इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हॉस्टल वॉशआउट अभियान के ख़िलाफ़ छात्रों का प्रदर्शन पांच जून को हिंसक हो गया. कई वाहन फूंक दिए गए. 11 छात्रों को गिरफ़्तार भी किया गया है.
मैं बनारस हिंदू विश्वविश्वविद्यालय (बीएचयू), जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) और दूसरे विश्वविद्यालयों में हुए आंदोलनों को देख रहा था. कुछ महीने पहले बीएचयू की लड़कियों ने बताया था कि महिला छात्रावासों में वाई-फाई न दिए जाने की एक वजह बताई गई. वजह यह थी कि वाई-फाई उपलब्ध होने से छात्रावास की लड़कियां पोर्न फिल्में देखेंगी.
यह तर्क अगर आपको अजीब लग रहा हो तो ज़रा ठहरिए. मैं इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सर जीएन झा छात्रावास का रहने वाला हूं. बीएचयू की घटना मैं हॉस्टल के एक बैचमेट से शिकायत कर रहा था कि कैसा अहमकाना प्रशासन है जो हॉस्टल के वाई-फाई में यूट्यूब को ब्लॉक करके रखता है.
यूट्यूब जो आज ज्ञान, सूचना और तकनीकी से मुखातिब होने के सबसे अहम और ज़रूरी स्रोतों में से एक है. तब मेरे दोस्त ने मुझे एक दिलचस्प बात बताई कि यूट्यूब भले ही बाधित कर दिया गया हो लेकिन पोर्न साइट्स पर कोई प्रतिबंध नहीं. मुझे अटपटा लगा मगर ये सच था!
मैं इस वाकये का ज़िक्र इसलिए कर रहा हूं क्योंकि यह एक नज़ीर भर है विश्वविद्यालय प्रशासन के मनमानी, बदमिज़ाज़ी और अधिनायकवादी रवैये का. आप विश्वविद्यालय प्रशासन के हाल में लिए गए निर्णयों की तहों में जितना अधिक जाएंगे और लॉजिक ढूंढ़ने की कोशिश करेंगे, उतना ही ज़्यादा आपकी पेशानी पर बल पड़ते जाएंगे.
ताज़ा इलाहाबाद विश्वविद्यालय में ‘हॉस्टल वॉशआउट’ का है. गत वर्ष की तरह इस वर्ष भी सारे छात्रावासों को ख़ाली कराया जा रहा है. यहां रहने वालों की दुश्वारियों और तकलीफों को बेहद असंवेदनशील तरीके से नजरअंदाज़ करके.
इलाहाबाद में प्रतियोगी और प्रवेश परीक्षाओं के ऐन मौके पर हज़ारों छात्र-छात्राओं को शहर की सड़कों पर कमरे खोजने के लिए मजबूर कर दिया गया है.
पिछली बार जनहित याचिका डलवाकर छात्रावासों में सुविधाएं देने के नाम पर विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा ‘हॉस्टल वॉशआउट’ अभियान चलाया गया था. सबने देखा कि ‘सुविधा’ का मुलम्मा चढ़ाने के लिए कुछ छात्रावासों में चूने भर पुतवा दिए गए. बाकी व्यवस्थाएं तो बस बद से बदतर ही हुईं.
प्रशासन की तरफ से बहुत ज़ोर दिया गया था कि हॉस्टल अलॉटमेंट एडमिशन के साथ ही होगा. लेकिन हक़ीक़त में जनवरी-फरवरी तक छात्रों को छात्रावास आवंटित किया गया. जनवरी में आवंटन और जून में निष्कासन! और फीस पूरे सत्र के लिए!
विश्वविद्यालय प्रशासन के द्वारा शुरू हॉस्टल वॉशआउट के ख़िलाफ़ छात्र-छात्राएं उठ खड़े हुए हैं. हॉस्टल ख़ाली कराने के विरोध में छात्र पांच जून को उग्र हो उठे. छात्र नहीं चाहते थे कि प्रतियोगी परीक्षाओं के बीच में यह कार्रवाई हो. इसलिए उन्होंने प्रदर्शन करना शुरू किया जो हिंसक हो उठा.
इस प्रदर्शन के बाद हालांकि इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने हॉस्टल वॉशआउट की कार्रवाई रोक दी है, लेकिन सवाल ये है कि वह अपनी इच्छाशक्ति और कर्तव्य से पीठ फेरकर आम छात्रों को बलि का बकरा क्यों बना रहा है.
जहां तक कोर्स पूरा हो जाने वाले और अवैध छात्रों को बाहर करने का मसला है तो प्रशासन ‘रेगुलर रेड’ डालकर फिजिकल वेरीफ़िकेशन क्यों नहीं करवाता? उसके लिए वॉशआउट की क्या ज़रूरत?
कुलपति, जिनकी कार्यशैली और तौर-तरीकों के ख़िलाफ़ इलाहाबाद हाईकोर्ट, मानव संसाधन विकास मंत्रालय और यूजीसी की समिति तक सवाल उठा चुकी है.
इसके अलावा नेशनल इंस्टिट्यूट रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) की नवीनतम रैंकिंग में विश्वविद्यालय अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुका है. उनके लिए वॉशआउट शायद एक डिफेंस मैकेनिज़्म है, क्योंकि तब उनसे कोई सवाल नहीं पूछा जाएगा.
सवाल इसलिए भी कि इतनी अनियमितताओं और गड़बड़ियों कि रिपोर्टों के बावजूद मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने कुलपति को पद पर क्यूं बदस्तूर बने रहने दिया? क्या छात्रों की जायज़ मांगों और प्रतिरोध का शासन की नज़र में कोई मोल नहीं? कम से कम क्या खुले दिमाग और मन से उन पर विचार भी नहीं किया जा सकता?
मांग और प्रदर्शन के दौरान हिंसा और आगजनी की घटनाएं आहत करने वाली हैं.
विश्वविद्यालय के समस्त छात्रों से अपनी मांग के लिए किया जा रहे आंदोलन को शांतिपूर्ण बनाए रखने की अपील करता हूं क्योंकि आंदोलन का उग्र होना अंततः प्रशासन के हक़ में ही जाएगा.
(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र हैं.)