रामनवमी के बाद बिहार के विभिन्न ज़िलों में फैली सांप्रदायिक हिंसा के एक महीने बाद इन इलाकों में हिंदू-मुस्लिमों के बीच किसी तरह का मनमुटाव या दुर्भावना नहीं दिखती.
सन् 1989 के भागलपुर दंगे को छोड़ दें, तो सांप्रदायिक हिंसा के मामले में बिहार की तस्वीर बदनुमा नहीं रही है. लेकिन, पिछले महीने यानी मार्च के आखिरी हफ्ते में सूबे के करीब आधा दर्जन जिलों में हुई सांप्रदायिक तनाव की घटनाओं ने इस तस्वीर को बदल दिया है.
सांप्रदायिक हिंसा की घटना जिस तरीके से शुरू हुई और फिर एक के बाद एक कई जिलों में इसका दोहराव हुआ, वह चिंता की बात है. सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं का अब एक महीना गुजर चुका है.
प्रभावित इलाकों में जनजीवन सामान्य हो गया है. अच्छी बात यह है कि प्रभावित क्षेत्रों में दोनों समुदायों के बीच किसी तरह का मनमुटाव या एक दूसरे के प्रति किसी तरह की दुर्भावना नहीं है.
सूबे के सीएम नीतीश के गृह जिला नालंदा का सिलाव, खाजा मिठाई के लिए बहुत मशहूर है. बिहार के अन्य जिलों में खाजा मिठाई ‘सिलाव का खाजा’ नाम से ही बेची जाती है.
विगत 28 मार्च को सिलाव सांप्रदायिक हिंसा के कारण सुर्खियों में आ गया था. सिलाव बाजार से बाईं तरफ जाने वाली सड़क पर कुछ दूर चलने के बाद हैदरगंज कराह मोहल्ला आता है. सिलाव वैसे तो हिंदू बहुल क्षेत्र है, लेकिन हैदरगंज कराह मोहल्ले में मुस्लिम आबादी ज्यादा है.
बताया जाता है कि रामनवमी का जुलूस मुस्लिम मोहल्ले से ले जाने के लेकर विवाद शुरू हुआ था. मोहल्ले से सिलाव थाने की दूरी बहुत ज्यादा नहीं है. महज पांच मिनट में वहां पहुंचा जा सकता है, इसलिए पुलिस भी तुरंत घटनास्थल पर पहुंच गई और दंगे पर उतारू भीड़ को तितर-बितर कर दिया.
सिलाव बाजार काफी बड़ा है और यहां जरूरत का हर सामान मिलता है. दिन भर बाजार में गहमागहमी रहती है. बाजार में मुट्ठीभर दुकानें मुस्लिमों की भी हैं. लेकिन, उनके चेहरे पर कोई खौफ नहीं दिखा. सिलाव के लोग सांप्रदायिक हिंसा को अब भूल जाना चाहते हैं.
सिलाव बाजार में रहनेवाले 74 वर्षीय राम बालक सिंह कहते हैं, ‘जो होना था, हो गया, अब किसी के दिल में किसी तरह की रंजिश नहीं है.’
तनाव के कारण एक हफ्ते तक बाजार पूरी तरह बंद था. राम बालक सिंह ने बताया, ‘जैसा जुलूस इस बार देखने को मिला, वैसा जुलूस मैंने अपनी पूरी जिंदगी में नहीं देखा था. रोड पर तिल रखने की जगह नहीं थी.’
अधेड़ अलाउद्दीन सिलाव थाने के सामने फुटपाथ पर चप्पल की दुकान चलाते हैं. वह हैदरगंज कराह में रहते हैं.
चप्पलें तरतीब से रखकर वह सिलाव थाने की चहारदीवारी पर लहरा रहे भगवा झंडों की तरफ इशारा करते हुए एक मुख्तसर वाक्य उछालते हैं, ‘आप तो देखिए रहे हैं.’ दूसरे ही पल वह यह भी जोड़ते हैं, ‘जो हुआ, वह तात्कालिक घटना थी. अब तो सबकुछ पहले जैसा ही हो गया है. हम सब मिल-जुलकर रह रहे हैं. किसी के दिल में रत्तीभर भी नफरत नहीं है.’
यूनाइटेड एगेंस्ट हेट नाम के एनजीओ की जांच रिपोर्ट के अनुसार, सिलाव में रामनवमी के जुलूस में शामिल होने के लिए मुस्लिम समुदाय के लोगों को भी आमंत्रित किया गया था. साथ ही यह भी तय हुआ था कि जुलूस से पहले दोनों समुदायों के खास लोगों की बैठक होगी. लेकिन, कोई बैठक नहीं हुई. बैठक क्यों नहीं हुई, यह अब भी एक रहस्य है.
बताया जाता है कि जब शोभायात्रा शुरू हुई, तो मोहल्ले में प्रवेश को लेकर दोनों पक्षों में कहासुनी हो गयी जिसके बाद पथराव हुआ और कुछ घरों में तोड़-फोड़ की कोशिश की गयी. हालांकि, यहां ज्यादा नुकसान नहीं हुआ.
नालंदा से ही सटे नवादा जिले के नवादा शहर स्थित बाईपास में गोंदापुर चौक पर 30 मार्च को हिंसा फैली थी.
बाईपास से दाईं तरफ कंक्रीट की एक सड़क जाती है. इसी जगह जर्जर मकान के ढांचे के पास परती पड़ी जमीन पर कंक्रीट का चबूतरा बना हुआ है जिस पर बजरंगबली की छोटी-सी मूर्ति स्थापित थी.
उस मूर्ति को क्षतिग्रस्त कर दिया गया था, जिसके बाद यहां हिंसा फैली थी. मूर्ति क्षतिग्रस्त होने के बाद वहां दूसरी मूर्ति स्थापित कर दी गयी है. नई मूर्ति पहली मूर्ति से बड़ी है.
मूर्ति तोड़ने का आरोप मुस्लिम समुदाय पर लगा था क्योंकि बाईपास की दूसरी तरफ (जिस तरफ मूर्ति है उसके दूसरी ओर) कुछ दूरी पर एक बिल्डिंग है जो शादी वगैरह के लिए किराये पर दी जाती है.
बताया जाता है कि उक्त बिल्डिंग में मुस्लिम समुदाय की बारात ठहरी हुई थी, तो संभव है कि उन्हीं लोगों ने मूर्ति खंडित की हो. हालांकि, इस आरोप को साबित करने के लिए कोई पुख्ता सबूत नहीं है.
गोंदापुर चौक पर चाय की दुकान चलाने वाले एक युवक से जब बात हुई, तो उसका सवाल था, ‘उनकी (मुसलमानों) बारात वहां ठहरी थी, तो मूर्ति कौन तोड़ेगा?’ साथ ही उसने यह भी कहा कि अब लोग उस घटना को भूल चुके हैं.
चौक के ही एक चबूतरे पर कुछ लोग ताश खेलते हुए भी दिखे. एक बुजुर्ग उनकी तरफ इशारा करते हुए मुस्कुराए जैसे कि 30 मार्च को कुछ हुआ ही न हो और कहा, ‘देख लीजिए, वहां ताश खेल रहे लोगों में दो मुसलमान भी हैं. अब किसी भी समुदाय के मन में कोई गांठ नहीं है.’
चौक पर ही सीमेंट की दुकान चलाने वाले प्रोफेसर साहब कहते हैं, ‘मेरी दुकान में मुसलमान भी काम कर रहे हैं. हम लोग पहले भी मिल-जुलकर रहते थे और अब भी रह रहे हैं.’
नवादा में पिछले साल भी रामनवमी के जुलूस को लेकर कई दिनों तक तनाव कायम रहा था. पुलिस को स्थिति सामान्य करने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी. इस बार के तनाव के बाद यहां एहतियात के तौर पर चार पुलिस कर्मचारियों की तैनाती की गयी है, जो बजरंगबली की मूर्ति के पास बने पंचायत दफ्तर में दिन भर ऊंघते रहते हैं.
समस्तीपुर जिले में बूढ़ी गंडक के किनारे बसे रोसड़ा में सांप्रदायिक हिंसा से यहां के लोग हैरान हैं क्योंकि यहां पहले कभी ऐसी घटना नहीं हुई थी.
रोसड़ा शहर के बीचों-बीच स्थित गुदरी बाजार (जहां तनाव हुआ था) में सघन आबादी है. यहां परचून से लेकर पान तक की दुकानें आबाद हैं, लेकिन सबसे अधिक दुकानें ज्वेलरी की हैं.
बाजार के पिछले हिस्से में दो-तीन घर मुसलमान हैं और बाकी हिंदू. मुसलमान पीढ़ियों से यहां रह रहे हैं और हिंदू भी.
पुरानी बाजार में स्थित जिया उल उलूम मदरसे में नमाज पढ़ने आए 85 वर्षीय अब्दुल कुद्दुस बांकेराम, सीताराम और न जाने कितने ही नाम गिना देते हैं, जिनके साथ उनका बचपन गुजरा था.
वह कहते हैं, ‘रोसड़ा में कभी इस तरह की घटना नहीं हुई. हिंदुओं के साथ हमारा न्योता-पेहानी चलता है. अब भी हमारे बीच किसी तरह का मतभेद-मनभेद नहीं है.’
उल्लेखनीय है कि 26 मार्च की रात हनुमान चौक के निकट स्थित दुर्गा मंदिर से चैती दुर्गा की मूर्ति विसर्जन के लिए निकली थी, जिसमें काफी संख्या में लोग शामिल थे.
रैली गुदरी बाजार से होकर जा रही थी. गुदरी बाजार में ही जामा मस्जिद है. मस्जिद के संलग्न एक छज्जा है और नीचे ज्वेलरी की कई दुकानें हैं.
बताते हैं कि छज्जे से कुछ लोग विसर्जन के लिए निकल रही झांकी देख रहे थे कि तभी कहीं से चप्पल आ गिरी. झांकी में शामिल लोगों का आरोप था कि छत से एक मुस्लिम युवक शाहिद ने चप्पल फेंकी थी.
इस घटना को लेकर जुलूस में शामिल लोगों ने जोरदार हंगामा किया. उस वक्त पुलिस ने किसी तरह स्थिति को काबू में कर लिया था.
बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, उसी रात बजरंग दल के कुछ नेताओं व मूर्ति विसर्जन करने वालों के बीच बैठक हुई थी. इसमें सुबह मस्जिद के सामने जाकर नारेबाजी करने की योजना तैयार की गई थी.
अगली सुबह वही हुआ. लोगों की भीड़ मस्जिद के सामने जुट गई और उन लोगों ने आरोपित को गिरफ्तार कर उनके हवाले कर देने की मांग की. साथ ही उन लोगों ने नारेबाजी भी की. आरोप है कि आक्रोशित भीड़ ने जामा मस्जिद में झंडे भी लगा दिए थे.
गुदरी बाजार से पांच मिनट पैदल चलने पर पुराना बाजार आता है. यहां चलने वाले जिया उल उलूम नाम के मदरसे में 50 से ज्यादा बच्चे पढ़ते हैं. मदरसे के सामने कपड़े सिलने की दो-तीन दुकानें हैं. इन्हें मुस्लिम चलाते हैं. मदरसे से सटा हुआ एक होम्योपैथी क्लीनिक है.
चप्पल उछाले जाने की घटना से नाराज भीड़ ने इस मदरसे में तोड़फोड़ की थी. मदरसे के शिक्षक मो. शम्सुद्दीन ने कहा, ‘27 की दोपहर 12 बजे मेरे पास फोन आया कि जामा मस्जिद के पास हंगामा हो रहा है. मैंने तुरंत बच्चों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया.’
दूसरी तरफ, पुलिस पर लापरवाही बरतने का आरोप लगाकर पथराव भी किया गया. इसमें कुछ पुलिस कर्मचारी जख्मी हुए थे. चप्पल फेंकने के मामले में एक मुस्लिम युवक और हंगामा करने के आरोप में हिंदू समुदाय के 10 लोगों को गिरफ्तार किया गया था.
हिंदुओं को छोड़ने की मांग पर स्थानीय लोगों ने एक हफ्ते तक बाजार की दुकानें बंद रखीं थीं. जिला प्रशासन की पहल पर दोबारा दुकानें खोली गईं.
मस्जिद के करीब 20 साल से परचून की दुकान चलाने वाले सुनील कुमार कहते हैं, ‘हम समझते हैं कि यहां दोनों समुदायों में जितना भाई-चारा है, उतना आपको कहीं नहीं मिलेगा.’ उन्होंने कहा, ‘इस घटना के बाद भी हमारे बीच भाई-चारा बरकरार है. मुस्लिम भाई हमारे यहां से अब भी सामान ले जाते हैं.’
जामा मस्जिद के निकट संजीत कुमार की आलू-प्याज की पुश्तैनी दुकान है. उन्होंने भी कहा कि घटना के बाद भी सब लोग पहले की तरह अमन-चैन से हैं. वह तनाव के लिए बाहरी लोगों को जिम्मेदार मानते हैं. उन्होंने कहा, ‘बाहरी लोगों ने यहां आकर माहौल को खराब किया है, वरना हमारे बीच कभी भी किसी बात को लेकर झगड़ा नहीं हुआ.’
इन सबके बीच एक तथ्य यह भी है कि चप्पल गिरने की घटना को लेकर आरोपित के परिवार के लोगों ने गलती स्वीकार ली थी. इसकी तस्दीक सुनील कुमार भी करते हैं.
सुनील कुमार ने कहा, ‘आरोपित युवक के परिवार के लोगों ने कहा कि लड़के से गलती हुई है और हम इसके लिए माफी मांगते हैं.’ पूरे मामले में अब आरोपित युवक का ‘कश्मीर एंगल’ निकाल लिया गया है.
सुनील कुमार ने बातचीत के क्रम में कई बार यह कहा कि आरोपित युवक कश्मीर में रहता है और दो दिन पहले ही यहां आया था. उनका यह भी मानना है कि वह कोई अलग मंशा लेकर ही यहां आया होगा, तभी उसने ऐसा किया.
उन्होंने साथ ही यह भी कहा, ‘मुसलमानों की कोई गलती नहीं है, बल्कि उस युवक की गलती है जिसने चप्पल फेंकी. चप्पल फेंके जाने के बाद दूसरी जगह से लोग यहां आए और हंगामा किया. स्थानीय लोग इसमें शामिल नहीं थे.’
दूसरी तरफ, मुस्लिम समुदाय और पुलिस ने आरोपित युवक का कश्मीर से किसी तरह का संबंध होने की बात को पूरी तरह खारिज कर दिया.
रोसड़ा के एसडीपीओ अजीत कुमार ने कहा कि यह पूरी तरह बकवास है और आरोपित का कश्मीर से कोई वास्ता नहीं है. मुस्लिम समुदाय के लोगों ने भी यही बात कही.
एसडीपीओ ने कहा, ‘स्थानीय लोगों की शिकायत पर एक आरोपित को गिरफ्तार किया गया है और दूसरे की गिरफ्तारी के लिए छापामारी चल रही है. पुलिस पर पथराव व हंगामा करने के मामले में 10 युवकों को भी पकड़ा गया है.’
यहां यह भी बता दें कि रोसड़ा में भाजपा की अच्छी पैठ है क्योंकि आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) का यहां खासा प्रभाव है. स्थानीय लोगों के अनुसार, यहां आरएसएस के प्रयास से यहां सरस्वती शिशु विद्या मंदिर भी संचालित हो रहा है.
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां कुल 10,500 वोट पड़े थे जिनमें से 9 हजार वोट भाजपा को मिले थे. वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा को अच्छे वोट मिले थे.
स्थानीय स्तर पर एक पाक्षिक अखबार निकालने वाले पत्रकार संजीव कुमार सिंह ने कहा, ‘पूरे मामले में प्रशासनिक लापरवाही उजागर होती है. अगर प्रशासन ने तत्परता दिखाई होती, तो विवाद इतना नहीं बढ़ता.’ उन्होंने कहा कि फिलहाल हालात सामान्य हैं और दोनों समुदायों में पहले की तरह ही मेल-जोल है.
सूबे के जिन आधा दर्जन जिलों में तनाव फैला था, उनमें सबसे ज्यादा नुकसान औरंगाबाद में हुआ था. औरंगाबाद के नवाडीह में 25 मार्च को मुस्लिम मोहल्ले से रामनवमी की शोभायात्रा निकालने को लेकर बवाल हुआ था.
इसके बाद उपद्रवियों ने पुरानी जीटी रोड, जीटी रोड व एमजी रोड की 40 (दोनों समुदायों की दुकानें शामिल) से ज्यादा दुकानें जला दी थीं. प्रशासन को एहतियात के तौर पर इलाके में इंटरनेट सेवा बंद कर देनी पड़ी थी.
अब यहां भी अमन-चैन का माहौल लौट आया है. हां, घटना की संवेदनशीलता के मद्देनजर बड़ी मस्जिद व दूसरे संवेदनशील इलाकों में पुलिस के जवानों की गश्ती बरकरार है.
दुकान-पाट हस्बमामूल खुल रहे हैं. दोनों समुदाय के लोग पहले की तरह ही एक-दूसरे के खैर-ख्वाह हैं. जिन लोगों की दुकानें क्षतिग्रस्त हुई थीं, उनमें से कुछ को मुआवजा मिला है और वे दुकानें लगा रहे हैं.
अपनी किताब की दुकान खो देनेवाले रामजी कुमार सिंह के अनुसार, ‘रामनवमी की शोभायात्रा तो हर साल निकला करती है, लेकिन कभी भी इस तरह की घटना नहीं हुई.’
नवाडीह में इमरोज खान की जूते की दुकान थी, जिसे बलवाइयों ने आग के हवाले कर दिया था. आग में दुकान का सारा सामान राख हो गया.
इमरोज खान कहते हैं, ‘मेरी दुकान बड़ी थी और एक साल का स्टॉक रखा हुआ था. आगजनी में करीब 60 लाख रुपये का नुकसान हो गया.’
वह कहते हैं, ‘यहां दोनों समुदाय भाइयों की तरह रहते हैं. रामनवमी की शोभायात्रा के वक्त जो कुछ भी हुआ, वह दो समुदायों के बीच का कोई मामला था ही नहीं. असल में वह सब सोची-समझी राजनीति के तहत किया गया था.’
इमरोज ने कहा, ‘मुसलमानों की दुकानें जलाई जा रही थीं, तो हिंदू भाई और हमारी हिंदू बहनें आगे आए थे. हिंदू बहनें दुकानों के सामने खड़ी हो गई थीं और बलवाइयों से कहा कि हमें जला दो, पर उनकी दुकान न जलाओ. हमारे बीच ऐसा भाई-चारा है. हम कैसे कह दें कि ये सब हमारे हिंदू भाइयों ने किया है?’
रोसड़ा, नवादा, औरंगाबाद, नालंदा की तरह ही दूसरे तनावग्रस्त क्षेत्रों में भी हालात सामान्य हो चुके हैं. कड़वाहट भूलकर दोनों समुदाय के लोगों ने एक-दूसरे से मिलना-जुलना बरकरार रखा है.
समाज को बांटकर अपनी राजनीति चमकाने वाले तत्वों के गाल पर यह मेलजोल जोरदार तमाचा है!
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)