उत्तर प्रदेश में कैराना सीट पर लोकसभा उपचुनाव के लिए आज मतदान हो रहा है. यहां मुख्य मुक़ाबला भाजपा और राष्ट्रीय लोक दल के बीच है. राष्ट्रीय लोक दल को सपा, बसपा, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और कई छोटे दलों का समर्थन प्राप्त है.
उत्तर प्रदेश में अब सबकी निगाहें 28 मई यानी आज कैराना उपचुनाव के लिए डाले जाने मतों पर टिकी हैं. यह चुनाव भाजपा और विपक्षी गठजोड़ का नेतृत्व कर रहे राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) दोनों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. उपचुनाव में मुख्य मुकाबला भाजपा की मृगांका सिंह और राष्ट्रीय लोकदल की तबस्सुम हसन के बीच है.
तबस्सुम हसन को सपा, बसपा और कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी, भीम आर्मी और कई अन्य छोटे दलों का भी समर्थन प्राप्त है. वहीं, मृगांका सिंह अपने पिता की मौत से ख़ाली हुई सीट पर चुनाव लड़ रही हैं.
जहां गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव में मिली क़रारी शिकस्त के बाद भाजपा किसी भी सूरत में कैराना को हाथ से निकलने नहीं देना चाहती. वहीं, आरएलडी पश्चिमी यूपी में दोबारा राजनीतिक दबदबा बनाने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रही है.
बता दें कि 2014 के आम चुनाव के साथ 2017 के विधानसभा चुनाव में भी पार्टी को क़रारी शिकस्त का सामना करना पड़ा. 2017 में आरएलडी का एकमात्र विधायक जीता था जिसने हाल ही में भाजपा जॉइन कर ली है.
लोकदल का अस्तित्व दांव पर
ऐसे में सबसे पहले बात आरएलडी यानी राष्ट्रीय लोकदल की करते हैं. कुछ साल पहले तक पश्चिमी उत्तर प्रदेश पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के बेटे अजित सिंह के नेतृत्व वाली आरएलडी का गढ़ हुआ करता था. इस इलाके के जाट और मुस्लिम वोटों को एकजुट करके अजित सिंह ने कई बार सत्ता का स्वाद चखा है लेकिन पिछले काफी समय से यह गठजोड़ संभव नहीं हो पाया है.
गौरतलब है कि नवंबर 2013 में मुज़फ़्फ़रनगर दंगों के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट और मुस्लिम समुदाय के बीच तनाव बरक़रार है, जिसने आरएलडी के सामने एक बड़ी चुनौती पेश की है. लेकिन अब विपक्षी एकता बनने के बाद से अजित सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी इस जाट और मुस्लिम गठजोड़ को फिर से कायम करने की कोशिशों में जुटे हुए हैं.
पिछले छह महीनों में आरएलडी मुखिया और उनके बेटे जयंत चौधरी ने क़रीब 100 से ज़्यादा रैलियों को संबोधित किया और दोनों समुदाय के लोगों को एकजुट होने का संदेश देकर पार्टी के लिए वोट मांगे हैं. इसे साथ ही आरएलडी पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के नाम पर इमोशनल कार्ड भी खेल रही है जिनकी पुण्यतिथि चुनाव के एक दिन बाद है.
द वायर के साथ बातचीत में भी जयंत ने कहा है कि कैराना उपचुनाव हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए अच्छी मिसाल बनाने का मौका है. साथ ही गन्ना किसानों के मुद्दे को उठाते हुए उन्होंने कहा है कि, ‘हम दिखा देंगे कि गन्ना, जिन्ना को कैसे हराएगा. हमारा उद्देश्य 13 हज़ार करोड़ बकाये का है, जिसे राज्य सरकार गन्ना उत्पादकों को भुगतान करना है.’
कैराना में रालोद की टिकट से तबस्सुम हसन मैदान में हैं. तबस्सुम पूर्व बसपा सांसद मुनव्वर हसन की पत्नी हैं और सपा से जुड़ी रही हैं. लेकिन अभी वो राष्ट्रीय लोकदल के टिकट पर लड़ रही हैं.
उनके ससुर चौधरी अख़्तर हसन सांसद रह चुके हैं जबकि पति मुनव्वर हसन कैराना से दो बार विधायक, दो बार सांसद, एक बार राज्यसभा और एक बार विधान परिषद के सदस्य भी रहे हैं.
तबस्सुम हसन की सबसे बड़ी परेशानी यह थी कि उनके सामने उनके देवर कंवर हसन लोकदल के प्रत्याशी के रूप में उतरे थे लेकिन मतदान के कुछ दिनों पहले ही उन्होंने रालोद को समर्थन देने का ऐलान किया है और वह अजित सिंह की पार्टी में शामिल हो गए.
योगी और भाजपा की अग्निपरीक्षा
अब बात करते हैं भाजपा की. यह उपचुनाव कैराना लोकसभा सीट से भाजपा सांसद रहे हुकुम सिंह के निधन के बाद हो रहा है. ऐसे में भाजपा ने उनकी बेटी मृगांका सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है. योगी आदित्यनाथ के चुनाव क्षेत्र गोरखपुर और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के फूलपुर में हार के बाद कैराना का उपचुनाव भाजपा के लिए बहुत ही अहम हो गया है.
इसी को ध्यान में रखते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी, उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय और राज्य के कई मंत्री, सांसद, विधायक और दूसरे बड़े नेता भी लगातार कैराना में चुनाव प्रचार में लगे रहे.
यहां तक कि ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे का उद्घाटन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 मई को कैराना से सटे बागपत में एक रैली भी की. आरएलडी ने इस पर चुनाव आयोग से आपत्ति भी जताई. उसका कहना था कि यह कैराना चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश है. लेकिन चुनाव आयोग ने इस पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था.
हालांकि भाजपा उम्मीदवार मृगांका सिंह 2017 के विधानसभा चुनाव में कैराना विधानसभा सीट से चुनाव लड़ चुकी हैं लेकिन उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था, जबकि कैराना विधानसभा सीट हुकुम सिंह की परंपरागत सीट थी. हुकुम सिंह कैराना विधानसभा सीट से सात बार विधायक और एक बार सांसद चुने गए थे.
कैराना के बगल की सीट मुज़फ़्फ़रनगर से भाजपा सांसद संजीव बलियान ने द वायर से बातचीत में माना है कि भाजपा के लिए इस बार लड़ाई मुश्किल है. गन्ना किसानों के बकाया भुगतान न होने के मसले पर पर उन्होंने कहा कि गन्ने के भुगतान में देरी से भाजपा से लोग छिटके हैं.
कैराना की राजनीति और वोट बैंक
कैराना में कुल 17 लाख वोटर हैं. जिसमें मुस्लिमों की संख्या 5 लाख है और जाटों की संख्या 2 लाख है. वहीं, दलितों की संख्या 2 लाख है और ओबीसी की संख्या दो लाख है, जिनमें गुर्जर, कश्यप और प्रजापति शामिल हैं.
कैराना लोकसभा सीट पिछले कई साल से अलग-अलग राजनीतिक दलों के खाते में जाती रही है. 1996 में सपा, 1998 में भाजपा, 1999 और 2004 में राष्ट्रीय लोकदल, 2009 में बसपा और 2014 में भाजपा.
2014 में भाजपा उम्मीदवार हुकुम सिंह को 5.65 लाख वोट मिले थे जबकि सपा, बसपा और रालोद के उम्मीदवारों को क्रमश: 3.29 लाख, 1.60 लाख और 42 हज़ार वोट मिले थे. अगर सपा-बसपा और रालोद के वोट जोड़ लिए जाएं तो भी भाजपा आगे है.
लेकिन अगर हम विधानसभा चुनावों के आधार पर मत की गणना करें तो आंकड़ा महागठबंधन के पक्ष में जाता हुआ दिखता है. कैराना लोकसभा क्षेत्र में सहारनपुर की दो विधानसभा सीटें और शामली ज़िले की तीन विधानसभा सीटें आती हैं. नकुर, गंगोह, थाना भवन, शामली और कैराना. साल 2017 में भाजपा ने शुरुआती चारों सीटें जीतीं, जबकि पांचवीं कैराना सपा के खाते में गई थी.
अगर इन पांचों सीटों पर सपा, बसपा, रालोद और कांग्रेस को मिले सारे वोट जोड़ लिए जाएं तो कुल योग भाजपा के वोटों से कही ज़्यादा दिखता है.
फिलहाल कैराना में दलितों का वोट काफी अहम माना जाता है. शायद यही कारण है कि 1984 में अभी बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने राजनीतिक करिअर की शुरुआत कैराना से की थी. हालांकि कैराना में अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़ने वाली मायावती उस समय तीसरे नंबर पर रही थी. लेकिन अभी गोरखपुर और फूलपुर की तरह अगर यहां भी बसपा का वोट महागठबंधन के पक्ष में ट्रांसफर होता है, तो भाजपा मुश्किल में आ सकती है.
कभी किराना घराने की वजह से था मशहूर कैराना
कैराना अभी अपने उपचुनाव की वजह से चर्चा में हैं लेकिन यह भारतीय शास्त्रीय संगीत में बेहतरीन मुकाम हासिल करने वाला ख़याल गायकी के किराना घराने का मुख्यालय था.
इसी घराने ने भारत रत्न पं. भीमसेन जोशी, ग़ज़ल गायिका बेग़म अख़्तर और संवाई गंधर्व जैसे महान संगीतज्ञ दिए. किराना घराने के संस्थापक उस्ताद अब्दुल करीम ख़ान कैराना के ही रहने वाले थे इसलिए संगीत की इस महान परंपरा को किराना घराना नाम दिया गया.
जानकार बताते हैं कि इस घराने की यूं तो 13वीं सदी में एक दरबारी संगीतज्ञ ध्रुपद की ख़याल गायकी के जनक गोपाल नायक ने दुनिया की सबसे मशहूर संगीत परंपरा में से एक और भारतीय शास्त्रीय संगीत के सबसे अहम किराना घराने की बुनियाद रखी, लेकिन उसे पहचान उस्ताद अब्दुल करीम ने दिलाई.
इस घराने में उस्ताद अब्दुल वाहिद ख़ान और संवाई गंधर्व जैसे गायक भी थे, तो केसरबाई और रोशनआरा बेग़म जैसी गायिका भी इसी घराने से थीं. ग़ज़ल गायिका बेग़म अख़्तर, हीराबाई बडोडकर, गंगूबाई हंगल, मोहम्मद रफ़ी जैसे महान गायक भी इसी घराने से ताल्लुक़ रखते थे.
इसके अलावा इस घराने ने अब्दुल वाहिद, सुरेश बाबू माने, रोशन आरा बेग़म, सरस्वती राणे, माणिक वर्मा जैसे नामी गिरामी संगीतज्ञ भी दिए.
जानकार बताते हैं कि कैराना की चर्चा पौराणिक काल में भी थी. मान्यता है कि कैराना प्राचीन काल में कर्णपुरी के नाम से जाना जाता था. हालांकि इसका कोई ऐतिहासिक आधार नहीं मिला.
स्थानीय लोगों का दावा है कि महाभारत काल में कर्ण का जन्म यहीं हुआ था. एक मान्यता ये भी है कि कैराना का नाम ‘कै और राणा’ नाम के राणा चौहान गुर्जरों के नाम पर पड़ा.
माना जाता है कि राजस्थान के अजमेर से आए राणा देव राज चौहान और राणा दीप राज चौहान ने कैराना की नींव रखी. 16वीं सदी में मुग़ल बादशाह जहांगीर ने अपनी आत्मकथा तुजुक-ए-जहांगीरी में कैराना की अपनी यात्रा के बारे में लिखा है और मुकर्रब ख़ान की बनाई कई इमारतों, एक शानदार बाग और बड़े तालाब का ज़िक्र किया है.
दंगा, हिंदुओं का कथित पलायन और गन्ना किसान
अभी कैराना लोकसभा उपचुनाव के दौरान अगर हम मुद्दों की बात करें तो जानकार 2013 में हुए मुज़फ़्फ़रनगर दंगा, 2016 में हिंदुओं के कथित पलायन और गन्ना किसानों को भुगतान और बिजली को लेकर आ रही दिक्कतों को मुख्य बताते हैं.
जानकारों का दावा है कि कैराना लोकसभा सीट पर पिछली बार भाजपा ने मोदी लहर और मुज़फ़्फ़रनगर दंगे की वजह से कुर्सी पर क़ब्ज़ा कर लिया था. ग़ौरतलब है कि 2013 में हुए मुज़फ़्फ़रनगर दंगों में 62 लोगों की हत्या हुई और हज़ारों लोग बेघर हो गए थे.
इसका असर अगले साल होने वाले चुनाव यानी 2014 के आम चुनाव में दिखा. भाजपा ने इसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया. इसे लेकर आम चुनावों में जमकर हिंदू-मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण हुआ जिसका फायदा उसे मुज़फ़्फ़रनगर से सटे कैराना में ही नहीं पूरे उत्तर प्रदेश में मिला.
चुनावी विश्लेषक इस चुनाव में भी इस मुद्दे का असर देख रहे हैं.
उसके बाद 2016 में कैराना से तत्कालीन भाजपा सांसद हुकुम सिंह ने हिंदुओं के पलायन का मुद्दा उठाकर राजनीतिक भूचाल ला दिया. उस दौरान कैराना को उत्तर प्रदेश का कश्मीर बताया गया.
हालांकि उसे लेकर उस समय तमाम पड़तालें हुईं, दावे पर संदेह जताए गए, कई मामले ग़लत भी पाए गए, मामले को उठाने वाले हुकुम सिंह ख़ुद एक साल बाद इस मुद्दे पर सफाई देने लगे थे.
लेकिन जानकारों की माने तो उसके अगले साल 2017 के विधानसभा चुनाव में राजनीतिक ध्रुवीकरण के लिए इस मुद्दे ने ‘आग में घी’ का काम किया और उसका सीधा फायदा भाजपा को मिला. ये अलग बात है कि इस मामले को उठाने वाले हुकुम सिंह की बेटी मृगांका कैराना विधानसभा सीट से चुनाव हार गईं.
अब भी हिंदू मुस्लिम मतों के ध्रुवीकरण के लिए इस मुद्दे का सहारा लिया जा रहा है.
वहीं, कैराना पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रमुख गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में शुमार है. इस चुनाव में गन्ना बनाम जिन्ना का मुद्दा काफी प्रमुखता से उठाया गया है. कहा जा रहा है कि गन्ना उत्पादक बकाया भुगतान और बिजली के बिल को लेकर राज्य और केंद्र सरकार से नाराज चल रहे हैं.
इसका फायदा उठाने के लिए आरएलडी जहां जाट और मुस्लिम समीकरण साधने के साथ गन्ना किसानों को लुभाने का प्रयास कर रही है, वहीं भाजपा भी इस मुद्दे को लेकर गंभीर है.
यहां चुनावी रैली संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि अगले साल तक गन्ना किसानों की समस्या ख़त्म हो जाएगी और यहां की गन्ना मिल दोगुनी रफ्तार से काम करेगी, हमारी सरकार सभी गन्ना किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य दिलवाएगी, ऐसे में किसी को भी परेशान होने की ज़रूरत नहीं है.
वहीं, रविवार को बागपत में ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे के उद्घाटन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि यहां के गन्ना किसानों के लिए भी हमारी सरकार लगातार कार्य कर रही है, पिछले साल ही हमने गन्ने का समर्थन मूल्य लगभग 11 प्रतिशत बढ़ाया था, इससे गन्ने के 5 करोड़ किसानों को सीधा लाभ हुआ था, मैं वादा करता हूं आगे भी हमारी सरकार किसानों के हित में फैसले लेते रहेगी.