एक अध्ययन के अनुसार कानपुर में प्रदूषण के चलते सालाना करीब 4 हज़ार से अधिक मौतें हो जाती हैं. वहीं लखनऊ में हर दिन औसतन 11 लोग प्रदूषण के चलते जान गंवा रहे हैं.
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में हर साल प्रदूषण से करीब 22,000 लोगों की मौत हो जाती है. आईआईटी दिल्ली, आईआईटी मुंबई और पर्यावरण और सेंटर फॉर एनवॉयरमेंट एंड एनर्जी डेवलपमेंट (सीड) द्वारा किए गए शोध में उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड के 11 शहरों में प्रदूषण का अध्ययन किया गया है, जिसमें उत्तर प्रदेश के सात शहर शामिल हैं.
पत्रिका की रिपोर्ट के अनुसार, आईआईटी दिल्ली, आईआईटी मुंबई और सीड ने पिछले 17 सालोंं के अध्ययन के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की है. इसके अनुसार प्रदूषण का वर्तमान स्तर सामान्य से 120 प्रतिशत ज़्यादा है, जो चिंता का विषय है.
गंगा में प्रदूषण बढ़ने की ख़बरों पर भी यह रिपोर्ट एक तरह से मुहर लगाती है. रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश में गंगा के मैदानी इलाकों पर बसे शहरों में सबसे ज्यादा प्रदूषण है, जो पश्चिम से पूर्व की तरफ बढ़ रहा है. सबसे अधिक प्रदूषित शहर वाराणसी है. प्रदूषण का सबसे ज्यादा असर चार साल से कम उम्र के बच्चों पर हो रहा है.
रिपोर्ट के अनुसार प्रदूषण से सालाना कानपुर में सबसे ज्यादा 4,173 मौतें हुई हैं, तो वहीं राजधानी लखनऊ में यह आंकड़ा करीब 4,127 है. आगरा में 2,421, मेरठ में 2,044, वाराणसी में 1,581, इलाहाबाद में 1,443, गोरखपुर में 914 और मुज़फ्फरनगर में 531 लोगों की मौत ही है.
बिहार की राजधानी पटना में भी स्थिति चिंताजनक है. पटना में एक साल में करीब 2,841 लोगों की मौत प्रदूषण के चलते हुई है. गया में सालाना तकरीबन 710 मौते हुईं. रांची में एक वर्ष के भीतर औसतन 1,096 लोगों की मौत हुई है.
‘नो व्हॉट यू ब्रीद’ नाम की इस रिपोर्ट में साल 2000-2016 तक के पर्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 की सघनता का सैटेलाइट की मदद से अध्ययन किया गया. सीड की सीनियर प्रोग्राम ऑफिसर अंकिता ज्योति ने बताया, ‘सभी शहरों में पीएम 2.5 का स्तर राष्ट्रीय मानक 40 माइक्रो ग्राम प्रति घन मीटर से दो गुना ज़्यादा और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की वार्षिक औसत सीमा तीन से आठ गुना ज़्यादा है.’
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि प्रदूषण के इजाफ़े के लिए घरों में खाना पकाने के लिए कोयले और लकड़ी का जलना जिम्मेदार है. प्रदूषण से हुई मौत का कारण सांस से संबंधित बीमारियां हैं.
अंकिता ने बताया, ‘वायु प्रदूषण का दुष्प्रभाव लगातार बढ़ रहा हहै, जिससे उस वातावरण में रहने वालों में बीमारियां बढ़ रही हैं, जिससे वह असमय मौत के शिकार हो रहे हैं. यही वजह है कि असमय मृत्यु-दर (प्रीमैच्योर मोर्टेलिटी) अप्रत्याशित रूप से बढ़कर प्रति लाख पर 150-300 व्यक्ति के करीब पहुंच गई.’
रिपोर्ट यह भी कहती है कि प्रदूषण के चलते लखनऊ में हर दिन औसतन 11 लोगों की मौत हो जाती है.
आईआईटी दिल्ली और मुंबई द्वारा इस संदर्भ में प्रदेश के जिला अस्पतालों से एकत्र किया गया यह आंकड़ा और भी ज्यादा हो सकता है. कारण यह है कि बहुत सी मौतें दर्ज़ नहीं हो पाती है. इसके अलावा कई बार बीमारियों की पहचान ही नहीं हो पाती है.
सीड के प्रोग्राम डायरेक्टर अभिषेक प्रताप ने कहा, ‘केंद्र व राज्य सरकारों को इस चिंताजनक स्थिति पर तत्काल ध्यान देना चाहिए. इसके लिए सबसे पहले एक समुचित एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग मैकेनिज्म को लागू करना होगा क्योंकि बगैर इसके प्रदूषण नियंत्रण का कोई भी प्रयास सफल नहीं हो पाएगा.
साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि वे यह रिपोर्ट मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सौंपेंगे, ताकि कोई योजना बनाकर प्रदूषण नियंत्रित किया जा सके.
ज्ञात हो कि बीते दिनों डब्ल्यूएचओ द्वारा दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों की सूची जारी की गयी थी, जिसमें 15 शहर भारत के थे, जिनमें उत्तर प्रदेश के 6 शहर थे और कानपुर को सर्वाधिक प्रदूषित शहर बताया गया था.