शीर्ष अदालत ने कहा कि मज़दूरों को काम पूरा होने के एक पखवाड़े के भीतर अपना भुगतान पाने का अधिकार है. यदि कोई खामी है तो यह राज्य सरकारों और ग्रामीण विकास मंत्रालय की ज़िम्मेदारी है.
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत मजदूरी के भुगतान में कोई विलंब स्वीकार्य नहीं है और इसमें लाल फीताशाही का बहाना नहीं बनाया जा सकता.
न्यायालय ने उल्लेख किया कि केंद्र ने मजदूरी के भुगतान में विलंब की बात स्वीकार की है और कहा कि मनरेगा के तहत काम करने वालों को भुगतान तत्काल किया जाना चाहिए. ऐसा न किए जाने पर एक निर्धारित मुआवज़ा देना पड़ेगा.
शीर्ष अदालत ने कहा कि किसी भी मजदूर को काम पूरा होने के एक पखवाड़े के भीतर अपना भुगतान पाने का अधिकार है और यदि कोई प्रशासनिक अक्षमता या खामी है तो यह पूरी तरह राज्य सरकारों और ग्रामीण विकास मंत्रालय की जिम्मेदारी है कि वे समस्या का समाधान करें.
जस्टिस मदन बी. लोकूर और जस्टिस एनवी रमण की पीठ ने कहा कि कानून के प्रावधानों का अनुपालन कराने का दायित्व राज्य सरकारों, केंद्रशासित प्रशासनों और केंद्र का है. कोई एक-दूसरे पर जिम्मेदारी नहीं थोप सकता है.
पीठ ने आगे कहा, ‘इसके मद्देनजर हम केंद्र सरकार को निर्देश देते हैं कि वह ग्रामीण विकास मंत्रालय के माध्यम से राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रशासनों के साथ परामर्श करके श्रमिकों की मजदूरी और मुआवजे के भुगतान के लिए तत्काल एक समयबद्ध कार्यक्रम तैयार करे.’
पीठ ने कहा, ‘इसलिए हम यह साफ करते हैं और निर्देश देते हैं कि क़ानून और अनुसूची दो के तहत एक मजदूर काम किए जाने की तिथि से दो हफ्तों (एक पखवाड़े) के भीतर अपना मेहनताना पाने का हकदार है, जो अगर नहीं दिया जाता है तो मजदूर कानून की अनुसूची दो के अनुच्छेद 29 के अनुसार मुआवजा पाने का हकदार है.’
पीठ ने कहा, ‘नौकरशाही की ओर से होने वाली देरी या लालफीताशाही मजदूरों को मजदूरी के भुगतान से इनकार करने का बहाना नहीं हो सकती.’
उच्चतम न्यायालय पहले इस मामले में कई निर्देश पारित कर चुका है. वहीं, उसने योजना को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा किए कुछ महत्वपूर्ण बदलावों के लिए मंत्रालय को बधाई भी दी.
खंडपीठ ने कहा, ‘हालांकि, मंत्रालय को अभी भी व्याप्त बाधाओं को खत्म करने के लिए तत्काल उपचार के कदम उठाने की जरूरत है. क्योंकि इस अधिनियम को लाखों बेरोजगार लोगों के जीवन को छूने के लिए अभी भी कुछ रास्ता तय करना है.’
पीठ ने कहा, ‘हालांकि केंद्र कह चुका है कि मजदूरों को मजदूरी का भुगतान किए जाने की स्थिति में कुछ सुधार हुआ था, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है.’
अदालत ने कहा, ‘केंद्र सरकार अपनी जिम्मेदारी से भाग नहीं सकती है या एक व्यक्ति जो ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति में है कि मनरेगा में रोजगार की तलाश कर रहा है, उसे संवैधानिक रूप से निर्धारित समय के भीतर मजदूरी का भुगतान न करके उसकी स्थिति का गलत लाभ नहीं उठा सकती है.’
शीर्ष अदालत एनजीओ स्वराज अभियान की याचिका पर सुनवाई कर रही थी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)