आरटीआई कार्यकर्ता राजेंद्र सिंह ने एलआईसी घोटाला, इंदिरा आवास योजना के अलावा शिक्षक व पुलिस विभाग में नियुक्ति घोटाले का खुलासा किया था. दो महीने में दूसरे आरटीआई कार्यकर्ता की हत्या.
बिहार के पूर्वी चंपारण जिले के पिपराकोठी थाना क्षेत्र में मंगलवार को सूचना का अधिकार (आरटीआई) कार्यकर्ता राजेंद्र सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई. उन्होंने एलआईसी घोटाला, इंदिरा आवास योजना और शिक्षक व पुलिस विभाग में नियुक्ति घोटाले का खुलासा आरटीआई के ज़रिये किया था.
दैनिक भास्कर की ख़बर के अनुसार, सोमवार को आरटीआई कार्यकर्ता राजेंद्र सिंह अपनी पंचायत के पूर्व सरपंच राकेश सिंह की बेटी के तिलक में शामिल होने मोतीहारी आए थे. मंगलवार को मोतीहारी कोर्ट में एक केस की तारीख भी थी, जहां से पैरवी कर वह अपनी बाइक से अपने घर संग्रामपुर जा रहे थे.
रतनपुर-मठ बनवारी के बीच बाइक सवार अपराधियों ने ओवरटेक कर उनपर अंधाधुंध फायरिंग की. राजेंद्र को तीन गोलियां लगीं. एक गोली सीने व दो पेट में लगीं. पुलिस ने मैगजीन बरामद की है. उन्हें मोतीहारी सदर अस्पताल ले जाया गया जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.
दैनिक भास्कर के अनुसार, राजेंद्र सिंह की पत्नी के बयान के आधार पर ओम प्रकाश कुमार उर्फ सुभाष यादव, सत्येंद्र सिंह, सुधांशु कुमार सिंह, अजय सिंह उर्फ मुलु सिंह, प्रमोद कुमार सिंह उर्फ चुन्नू सिंह के ख़िलाफ़ नामजद प्राथमिकी दर्ज की गई है. वहीं इंडियन एक्सप्रेस ने मामले में पांच नामज़द और सात अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ केस दर्ज होने की बात कही है.
उनकी पत्नी ने थानाध्यक्ष चंदन कुमार पर पैसा लेकर पति के विरोधियों को संरक्षण देने का आरोप लगाया है. उन्होंने यह भी बताया कि 15 दिन पहले उनके पति की अनुपस्थिति में सत्येंद्र सिंह सहित उनके सहयोगियों ने 20 महत्वपूर्ण फाइल घर से जबर्दस्ती लेकर चले गए थे. इस बात की जब प्राथमिकी दर्ज कराने की बात हुई तो थानाध्यक्ष और डीएसपी ने मामले को रफा-दफा करने का प्रयास किया.
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में डीएसपी (सदर) मुरली मनोहर मांझी ने बताया, ‘घटनास्थल से राजेंद्र सिंह के दो मोबाइल फोन बरामद किए गए हैं. गोली लगने के कुछ मिनट पहले उन्होंने किसी से फोन पर बात भी की थी. मामले की जांच जारी है.’
बिहार में दो महीने के अंतराल पर दूसरे आरटीआई कार्यकर्ता की हत्या का मामला सामने आया है. राजेंद्र सिंह से पहले बीते चार अप्रैल को वैशाली ज़िले में आरटीआई कार्यकर्ता जयंत कुमार की हत्या कर दी गई थी. रिपोर्ट के अनुसार, विभिन्न योजनाओं से जुड़ी जानकारियां मांगने की वजह से जयंत ने वैशाली और मुज़फ़्फ़रपुर ज़िले में तैनात तमाम सरकारी अधिकारियों की नाराज़गी मोल ले ली थी.
बहरहाल एलआईसी घोटाला, इंदिरा आवास योजना में फंड का दुरुपयोग के अलावा शिक्षकों और पुलिस विभाग की नियुक्ति में हुए घोटालों की वजह से राजेंद्र सिंह पूर्वी चंपारण ज़िले में काफी चर्चित थे.
राजेंद्र की मुहिम का काफ़ी प्रभाव था, उनके द्वारा मांगी गई सूचना के बाद शिक्षा विभाग में फर्जी प्रमाणपत्रों के आधार पर नौकरी कर रहे चार शिक्षकों ने स्वयं इस्तीफा दे दिया था तो कइयों का नियोजन भी रद्द किया गया था. इनके द्वारा की गई जांच और आरटीआई के माध्यम से मिले जवाबों के आधार पर कई मामलों में प्राथमिकी भी दर्ज की गई है.
राजेंद्र सिंह के दामाद आरके सिंह ने बताया, ‘राजेंद्र सिंह पर पिछले साल एक अज्ञात व्यक्ति द्वारा हमला किया गया था, जिसमें वह बाल-बाल बच गए थे. 2015 में एक जीप से कुछ लोगों ने उन्हें टक्कर मारी थी और 2012 में भी उनके घर में ही कुछ लोगों ने उन पर हमला कर दिया था.’
इन हमलों के बाद राजेंद्र सिंह ने सुरक्षा की मांग की थी लेकिन अधिकारियों ने उनके आवेदनों को लगातार नजरअंदाज किया था.
द टेलीग्राफ़ सूत्रों के हवाले से बताया है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति में अनियमितताओं को लेकर तत्कालीन ब्लॉक शिक्षा अधिकारी परमानंद कुमार के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी. नवंबर 2017 में पटना उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद उन्हें जेल भेजा गया.
वहीं कार्यवाहक पुलिस अधीक्षक क्षत्रनील सिंह कहा कि आरटीआई कार्यकर्ता होने के अलावा राजेंद्र का संपत्ति से संबंधित भी विवाद चल रहा था.