आयोग के अनुसार, दो अप्रैल को ‘भारत बंद’ के दौरान प्रदर्शन में दलित समुदाय के लोगों की पिटाई की गई. उन्हें झूठे आपराधिक मामलों में फंसाया गया और छह सप्ताह गुज़रने के बाद भी ये लोग जेल में हैं.
जयपुर: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने राजस्थान के मुख्य सचिव को नोटिस भेजकर पुलिस द्वारा कथित रूप से दलित समुदाय के लोगों की पिटाई के मामले में छह सप्ताह में रिपोर्ट पेश करने को कहा है.
आयोग के प्रवक्ता ने बताया कि आयोग ने प्रदेश के पुलिस महानिदेशक से भी कथित पुलिस प्रताड़ना पर रिपोर्ट तलब की है. मीडिया रिपोर्ट पर संज्ञान लेकर आयोग ने नोटिस जारी किए हैं.
मीडिया रिपोर्ट के आधार पर आयोग ने कहा है, दो अप्रैल को भारत बंद के दौरान विरोध प्रदर्शन में दलित समुदाय के कई लोगों की बुरी तरह पिटाई की गई और उन्हें झूठे आपराधिक मामलों में फंसाया गया. छह सप्ताह गुजर जाने के बावजूद उन्हें जमानत नहीं मिली है और ये लोग जेल में हैं.
उन्होंने बताया कि गैरकानूनी तरीके से गिरफ्तारी, शारीरिक यातनाएं और लोगों को झूठे आपराधिक मामलों में फंसाए जाने के आरोप यदि सही पाए गए तो यह मानवीय अधिकारों का उल्लंघन है, जो चिंता का विषय है.
आयोग ने कहा, ‘पुलिस द्वारा औरतों और बच्चों पर अपनी शक्ति के गलत इस्तेमाल की कई रिपोर्ट राज्य से सामने आईं.’
आयोग ने उदाहरण देते हुए कहा कि श्रीनगर में तैनात एक सीआरपीएफ जवान, जो अपनी बीमार मां से मिलने राजस्थान आया था, उसे पुलिस द्वारा कथित रूप से दो अप्रैल को घर से खींचकर बाहर लाकर बुरी तरह से पीटकर झूठे मुकदमे में फंसा दिया गया. वह पिछले एक महीने से जेल में है. अदालत ने उसकी जमानत याचिका ठुकरा दी है. उसी दिन पुलिस के जवान कथित तौर पर एक सरकारी स्कूल के शिक्षक के घर में घुस गए और उसे पीटा.
रिपोर्ट के अनुसार, सैकड़ों दलित जेल में सड़ रहे हैं.
छह हफ्तों के अंदर राजस्थान के मुख्य सचिव का जवाब मांगते हुए आयोग ने कहा, ‘अवैध गिरफ्तारी, शारीरिक प्रताड़ना और गलत आपराधिक प्रकरणों में लोगों को फंसाने की घटनाओं ने मानवाधिकार हनन के गंभीर मुद्दे उठाए हैं जो कि विचार का विषय है.’
आयोग ने दोषियों के खिलाफ ही कार्रवाई के संबंध में राज्य सरकार से भी जवाब मांगा है.
गौरतलब है कि 2 अप्रैल को दलित संगठनों द्वारा सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के विरोध में ‘भारत बंद’ का आह्वान किया गया था जिसके तहत शीर्ष अदालत ने एससी/एसटी एक्ट में संशोधन की बात कही थी. सुप्रीम के इस फैसले से राजस्थान सहित देश के कई हिस्सों में हिंसा और आगजनी की घटनाएं हुई थीं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)