सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने याचिकाएं खारिज करते हुए कहा कि कहा कि बीएच लोया की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई थी. याचिकाएं न्यायपालिका को बदनाम करने का प्रयास हैं.
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने सोहराबुद्दीन शेख़ फ़र्ज़ी मुठभेड़ मामले की सुनवाई करने वाले विशेष जज बीएच लोया की संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु के कारणों की स्वतंत्र जांच के लिए दायर याचिकाएं गुरुवार को तीखी टिप्पणियां करने के साथ खारिज कर दीं.
न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि न्यायाधीश की स्वाभाविक मृत्यु हुई थी और इन याचिकाओं में न्याय प्रक्रिया को बाधित करने तथा बदनाम करने के गंभीर प्रयास किए गए हैं.
शीर्ष अदालत ने कहा कि जज लोया के निधन से संबंधित परिस्थितियों को लेकर दायर सारे मुक़दमे इस फैसले के साथ समाप्त हो गए.
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनंजय वाई. चंद्रचूड़ की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने कहा कि जज लोया की मृत्यु को लेकर दायर सारी जनहित याचिकाएं राजनीतिक हिसाब बराबर करने वाली ओछी और प्रायोजित थीं तथा न्यायिक अधिकारियों और बॉम्बे उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की गरिमा को ठेस पहुंचाने के लिए प्रतिद्वंद्विता ही इन याचिकाओं का मुखौटा थीं.
जज लोया का एक दिसंबर, 2014 को नागपुर में निधन हो गया था, जहां वह अपने एक सहयोगी की पुत्री के विवाह में शामिल होने गए थे.
शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि असंगत कारणों के साथ इस तरह के मुक़दमों का बोझ अदालतों पर डाला गया तो न्यायिक प्रक्रिया एक पहेली बनकर रह जाएगी.
पीठ ने कहा लोया की मृत्यु के कारणों की परिस्थितियों के बारे में चार न्यायाधीशों के बयानों पर संदेह करने की कोई वजह नहीं है और रिकॉर्ड पर लाए गए दस्तावेज़ों और उनकी विवेचना से यह साबित होता है कि उनका निधन स्वाभाविक वजह से हुआ था.
शीर्ष अदालत ने न्यायिक अधिकारियों और न्यायाधीशों पर आक्षेप लगाने के लिए याचिकाकर्ताओं और उनके वकीलों की तीखी आलोचना की.
न्यायालय ने कहा कि उनके ख़िलाफ़ दुराग्रह पैदा करने का प्रयास किया गया और यह न्यायपालिका पर अपमानजनक हमला था.
पीठ ने कहा कि इन याचिकाओं से यह साफ हो जाता है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर सीधा हमला करने का हक़ीक़त में प्रयास किया गया और पेश मामला व्यक्तिगत एजेंडे को आगे बढ़ाने की मंशा ज़ाहिर करता है.
न्यायालय ने कहा कि याचिकाओं पर बहस के दौरान याचिकाकर्ताओं के वकील न्यायाधीशों के प्रति विनम्रता बरतने का शिष्टाचार भूल गए और उन्होंने अनर्गल आरोप लगाए.
न्यायालय ने कहा कि उसने याचिकाकर्ताओं के ख़िलाफ़ अवमानना कार्यवाही शुरू करने के बारे में सोचा लेकिन बाद में ऐसा नहीं करने का निश्चय किया.
जज लोया के निधन से संबंधित विवरण के बारे में चार न्यायाधीशों- श्रीकांत कुलकर्णी और एसएम मोदक, वीसी बार्डे और रूपेश राठी- के बयानों पर भरोसा करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा, ‘उनके बयानों की सच्चाई पर संदेह करने की कोई वजह नहीं है.’
पीठ ने कहा कि इन चार न्यायाधीशों के बयान भरोसेमंद, सुसंगत और सच्चाई से परिपूर्ण हैं और इन पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं है.
जज लोया और ये चार न्यायाधीश शादी में शामिल होने के लिए एक साथ ही नागपुर गए थे और सरकार द्वारा संचालित वीआईपी अतिथि गृह रवि भवन में रुके थे, जहां उन्हें दिल का दौरा पड़ा था.
पीठ की ओर से फैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘न्यायालय कारोबारी या राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता का हिसाब बराबर करने की जगह है जिसका बाज़ार या चुनाव में ही मुक़ाबला करना होगा. क़ानून की रक्षा करना न्यायालय का कर्तव्य है.’
पीठ ने शीर्ष अदालत सहित न्यायाधीशों के ख़िलाफ़ आक्षेप लगाने के वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे, इंदिरा जयसिंह और वकील प्रशांत भूषण के प्रयासों की आलोचना की.
न्यायालय ने भूषण के इस तर्क को भी गंभीरता से लिया कि उसके दो न्यायाधीशों न्यायमूर्ति खानविलकर और न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ को इस मामले की सुनवाई से ख़ुद को अलग कर लेना चाहिए क्योंकि वे महाराष्ट्र से ही आते हैं और इस मामले में बॉम्बे उच्च न्यायालय के संबंधित सभी न्यायाधीशों को जानते होंगे.
जज लोया की मृत्यु का मामला पिछले साल नवंबर में उस समय चर्चा में आया जब मीडिया में उनकी बहन के उनकी मृत्यु की परिस्थितियों पर संदेह जताने की ख़बरें आईं और इसे सोहराबुद्दीन शेख़ एनकाउंटर मामले से जोड़ा गया.
हालांकि, लोया के बेटे ने इस साल 14 जनवरी को मुंबई में कहा कि उसके पिता की स्वाभाविक कारणों से मृत्यु हुई थी.
शीर्ष अदालत के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ ने 12 जनवरी को संयुक्त प्रेस कांफ्रेस करके संवेदनशील मुक़दमों को सुनवाई के लिये आवंटित करने के तरीके पर सवाल उठाए थे. जज लोया की मृत्यु का मामला भी इनमें से एक था.
सोहराबुद्दीन शेख़ फ़र्ज़ी मुठभेड़ मामले में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को राजस्थान के गृह मंत्री गुलाबचंद कटारिया, राजस्थान के कारोबारी विमल पाटनी, गुजरात पुलिस के पूर्व मुखिया पीसी पांडे, राज्य पुलिस की अतिरिक्त महानिदेशक गीता जौहरी और गुजरात पुलिस के अधिकारी अभय चुड़ास्मा और एनके अमीन को पहले ही आरोप मुक्त कर दिया गया था.
पुलिसकर्मियों सहित अनेक आरोपी इस समय सोहराबुद्दीन फ़र्ज़ी मुठभेड़ कांड में मुक़दमे का सामना कर रहे हैं. इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई थी और बाद में मुक़दमा भी मुंबई स्थानांतरित कर दिया गया था.
जज लोया की मृत्यु की परिस्थितियों की स्वतंत्र जांच के लिए कांग्रेस नेता तहसीन पूनावाला, बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन और महाराष्ट्र के एक पत्रकार बीएस लोन ने शीर्ष अदालत में याचिकाएं दायर की थीं.
घटनाक्रम:
विशेष सीबीआई जज बीएच लोया की मृत्यु के कारणों की स्वतंत्र जांच के लिए दायर याचिका खारिज करने के उच्चतम न्यायालय के फैसले का घटनाक्रम इस प्रकार है:
01 दिसंबर, 2014: जज लोया की नागपुर में दिल का दौरा पड़ने से मौत. वह सहकर्मी की बेटी के विवाह में शामिल होने गए थे.
नवंबर, 2017: जज लोया की मृत्यु की परिस्थितियों और इसे सोहराबुद्दीन शेख़ मुठभेड़ मामले से जोड़ने संबंधी न्यायाधीश की बहन के बयान से मामला सुर्ख़ियों में आया.
11 जनवरी, 2018: उच्चतम न्यायालय ने जज लोया की मृत्यु की स्वतंत्र जांच संबंधी दो याचिकाओं पर सुनवाई की हामी भरी.
12 जनवरी, 2018: न्यायालय ने जज लोया की कथित रूप से संदिग्ध परिस्थितियों में मौत को ‘गंभीर मामला’ बताया, महाराष्ट्र सरकार से जवाब मांगा.
16 जनवरी, 2018: न्यायालय ने कहा, महाराष्ट्र सरकार तय कर सकती है कि लोया की मृत्यु से जुड़े कौन से दस्तावेज़ याचिकाकर्ताओं को सौंपे जाएं.
22 जनवरी, 2018: याचिकाओं में लोया की मृत्यु के संबंध में उठाए गए मुद्दों को ‘गंभीर’ बताते हुए उच्चतम न्यायालय ने लोया की मृत्यु से जुड़े बॉम्बे उच्च न्यायालय की दो याचिकाओं को भी अपने पास स्थानांतरित कर लिया.
31 जनवरी, 2018: नौसेना के पूर्व प्रमुख एडमिरल एल. रामदास ने न्यायालय से मामले की शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीशों और पुलिस के पूर्व अधिकारियों द्वारा स्वतंत्र जांच कराने का अनुरोध किया.
02 फरवरी, 2018: न्यायालय ने कहा कि वह सिर्फ़ जज लोया की मृत्यु को लेकर सुनवाई करेगा और वह भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को सोहराबुद्दीन मामले में आरोप मुक्त करने सहित अन्य पहलुओं पर विचार नहीं करेगा.
05 फरवरी, 2018: मुंबई के वकीलों के संगठन ने जज लोया की मृत्यु के मामले में न्यायालय में याचिका दायर कर दो न्यायाधीशों सहित 11 लोगों से जिरह करने की अनुमति मांगी.
09 फरवरी, 2018: महाराष्ट्र सरकार ने मामले की स्वतंत्र जांच कराने की मांग का विरोध करते हुए उसे ‘पीत पत्रकारिता’ और ‘हित साधना’ पर आधारित बताया.
12 फरवरी, 2018: महाराष्ट्र सरकार ने न्यायालय से कहा कि जज लोया के साथ अंतिम वक़्त में मौजूद चार न्यायाधीशों द्वारा उनकी मृत्यु को प्राकृतिक बताए जाने के बयान पर ‘संदेह’ नहीं किया जा सकता.
19 फरवरी, 2018: न्यायालय ने कहा कि जज लोया की मृत्यु के मामले पर पूरी गंभीरता और एहतियात से विचार कर रहा है. इसी दिन याचिकाकर्ताओं के वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने कहा कि उन पर मुक़दमा छोड़ने का दबाव बनाया जा रहा है.
05 मार्च, 2018: न्यायालय ने कहा कि बॉम्बे उच्च न्यायालय में रोस्टर में बदलाव सामान्य है. कहा कि उच्च न्यायालय में सोहराबुद्दीन मामले की सुनवाई करने वाले न्यायाधीशों के बदलाव पर सवाल नहीं उठाए जाने चाहिए.
08 मार्च, 2018: न्यायालय ने वरिष्ठ अधिवक्ताओं के आरोपों कि वह सिर्फ़ जज लोया मृत्यु मामले को सामने लाने वालों से सवाल कर रहा है, महाराष्ट्र सरकार से नहीं, पर रोष जताया.
09 मार्च, 2018: महाराष्ट्र सरकार ने न्यायालय में न्यायाधीशों पर कथित आरोपों, बुलिंग और परेशान करने पर गुस्सा जताया, कहा कि न्यायपालिका और न्यायिक अधिकारियों को ऐसे हालात से बचाने की ज़रूरत है. इस मामले में एक ग़ैर सरकारी संगठन सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन ने कहा कि जज लोया की मौत संभवत: ज़हर के कारण हुई है, क्योंकि वह सीने में जकड़न की शिकायत कर रहे थे.
12 मार्च, 2018: मुंबई के वकीलों की संस्था ने न्यायालय में बॉम्बे उच्च न्यायालय के फैसले का एक दस्तावेज़ जमा किया. उसमें आरोप लगाया कि जज लोया मृत्यु मामले में गवाही देने वाले दो न्यायाधीशों में से एक ने 2014 में भाजपा के शीर्ष नेता के ख़िलाफ़ आपराधिक मामले में समझौता करने का आदेश दिया था.
16 मार्च, 2018: न्यायाधीश लोया की मृत्यु की स्वतंत्र जांच के लिए याचिका पर न्यायालय में सुनवाई पूरी, फैसला बाद में. महाराष्ट्र सरकार ने न्यायालय में कहा कि लोया की कथित रूप से रहस्यमय परिस्थितियों में हुई मृत्यु की स्वतंत्र जांच के लिए दायर याचिकाएं प्रायोजित हैं और क़ानून का शासन बनाए रखने की आड़ में इसका मक़सद एक व्यक्ति को निशाना बनाना है.
19 अप्रैल, 2018: उच्चतम न्यायालय ने सोहराबुद्दीन शेख़ फ़र्ज़ी मुठभेड़ मामले की जांच कर रहे सीबीआई के विशेष जज बीएच लोया की संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु की स्वतंत्र जांच कराने के लिए दायर याचिकाएं को खारिज कर दीं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)