एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए अदालत ने कहा कि नेताओं की सुरक्षा पर हो रहे खर्च पर रोक लगनी चाहिए. राजनीतिक दल उनका खर्च उठाने में सक्षम हैं. ऐसे में सरकार को उनकी सुरक्षा का खर्च उठाने की जरूरत नहीं है.
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस मंजुला चेल्लूर और जस्टिस गिरीश कुलकर्णी की पीठ ने शुक्रवार को कहा, ‘टैक्स देने वाली जनता का पैसा पूर्व विधायकों और उनके रिश्तेदारों की सुरक्षा पर क्यों खर्च होना चाहिए?’ पीठ ने यह भी कहा, ‘ऐसा लगता है कि उन लोगों को सिर्फ इसलिए सुरक्षा दी गई है, क्योंकि उनका नाता किसी राजनीतिक दल से है.’
महाराष्ट्र में पुलिस संरक्षण की पाने वाले राजनीतिज्ञों की सूची का हवाला देते हुए पीठ ने सरकारी पक्षकार अभिनंदन वैज्ञानी से कहा, ‘नेताओं और उनके रिश्तेदारों को मिल रही सुरक्षा पर हो रहे ख़र्च का बोझ उनके राजनीतिक दल को उठाना चाहिए. इस खर्च का बोझ राज्य सरकार पर नहीं लादा जा सकता.’
पीठ अशोक उदयवार और सनी पूनमिया की ओर से दाखिल की गई जनहित याचिका की सुनवाई कर रही थी. इस याचिका में राजनीतिज्ञों की पुलिस सुरक्षा पर हो रहे खर्च की राशि पर चिंता व्यक्त की गई है.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य सरकार की ओर से पीठ को पुलिस सुरक्षा की पाने वाले राजनीतिज्ञों की सूची सौंपी गई है. सूची के हिसाब से महाराष्ट्र भर में 1034 राजनीतिज्ञों को पुलिस सुरक्षा मिली है.
इन 1034 में से 242 लोग मुंबई के हैं. हर एक की सुरक्षा पर चार पुलिसकर्मी लगाए गए हैं. इतना ही नहीं इनमें से 482 ऐसे लोग हैं, जो न तो किसी संवैधानिक पद पर है और न ही कोई सरकारी पद पर.
पीठ ने इस बात पर नाराज़गी जताई है और कहा कि राज्य सरकार को इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि किन लोगों को सुरक्षा मिलनी चाहिए. ये आंकड़े बताते हैं कि राजनीतिज्ञों को पुलिस सुरक्षा देते वक्त विवेक का इस्तेमाल नहीं किया गया.