विकसित देश बनने के लिए सिर्फ़ एक दशक का समय, ​शिक्षा पर ध्यान देने की ज़रूरत: एसबीआई

भारतीय स्टेट बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि नीति-निर्माताओं को अंदाज़ा होना चाहिए कि भारत के पास विकसित देश बनने के लिए थोड़ा समय है जिसमें यह अपना दर्जा बढ़ा सकता है नहीं तो हमेशा के लिए उभरती अर्थव्यवस्थाओं की श्रेणी में अटका रहेगा.

More than 100,000 employees of a company attempt to create a new world record by singing the national anthem together in the northern Indian city of Lucknow on May 6, 2013. Pawan Kumar / Reuters

भारतीय स्टेट बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि नीति-निर्माताओं को अंदाज़ा होना चाहिए कि भारत के पास विकसित देश बनने के लिए थोड़ा समय है, जिसमें यह अपना दर्जा बढ़ा सकता है नहीं तो हमेशा के लिए उभरती अर्थव्यवस्थाओं की श्रेणी में अटका रहेगा.

More than 100,000 employees of a company attempt to create a new world record by singing the national anthem together in the northern Indian city of Lucknow on May 6, 2013. Pawan Kumar / Reuters
(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

मुंबई: भारत के पास अपनी स्थिति को बदलकर विकसित देशों की कतार में शामिल होने के लिए सिर्फ एक दशक का वक्त है. इसके लिए भारत को शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता होगी. अगर वह इस मोर्चे पर विफल हुआ तो देश की युवा आबादी का लाभ नुकसान में बदल जाएगा. भारतीय स्टेट बैंक की शोध शाखा ने अपनी रिपोर्ट में यह बात कही.

रिपोर्ट के अनुसार, नीति-निर्माताओं को इस बात का अंदाजा होना चाहिए कि भारत के पास विकसित देश का सेहरा पहनने के लिए बहुत थोड़ा समय है जिसमें यह अपना दर्जा बढ़ा सकता है या फिर हमेशा के लिए उभरती अर्थव्यवस्थाओं की श्रेणी में अटका रहेगा.

रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार और नीति-निर्माताओं को युवा पीढ़ी पर ध्यान केंद्रित करना सुनिश्चित करना होगा ताकि वे अच्छे नागरिक बन सकें.

साथ ही जनसांख्यिकीय लाभांश को समझने और अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए शिक्षा में निवेश करना चाहिए.

बैंक ने चेताया, ‘देश का जनसांख्यिकी लाभांश, जो कि उसकी ताकत है वास्तव में 2030 तक उसके लिए नुकसानदायक हो सकती है.’

जनसंख्या वृद्धि की प्रवृत्ति दर्शाती है कि पिछले दो दशकों में वृद्धिशील जनसंख्या वृद्धि स्थिर बनी हुई है और लगभग 18 करोड़ है और राज्यों में प्रजनन दर में काफी विधितता है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि कर्नाटक, जहां जन्म दर में पिछले कुछ वर्षों में गिरावट रही है वहां पर 60 वर्ष से अधिक लोगों की हिस्सेदारी 2011 में बढ़कर 9.5 प्रतिशत हो गई, जो कि 1971 में 6.1 प्रतिशत थी. कर्नाटक शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत पर जोर देने के लिए हमें प्रेरित करने के मामले में सबसे अच्छा प्रतिनिधि है.

धीमी जनसंख्या वृद्धि के परिणामस्वरूप लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों के बदले निजी स्कूलों में पढ़ाना पसंद कर रहे हैं. हालांकि अभी भी बड़ी आबादी सरकारी स्कूलों पर निर्भर है.

इस स्थिति में राज्यों के सभी सरकारी स्कूलों की स्थिति में सुधार करने का समय है.

एसबीआई के अर्थशास्त्रियों ने सुझाव दिया है कि शिक्षा के अधिकार के तहत निजी स्कूलों को फंड जारी करना रोका जाए और उसे सरकारी स्कूलों के आधारभूत ढांचे के बेहतर बनाने में खर्च किया जाए.

रिपोर्ट में कहा गया है कि क्लासरूस को बेहतर बनाने, पढ़ाई का माध्यम अंग्रेजी को बनाने पर अधिक ध्यान देने और शिक्षित एवं योग्य शिक्षकों को अच्छे वेतन के साथ नियुक्त करने की जरूरत है जिन पर जनगणना सर्वे जैसे दायित्व न थोपे जाएं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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