जम्मू कश्मीर सरकार में शामिल भाजपा के सभी मंत्रियों और कुछ शीर्ष नेताओं की दिल्ली में राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के साथ हुई महत्वपूर्ण बैठक के बाद प्रदेश में तीन साल पुराना पीडीपी-भाजपा गठबंधन टूट गया है.
नई दिल्ली/श्रीनगर: भाजपा द्वारा मंगलवार को पीडीपी से समर्थन वापस ले लिए जाने के बाद जम्मू कश्मीर में तीन साल पुरानी महबूबा मुफ़्ती सरकार गिर गई.
सरकार से भाजपा के समर्थन वापसी के बाद महबूबा मुफ्ती ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद राज्य में एक बार फिर राज्यपाल शासन लागू होना तय है.
श्रीनगर में राज भवन के एक प्रवक्ता के मुताबिक, राज्यपाल एनएन वोहरा ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को भेजी गई अपनी रिपोर्ट में केंद्रीय शासन लागू करने की सिफारिश की है. रिपोर्ट की एक प्रति केंद्रीय गृह मंत्रालय को भी भेजी गई है.
गौरतलब है कि राष्ट्रपति कोविंद अभी आधिकारिक विदेश यात्रा पर हैं.
भाजपा महासचिव राम माधव ने ऐलान किया कि पार्टी गठबंधन सरकार से समर्थन वापस ले रही है. इस ऐलान से पहले पार्टी आलाकमान ने जम्मू कश्मीर सरकार में अपने मंत्रियों को आपातकालीन विचार-विमर्श के लिए नई दिल्ली बुलाया था.
इस ऐलान के बाद श्रीनगर और नई दिल्ली में बढ़ी राजनीतिक हलचल के बीच महबूबा मुफ्ती (59) ने कुछ ही घंटे बाद राज्यपाल एनएन वोहरा को मुख्यमंत्री पद से अपना इस्तीफा सौंप दिया.
माधव ने आनन-फानन में बुलाए गए संवाददाता सम्मेलन में पत्रकारों को बताया, ‘राज्य की गठबंधन सरकार में बने रहना भाजपा के लिए जटिल हो गया था.’
अधिकारियों ने बताया कि वोहरा ने महबूबा को बताया कि पीडीपी के साथ गठबंधन से भाजपा अलग हो गई है जिससे उनके कार्यकाल का अचानक अंत हो गया है.
गौरतलब है कि जम्मू कश्मीर में पीडीपी और भाजपा की सरकार 19 जनवरी 2015 में बनी थी लेकिन दोनों पार्टियों का यह गठबंधन अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया. महबूबा ने अपने पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन के बाद चार अप्रैल 2016 को मुख्यमंत्री पद संभाला था.
माधव ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से विचार-विमर्श करने के बाद गठबंधन सरकार से समर्थन वापस लेने का फैसला किया गया.
कश्मीर घाटी के हालात में सुधार नहीं होने के लिए भाजपा ने पीडीपी पर ठीकरा फोड़ा.
माधव ने पिछले हफ़्ते श्रीनगर के कड़ी सुरक्षा वाले प्रेस एनक्लेव इलाके में जाने-माने पत्रकार शुजात बुख़ारी की अज्ञात हमलावरों द्वारा की गई हत्या का भी ज़िक्र किया. उसी दिन ईद की छुट्टियों पर जा रहे थलसेना के जवान औरंगज़ेब को अगवा कर लिया गया था और फिर उनकी हत्या कर दी गई थी. ये दोनों घटनाएं ईद से दो दिन पहले हुईं.
माधव ने कहा, ‘यह ध्यान में रखते हुए कि जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और राज्य में मौजूदा हालात पर काबू पाना है, हमने फैसला किया है कि राज्य में सत्ता की कमान राज्यपाल को सौंप दी जाए.’
भाजपा नेता ने कहा कि आतंकवाद, हिंसा और कट्टरता बढ़ गई है और जीवन का अधिकार, स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार सहित नागरिकों के कई मौलिक अधिकार ख़तरे में हैं.
वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा कि केंद्र सरकार ने राज्य सरकार की हर तरह से मदद की लेकिन जम्मू कश्मीर सरकार पूरी तरह से असफल रही. जम्मू और लद्दाख में विकास का काम भी नहीं हुआ. कई विभागों ने काम की दृष्टि से अच्छा काम नहीं किया.
उन्होंने कहा, ‘रमजान के महीने में हमने सीजफायर कर दिया था. हमें उम्मीद थी कि राज्य में इसका अच्छा असर दिखेगा. यह कोई हमारी मजबूरी नहीं थी. न तो इसका असर आतंकवादियों पर पड़ा और न हुर्रियत पर.’
माधव ने कहा, ‘केंद्र ने घाटी के लिए सब कुछ किया. हमने पाकिस्तान की ओर से किए जा रहे संघर्ष-विराम उल्लंघन पर पूर्ण विराम लगाने की कोशिश की. पीडीपी अपने वादे पूरे करने में सफल नहीं रही. जम्मू और लद्दाख में विकास कार्यों को लेकर हमारे नेताओं को पीडीपी से काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था.’
उन्होंने कहा, ‘हम पीडीपी की मंशा पर सवाल नहीं उठा रहे, लेकिन कश्मीर में जीवन की दशा सुधारने में वे नाकाम रहे.’
महबूबा मुफ्ती ने जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 और एकतरफा संघर्ष विराम का मुद्दा उठाते हुए कहा कि राज्य में ‘बाहुबल वाली सुरक्षा नीति’ नहीं चलेगी और मेल-मिलाप से काम लेना होगा.
मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के बाद अपने आवास पर मंत्रियों एवं पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ चली एक घंटे लंबी बैठक के बाद महबूबा ने कहा, ‘मैं हैरान नहीं हूं क्योंकि यह गठबंधन कभी सत्ता के लिए था ही नहीं. पीडीपी कभी सत्ता की राजनीति में यकीन नहीं रखती और हमने लोगों के लिए काम किया.’
महबूबा ने कहा कि जम्मू कश्मीर कोई दुश्मन क्षेत्र नहीं है, जैसा कि कुछ लोग मानते हैं.
उन्होंने कहा, ‘हमने हमेशा कहा है कि बाहुबल वाली सुरक्षा नीति जम्मू कश्मीर में नहीं चलेगी. मेलमिलाप से काम लेना होगा.’
राज्य विधानसभा में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने इस पूरे वाकये पर एक पंक्ति में अपनी बात कही, ‘पैरों के नीचे से गलीचा खींच लिए जाने की बजाय काश महबूबा मुफ़्ती ने ख़ुद ही इस्तीफ़ा दे दिया होता.’
उमर और कांग्रेस दोनों ने कहा कि वे राज्य में सरकार बनाने के लिए किसी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करेंगे. भाजपा ने भी कहा कि वह राज्यपाल शासन के पक्ष में है.
राज्य में यदि राज्यपाल शासन लगाया गया तो यह 2008 के बाद चौथा और 1977 के बाद आठवां मौका होगा जब राज्य में राज्यपाल शासन लागू किया जाएगा.
भाजपा और पीडीपी ने विधानसभा चुनावों के दौरान एक-दूसरे के ख़िलाफ़ जमकर प्रचार किया था, लेकिन बाद में ‘गठबंधन का एजेंडा’ तैयार कर इस उम्मीद से सरकार बनाई कि राज्य को हिंसा के कुचक्र से बाहर लाने में मदद मिलेगी. लेकिन शासन पर इस गठबंधन की पूरी पकड़ कभी नहीं हो पाई और दोनों पार्टियां ज़्यादातर मुद्दों पर असहमत रहीं. इस बीच, राज्य में सुरक्षा हालात बिगड़ते रहे.
माधव के संवाददाता सम्मेलन के तुरंत बाद पीडीपी के वरिष्ठ मंत्री और पार्टी के मुख्य प्रवक्ता नईम अख़्तर ने श्रीनगर में पत्रकारों से कहा कि भाजपा के फैसले से उनकी पार्टी हैरान है.
जम्मू कश्मीर के उप-मुख्यमंत्री एवं भाजपा नेता कविंदर गुप्ता ने दिल्ली में पत्रकारों से कहा कि उन्होंने और उनके मंत्रियों ने राज्यपाल और मुख्यमंत्री को अपने इस्तीफ़े सौंप दिए हैं.
इससे पहले भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने जम्मू कश्मीर सरकार में शामिल पार्टी के सभी मंत्रियों और कुछ शीर्ष नेताओं को महत्वपूर्ण बैठक के लिए नई दिल्ली बुलाया था. कश्मीर के इन नेताओं के साथ अमित शाह ने दोपहर 12 बजे पार्टी कार्यालय पर बैठक की.
गौरतलब है कि पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार बनी है तब से दोनों पार्टियों में टकराव देखने को मिलता रहा है. महबूबा मुफ्ती का जम्मू-कश्मीर में आफ्सपा को हटाने की मांग करना, पीडीपी का अलगावादियों से बातचीत का वादा करना और जीएसटी लागू करने के मुद्दे पर यह टकराव साफ देखने को मिला.
महबूबा मुफ्ती ने राज्यपाल को इस्तीफा सौंपा
गठबंधन सहयोगी भाजपा ने सत्तारूढ़ गठबंधन से समर्थन वापस लेने के बाद जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती अपना इस्तीफा राज्यपाल एनएन वोहरा को सौंप दिया.पीडीपी के वरिष्ठ नेता नईम अख्तर ने बताया कि मुख्यमंत्री ने अपना इस्तीफा राज्यपाल को सौंप दिया है.
कश्मीर में चार दशक में आठवीं बार राज्यपाल शासन लागू होगा!
पीडीपी-भाजपा गठबंधन के टूटने के बाद जम्मू कश्मीर में पिछले 40 साल में आठवीं बार राज्यपाल शासन लागू होने की संभावना प्रबल हो गयी है. अगर ऐसा होता है तो एनएन वोहरा के राज्यपाल रहते यह चौथा मौका होगा जब राज्य में केंद्र का शासन होगा. पूर्व नौकरशाह वोहरा 25 जून, 2008 को जम्मू कश्मीर के राज्यपाल बने थे.
विडंबना यह भी है कि निवर्तमान मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के दिवंगत पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद की उन राजनीतिक घटनाक्रमों में प्रमुख भूमिका थी, जिस कारण राज्य में सात बार राज्यपाल शासन लागू हुआ.
पिछली बार मुफ्ती सईद के निधन के बाद आठ जनवरी, 2016 को जम्मू कश्मीर में राज्यपाल का शासन लागू हुआ था. उस दौरान पीडीपी और भाजपा ने कुछ समय के लिए सरकार गठन को टालने का निर्णय किया था.
तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से संस्तुति मिलने पर जम्मू कश्मीर के संविधान की धारा 92 को लागू करते हुए वोहरा ने राज्य में राज्यपाल शासन लगाया था.
जम्मू कश्मीर में मार्च 1977 को पहली बार राज्यपाल शासन लागू हुआ था. उस समय एलके झा राज्यपाल थे. सईद की अगुवाई वाली राज्य कांग्रेस ने नेशनल कांफ्रेंस के नेता शेख महमूद अब्दुल्ला की सरकार से समर्थन वापस ले लिया था, जिसके बाद राज्यपाल शासन लागू करना पड़ा था.
मार्च 1986 में एक बार फिर सईद के गुलाम मोहम्मद शाह की अल्पमत की सरकार से समर्थन वापस लेने के कारण राज्य में दूसरी बार राज्यपाल शासन लागू करना पड़ा था.
इसके बाद राज्यपाल के रूप में जगमोहन की नियुक्ति को लेकर फारूक अब्दुल्ला ने मुख्यमंत्री के पद से त्यागपत्र दे दिया था. इस कारण सूबे में तीसरी बार केंद्र का शासन लागू हो गया था. सईद उस दौरान केंद्रीय गृह मंत्री थे और उन्होंने जगमोहन की नियुक्ति को लेकर अब्दुल्ला के विरोध को नजरंदाज कर दिया था. इसके बाद राज्य में छह साल 264 दिन तक राज्यपाल शासन रहा, जो सबसे लंबी अवधि है.
इसके बाद अक्तूबर, 2002 में चौथी बार और 2008 में पांचवीं बार केंद्र का शासन लागू हुआ. राज्य में छठीं बार साल 2014 में राज्यपाल शासन लागू हुआ था.
पीडीपी से हाथ मिलाने का कोई सवाल नहीं: आजाद
जम्मू कश्मीर में महबूबा मुफ्ती सरकार से भाजपा के अलग होने के बाद कांग्रेस ने कहा कि उसका पीडीपी के साथ हाथ मिलाने का कोई सवाल ही नहीं है. पार्टी के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने संवाददाताओं से कहा कि भाजपा ने पीडीपी के साथ गठबंधन सरकार बनाकर ‘बहुत बड़ी गलती’ की थी.
उन्होंने कहा कि भाजपा एक राष्ट्रीय पार्टी है और उसे पीडीपी के साथ गठबंधन नहीं करना चाहिए था. आजाद ने कहा, ‘क्षेत्रीय पार्टियों को आपस में गठबंधन के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए था.’
कांग्रेस नेता ने कहा कि इस गठबंधन ने राज्य को आर्थिक और सामाजिक रूप से तबाह कर दिया और जम्मू कश्मीर को ‘बदहाली’ की स्थिति में छोड़ दिया.
And so it has come to pass……..
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) June 19, 2018
दूसरी ओर नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अबदुल्ला ने पीडीपी-भाजपा गटबंधन टूटने पर कहा कि …आखिरकार ड्रामे का अंत हुआ. पीडीपी-भाजपा गठबंधन के टूटने के बाद उन्होंने जम्मू कश्मीर के राज्यपाल एनएन वोहरा से मुलाकात की है. नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर ने कहा कि भाजपा ने जिस समय पर यह फैसला किया है , उससे उन्हें हैरानी हुई है. अपनी पार्टी को राज्यपाल शासन लागू करने और फिर जल्द चुनाव कराने के पक्ष में बताते हुए उमर ने कहा, ‘हमें 2014 में जनादेश नहीं मिला था और 2018 में भी हमारे पास जनादेश नहीं है.’
क्या है सीटों का गणित
भाजपा द्वारा सत्तारूढ़ गठबंधन से समर्थन वापसी के बाद प्रदेश में एक बार फिर से सीटों के गणित का आंकड़ा महत्वपूर्ण हो गया है. दिसंबर 2014 में जम्मू कश्मीर की 87 सदस्यीय विधानसभा के लिए हुए चुनावों में भाजपा को 25, पीडीपी को 28, नेशनल कांफ्रेंस को 15, कांग्रेस को 12 और अन्य को सात सीटें मिली थीं. इन चुनावों के दो महीने बाद पीडीपी और भाजपा ने राज्य में गठबंधन सरकार बना ली थी.
भाजपा और पीडीपी ने विधानसभा चुनावों के दौरान एक दूसरे के खिलाफ जमकर प्रचार किया था, लेकिन बाद में ‘गठबंधन का एजेंडा’ तैयार कर इस उम्मीद से सरकार बनाई कि राज्य को हिंसा के कुचक्र से बाहर लाने में मदद मिलेगी. लेकिन शासन पर इस गठबंधन की पूरी पकड़ कभी नहीं हो पाई और दोनों पार्टियां ज्यादातर मुद्दों पर असहमत रहीं. इस बीच, राज्य में सुरक्षा हालात बिगड़ते रहे.
जम्मू कश्मीर में भाजपा-पीडीपी सरकार से जुड़ा राजनीतिक घटनाक्रम
28 दिसंबर, 2014: विधानसभा चुनाव परिणामों की घोषणा, त्रिशंकु विधानसभा. 87 सदस्यीय विधानसभा में पीडीपी 28 सीट के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, भाजपा को 25, नेशनल कॉन्फ्रेंस को 15 और कांग्रेस को 12 सीट प्राप्त हुए.
28 दिसंबर, 2014: जम्मू कश्मीर में राज्यपाल शासन लागू किया गया. पीडीपी और भाजपा के बीच गठबंधन को लेकर बातचीत. गठबंधन के एजेंडा-साझा न्यूनतम कार्यक्रम को अंतिम रूप देने के लिए दो महीने तक विचार-विमर्श किया गया.
01 मार्च, 2015: मुफ़्ती मोहम्मद सईद ने दूसरी बार जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. राज्य में राज्यपाल शासन समाप्त हुआ.
07 जनवरी, 2016: मुफ़्ती सईद का बीमारी के कारण नई दिल्ली स्थित एम्स में निधन.
08 जनवरी, 2016: गठबंधन जारी रखने को लेकर भाजपा-पीडीपी में स्थिति स्पष्ट नहीं होने के कारण फिर से राज्यपाल शासन लागू किया गया. पीडीपी ने गठबंधन के एजेंडे को लागू करने को लेकर अपनी आपत्ति ज़ाहिर की, सरकार चलाने के लिए अनिच्छुक दिखी और राज्यपाल शासन जारी रहा.
22 मार्च, 2016: महबूबा मुफ़्ती ने नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की. बैठक के बाद उन्होंने ऐलान किया कि वह केंद्र के आश्वासन से संतुष्ट हैं.
04 अप्रैल, 2016: महबूबा मुफ्ती ने राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली.
05 अप्रैल, 2016: भारत और पाकिस्तान के बीच एक क्रिकेट मैच के बाद स्थानीय छात्रों और दूसरी जगहों के छात्रों के बीच झड़प के बाद श्रीनगर के राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान में संकट की स्थिति उत्पन्न हुई.
08 जुलाई, 2016: हिज्बुल मुजाहिद्दीन का आतंकी बुरहान वानी दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग ज़िले के कोकेरनाग इलाके में सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मारा गया. वानी की मौत को लेकर पीडीपी-भाजपा के बीच मतभेद देखने को मिला. आतंकी की हत्या के बाद हुए प्रदर्शनों के हिंसक रूप लेने के कारण 85 लोगों की जान गई.
09 मई, 2018: महबूबा मुफ़्ती ने मुठभेड़ स्थलों के निकट नागिरकों के मारे जाने के मामलों में वृद्धि को देखते हुए सर्वदलीय बैठक बुलाई. बैठक के बाद मुख्यमंत्री ने वर्ष 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी की तत्कालीन सरकार द्वारा घोषित संघर्ष विराम की तर्ज पर ऐसा करने का आह्वान किया. भाजपा नेता और उपमुख्यमंत्री कविंदर गुप्ता ने इसका विरोध किया.
17 मई, 2018: केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने जम्मू कश्मीर में एक माह तक आतंकियों के खिलाफ अभियान को निलंबित रखने का ऐलान किया.
17 जून, 2018: राजनाथ सिंह ने ऐलान किया कि केंद्र एकतरफा संघर्ष विराम को जारी नहीं रखेगा. उन्होंने कहा कि संघर्ष विराम की अवधि के दौरान आतंकी घटनाओं में वृद्धि को देखते हुए आतंकवाद-रोधी अभियान को फिर से शुरू किया जाएगा.
18 जून, 2018: भाजपा आलाकमान ने जम्मू कश्मीर सरकार में शामिल भाजपा के सभी मंत्रियों को दिल्ली तलब किया.
19 जून, 2018: भाजपा ने गठबंधन सरकार से समर्थन वापस लिया. मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने त्यागपत्र दिया. राज्य एक बार फिर से राज्यपाल शासन लागू हो गया.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)