आपातकाल लागू होने के दिन इस्तीफ़ा देने पर घनश्याम तिवाड़ी ने कहा कि पिछले चार साल से देश अघोषित आपातकाल के दौर से गुज़र रहा है.
विधानसभा चुनाव के मुहाने पर खड़े राजस्थान में सत्ताधारी भाजपा को तगड़ा झटका लगा है. छठी बार विधायक बने घनश्याम तिवाड़ी ने पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया है.
तिवाड़ी ने पिछले चार साल से मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के ख़िलाफ़ बग़ावत का झंडा बुलंद कर रखा था, लेकिन पार्टी उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करने से कतरा रही थी.
घनश्याम तिवाड़ी आगामी विधानसभा चुनाव में ‘भारत वाहिनी पार्टी’ की कमान संभालेंगे, जिसके संस्थापक उनके बेटे अखिलेश तिवाड़ी हैं. चुनाव आयोग ने 20 जून को ही इसे मान्यता प्रदान की है.
घनश्याम तिवाड़ी ने घोषणा की है कि वे ख़ुद अपनी निवर्तमान सीट सांगानेर से चुनाव लड़ेंगे जबकि उनकी ‘भारत वाहिनी पार्टी’ प्रदेश की सभी 200 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ी करेगी.
भाजपा से इस्तीफ़ा देते हुए तिवाड़ी ने पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे पर कई गंभीर आरोप लगाए.
उन्होंने कहा, ‘प्रदेश की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और राज्य सरकार खुलकर भ्रष्टाचार कर रही हैं. मैंने कई बार पार्टी नेतृत्व को इससे अवगत कराया, लेकिन वे कार्रवाई करने की बजाय इन्हें प्रश्रय दे रहे हैं. पार्टी के ही आला नेताओं की छत्रछाया में राज्य सरकार ने लूट मचा रखी है.’
तिवाड़ी ने आगे कहा, ‘राजस्थान के लोगों ने कांग्रेस से परेशान होकर भाजपा को प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता सौंपी थी. यही नहीं प्रदेश की जनता ने भाजपा को 25 लोकसभा की सीटें भी सौंपी, लेकिन आज राजस्थान की जनता ख़ुद को ठगा हुआ महसूस कर रही है. आज समाज का हर तबका परेशान है और कोई सुनने वाला नहीं है.’
आपातकाल के दिन भाजपा को छोड़ पार्टी को संकटकाल में डालने वाले तिवाड़ी ने यहां तक कह दिया कि देश में चार साल से अघोषित आपतकाल लगा हुआ है.
उन्होंने कहा, ‘अघोषित आपातकाल वास्तविक आपातकाल से ज़्यादा ख़तरनाक है. मैंने दोनों ही दौर देखे हैं और मैं इसके ख़िलाफ़ लड़ने के लिए भाजपा को छोड़ा है. अब मैं इस अघोषित आपातकाल के विरूद्ध आवाज़ उठाऊंगा और सुनिश्चित करूंगा कि कोई भी सत्ता के लालच में लोकतांत्रिक संस्थानों का गला नहीं घोट सके.’
चुनाव से ऐन पहले एक कद्दावर नेता का पार्टी छोड़ना भाजपा के लिए बड़ा झटका है, लेकिन पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी ऐसा नहीं मानते.
परनामी कहते हैं, ‘भाजपा दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है. किसी एक नेता के पार्टी छोडने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा. पहले भी कई नेताओं ने भाजपा छोड़ी है, लेकिन जनता ने उन्हें तवज्जो नहीं दी. घनश्याम तिवाड़ी पर अनुशासनहीनता का आरोप था. अच्छा हुआ उन्होंने ख़ुद ने ही पार्टी छोड़ दी.’
असल में घनश्याम तिवाड़ी का यह क़दम भाजपा के प्रदेश नेतृत्व के उम्मीद के अनुरूप ही है. पार्टी नहीं चाहती थी कि उसे तिवाड़ी को पार्टी से निष्काषित करना पड़े और वे इसका राजनीतिक लाभ लें.
यही वजह है कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी के ख़िलाफ़ कई बार सार्वजनिक बयान देने के बाद भी पार्टी उनके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की. उन्हें नोटिस ज़रूर दिया, लेकिन उनके जवाब को ठंडे बस्ते में डाल दिया.
पार्टी की इस रणनीति को वरिष्ठ पत्रकार ओम सैनी दुरुस्त ठहराते हैं. वे कहते हैं, ‘पिछले दो-तीन साल से यह साफ़ दिख रहा था कि भाजपा के मौजूदा नेतृत्व से घनश्याम तिवाड़ी की पटरी नहीं बैठेगी. उन्होंने जब दीनदयाल वाहिनी नाम से संगठन खड़ा किया तब ही लग रहा था कि वे इस बार अलग चुनाव लड़ेंगे. उनके बेटे के नाम से पार्टी पंजीकृत होने से इस पर मुहर लग गई. यदि भाजपा उन्हें पार्टी से निकालती तो इसका उन्हें इसकी सहानुभूति मिलती.’
छह बार विधायक और दो बार मंत्री रहे घनश्याम तिवाड़ी 2013 में हुए विधानसभा चुनावों में प्रदेश में सर्वाधिक मतों से चुनाव जीते थे. उन्हें उम्मीद थी कि वसुंधरा राजे उन्हें मंत्रिमंडल में निश्चित रूप से शामिल करेंगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. इसके बाद से ही वे सरकार के ख़िलाफ़ मुखर हो गए.
तिवाड़ी ने कई बार मुख्यमंत्री पर सार्वजनिक तौर पर गंभीर आरोप लगाए. पहले यह कयास लगाया जा रहा था कि वे संघ और पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के इशारों पर ऐसा कर रहे हैं.
कई बार यह चर्चा भी चली कि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व वसुंधरा राजे की जगह घनश्याम तिवाड़ी को मुख्यमंत्री बनाना चाहता है, लेकिन अंत में यह सब निराधार ही साबित हुआ.
गौरतलब है कि तिवाड़ी संघ पृष्ठभूमि से ही निकले हुए हैं. इस्तीफ़ा देते समय भी उन्होंने इस बात को विशेष रूप से रेखांकित किया कि मैंने भाजपा को छोड़ा है, संघ को नहीं.
वे कहते हैं, ‘मुझे ख़ुद को याद नहीं है कि मैं कब से संघ की शाखाओं में जा रहा हूं. मुझे इस पर गर्व है. संघ मेरी विचारधारा का आधार है. मैं इससे अलग कैसे हो सकता हूं. संघ से मेरा जुड़ाव पहले से भी अधिक मज़बूती के साथ रहेगा.’
‘द वायर’ से विशेष बातचीत में घनश्याम तिवाड़ी ने अपनी चुनावी रणनीति का खुलासा करते हुए कहा, ‘कांग्रेस और भाजपा से प्रदेश की जनता दुखी हो चुकी है. दोनों पार्टियों के अच्छे लोगों को हम अपनी पार्टी में शामिल करेंगे. भाजपा के 15 से ज़्यादा और कांग्रेस के कई वर्तमान विधायक अभी हमारे संपर्क में हैं. इन्हें भारत वाहिनी पार्टी चुनाव के मैदान में उतारेगी.’
तिवाड़ी की इस रणनीति को वसुंधरा मंत्रिमंडल में शामिल एक मंत्री बचकाना क़रार देते हैं. नाम सार्वजनिक नहीं करने की शर्त पर वे कहते हैं, ‘राजस्थान में दो ही दलों की राजनीति चलती. प्रदेश में तीसरा मोर्चा बनाने की कोशिश कई बार हुई. कई दिग्गज नेताओं ने इसकी कवायद की, लेकिन किसी की दाल नहीं गली. तिवाड़ी अपनी सीट पर भी चुनाव नहीं जीत पाएंगे.’
वहीं, प्रदेश भाजपा के रणनीतिकारों को लगता है कि घनश्याम तिवाड़ी का अगला चुनाव लड़ना पार्टी के लिए अंतत: फायदे का सौदा साबित होगा.
मुख्यमंत्री राजे के क़रीबी माने जाने वाले एक नेता कहते हैं, ‘तिवाड़ी की पार्टी को वे ही लोग वोट देंगे जो उनकी उपेक्षा की वजह से मुख्यमंत्री से नाराज़ हैं. यदि वे अगल पार्टी से चुनाव नहीं लड़ते तो ये वोट कांग्रेस को मिलते. इसलिए तिवाड़ी का अलग चुनाव लड़ना भाजपा के लिए फायदे का सौदा है.’
हालांकि राजस्थान कांग्रेस की उपाध्यक्ष अर्चना शर्मा इससे सहमत नहीं हैं. वे कहती हैं, ‘हम इस तरह की गणित में यकीन नहीं करते. यह सबको पता है कि वसुंधरा सरकार से लोग त्रस्त हैं. उन्हें कांग्रेस ही एकमात्र विकल्प दिखाई दे रहा है. लोग इस सरकार को हटाने के लिए कांग्रेस को ही वोट करेंगे. किसी और को वोट देकर वे इसे ख़राब नहीं करेंगे.’
हालांकि भाजपा और कांग्रेस इस बात पर एकमत हैं कि घनश्याम तिवाड़ी की पार्टी प्रदेश में विकल्प नहीं बन पाएगी. क्या वाकई में ऐसा होगा?
वरिष्ठ पत्रकार नारायण बारेठ कहते हैं, ‘राजस्थान में कांग्रेस और भाजपा की टक्कर का संगठन करने में कोई एक नेता कभी भी कामयाब नहीं हो सकता. यदि कोई प्रदेश के हर कोने और हर वर्ग से नेताओं को अपनी पार्टी में जोड़ पाए तो यह संभव है. इसी हिसाब से कार्यकर्ताओं की फ़ौज भी तैयार हो तो बात बन सकती है.’
ऐसे में यह सवाल मौजूं है कि घनश्याम तिवाड़ी के साथ कौन-कौन जुड़ सकता है. इस फ़ेहरिस्त में पहला नाम खींवसर से निर्दलीय विधायक हनुमान बेनीवाल का आ रहा है.
वे भी लंबे समय से तीसरा मोर्चा बनाने की कवायद में जुटे हैं. वे कई जगह बड़ी रेलियां कर चुके हैं. हालांकि उन्हें उस समय बड़ा झटका लगा जब हर रैली में उनके साथ दिखने वाले डॉ. किरोड़ी लाल मीणा भाजपा के पाले में चले गए.
हनुमान बेनीवाल के साथ गठबंधन के सवाल पर घनश्याम तिवाड़ी कहते हैं, ‘हनुमान बेनीवाल हमारे परिवार के सदस्य हैं और भविष्य में उनके साथ समझौता किए जाने के सभी रास्ते खुले हुए हैं.’
बेनीवाल भी इसी सुर में बोल रहे हैं. वे कहते हैं, ‘भाजपा और कांग्रेस को हराने के मिशन में जो भी साथ आएगा उसका स्वागत है. तिवाड़ी बड़े नेता हैं. उनसे बातचीत करेंगे.’
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और जयपुर में रहते हैं.)