शांति भूषण की तरफ़ से पेश हुए अधिवक्ता दुष्यंत दवे और प्रशांत भूषण ने दलील दी कि प्रधान न्यायाधीश अपने अधिकारों का निरंकुश होकर इस्तेमाल नहीं कर सकते.
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने शीर्ष अदालत में प्रधान न्यायाधीश द्वारा मुकदमों के आवंटन की मौजूदा प्रक्रिया को चुनौती देने वाली पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण की जनहित याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई पूरी कर ली. न्यायालय इस पर फैसला बाद में सुनाएगा.
न्यायमूर्ति एके सिकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की खंडपीठ के समक्ष अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने जनहित याचिका का विरोध किया और कहा कि मुकदमों के आवंटन का काम सिर्फ एक ही व्यक्ति को करना चाहिए और यह प्रधान न्यायाधीश को ही करना होगा.
वेणुगोपाल ने कहा, ‘यह ऐसी कवायद नहीं है जिसे कई व्यक्तियों द्वारा किया जाए.’ न्यायालय ने अटार्नी जनरल से इस मामले में मदद करने का अनुरोध किया था.
अटार्नी जनरल ने कहा कि यदि रोस्टर और मुकदमों के आवंटन के बारे में निर्णय करने में कई न्यायाधीश शामिल होंगे तो इसे लेकर ही अव्यवस्था हो सकती है कि कौन से मामले किसे सुनने चाहिए.
पीठ ने इस मामले में शांति भूषण की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे और वकील प्रशांत भूषण की दलीलें भी सुनीं.
दवे ने कहा कि शीर्ष अदालत में रोस्टर और विभिन्न पीठ को मुकदमों के आवंटन का निर्णय कोलेजियम या सभी न्यायाधीशों को मिल कर करना चाहिए.
पीठ ने इससे पहले कहा था कि यह व्यवस्था दी जा चुकी है कि प्रधान न्यायाधीश ही रोस्टर के मुखिया हैं.
शांति भूषण ने अपनी याचिका में प्रधान न्यायाधीश को भी उच्चतम न्यायालय के रजिस्ट्रार के साथ प्रतिवादी बनाया है.
शांति भूषण ने याचिका में कहा है कि रोस्टर का मुखिया अनियंत्रित और निरंकुश नहीं हो सकता है जो अपनी पसंद की पीठ को मनमाने तरीके से मुकदमों का आवंटन करने के लिए अपने अधिकार का इस्तेमाल नहीं कर सकता है.
याचिका में कहा गया है कि प्रधान न्यायाधीश को शीर्ष अदालत के उनके फैसलों को ध्यान में रखते हुए वरिष्ठतम न्यायाधीशों से परामर्श करके अपने अधिकार का इस्तेमाल करना चाहिए.
शीर्ष अदालत के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों ने 12 जनवरी को संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस करके कहा था कि न्यायालय में सब कुछ ठीक नहीं है और उन्होंने प्रधान न्यायाधीश पर मनमाने तरीके से मुकदमों का आवंटन करने का आरोप लगाया था.