2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश से एक भी मुस्लिम प्रत्याशी जीत दर्ज नहीं कर सका था.
लखनऊ: उत्तर प्रदेश की कैराना लोकसभा सीट के उपचुनाव में गुरुवार को जीत के साथ राष्ट्रीय लोकदल (रालोद)-समाजवादी पार्टी (सपा) गठबंधन की प्रत्याशी तबस्सुम हसन 16वीं लोकसभा में इस राज्य से पहली मुस्लिम सांसद बन गई.
गोरखपुर और फूलपुर जैसी प्रतिष्ठापूर्ण सीटों पर हाल में हुए उपचुनाव में सपा के हाथों मिली पराजय के बाद हुए कैराना लोकसभा और नूरपुर विधानसभा सीटों के उपचुनाव में भी सत्तारूढ़ भाजपा को झटका लगा है.
मुस्लिम और दलित बहुल कैराना सीट पर रालोद-सपा गठबंधन की प्रत्याशी तबस्सुम ने अपनी निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा की मृगांका सिंह को 44,618 मतों से पराजित किया. इस तरह 16वीं लोकसभा में उत्तर प्रदेश से वह पहली मुस्लिम सांसद भी बन गईं.
संयुक्त विपक्ष की कैराना सीट पर प्रत्याशी रालोद की तबस्सुम हसन ने कहा कि हम ‘जियो और जीने दो’ के सिद्धांत में यकीन करते हैं. हम हर किसी से मिलते हैं. सबको साथ लेकर चलते हैं. हम शांति और सद्भाव से रहते हैं.
उन्होंने कहा कि भाजपा ने असल मुद्दे कभी नहीं उठाए. वे जिन्ना का फोटो का मुद्दा सामने लाए. आख़िर जिन्ना एक समय यहां से थे… लेकिन बंटवारे के बाद स्थिति बदल गई. पर असल मुद्दा ये नहीं है बल्कि असल मुद्दा किसानों और ग़रीबों का है. इस पर भाजपा के पास कहने के लिए कुछ नहीं है.
मालूम हो कि वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में ‘मोदी की आंधी’ के चलते भाजपा ने उत्तर प्रदेश की 80 में से 71 सीटें जीती थीं, जबकि उसके सहयोगी अपना दल को दो सीटें मिली थीं. उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों की तकरीबन 20 फीसदी आबादी के बावजूद उस चुनाव में इस सूबे से एक भी मुस्लिम प्रत्याशी नहीं जीत सका था.
इससे पहले वर्ष 2009 में कैराना से ही बसपा की सांसद रह चुकीं तबस्सुम ने अपनी इस विजय के लिए रालोद, सपा, बसपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के नेताओं तथा कार्यकर्ताओं का शुक्रिया अदा किया.
उन्होंने इसे कैराना की जनता और ख़ासकर किसानों की जीत क़रार देते हुए कहा कि भाजपा ने विकास के बजाय असल मसलों से भटकाने वाले मुद्दे उछाले, लेकिन उसका यह दांव उल्टा पड़ गया.
तबस्सुम ने उपचुनाव से एक दिन पहले बागपत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली के बारे में कहा कि अब मोदी के आने का कोई असर नहीं होगा. अहंकारी लोगों ने कहना शुरू कर दिया था कि उनका कोई विकल्प नहीं है, लेकिन विकल्प तो अल्लाह निकालता है. हम सब मिलकर 2019 में उन्हें धूल चटाएंगे.
मालूम हो कि वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में ‘मोदी लहर’ और राजनीतिक रूप से खासा दबदबा रखने वाले मुनव्वर हसन के परिवार में वोटों के बंटवारे के बीच भाजपा के हुकुम सिंह ने कैराना लोकसभा सीट जीती थी. सिंह के निधन के बाद यह सीट रिक्त हुई थी.
कैराना लोकसभा क्षेत्र में लगभग 17 लाख मतदाता हैं. इनमें तीन लाख मुसलमान, लगभग चार लाख पिछड़े और करीब डेढ़ लाख वोट जाटव दलितों के हैं, जो बसपा का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है. यहां यादव मतदाताओं की संख्या कम है ऐसे में यहां दलित और मुस्लिम मतदाता ख़ासे महत्वपूर्ण हो जाते हैं.
इस क्षेत्र में हसन परिवार का ख़ासा राजनीतिक दबदबा माना जाता रहा है. वर्ष 1996 में इस सीट से सपा के टिकट पर सांसद चुने गये मुनव्वर हसन की पत्नी तबस्सुम बेगम वर्ष 2009 में इस सीट से संसद जा चुकी हैं.
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में इस परिवार में टूट हुई थी. तब मुनव्वर के बेटे नाहीद हसन सपा के टिकट पर और उनके चाचा कंवर हसन बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे, मगर दोनों को पराजय का सामना करना पड़ा था. हालांकि नाहीद दूसरे स्थान पर रहे थे.
इस सीट पर रालोद का भी दबदबा रहा है और 1999 तथा 2004 के लोकसभा चुनाव में उसके प्रत्याशी यहां से सांसद रह चुके हैं. रालोद ने गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में विपक्ष का साथ दिया था. कैराना में सपा, बसपा, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी तथा अन्य कई विपक्षी दलों ने रालोद प्रत्याशी का सहयोग किया था.
भाजपा ने करीब दो साल पहले कैराना से बहुसंख्यक वर्ग के परिवारों के ‘पलायन’ का मुद्दा उठाया था. भाजपा ने पिछले वर्ष हुए विधानसभा चुनाव के लिए अपने घोषणापत्र में इसे एक अहम मुद्दे के तौर पर शामिल किया था, लेकिन वह भाजपा के लिए फलीभूत नहीं हुआ था और कैराना विधानसभा सीट से हुकुम सिंह की बेटी भाजपा प्रत्याशी मृगांका सिंह को पराजय का सामना करना पड़ा था.
कैराना लोकसभा सीट पिछले करीब दो दशकों से अलग-अलग राजनीतिक दलों के खाते में जाती रही है. वर्ष 1996 में सपा, 1998 में भाजपा, 1999 और 2004 में रालोद, 2009 में बसपा और 2014 में भाजपा का इस पर क़ब्ज़ा रहा. अब यह सीट फिर रालोद की झोली में जा चुकी है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)