चुनाव आयोग ने कहा कि चुनावी आचार संहिता केवल नई योजनाओं की घोषणा और उन्हें शुरू करने पर रोक लगाती है ताकि सत्ताधारी पार्टी से मतदाता प्रभावित न हों.
नई दिल्ली: चुनाव आयोग ने इस तर्क को खारिज कर दिया है कि चुनाव के दौरान आचार संहिता लागू होने से शासन रूक जाता है.
आयोग ने कहा कि यह केवल चुनावी अवधि के दौरान सरकारों को नई परियोजनाएं और योजनाएं घोषित करने से रोकता है.
चुनाव आयोग ने विधि आयोग को बताया कि जब भी सरकारी विभाग चुनाव के समय प्रस्ताव एवं योजनाओं को हरी झंडी दिखाने को लेकर उससे सम्पर्क करते हैं, तो वह योजना की तात्कालिता को समझते हुए एक त्वरित निर्णय करता है.
विस्तृत चर्चा के लिए आचार संहिता का मुद्दा गत 16 मई को आयोजित चुनाव आयोग के वरिष्ठ अधिकारियों और विधि आयोग के बीच हुई एक बैठक के दौरान आया.
यह बैठक लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की संभावना के बारे में चर्चा करने के लिए हुई थी. इसमें हुई चर्चा के बारे में जानकारी रखने वाले सूत्रों ने बताया कि विधि आयोग के सदस्यों ने आयोग से इस तर्क के बारे में पूछा कि चुनाव आचार संहिता से शासन रूक जाता है तो चुनाव आयोग ने इसे सिरे से खारिज कर दिया.
आयोग का विचार था कि आचार संहिता से शासन नहीं रूकता. उसने कहा कि आचार संहिता केवल नई योजनाओं की घोषणा और उन्हें शुरू करने पर रोक लगाती है ताकि सत्ताधारी पार्टी से मतदाता प्रभावित नहीं हों.
इसने विधि आयोग को बताया यह भी बताया कि आचार संहिता के दौरान जब सरकारी विभाग अपने कुछ निर्णयों पर आगे बढ़ने के लिए आयोग की अनुमति चाहते हैं तो आयोग तत्परता से काम करता है.
आयोग ने कहा, ‘हमारे पास ऐसे कई उदाहरण हैं और हमारी कोशिश होती है कि हम उनका निपटान समय सीमा के अंदर कर दें.’
फिर विधि आयोग ने चुनाव आयोग से हालिया चुनावों के दौरान सरकार से गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक समेत प्राप्त ऐसे उदाहरणों की सूची देने को कहा.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)