संघ मुख्यालय, नागपुर में आरएसएस कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा, ‘हमारा राष्ट्रवाद किसी क्षेत्र, भाषा या धर्म विशेष के साथ बंधा हुआ नहीं है.’
नागपुर/नई दिल्ली: पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बहुलतावाद एवं सहिष्णुता को ‘भारत की आत्मा’ क़रार देते हुए गुरुवार को कहा कि धार्मिक मत और असहिष्णुता के माध्यम से भारत को परिभाषित करने का कोई भी प्रयास देश के अस्तित्व को कमज़ोर करेगा.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे मुखर्जी ने कांग्रेस के तमाम नेताओं के विरोध के बावजूद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों के प्रशिक्षण वर्ग के समापन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए यह बात नागपुर के रेशमबाग स्थित आरएसएस मुख्यालय में कही.
उन्होंने कहा, ‘हमें अपने सार्वजनिक विमर्श को सभी प्रकार के भय एवं हिंसा, भले ही वह शारीरिक हो या मौखिक, से मुक्त करना होगा.’
मुखर्जी ने देश के वर्तमान हालात का उल्लेख करते हुए कहा, ‘प्रति दिन हम अपने आसपास बढ़ी हुई हिंसा देखते हैं. इस हिंसा के मूल में भय, अविश्वास और अंधकार है.’
मुखर्जी ने कहा कि असहिष्णुता से भारत की राष्ट्रीय पहचान कमज़ोर होगी. उन्होंने कहा कि हमारा राष्ट्रवाद सार्वभौमवाद, सह-अस्तित्व और सम्मिलन से उत्पन्न होता है.
उन्होंने राष्ट्र की परिकल्पना को लेकर देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के विचारों का भी हवाला दिया. उन्होंने स्वतंत्र भारत के एकीकरण के लिए सरदार वल्लभ भाई पटेल के प्रयासों का भी उल्लेख किया.
मुखर्जी ने कहा, ‘भारत में हम सहिष्णुता से अपनी शक्ति अर्जित करते हैं और अपने बहुलतावाद का सम्मान करते हैं. हम अपनी विविधता पर गर्व करते हैं.’
पूर्व राष्ट्रपति ने आरएसएस कार्यकर्ताओं के साथ राष्ट्र, राष्ट्रवाद एवं देशप्रेम को लेकर अपने विचारों को साझा किया.
उन्होंने प्राचीन भारत से लेकर देश के स्वतंत्रता आंदोलत तक के इतिहास का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारा राष्ट्रवाद ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ तथा ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ जैसे विचारों पर आधारित है.
उन्होंने कहा कि हमारे राष्ट्रवाद में विभिन्न विचारों का सम्मिलन हुआ है. मुखर्जी ने राष्ट्र की अवधारणा को लेकर सुरेंद्र नाथ बनर्जी तथा बालगंगाधर तिलक के विचारों का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारा राष्ट्रवाद किसी क्षेत्र, भाषा या धर्म विशेष के साथ बंधा हुआ नहीं है.
उन्होंने कहा कि हमारे लिए लोकतंत्र सबसे महत्वपूर्ण मार्गदर्शक है.
उन्होंने कहा कि हमारे राष्ट्रवाद का प्रवाह संविधान से होता है. ‘भारत की आत्मा बहुलतावाद एवं सहिष्णुता में बसती है.’ उन्होंने कौटिल्य के अर्थशास्त्र का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्होंने ही लोगों की प्रसन्नता एवं खुशहाली को राजा की खुशहाली माना था.
पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि हमें अपने सार्वजनिक विमर्श को हिंसा से मुक्त करना होगा. साथ ही उन्होंने कहा कि एक राष्ट्र के रूप में हमें शांति, सौहार्द्र और प्रसन्नता की ओर बढ़ना होगा.
मुखर्जी ने कहा कि हमारे राष्ट्र को धर्म, हठधर्मिता या असहिष्णुता के माध्यम से परिभाषित करने का कोई भी प्रयास केवल हमारे अस्तित्व को ही कमज़ोर करेगा.
पूर्व राष्ट्रपति के संबोधन से पहले संघ के सर संघचालक मोहन भागवत ने कहा कि आरएसएस के कार्यक्रम में मुखर्जी के भाग लेने को लेकर छिड़ी बहस ‘निरर्थक’ है तथा उनके संगठन में कोई भी व्यक्ति बाहरी नहीं है.
भागवत ने कहा कि इस कार्यक्रम के बाद भी मुखर्जी वही रहेंगे जो वह हैं तथा संघ वही रहेगा जो वह है. उन्होंने कहा कि उनका संगठन पूरे समाज को एकजुट करना चाहता है और उसके लिए कोई बाहरी नहीं है. उन्होंने कहा कि लोगों के भिन्न मत हो सकते हैं किन्तु सभी भारत माता की संतानें हैं.
इससे पहले मुखर्जी जब संघ मुख्यालय आए तो उन्होंने संघ के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार को ‘भारत माता का महान सपूत’ बताया. हेडगेवार ने 27 सितंबर 1925 को विजयदशमी के दिन आरएसएस की स्थापना की थी.
मुखर्जी ने अपने संबोधन से पहले संघ की आगंतुक पुस्तिका में लिखा, ‘मैं भारत माता के एक महान सपूत के प्रति अपनी श्रद्धा एवं सम्मान व्यक्त करने यहां आया हूं.’
आरएसएस कार्यक्रम में मुखर्जी की शिरकत का कांग्रेस के कई नेताओं ने तीखा विरोध किया.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल ने उनके इस फैसले से असहमति जताते हुए कहा कि ‘प्रणब दा’ से ऐसी उम्मीद नहीं थी.
सात जून को मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने कहा था कि उनके पिता आरएसएस के कार्यक्रम में भाषण देने के अपने फैसले से भाजपा और आरएसएस को झूठी ख़बरें फैलाने का मौका दे रहे हैं.
उन्होंने ट्वीट किया था कि उनका भाषण बिसार दिया जाएगा केवल तस्वीर ही बची रह जाएगी. उन्होंने उम्मीद की कि पूर्व राष्ट्रपति अहसास करेंगे कि भाजपा का ‘डर्टी ट्रिक्स डिपार्टमेंट’ कैसे काम करता है और उन्होंने ऐसे कार्यक्रम में शामिल होने के परिणामों को लेकर उन्हें चेताया.
जयराम रमेश, सीके जाफ़र शरीफ़ समेत कई कांग्रेस नेताओं ने भी उन्हें लिखा जबकि आनंद शर्मा समेत कुछ नेता मुखर्जी को नागपुर नहीं जाने के लिए उन्हें मनाने भी गए थे. कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता आनंद शर्मा ने ट्वीट कर कहा, ‘वरिष्ठ नेता और विचारक प्रणब मुखर्जी की आरएसएस मुख्यालय में तस्वीरों से कांग्रेस के लाखों कार्यकर्ता और भारतीय गणराज्य के बहुलवाद, विविधता एवं बुनियादी मूल्यों में विश्वास करने वाले लोग दुखी हैं.’
उन्होंने कहा, ‘संवाद उन्हीं लोगों के साथ हो सकता है जो सुनने, आत्मसात करने और बदलने के इच्छुक हों. यहां ऐसा कुछ नहीं जिससे पता चलता हो कि आरएसएस अपने मुख्य एजेंडा से हट चुका है. संघ वैधता हासिल करने की कोशिश में है.’
कांग्रेस ने ट्विटर पर एक वीडियो जारी कर कहा कि ‘यह नहीं भूलना चाहिए कि आरएसएस क्या है?’
Today is a very fitting day to bring you all a primer on what the RSS really stands for. pic.twitter.com/m1oQ15nkDJ
— Congress (@INCIndia) June 7, 2018
पार्टी ने कहा, ‘लोगों को याद दिलाने का अच्छा मौका है कि वास्तव में आरएसएस क्या है. अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में आरएसएस ने कभी भाग नहीं लिया. वह ब्रिटिशकाल में हमेशा औपनिवेशिक ताकत के अधीन रहा. 1930 में गांधी जी ने नमक सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया तो हेडगेवार ने यह सुनिश्चित किया कि संघ का इस आंदोलन से कोई लेनादेना नहीं हो.’
पार्टी ने दावा किया कि आरएसएस ने कभी भी तिरंगे का सम्मान नहीं किया और हाल के समय में उन्होंने अपने मुख्यालय पर तिरंगा फहराना शुरू किया.
कांग्रेस ने यह भी दावा किया, ‘गांधी जी की हत्या के बाद आरएसएस के लोगों ने खुशियां मनाईं और मिठाइयां बांटीं थी …..विनायक दामोदर सावरकर ने ब्रिटिश सरकार से माफी मांगी थी और उनके प्रति वफादारी जताई थी. जेल में रहते हुए उन्होंने कई बार दया के लिए लिखा था.’
इससे पहले मुखर्जी तंग गलियों से गुज़रते हुए उस मकान तक पहुंचे जहां हेडगेवार पैदा हुए थे. मकान में प्रवेश से पहले उन्होंने अपने जूते उतारे. वहां आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने उनका स्वागत किया.
मुखर्जी ने आरएसएस मुख्यालय में अपने बहुप्रतीक्षित भाषण से पहले हेडगेवार की जन्मस्थली पर आगंतुक पुस्तिका में लिखा, ‘आज मैं भारत माता के महान सपूत को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने आया हूं.’
सूत्रों के अनुसार, हेडगेवार को श्रद्धांजलि देने से जुड़ी मुखर्जी की यह यात्रा उनके निर्धारित कार्यक्रम का हिस्सा नहीं थी और पूर्व राष्ट्रपति ने अचानक ऐसा करने का निर्णय लिया.
मुखर्जी छह जून की शाम नागपुर पहुंचे थे. आरएसएस ने उन्हें अपने शिक्षा वर्ग को संबोधित करने तथा स्वयंसेवकों के परेड का निरीक्षण करने के लिए निमंत्रित किया था.
यह संघ के स्वयंसेवकों के लिए आयोजित होने वाला तीसरे वर्ष का वार्षिक प्रशिक्षण है. आरएसएस अपने स्वयंसेवकों के लिए प्रथम, द्वितीय और तृतीय वर्ष का प्रशिक्षण शिविर लगाता है.
संघ के लिए कोई बाहरी नहीं, प्रणब को निमंत्रण को लेकर विवाद निरर्थक: भागवत
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर विवाद के बीच संघ प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुवार को कहा कि यह ‘निरर्थक’ बहस है और उनके संगठन के लिए कोई भी बाहरी नहीं है.
भागवत ने मुखर्जी के भाषण से पहले अपने संबोधन में कहा कि कार्यक्रम के बाद मुखर्जी वही रहेंगे जो वह हैं और संघ भी वही रहेगा जो वह है. उन्होंने कहा कि हम भारतीय नागरिकों के बीच भेदभाव नहीं करते. हमारे लिए कोई भी भारतीय नागरिक बाहरी नहीं है. आरएसएस विविधता में एकता में विश्वास करता है.
आरएसएस प्रमुख ने संघ कार्यकर्ताओं को इसको लेकर भी आगाह किया कि विनम्रता के अभाव में सत्ता हानिकारक बन सकती है और नैतिकता के बिना सत्ता अनियंत्रित हो जाती है.
भागवत ने कहा कि अपने कार्यक्रमों में प्रमुख व्यक्तियों को आमंत्रित करना आरएसएस की परंपरा रही है और मुखर्जी के दौरे को लेकर बहस की कोई जरूरत नहीं है.
उन्होंने कहा, ‘हमने उन्हें आमंत्रित किया. उन्होंने हमारी भावनाओं को स्वीकार किया और हमारे आमंत्रण को विनम्रतापूर्वक स्वीकार कर लिया. और अब इसको लेकर चर्चा कि उन्हें क्यों आमंत्रित किया गया और वह क्यों जा रहे हैं. इसका कोई मतलब नहीं है. यह आधारहीन है.’
उन्होंने कहा कि देश की सेवा करने के लिए अलग-अलग दृष्टिकोण या अलग-अलग तरीके हो सकते हैं. हालांकि हम सभी भारत माता के बच्चे हैं.
उन्होंने इसका भी उल्लेख किया कि आरएसएस संस्थापक ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कांग्रेस के आंदोलनों सहित विभिन्न गतिविधियों में हिस्सा लिया.
भागवत ने कहा कि उनका संगठन पूरे समाज को एकजुट करना चाहता है और उसके लिए कोई भी बाहरी नहीं है.
गुरुवार के कार्यक्रम में उपस्थित लोगों में पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के पुत्र सुनील शास्त्री और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के रिश्तेदार अर्द्धेन्दु बोस अपनी पत्नी और बेटे के साथ मौजूद थे.
आरएसएस के प्रचार प्रमुख (आधिकारिक प्रवक्ता) अरुण कुमार ने बताया, ‘मुखर्जी के भाषण ने राष्ट्र के गौरवशाली इतिहास की याद दिलाई… देश की 5,000 साल पुरानी सांस्कृतिक विरासत की याद दिलाई. हमारी राज्य प्रणाली भले ही बदल सकती है लेकिन हमारे मूल्य वही रहेंगे. उन्होंने समावेशी , बहुलवाद और विविधता में एकता को भारत की आत्मा बताया.’
उन्होंने कहा, ‘कार्यक्रम में शामिल होने और संवाद राष्ट्र, राष्ट्रवाद और देशभक्ति की विचारधारा के ही गिर्द रखने के लिये हम लोग उनका धन्यवाद करते हैं.’
मुखर्जी ने संघ को सच का आईना दिखाया, मोदी को राजधर्म की याद दिलाई: कांग्रेस
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के आरएसएस मुख्यालय में संबोधन के बाद कांग्रेस ने गुरुवार को संघ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जमकर निशाना साधा और कहा कि मुखर्जी ने संघ को ‘सच का आईना’ दिखाया एवं नरेंद्र मोदी सरकार को ‘राजधर्म’ की याद दिलाई.
पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने संवाददाताओं से कहा, ‘पूर्व राष्ट्रपति का आरएसएस मुख्यालय का दौरा बड़ी चर्चा का विषय बन गया था. देश की विविधता और बहुलता में विश्वास करने वाले चिंता व्यक्त कर रहे थे. लेकिन आज मुखर्जी ने आरएसएस को सच का आईना दिखाया.’
सुरजेवाला ने कहा कि पूर्व राष्ट्रपति ने नरेंद्र मोदी सरकार को भी राजधर्म की याद दिलाई.
उन्होंने कहा, ‘मुखर्जी ने नागपुर में आरएसएस मुख्यालय में आरएसएस को सच का आईना दिखाया है. उनको बहुलवाद, सहिष्णुता, धर्मनिरपेक्षता और समग्रता के बारे में पाठ पढ़ाया है.’
उन्होंने कहा, ‘मुखर्जी ने वर्तमान मोदी सरकार को ‘राजधर्म’ की याद दिलाई. उन्होंने बताया कि मोदी सरकार हमारी विविधता, गैर-हिंसा, बहुसंस्कृतिवाद और विचारों को आत्मसात करे. उन्होंने विशेष रूप से प्रधानमंत्री को याद दिलाया कि लोगों की खुशी में ही राजा का सुख है, उनका कल्याण ही उसका कल्याण है.’
कांग्रेस नेता ने सवाल किया, ‘क्या आरएसएस मुखर्जी की नसीहत को सुनने और मानने के लिए तैयार है? क्या वह अपने भीतर परिवर्तन के लिए तैयार है? क्या आरएसएस बहुलवाद, सहनशीलता, अहिंसा, धर्मनिरपेक्षता और विविधता के मूल्यों को स्वीकारने को तैयार है?’
उन्होंने पूछा, ‘क्या वह दलितों, अल्पसंख्यकों और वंचितों के ये पूर्वाग्रह त्याग देने के लिए तैयार है? क्या वह वैज्ञानिक सोच को मानेगी?’
उन्होंने कहा कि मोहन भागवत को इन सवालों का जवाब देना चाहिए.
मुखर्जी द्वारा अतिथि पुस्तिका में आरएसएस के संस्थापक हेडगेवार को ‘भारत मां का महान सपूत’ बताने के बारे में सुरजेवाला ने कहा कि व्यक्ति अगर कोई औपचारिकता के लिए कहता है तो उसे ज्यादा महत्व नहीं दिया जाना चाहिए, बल्कि जो बातें उन्होंने भाषण में कही हैं, वो अहम हैं.
सुरजेवाला ने स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े कुछ वाकयों का ज़िक्र करते हुए दावा किया कि आरएसएस का भारत की आज़ादी की लड़ाई में कोई योगदान नहीं है.
वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने आज कहा कि मुखर्जी के नैतिक बल, विवेक और धर्मनिरपेक्ष संवैधानिक लोकतंत्र को बुलंद रखने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर कभी संदेह नहीं रहा और नागपुर में संबोधन के बाद उनका कद पहले से और ऊंचा हो गया है.
शर्मा ने ट्वीट किया, ‘प्रणाम प्रणब दा. नागपुर से आप पहले से भी अधिक कद्दावर बनकर निकले हैं. आपके किरदार, नैतिक बल, विवेक और धर्मनिरपेक्ष संवैधानिक लोकतंत्र को बुलंद रखने के प्रति आपकी प्रतिबद्धता पर कभी संदेह नहीं था.’
उन्होंने कहा, ‘आपने आरएसएस को भारत के बहुलवाद की समृद्धि और विविधता के बारे में बताया. आशा करता हूं कि वे आपके संदेश को आत्मसात करेंगे.’
मुखर्जी के कल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रम में पहुंचने के बाद शर्मा ने कहा था कि संघ मुख्यालय में पूर्व राष्ट्रपति की तस्वीरें देखकर पार्टी के लाखों कायकर्ताओं और भारतीय गणराज्य के बहुलवाद, विविधता एवं बुनियादी मूल्यों में विश्वास करने वालों को दुख हुआ है.
He would have done well to remind the RSS of its own history – banned thrice by Congress governments, first time by Sardar Patel, following Mahatma Gandhi's assassination. "RSS men expressed joy and distributed sweets after Gandhiji’s death", Patel wrote to Golwalkar.
— Sitaram Yechury (@SitaramYechury) June 7, 2018
मुखर्जी संघ को उसका इतिहास याद दिलाते तो अच्छा होता: येचुरी
माकपा ने गुरुवार को कहा कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी यदि संघ को उसका इतिहास याद दिलाते तो अच्छा होता जबकि भाकपा ने बहुलतावादी और समग्र समाज को असल भारत के रूप में उल्लेखित करने के लिए उनके भाषण की सराहना की.
नागपुर में आरएसएस के एक कार्यक्रम में मुखर्जी के भाषण पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या का अपने भाषण के दौरान ज़िक्र नहीं करने के लिए उनसे (मुखर्जी) से सवाल किया.
माकपा नेता ने ट्वीट किया कि मुखर्जी को आरएसएस को उसका इतिहास याद दिलाना चाहिए था.
वहीं दूसरी ओर भाकपा ने मिली-जुली प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उनका भाषण अपेक्षा के अनुरूप ही था.
भाकपा नेता डी. राजा ने कहा, ‘हालांकि हमारा मानना है कि उन्हें आरएसएस के कार्यक्रम में नहीं जाना चाहिए था लेकिन प्रणब दा ने अपने भाषण में जो कुछ कहा, उनसे उसी की उम्मीद थी.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)