विशेष रिपोर्ट: डी विलियर्स ने अपने संन्यास की जो वजह बताई है, उस पर यक़ीन कर पाना क्यों मुश्किल है.
‘मैं अगस्त माह में दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेट बोर्ड (सीएसए) से मिलने जा रहा हूं, यह मेरे भविष्य का फैसला करेगा. हम बैठकर तय करेंगे कि दोनों पक्षों के हित में क्या होगा? हम ऐसा करने नहीं जा रहे कि मैं सावधानी पूर्वक मैचों का चयन करके (पिक एंड चूज) खेलूंगा कि कब खेलना है और कब नहीं, लेकिन हम अगले कुछ सालों में क्या होना है, इस बारे में एक अंतिम फैसला करने जा रहे हैं.’
मिस्टर 360 डिग्री के नाम से मशहूर दक्षिण अफ्रीकी बल्लेबाज अब्राहम बेंजामिन डी विलियर्स यानी कि एबी डी विलियर्स, जिन्हें उनके प्रशंसक प्यार से एबीडी भी बुलाते हैं, ने यह बात जून 2017 में अफ्रीकी टीम के इंग्लैंड दौरे पर तब कही थी जब उनकी कप्तानी में दक्षिण अफ्रीका इंग्लैंड से ट्वेंटी20 क्रिकेट सीरीज हार गया था और टेस्ट सीरीज खेलने की तैयारी कर रहा था.
यह वह समय था जब क्रिकेट जगत और मीडिया में डी विलियर्स पर टेस्ट किक्रेट को तरजीह न देकर केवल सीमित ओवर का क्रिकेट खेलने के आरोप लग रहे थे जिनके चलते उनकी आलोचना हो रही थी. उनसे पूछा जा रहा था कि क्या वे टेस्ट क्रिकेट में लौटेंगे या नहीं?
हालांकि, दौरे पर आने से पहले ही डी विलियर्स ने साफ कर दिया था कि वे केवल सीमित ओवर के क्रिकेट (एकदिवसीय और ट्वेंटी20) में ही इंग्लैंड दौरे पर दक्षिण अफ्रीका का प्रतिनिधित्व करेंगे, टेस्ट टीम का हिस्सा नहीं होंगे.
तब यह तो भविष्य के गर्त में छिपा था कि डी विलियर्स टेस्ट खेलेंगे या नहीं? लेकिन, इतना तय था कि वे कुछ और सालों तक क्रिकेट के मैदान पर अपने बल्ले की बाजीगरी दिखाने के इच्छुक थे. लेकिन फिर साल भर के अंदर ही उन्होंने संन्यास क्यों ले लिया?
डी विलियर्स 2015 के सफल भारत दौरे के बाद से ही चोटों से जूझ रहे थे और लगातार टीम से अंदर-बाहर होते रहे थे. इसी कड़ी में, जुलाई 2016 में कैरेबियन प्रीमियर लीग (सीपीएल) के दौरान कोहनी की चोट के चलते वे अगले छह महीनों तक क्रिकेट से दूर रहे. जनवरी 2017 में उन्होंने श्रीलंका के खिलाफ घरेलू टी20 श्रृंखला से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में वापसी की.
तब से वे लगातार सीमित ओवरों के क्रिकेट में अफ्रीकी टीम का हिस्सा रहे. उसी साल अफ्रीका को न्यूजीलैंड दौरे पर टी20, एकदिवसीय और टेस्ट सीरीज खेलने जाना था, लेकिन डी विलियर्स ने फैसला किया कि वे इस दौरे पर टेस्ट टीम का हिस्सा नहीं होंगे, केवल सीमित ओवरों के क्रिकेट में देश का प्रतिनिधित्व करेंगे.
कुछ ऐसा ही फैसला उन्होंने इंग्लैंड दौरे को लेकर किया था. वहां भी वे सीमित ओवर के क्रिकेट में टीम का हिस्सा थे और कप्तान भी थे, लेकिन टेस्ट सीरीज में चयन के लिए उन्होंने खुद को अनुपलब्ध बताया.
क्रिकेट में अक्सर ऐसा होता है कि एक खिलाड़ी खेल की किसी एक विधा को ही तरजीह देता है, जैसे भारत के महेंद्र सिंह धोनी केवल सीमित ओवर का क्रिकेट खेलते हैं और टेस्ट नहीं, इसी तरह इंग्लैंड के एलिएस्टर कुक केवल टेस्ट में इंग्लैंड का प्रतिनिधित्व करते हैं, सीमित ओवरों के क्रिकेट में नहीं.
धोनी की बात करें तो वे टेस्ट क्रिकेट से संन्यास ले चुके हैं तो वहीं कुक को चयनकर्ता सीमित ओवर क्रिकेट खेलने के योग्य नहीं मानते.
लेकिन, डी विलियर्स के टेस्ट न खेलने के पीछे दोनों ही स्थिति नहीं थीं. न तो ऐसा था कि टेस्ट क्रिकेट में उनका प्रदर्शन खराब हो जिसके चलते चयनकर्ता उन पर भरोसा न दिखा सकें और न ही उन्होंने टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लिया था.
इस तटस्थ स्थिति पर जब-जब उनसे सवाल पूछा गया तो वे यही जवाब देते कि सही समय पर वे अपने भविष्य को लेकर फैसला करेंगे.
क्या वे टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेंगे? इस सवाल पर भी उन्होंने कभी कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया और भविष्य में निर्णय लेने की बात कही. उनका कहना होता, ‘पूरा ध्यान 2019 के आगामी एकदिवसीय विश्वकप पर है और मैं अपने इस लक्ष्य के साथ खुद को प्रतिस्पर्धात्मक क्रिकेट में फिट बनाए रखने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा हूं. क्रिकेट के दूसरे फॉर्मेट में खेलना भी महत्वपूर्ण है, पर शारीरिक और मानसिक तौर पर मैं 2019 विश्वकप के लिए फिट रहना चाहता हूं.’
इंग्लैंड दौरे पर उपरोक्त बातचीत के दौरान भी उन्होंने कहा था, ‘दक्षिण अफ्रीका के लिए विश्वकप जीतना या किसी भी तरीके से इसका हिस्सा बनना मेरा मुख्य सपना है.’
जब से उन्होंने चोट के बाद मैदान पर वापसी की थी, वे यही बात दोहराते आ रहे थे और इस पर खरे भी उतर रहे थे. चोट के बाद मैदान पर वापसी करने के बाद से अब तक उनके बल्लेबाजी के आंकड़े बताते हैं कि वे इस दौरान क्रिकेट के तीनों फॉर्मेट में अफ्रीकी टीम के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज थे.
बल्लेबाजी में उनकी लय बरकरार थी. जिसका प्रमाण था उनका हालिया प्रदर्शन. टेस्ट क्रिकेट से करीब दो साल के ब्रेक के बाद उन्होंने बीते वर्ष दिसंबर में टेस्ट क्रिकेट में वापसी की थी. तब से दक्षिण अफ्रीका ने आठ टेस्ट खेले. जिनमें डी विलियर्स रनों के मामले में अफ्रीका के दूसरे सबसे सफल बल्लेबाज साबित हुए, तो वहीं प्रदर्शन में निरंतरता के मामले में अव्वल रहे.
निरंतरता की बात करें तो टेस्ट में अपनी वापसी के बाद से खेले 8 टेस्ट में उन्होंने 8 पचास से ज्यादा के स्कोर बनाए. इस दौरान 7 अर्द्धशतक और 1 शतक जड़ा. 8 में से 7 मैच में उन्होंने अर्द्धशतक और शतक बनाए. सिर्फ एक मैच में उनका बल्ला खामोश रहा. इस दौरान 53 से अधिक के औसत से 691 रन बनाए.
वर्तमान में किसी भी खिलाड़ी के पिछले 8 टेस्ट के प्रदर्शन को तुलना का आधार बनाएं तो विश्व का कोई भी बल्लेबाज ऐसी लय में दिखाई नहीं देता है.
भारत और ऑस्ट्रेलिया जैसी मजबूत टीमों के खिलाफ खेली इन श्रृंखलाओं में वे भारत के खिलाफ अपनी टीम की ओर से सबसे अधिक रन बनाने वाले बल्लेबाज थे. तो वहीं, ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ वे अपनी टीम की ओर से दूसरे सफल बल्लेबाज साबित हुए.
साथ ही, ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेले सभी टेस्ट मैच में उन्होंने अर्द्धशतक और शतक जड़े. पूरी श्रृंखला में वे अपने साथी खिलाड़ी एडेन मार्करेम के बाद दूसरे सबसे अधिक रन बनाने वाले बल्लेबाज थे.
उनके बाजुओं में बल्ले से गेंद को स्टेडियम के बाहर पहुंचाने की ताकत अब भी बाकी थी. वरना, आईपीएल 2018 का सबसे लंबा छक्का उनके नाम नहीं होता.
लेकिन, 23 मई को उन्होंने एक वीडियो जारी किया. 1 मिनट 36 सेकंड के इस वीडियो में उन्होंने कहा,
‘मैं आपको बताना चाहूंगा कि मैंने सभी प्रकार के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से तत्काल प्रभाव से संन्यास लेने का फैसला कर लिया है. 228 एकदिवसीय, 116 टेस्ट और 78 टी20 मैच खेलने के बाद यह समय है कि दूसरे खिलाड़ी अब आगे आकर जिम्मेदारी लें. मैंने अपनी बारी खेल ली और ईमानदारी से कहूं तो मैं थक चुका हूं.’
I’ve made a big decision today pic.twitter.com/In0jyquPOK
— AB de Villiers (@ABdeVilliers17) May 23, 2018
डी विलियर्स के संन्यास की खबर ने पूरे क्रिकेट जगत और विश्व भर के क्रिकेट प्रेमियों को सदमे में डाल दिया. उनका खुद को थका हुआ बताकर संन्यास लेना चौंकाने वाला था.
क्रिकेट से ताल्लुक रखने वाले हर शख्स की जुबां पर पहला सवाल यही था कि जिस खिलाड़ी ने करीब हफ्ते भर पहले, क्रिकेट इतिहास के सबसे विस्मृतकारी कैचों में से एक कैच पकड़ा, जिसने उसे स्पाइडरमैन की संज्ञा दिलवाई, वह भला कैसे थका हुआ महसूस करने लगा?
क्या एक थका हुआ खिलाड़ी अपने कद से भी अधिक ऊंचाई तक छलांग लगाकर हवा में उड़ कर उस चमत्कारिक कैच को पकड़ सकता था?
यकीन करना इसलिए भी मुश्किल था क्योंकि वर्तमान में डी विलियर्स दक्षिण अफ्रीकी टीम के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज थे और विराट कोहली, जो रूट, स्टीव स्मिथ और केन विलियमसन की वर्तमान में विश्व की सबसे खतरनाक बल्लेबाजी चौकड़ी में जुड़ने वाले पांचवे सदस्य थे.
इस साल आईपीएल के उनके प्रदर्शन पर ही निगाह डालें तो पाएंगे कि उनकी टीम रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर (आरसीबी) ने ग्रुप लेवल के अपने 14 मैचों में से, जो छह मैच जीते, उनमें से चार में डी विलियर्स मैन ऑफ द मैच रहे थे. एक जो मैच आरसीबी ने जीता उसमें वे खेले नहीं थे और बाकी एक में उनकी टीम के गेंदबाजों ने विपक्षी टीम को 88 रनों पर समेट दिया था, जिसके चलते डी विलियर्स को बल्लेबाजी का मौका नहीं मिला और गेंदबाज मैन ऑफ द मैच रहा.
यानी कि डी विलियर्स की मौजूदगी में आरसीबी ने जो पांच मैच जीते उनमें से चार उनकी बल्लेबाजी की बदौलत जीते गये और चारों में डी विलियर्स ही मैन ऑफ द मैच रहे.
पूरे टूर्नामेंट में 12 मैचों में उन्होंने 6 अर्द्धशतक लगाकर करीब 53 के औसत से 480 रन बनाए. खास बात यह भी थी कि उनका स्ट्राइक रेट 400 से अधिक रन बनाने वालों में सबसे अधिक था, लगभग 175 का.
यह बताने के लिए काफी है कि वे वर्तमान में विश्व क्रिकेट में सबसे घातक बल्लेबाज थे और इतने बड़े खिलाड़ी थे कि जिस भी टीम का हिस्सा होते थे, उस टीम की जीत पूरी तरह से उनके प्रदर्शन पर निर्भर करती थी. जिसकी बानगी बीते वर्ष इंग्लैंड में हुई चैंपियंस ट्रॉफी भी है. जहां उनका बल्ला नहीं चला, तो दक्षिण अफ्रीकी टीम ग्रुप चरण में ही टूर्नामेंट से बाहर हो गई थी.
वे किस प्रचंड फॉर्म में थे, इसकी बानगी ऑस्ट्रेलिया के सहायक कोच डेविड सेकर के उस बयान से मिलती है जब मार्च में उनकी टीम के खिलाफ पोर्ट एलिजाबेथ के उस मैदान पर डी विलियर्स ने सैकड़ा जड़ा, जहां अन्य बल्लेबाज एक-एक रन बनाने के लिए जूझ रहे थे. सेकर ने कहा था, ‘यह एक बहुत ही विशेष पारी थी. ऐसा लग रहा था मानो डी विलियर्स किसी दूसरे विकेट पर बल्लेबाजी कर रहे हों.’
इस सबके बाद सवाल उठना लाजमी था कि जो डी विलियर्स कुछ महीने पहले तक अफ्रीकी क्रिकेट बोर्ड के साथ बैठकर अगले कुछ सालों तक खेलने की रूपरेखा तैयार कर रहे थे, उन्होंने कुछ ही महीनों बाद प्रचंड फॉर्म में होने के बावजूद अचानक से खुद को थका हुआ बताकर कैसे हमेशा के लिए अपना बल्ला खामोश करने का ऐलान कर दिया?
क्यों विश्वकप के एक साल पहले संन्यास का ऐलान कर दिया, जबकि वे फिट भी थे और उनके बल्ले से ताबड़तोड़ रन भी बरस रहे थे और उम्र भी उनके साथ थी?
हालांकि, कम उम्र में दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेट खिलाड़ियों द्वारा संन्यास लेना कोई नई बात भी नहीं रही. जॉन्टी रोड्स, गैरी कर्स्टन, एलन डोनाल्ड, ग्रीम स्मिथ, आंद्रे नेल, एंड्रयू हॉल, मखाया नतिनी जैसे नामों की एक लंबी फेहरिस्त है. लेकिन, इन सभी ने कम उम्र में संन्यास या तो अपनी खराब फॉर्म के चलते लिया या फिर क्रिकेट बोर्ड से बेरुखी के चलते. ये दोनों बातें भी डी विलियर्स के साथ नहीं थीं.
तो क्या वे वास्तव में थक गए थे या फिर कोई और भी कारण था कि उन्होंने आग उगलते अपने बल्ले और दिन-ब-दिन करीब आते अपने सपने (विश्वकप) से दूरी बनाना ही बेहतर समझा?
23 मई को जारी वीडियो में उन्होंने आगे कुछ और भी कहा था. उन्होंने कहा था,
‘यह ठीक नहीं होगा कि मैं कहां और कब और किस फॉर्मेट में दक्षिण अफ्रीका के लिए खेलना है इसका अपने मुताबिक सावधानी से चयन (पिक एंड चूज) करूं. मेरे लिए हरी-सुनहरी जर्सी में खेलने का मतलब है, या तो सब कुछ या कुछ नहीं.’
डी विलियर्स थकान महसूस कर रहे थे, यह सही था. लेकिन, इन शब्दो के भी मायने थे जिन पर गौर नहीं किया गया.
डी विलियर्स कुछ साल और खेलना चाहते थे, वे विश्वकप 2019 तक तो कम से कम खेलना ही चाहते थे, लेकिन वे थके हुए भी थे, यह भी उतना ही सच है. थके वे क्रिकेट खेलने से नहीं थे, उनकी थकान का कारण क्रिकेट और परिवार के बीच संतुलन बनाने की कवायद थी.
टेस्ट क्रिकेट में वापसी करने के बाद उन्होंने कहा था कि ऐसा नहीं है कि उन्हें टेस्ट क्रिकेट से प्यार नहीं रहा था, लेकिन वे जितनी अधिक मात्रा में क्रिकेट खेल रहे थे, उन्हें उससे प्यार नहीं रहा.
उन्होंने कहा था कि अब वे 20 साल के युवा नहीं रहे जो दक्षिण अफ्रीका के लिए अपना पहला मैच खेल रहा हो, अब वे 34 साल के हैं, पति और दो बच्चों के पिता हैं.
संतुलन बनाने की इसी कवायद में उन्होंने अपने क्रिकेट करिअर को लेकर जो नीति अपनाई, उसे मीडिया, आलोचकों और कई पूर्व क्रिकेटरों ने ‘पिक एंड चूज’ का नाम दिया. उन्होंने इस दौरान टेस्ट क्रिकेट खेलने से परहेज किया.
क्रिकेट के इस पांच दिनी फॉर्मेट में वे खुद को थका हुआ और परिवारिक जिम्मेदारियों से दूर पाते थे, टेस्ट क्रिकेट के चलते लंबे दौरों पर उन्हें घर से दूर रहना होता था.
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ शतक जड़ने के बाद उन्होंने कहा था, ‘मेरा क्रिकेट से प्यार कभी कम नहीं हुआ था. मैं बस खेलते-खेलते थक गया था. मैं बस परेशान था, शारीरिक और मानसिक रूप से भी. कुछ और भी कारण थे. उसी समय मैं पिता बना था, अचानक मेरे आस-पास दो बच्चे थे… एक परिवार था. ’
उन्होंने आगे कहा था, ‘काफी कुछ मेरी जिंदगी में घट रहा था और मुझे लगा कि थोड़ा ठहरकर सांस लेने की जरूरत है. मैं ऐसा नहीं कहूंगा कि खेल के प्रति मेरा प्यार खत्म हो गया था. वो प्यार मैंने अब दिखा दिया है. मुझे हमेशा से खेलना पसंद है.’
डी विलियर्स जो अपने 14 साल के क्रिकेट करिअर में वास्तव में इस जेंटलमैन गेम के जेंटलमैन बनकर उभरे, ‘पिक एंड चूज’ नीति के आरोप लगाकर मीडिया और पूर्व क्रिकेटरों द्वारा उनकी आलोचना की गई. वे इस आलोचना से आहत होते थे, इसलिए बार-बार स्पष्टीकरण भी देते थे.
ऐसे ही एक स्पष्टीकरण में उन्होंने कहा था, ‘ऐसा कभी नहीं रहा कि मैं अपने काम के बोझ को मैनेज करने की कोशिश कर रहा हूं. यह बस खुद के लिए कुछ निश्चित चीजों को प्राथमिकता देना है जो मैं पाना चाहता हूं. मैंने कभी ‘पिक एंड चूज’ नहीं किया, बस 2019 विश्वकप को खुद के लिए प्राथमिकता पर रखा है. यही मेरा लक्ष्य है. मुझे अपने क्रिकेट बोर्ड से मुलाकात करनी है और तय करना है कि मैं टीम में या उनकी नजर में कहां फिट होता हूं और कैसे आगे बढ़ सकता हूं. लेकिन फिर कहूंगा कि मैं कभी ‘पिक एंड चूज’ की नीति पर नहीं चला.’
इस दौरान उन पर ये आरोप तक लगे कि वे एक बड़े खिलाड़ी हैं और खुद को देश से ऊपर समझते हैं, इसलिए देश के लिए कब खेलना है और कब नहीं, वे खुद तय करते हैं.
अगस्त 2017 में उनकी सीएसए के साथ मीटिंग के बाद आखिरकार उन्होंने ऐलान किया कि वे क्रिकेट के सभी फॉर्मेट में खेलने के लिए उपलब्ध रहेंगे और अपने ऊपर से दबाव कम करने के लिए उन्होंने एकदिवसीय क्रिकेट की कप्तानी छोड़ दी. यहां भी उन्हें स्पष्ट करना पड़ा कि वे खेलने को लेकर चयनात्मक सोच नहीं रखते हैं.
इस पूरे विवाद ने डी विलियर्स के खिलाफ एक ऐसा माहौल खड़ा किया था कि उन्हें हर मैच के बाद सफाई देनी पड़ रही थी. शायद एक बड़ा खिलाड़ी होने की कीमत थी, जो उन्हें चुकानी पड़ रही थी.
इस दौरान कहीं से उन्होंने अपने रिटायरमेंट के संकेत नहीं दिए थे. न अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से और न ही क्रिकेट की किसी भी विधा से. लेकिन जाहिर तौर पर पिछले एक सालों में उन्होंने जितना भी क्रिकेट खेला और जो भी उनके बयान रहे, उनसे पता चलता था कि वे अपने करिअर को लंबा खींचने और निजी जीवन के साथ करिअर का संतुलन बनाने के लिए सीमित मात्रा में क्रिकेट खेलने के इच्छुक थे.
लेकिन ऐसा तीन परिस्थितियों में ही संभव था. पहला कि या तो वे क्रिकेट के सबसे लंबे फॉर्मेट को अलविदा कहते, लेकिन इस परिस्थिति में उन पर आरोप लगते कि उन जैसा महान खिलाड़ी टेस्ट क्रिकेट को तरजीह नहीं देता और चकाचौंध वाले क्रिकेट में रूचि रखता है.
दूसरी परिस्थिति होती कि वे तीनों फॉर्मेट में बने रहते. लेकिन, ऐसा करने के लिए उन्हें उसी नीति पर चलना होता जिसे उनके आलोचकों ने ‘पिक एंड चूज’ नाम दिया था.
भारत के महान बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर ने भी अपने करिअर को लंबा खींचने के लिए ऐसी ही सोच अपनाई थी. वे केवल महत्वपूर्ण मैचों और श्रृंखलाओं में ही भारत के लिए खेलते नजर आते थे. डी विलियर्स भी चाहते तो कानों में रूई ठूंसकर ऐसा कर सकते थे. लेकिन वे सचिन नहीं थे, डी विलियर्स थे.
उक्त दोनों ही परिस्थितियों में डी विलियर्स खुद को फिर से उसी स्थिति में पाते जहां कि वे एक साल पहले थे और बार-बार स्पष्टीकरण दे रहे थे और ऐसे आरोपों को सह रहे थे जहां राष्ट्र के प्रति उनकी निष्ठा पर सवालिया निशान लगाया जा रहा था. यह भी किसी दबाव या मानसिक थकान से कम नहीं होता है.
इसलिए उन्होंने तीसरा विकल्प यानी कि संन्यास चुना.
इस संदर्भ में गौर करने वाली बात यह है कि उन्होंने संन्यास की घोषणा तब की, जब टीम को जुलाई में डेढ़ माह लंबे श्रीलंका के दौरे पर जाना है.
और डी विलियर्स के पिछले ढाई साल के करिअर पर नजर दौड़ाएं तो इस दौरान टेस्ट क्रिकेट उन्होंने केवल घरेलू मैदानों पर ही खेली और वे विदेशी दौरों पर टेस्ट टीम का हिस्सा नहीं रहे. कारण स्पष्ट था कि विदेशी दौरों पर घर और परिवार से दूर रहना तथा यात्रा और ज्यादा क्रिकेट खेलने की थकान. साथ ही ट्रेनिंग, मीडिया और स्पॉन्सरशिप प्रतिबद्धताएं पूरी करना.
वे चाहते थे कि किक्रेट के तीनों फॉर्मेट में बने रहें लेकिन टेस्ट क्रिकेट केवल घरेलू सत्र में ही खेलें. लेकिन अगर वे ऐसा करते तो फिर से विवाद की स्थिति बन जाती.
विकल्प होते हुए भी विकल्पहीनता के अभाव में उन्होंने अपने अंतरराष्ट्रीय करिअर को विराम देना ही उचित समझते हुए कहा, ‘यह ठीक नहीं होगा कि मैं कहां और कब और किस फॉर्मेट में दक्षिण अफ्रीका के लिए खेलना है, इसका अपने मुताबिक सावधानी से चयन (पिक एंड चूज) करूं.’
लगभग साल भर पहले दक्षिण अफ्रीका के कप्तान फाफ डु प्लेसी के शब्दों से भी डी विलियर्स के संन्यास का कारण समझा जा सकता है.
डु प्लेसी से डी विलियर्स की चयनात्मक नीति पर जब सवाल पूछा गया था, तब वे बोले थे, ‘एबी घर पर ज्यादा से ज्यादा समय बिताना चाहते हैं. अगर आप दक्षिण अफ्रीका के लिए क्रिकेट के तीनों फॉर्मेट में खेल रहे हैं तो इसका मतलब कि साल में सात-आठ महीने घर से दूर बिता रहे हैं. यह किसी भी तरह श्रेष्ठ पारिवारिक जीवन नहीं है. टेस्ट क्रिकेट आपके जीवन का बहुत समय लेता है और यही एबी के लिए मसला है, और कुछ नहीं.’
संभव है कि अगर डी विलियर्स को पहले दो विकल्प मिले होते, उनसे उनके टेस्ट क्रिकेट से ब्रेक लेने पर उतने सवाल नहीं किए गए होते, तो आज वे ऐसा फैसला लेकर क्रिकेट को अलविदा कहकर न गए होते.
वो भी तब जब वे एकदिवसीय क्रिकेट में सबसे तेज 10,000 रन पूरे करने से महज 423 रन दूर थे, साथ ही उस अद्भुत रिकॉर्ड बनाने से भी जहां वे क्रिकेट इतिहास के एकमात्र बल्लेबाज होते जिसके नाम एकदिवसीय क्रिकेट में 10,000 रन, 50 से अधिक का बल्लेबाजी औसत और 100 से अधिक का स्ट्राइक रेट होता.