भीमा-कोरेगांव हिंसा के दौरान दलित युवती के घर में आग लगा दी गई थी. परिजनों के अनुसार, इसमें शामिल लोग बयान वापस लेने के लिए उस पर दबाव डाल रहे थे, इस कारण उसने आत्महत्या कर ली.
पुणे: पुणे जिले के भीमा-कोरेगांव में इस साल हुई हिंसा की गवाह रही 19 साल की एक लड़की का शव रविवार को एक कुएं से बरामद किया गया. हिंसा के दौरान लड़की का घर जला दिया गया था. भारतीय रिपब्लिकन पक्ष (भारिप) बहुजन महासंघ के नेता प्रकाश आंबेडकर ने दावा किया कि ऐसा प्रतीत होता है कि यह हत्या है.
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि नौ लोगों के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया गया है और उनमें से दो को गिरफ्तार कर लिया गया है.
अधिकारी ने बताया कि दलित समुदाय से आने वाली पूजा साकत का शव रविवार को सुबह भीमा-कोरेगांव में उसके घर के पास एक कुएं से बरामद किया गया था. उसके एक दिन पहले ही पूजा के परिवार ने उसके लापता होने की शिकायत दर्ज कराइ थी. हिंसा के दौरान पूजा का घर जला दिया गया था.
पूजा के परिवार का आरोप है कि जनवरी को घर में आग लगाने की घटना के बाद उसने पुलिस को दिए अपने बयान में कुछ लोगों का नाम लिया था. वे लोग लड़की को धमकी दे रहे थे और अपना बयान वापस लेने के लिए उस पर दबाव डाल रहे थे. महिला के परिवार का आरोप है कि इसी के चलते उसने आत्महत्या की.
अधिकारी ने बताया कि पुलिस ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) तथा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) कानून के तहत एक मामला दर्ज किया गया था.
उन्होंने कहा कि शव पर किसी जख्म के निशान नहीं हैं. इसके अलावा आत्महत्या के संबंध में भी कोई पत्र नहीं मिला है. मामले में आगे जांच की जा रही है.
पुणे पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) सुवेज हक ने कहा कि पीड़िता के परिवार और कुछ आरोपियों के बीच संपत्ति विवाद चल रहा था. पुलिस सभी कोणों से जांच कर रही है. नौ लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है, जिनमें से दो को गिरफ्तार कर लिया गया है.
डॉ. बीआर आंबेडकर के पोते प्रकाश आंबेडकर ने नागपुर में संवाददाताओं से कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि यह हत्या है. उन्होंने इस थ्योरी को भी खारिज किया कि मौत की वजह संपत्ति विवाद हो सकता है.
पुलिस के अनुसार, हिंसा के दौरान पूजा के घर को निशाना बनाया गया था और उसके बाद से परिवार किराए के घर में रह रहा है.
पुणे ज़िले में भीमा-कोरेगांव युद्ध की 200वीं सालगिरह पर एक जनवरी को आयोजित कार्यक्रम के दौरान हिंसा हुई थी. एक जनवरी 1818 हुए इस युद्ध में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने पेशवा की सेना को हराया था.
दलित नेता ब्रिटिश सेना की इस जीत का जश्न मनाते हैं. ऐसा समझा जाता है कि तब अछूत समझे जाने वाले महार समुदाय के सैनिक ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना की ओर से लड़े थे.
कुछ विचारक और चिंतक इस लड़ाई पिछड़ी जातियों के उस समय की उच्च जातियों पर जीत के रूप में देखते हैं. हालांकि, पुणे में कुछ दक्षिणपंथी समूहों ने इस जीत का जश्न मनाए जाने का विरोध किया था.
इस साल एक जनवरी को भीमा-कोरेगांव में इस युद्ध के सालगिरह कार्यक्रम के दौरान हुई हिंसा के दौरान एक व्यक्ति की मौत हो गई थी. मामले में हिंसा भड़काने का आरोप हिंदुवादी संगठन शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान के संस्थापक संभाजी भिड़े (भिड़े गुरूजी) और हिंदूवादी नेता मिलिंद एकबोटे पर है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)