोगों की मौत हुई थी और 58 लोग घायल हुए थे.

इस विस्फोट का आरोप हिंदुत्व संगठन अभिनव भारत पर लगा था. शुरुआती पुलिस जांच के बाद मामला सीबीआई को दे दिया गया था, जिसने मामले की चार्जशीट दाखिल की.

सीबीआई ने इस मामले में 68 गवाहों से पूछताछ की, जिसमें से 54 अपने बयान से मुकर गए. मुकरने वाले इन गवाहों में डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाईजेशन के वैज्ञानिक वी वेंकट राव भी थे.

इसके बाद साल 2011 में सीबीआई ने जांच एनआईए को सौंप दी.

मामले में 10 लोगों का नाम आरोपियों के रूप में दर्ज किया गया था हालांकि इनमें से सिर्फ 5, देवेंद्र गुप्ता, लोकेश शर्मा, स्वामी असीमानंद उर्फ नाबा कुमार सरकार, भारत मोहनलाल रातेश्वर और राजेंद्र चौधरी, की गिरफ़्तारी हुई और मुकदमा चला.

आज तक की खबर के मुताबिक इस मामले में अब तक कुल 226 चश्मदीदों के बयान दर्ज किए गए थे और कोर्ट के सामने 411 दस्तावेज पेश किए गए. लेकिन ढेरों गवाह कोर्ट के सामने मुकर गए, जिनमें लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित और झारखंड के मंत्री रणधीर कुमार सिंह भी शामिल हैं.

स्वामी असीमानंद ने 2011 में मजिस्ट्रेट को दिए इकबालिया बयान में स्वीकार किया था कि अजमेर दरगाह, हैदराबाद की मक्का मस्जिद और कई अन्य जगहों पर हुए बम ब्लास्ट में उनका और कई अन्य हिंदू चरमपंथी संगठनों का हाथ है. हालांकि बाद में असीमानंद अपने बयान से पलट गए और कहा कि उन्होंने पिछला बयान एनआईए के दबाव में दिया था.

इस मामले की जांच के दौरान इस मामले के एक प्रमुख आरोपी और आरएसएस के कार्यकर्ता सुनील जोशी की गोली मारकर हत्या कर दी गयी थी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)