हम अनैतिक नहीं हैं क्योंकि हमसे पहले सब अनैतिक हो चुके हैं

पूरब और पश्चिम के गाने को कर्नाटक के संदर्भ में समझते हुए दिखता है कि प्रणय निवेदन हेतु मनोज कुमार के हाथों में एक फाइल है, जिसमें विधायकों के दस्तख़त की कल्पना सहज ही की जा सकती है.

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पूरब और पश्चिम के गाने को कर्नाटक के संदर्भ में समझते हुए दिखता है कि प्रणय निवेदन हेतु मनोज कुमार के हाथों में एक फाइल है, जिसमें विधायकों के दस्तख़त की कल्पना सहज ही की जा सकती है.

Bengaluru: BJP supporters at Prime Minister Narendra Modi's public rally ahead of Karnataka Assembly elections, in Bengaluru on Thursday. PTI Photo by Shailendra Bhojak (PTI5_3_2018_000193B)
फोटो : पीटीआई

‘अभी तुमको मेरी ज़रूरत नहीं, बहुत चाहने वाले मिल जाएंगे, अभी रूप का एक सागर हो तुम, कंवल जितने चाहोगी खिल जाएंगे’

उपरोक्त पंक्तियों का संबंध कर्नाटक में चल रही गतिविधियों से नहीं है मगर इस गाने में नायक मनोज कुमार का घर देखकर लगता है कि वे कम से कम राज्यपाल तो होंगे ही.

‘ये दीपक जला है जला ही रहेगा,’ गाने की इस पंक्ति से लगता है कि इसका संबंध भाजपा है. भाजपा का पूर्व चुनाव चिह्न यानी जनसंघ के ज़माने में दीपक ही था. इसलिए इस गीत को हम भाजपा की परंपरा में भी देख सकते हैं. पृष्ठभूमि में दिखने वाली इमारत भी राजभवन जैसी है. मनोज कुमार दरवाज़े को ऐसे खोलते हैं जैसे राज्यपाल किसी विधायक को भीतर बुला रहे हों.

‘तब तुम मेरे पास आना प्रिय मेरा दर खुला है खुला ही रहेगा, तुम्हारे लिए’

प्रसंगवश मनोज की यह पंक्ति दलबदल को प्रोत्साहित करती है क्योंकि उनकी बातों से लगता है कि नायिका गांधी मूर्ति के सामने कांग्रेस-जेडीएस विधायकों के साथ धरना प्रदर्शन कर रही है. मनोज सीधे सीधे सत्ता का प्रलोभन देते हुए कह रहे हैं कि जब तुम्हारी उम्र ढल जाएगी, जब चाहने वाले चले जाएंगे तब मेरे पास आना. अर्थात वे बता रहे हैं कि भविष्य में नायिका के साथ क्या हो सकता है इसलिए वो अभी उनके पास आ जाए.

प्रणय निवेदन हेतु मनोज कुमार के हाथों में एक फाइल है, जिसे देखते हुए विधायकों के दस्तख़त की कल्पना सहज ही की जा सकती है. मुमकिन है नायक के फोल्डर में नायिका के लिए उज्जवला का सिलेंडर और वृद्धावस्था पेंशन का हज़ार रुपया हो.

यह भी हो सकता है कि मनोज कुमार अपने प्रेमपत्रों को सहेजे हुए नायिका सायरा बानो से अंतिम निवेदन कर रहे हों.

गाने में नायिका का चित्रण भारतीय नहीं है. सायरा बानो भारतीय लोक कथाओं में रात के वक्त दिखने वाली डरावनी अ-नायिकाओं की तरह लगती हैं मगर दिन के वक्त उनके लिबास और ज़ुल्फों की बनावट से संकेत मिलता है कि उनका ताल्लुक यूरोप के किसी मुल्क से रहा होगा. बुढ़िया माई का केस की अतिरिक्त स्मृतियों जाग उठती हैं.

प्रस्तुत आलोचना में यह कहना चीन समेत समीचीन होगा कि नायिका के साथ मनोज कुमार भारतीय शास्त्रों के मुताबिक गंधर्व व्यवहार कर रहे हैं मगर अपने प्रणय निवेदन में नायिका का अपमान भी कर रहे हैं.

‘दर्पण तुम्हें जब डराने लगे, जवानी भी दामन छुड़ाने लगे, तब तुम मेरे पास आना प्रिये, मेरा सिर झुका है झुका ही रहेगा तुम्हारे लिए. कोई जब तुम्हारा ह्रदय तोड़ दे… ‘

प्रेमिका के लिए ऐसी बददुआ वैदिक परंपरा के अनुकूल नहीं है. यह कूल नहीं है. एक भूल है. नायक मनोज कुमार नायिका की अभिव्यक्ति और पसंद की स्वतंत्रता के पक्षधर दिखते हुए भी प्रलोभन के आचरण से अपनी ही मान्यताओं का खंडन कर देते हैं.

इसलिए सायरा बानो इस गाने में मनोज कुमार को लेकर आश्वस्त नहीं दिखती हैं. वे समझ जाती हैं कि ये फ्रॉड है. नारी स्वतंत्रता को लेकर क्लियर नहीं है. मनोज कुमार सौ करोड़ देने का प्रस्ताव तो नहीं करते हैं मगर गाने की एक पंक्ति से लगता है कि दोनों के बीच लेनदेन की कोई बातचीत हुई होगी.

‘कोई शर्त होती नहीं प्यार में, मगर प्यार शर्तों पर तुमने किया’

सप्ताहांत में पूरब पश्चिम के इस गाने को सुनिए. हमारी यह व्याख्या हिन्दी परीक्षा साहित्य की अलौकिक कृति है.

गाने को इस संदर्भ में देखने की परंपरा की बुनियाद डालते हुए मैंने कहा था कि हम शिलान्यास ही नहीं करते, उद्घाटन भी करते हैं. काम कुछ नहीं करते मगर विज्ञापन जमकर करते हैं. हम अनैतिक नहीं हैं क्योंकि हमसे पहले सब अनैतिक हो चुके हैं.

हम सिस्टम में यकीन नहीं करते क्योंकि सिस्टम पहले ही ध्वस्त हो चुका था. हम अजेय हैं. हम पराजित नहीं है इसलिए सत्य हमसे परिभाषित है. बाकी सब वाचिक है. प्रमाणित नहीं है.

यह लेख मूलतः रवीश कुमार के फेसबुक पेज पर प्रकाशित हुआ है.