अहमदाबाद जिला सहकारी बैंक में जमा हुईं बड़ी राशियों का रहस्य अब भी बरकरार है

केंद्र सरकार द्वारा नोटबंदी के बाद महज पांच दिनों के भीतर अहमदाबाद जिला सहकारी बैंक में असामान्य ढंग से जमा हुई बड़ी राशियों की जांच न कराना अजीब है, जबकि ऐसा करने के लिए नया बेनामी लेन-देन कानून भी है, जिसे बनाया ही इसी मकसद से गया है.

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केंद्र सरकार द्वारा नोटबंदी के बाद महज पांच दिनों के भीतर अहमदाबाद जिला सहकारी बैंक में असामान्य ढंग से जमा हुई बड़ी राशियों की जांच न कराना अजीब है, जबकि ऐसा करने के लिए नया बेनामी लेन-देन कानून भी है, जिसे बनाया ही इसी मकसद से गया है.

Ahmednagar: BJP Party President Amit Shah during Sangarsh Yatra Jan Sabha in Ahmednagar on Thursday. PTI Photo (PTI9_19_2014_000021A)
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह. (फाइल फोटो: पीटीआई)

आयकर विभाग यह मानना रहा है कि भारत में काला धन को सफेद बनाने के सबसे सुगम रास्तों में से एक रास्ता यह है कि इसे किसानों की आमदनी के तौर पर दिखा दिया जाए.

ऐसे में केंद्र सरकार द्वारा नोटबंदी के बाद महज पांच दिनों के भीतर अहमदाबाद जिला सहकारी बैंक (एडीसीबी) में आई असामान्य ढंग से बड़ी जमाओं की जांच न कराना बेहद अजीब है, जबकि उसके पास ऐसा करने के लिए नया बेनामी लेन-देन कानून भी है, जिसे बनाया ही इसी मकसद से गया है.

इस तथ्य के मद्देनजर कि भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह इस बैंक के बोर्ड के सक्रिय सदस्य हैं, नैतिकता का तकाजा भी यही कहता है कि इन बड़ी जमाओं की जांच कराई जाए, जो हो सकता है कि किसानों के नाम पर कराई गई हों.

आखिर ठीक इसी शंका के कारण ही तो नोटबंदी के एक सप्ताह के भीतर भारतीय रिजर्व बैंक ने एक आदेश निकालकर जिला सहकारी बैंकों को पुराने नोटों को स्वीकार करने या उन्हें बदलने से प्रतिबंधित कर दिया था.

जब एक आरटीआई आवेदन से नोटबंदी के बाद के पांच दिनों में एडीसीबी में जमा की गयी रकम (745 करोड़) का पता चला, तो नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवेलपमेंट (नाबार्ड) ने इस बैंक के बचाव में उतरते हुए आंकड़ा पेश किया कि ज्यादातर ग्राहकों ने (98.6%) ने 2.5 लाख से कम रकम जमा कराई थी.

हालांकि नाबार्ड ने यह नहीं बताया कि इस बात की संभावना है कि बचे हुए 1.4 प्रतिशत जमाकर्ताओं ने 745 करोड़ रुपये की कुल रकम का 60 प्रतिशत से ज्यादा जमा कराया हो.

नाबार्ड का मानना है कि नोटबंदी के ठीक बाद के दिनो में एडीसीबी की जमाओं में कुछ भी संदेहास्पद नहीं है, क्योंकि प्रति ग्राहक जमा 46,795 रुपये ही है, जो गुजरात के 18 जिला सहकारी केंद्रीय बैंकों के प्रति जमाकर्ता औसत से कम है.

लेकिन, हमें पता है कि जमा का औसत आकार वास्तविकता को बयान नहीं करता है. यह ठीक वैसा ही है कि देश की प्रति व्यक्ति आय देश के सबसे ज्यादा आय वाले लोगों की वास्तविक संपत्ति के बारे में नहीं बताती है. उदाहरण के लिए ऑक्सफैम के मुताबिक, 2017 में भारत की आबादी के शीर्ष 1 प्रतिशत के पास देश की कुल संपत्ति का 73 प्रतिशत था.

इसने खुद स्वीकार किया है कि एडीसीबी के 16 लाख ग्राहकों में से सिर्फ 1.60 लाख ग्राहकों ने 9 से 14 अक्टूबर के बीच अपने खातों में 1000 और 500 के नोट जमा कराए. और 1.6 लाख ग्राहकों में से 98.66 प्रतिशत ने 2.5 लाख से कम की राशि बैंक में जमा कराई.

इसका मतलब है कि सिर्फ 230 ग्राहकों ने 2.5 लाख रुपये से ज्यादा की रकम अपने खातों में जमा कराई. अगर कुल औसत जमा 46,795 रुपये थी, तो 98.66 प्रतिशत जमाकर्ताओं के लिए, जिन्होंने 2.5 लाख रुपये कम की राशि जमा कराई, यह औसत और भी कम होगा. अगर हम इस 98.55 प्रतिशत के लिए औसत जमा को 10,000 रुपये मानें, तो इनके द्वारा कुल जमा रकम 200 करोड़ से कम ठहरती है.

इसका मतलब ये है कि 230 खाताधारकों ने 745 करोड़ रुपये के एक बड़े हिस्से का योगदान दिया. जरूरत इन्हीं जमाओं की जांच किए जाने की है.

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बैंक की वेबसाइट के मुताबिक अमित शाह अब भी इस बैंक के निदेशक हैं.

इसलिए नाबार्ड को नोटबंदी के बाद अपने खातों में 2.5 लाख से ज्यादा जमा कराने वाले ग्राहकों की पहचान को भी उजागर करना चाहिए और आयकर विभाग को इसके बारे में जानकारी मुहैया करानी चाहिए. इससे इस बात की जांच करने में मदद मिलेगी कि क्या कुछ अनैतिक लोगों ने अपने काला धन को छिपाने के लिए किसानों का इस्तेमाल मुखौटों के तौर पर तो नहीं किया!

निश्चित तौर पर यह तथ्य हैरान करनेवाला है कि एडीसीबी में असामान्य मात्रा में जमा कराए गये पुराने नोटों में आयकर विभाग को संदेह के लायक कुछ भी नहीं लगा.

अपने बयान में नाबार्ड ने कहा है कि ये सारे खाते केवायसी (नो योर कस्टमर) प्रावधानों के मुताबिक हैं. ठीक है, लेकिन इन मुट्ठी भर जमाकर्ताओं की पहचान को उजागर करने से क्या नुकसान होने वाला है, जबकि आरबीआई का मानना है कि नोटबंदी के ठीक बाद बैंक जमाओं में आए ऐसे उछालों में कुछ न कुछ संदेहास्पद है.

नोटबंदी के बाद अपने खातों में काफी बड़ी रकम, जो करोड़ों में हो सकती है, जमा कराने वाले 200 से ज्यादा लोगों के पास अन्य गैर-कृषि आय स्रोत भी हो सकता है. इसकी जांच किए जाने जरूरत है.

जैसा कि हम अच्छी तरह से जानते हैं, भारत में, कृषि आय पर कर नहीं लगाया जा सकता है और यही कारण है कि गैरकानूनी ढंग से संपत्ति जमा करके रखनेवाले लोग इसे कृषि-आय के तौर पर दिखाने की कोशिश करते हैं.

इसलिए यह काफी मुमकिन है कि 230 के करीब एडीसीबी खातों में 2.5 लाख से ज्यादा की कुछ जमाएं, बेनामी लेन-देन के दायरे मे आती हों, और आयकर विभाग द्वारा इसकी जांच की जानी चाहिए, जो बेनामी लेन-देन (निषेध) संशोधन कानून, (2016) को लागू कराने के लिए जिम्मेवारी नोडल एजेंसी है.

महत्वपूर्ण बात यह है कि आयकर विभाग ने नोटबंदी के बाद बड़ी मात्रा में नकद जमा कराने वाले संदिग्ध बैंक खातों पर कार्रवाई करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू किया था.

अतीत में एनडीए-2 सरकार ने खुद भी टैक्स चोरी करने वाले ‘किसानों’ की पहचान करने की मंशा जताई थी.

2016 में वित्तमंत्री अरुण जेटली ने राज्यसभा को यह बताया था कि सरकार किसान बन कर टैक्स चोरी करने वालों पर कार्रवाई कर रही है. जेटली ने कहा कि आयकर विभाग अपनी अपरिभाषित/अघोषित आय को कृषि आय के तौर पर दिखाने वाले टैक्स चोरों पर कार्रवाई कर रही है.

2007-08 से 2015-16 के बीच बेंगलुरु क्षेत्र में 321 लोग, दिल्ली में 275, कोलकाता में 239, मुंबई में 212, पुणे में 192, चेन्नई में 181, हैदरबाद में 162, तिरुअनंतपुरम में 157 और कोच्चि में 109 लोगों ने अपनी कृषि आय कम से कम 1 करोड़ दिखाई थी.

न्यूज एजेंसी पीटीआई ने आधिकारिक आंकड़ों के हवाले से यह जानकारी दी थी. यानी उस अवधि में 2,746 इकाइयों और व्यक्तियों ने 1 करोड़ रुपये से ज्यादा की कृषि आय की घोषणा की थी.

जेटली ने कहा था, कृषि क्षेत्र की स्थिति को देखते हुए किसानों की कृषि आय पर कर लगाने का कोई प्रस्ताव नहीं है. लेकिन अगर कोई व्यक्ति इस प्रावधान का दुरुपयोग करता है और गैर-कृषि आय को कृषि-आय के तौर पर दिखाने की कोशिश करता है, तो हम उस व्यक्तिगत मामले की जांच करेंगे.

उन्होंने यह भी जोड़ा, ‘कई प्रमुख लोगों ने ऐसा करने की कोशिश की है और उनके खिलाफ जांच चल रही है. जब जांच पूरी होती है और कुछ नाम सामने आते हैं, तो मेरी गुजारिश है कि इस पर राजनीतिक कार्रवाई होने का आरोप न लगाया जाए.’

जेटली तब जनता दल (यूनाइटेड) नेता शरद यादव और बहुजन समाजवादी पार्टी नेता मायावती के सवालों का जवाब दे रहे थे. दोनों नेताओं ने इस ओर ध्यान दिलाया था कि कुछ लोग अपने काला धन को छिपाने के लिए कृषि-आय के रास्ते का दुरुपयोग कर रहे हैं.

नोटबंदी के बाद आयकर विभाग ने विज्ञापन देकर लोगों को यह चेतावनी दी थी कि वे अपनी अघोषित आय दूसरों के खातों में जमा न कराएं और यह कहा था कि ऐसा करने वालों के खिलाफ बेनामी एक्ट के तहत कार्रवाई की जा सकती है.

बेनामी लेन-देन (निषेध) संशोधन अधिनियम, 2016 नवंबर से प्रभाव में आया. इस अधिनियम के अनुसार बेनामी संपत्ति के तहत चल या अचल संपत्ति, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संपत्ति, भौतिक या अभौतिक संपत्ति को शामिल हैं.

इस अधिनियम में बेनामी संपत्तियों की अस्थायी कुर्की और जब्ती का प्रावधान है. यह बेनामी लेन-देन के लाभार्थी मालिक, बेनामीदार, उकसाने और लालच देने वालों के खिलाफ मुकदमा चलाने की भी इजाजत देता है, जिसमें 7 साल का सश्रम कारावास और उस संपत्ति के उचित बाजार मूल्य के 25 प्रतिशत तक के जुर्माने का भी प्रावधान है.

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