उपराज्यपाल ने दिल्ली सरकार द्वारा नियुक्त वकीलों के पैनल को अवैध घोषित किया

दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार ने अदालत में सरकार का पक्ष रखने के लिए पिछले साल 14 वकीलों का पैनल नियुक्त किया था.

अनिल बैजल. (फोटो: पीटीआई)

दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार ने अदालत में सरकार का पक्ष रखने के लिए पिछले साल 14 वकीलों का पैनल नियुक्त किया था.

फाइल फोटो: पीटीआई
फाइल फोटो: पीटीआई

नई दिल्ली: उपराज्यपाल अनिल बैजल ने कथित प्रक्रियागत खामियों को रेखांकित करते हुए दिल्ली सरकार द्वारा नियुक्त 14 वकीलों के पैनल को अवैध करार दिया है. दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने इन वकीलों को दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष मामलों में पेश होने के लिए नियुक्त किया था.

उपराज्यपाल के फैसले से नाराज मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि आप सरकार के हर प्रस्ताव को खारिज करने की जगह उन्हें कुछ रचनात्मक करना चाहिए.

बैजल द्वारा खारिज किए गए अधिवक्ताओं के पैनल में इंदिरा जयसिंह, कॉलिन गोंज़ालविस, जून चौधरी, रेबेका जॉन, अनूप चौधरी, आनंद ग्रोवर, संजय आर. हेगड़े, मीत मल्होत्रा, सुधांशु बत्रा, अश्विनी मता, अनिल सपरा, राजीव बंसल और राजीव दत्ता शामिल हैं.

पिछले हफ़्ते मुख्य सचिव अंशु प्रकाश और उपराज्यपाल के प्रधान सचिव विजय कुमार के बीच हुए लिखित संवाद में विजय कुमार ने द ट्रांजेक्शन आॅफ बिजनेस रूल्स, 1993 की धाराओं के तहत इसमें प्रक्रियागत चूक के बारे में बताया है और कहा है कि पैनल के संबंध में आदेश उपराज्यपाल की अनुमति के बगैर दिए गए हैं, लिहाज़ा यह अवैध है.

द हिंदू ने सरकारी सूत्रों के हवाले से लिखा है कि इस फैसले का असर 29 नवंबर 2017 से 18 जनवरी 2018 के बीच पैनल में शामिल 13 वरिष्ठ अधिवक्ताओं को लाखों में होने वाले भुगतान पर पड़ेगा.

नाराज केजरीवाल ने ट्वीट किया, ‘हमारे सभी सलाहकार खारिज, सीसीटीवी खारिज, घर पर राशन पहुंचाया जाना खारिज, एलजी साहब कुछ रचनात्मक कीजिए, हर चीज खारिज-खारिज-खारिज.’

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्विटर पर लिखा है, ‘उपराज्यपाल के पास यह शक्ति नहीं कि वह सरकार के प्रस्तावों को खारिज कर सके. संविधान के तहत उपराज्यपाल केवल अपनी राय को व्यक्त कर सकते हैं. उपराज्यपाल की यह अस्वीकृति पूरी तरह से अवैध, असंवैधानिक और उनके अधिकार क्षेत्र के बाहर का है. उपराज्यपाल को संविधान का पालन करना चाहिए.’

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, पार्टी के मुख्य प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने कहा, ‘सरकारी वकील सरकार का पक्ष अदालत में रखते हैं. यह एक चुनी हुई सरकार को उन निजी लोगों के मुकाबले कमजोर करने का प्रयास है, जो लोग सरकार की नीतियों का विरोध करते हैं. उदाहरण के लिए फीस रोलबैक से निजी स्कूल प्रबंधन और मुनाफे पर सीमा तय करने से निजी अस्पताल नाराज हैं. उपराज्यपाल द्वारा प्रस्ताव ख़ारिज करना जनता के हितों को नकारते हुए निजी हितों को फायदा पहुंचने का प्रयास है.’

सौरभ आगे कहते हैं, ‘दिल्ली के उपराज्यपाल और पुडुचेरी की उपराज्यपाल एक तरह से ही काम कर रहे हैं और यह केंद्र सरकार की कोशिश है कि कैसे भी विपक्ष को ख़त्म किया जाए.’

उन्होंने आगे बताया कि आईएएस अफसर दिल्ली विधानसभा और उसकी कमेटियों की कार्रवाई के खिलाफ अदालत जा रहे हैं. उपराज्यपाल ने वकीलों की फीस के लिए पैसों की मंजूरी नहीं दी है, ताकि दिल्ली सरकार का अदालत में पक्ष रखने वाला कोई वकील न हो.

पिछले साल उपराज्यपाल ने सरकार के विभिन्न विभागों से जुड़े मामलों के संबंध में अपना प्रतिनिधित्व करने के लिए 39 अधिवक्ताओं की टीम की नियुक्ति की थी.