सुषमा स्वराज का ट्रोल्स को जवाब देना अच्छा कदम है पर नाकाफ़ी है

विदेश मंत्री के लिए यह अच्छा अवसर था कि वे सामने आकर लगातार ट्विटर पर ट्रोलिंग का शिकार हो रही महिलाओं के प्रति अपना समर्थन जतातीं, लेकिन उनकी विनम्र प्रतिक्रिया दिखाती है कि उन्होंने ये अपमान का घूंट पी लिया है.

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विदेश मंत्री के लिए यह अच्छा अवसर था कि वे सामने आकर लगातार ट्विटर पर ट्रोलिंग का शिकार हो रही महिलाओं के प्रति अपना समर्थन जतातीं, लेकिन उनकी विनम्र प्रतिक्रिया दिखाती है कि उन्होंने ये अपमान का घूंट पी लिया है.

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विदेश मंत्री सुषमा स्वराज

30 जून को सोशल मीडिया डे के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया था:

इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है. वो शायद ही कभी इस तरह के मौकों पर लोगों को बधाई देने से चूकते हो. इसके अगले ही दिन 1 जुलाई को उन्होंने अंतरराष्ट्रीय सीए डे के मौके पर देश के चार्ट्ड अकाउंटेट्स को बधाई दी.

मोदी ने अपने ट्विटर संदेश में ‘युवाओं’ को सोशल मीडिया पर ‘बेबाक तरीके से अपनी बात रखने’ के लिए बधाई दी. उन्हें युवाओं का यह व्यवहार ‘बहुत पंसद’ आने वाला लगता है. कुछ सोशल मीडिया यूजर्स जरूर बेबाक हो सकते हैं लेकिन सबसे अहम वो बातें हैं जो उन्होंने नहीं कही.

देश के निर्वाचित नेता होने के नाते वो इसमें कुछ बातें और जोड़ सकते थे. मसलन, ‘इस बात का ख्याल रखे कि यह अभद्र न हो और सभ्य लहजा बरकरार रहें.’ या फिर यह भी कि, ‘औरतों को धमकाना भारतीय सभ्यता के खिलाफ है.’

अतिवादी ट्रोल्स और अभद्र व्यवहार करने वाले लोग मोदी के कहने पर रातोंरात सुधर तो नहीं जाएंगे लेकिन एक कड़ा संदेश जाता. देश का प्रधानमंत्री एक माहौल का निर्माण करता है और उसकी टिप्पणियों को हल्के में नहीं लिया जाता.

उनकी पार्टी की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वाराज को कुछ दिनों पहले जिस तरह के ट्रोल्स का सामना करना पड़ा था, उस लिहाज से भी प्रधानमंत्री के इस तरह के संदेश काफी अहमियत रखते हैं. सुषमा स्वराज को एक अंतरधार्मिक विवाह करने वाले जोड़ की मदद करने के लिए ट्रोल किया गया था.

सुनियोजित ट्रोलिंग

सुषमा स्वराज अपने ट्विटर का इस्तेमाल भारतीयों के साथ-साथ पाकिस्तानियों की भी अपने विभाग से जुड़ी किसी समस्या में मदद पहुंचाने के लिए करती हैं. सोशल मीडिया का यह एक अच्छा उपयोग है. इसकी वजह से उनकी काफी सराहना भी हुई है.

भले ही विदेश मंत्री के तौर पर अपनी भूमिका प्रधानमंत्री को सौंप दिए जाने पर उनका मजाक उड़ाया जाता है. सिर झुकाकर बिना कोई विवाद खड़ा किए वे अपनी छवि अपने विभाग के माध्यम से आम लोगों की मदद कर के दूसरे तरीके तरीके से बनाने में कामयाब रही हैं. लेकिन लखनऊ के एक जोड़े की मदद करना कट्टर हिंदूवादी तत्वों को नागवार गुजरा और वे बड़ी संख्या में ट्विटर पर सुषमा स्वराज पर टूट पड़ें.

इस जोड़े पर पासपोर्ट सेवा के एक अधिकारी ने अवांछित टिप्पणी की थी. इस अधिकारी के ट्रांसफर किए जाने पर ट्रोल्स और बौखला गए थे. इसके बाद सुषमा स्वराज का खूब अपमान किया गया. उन्हें खराब से खराब नामों से पुकारा गया.

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अगर वो पुलिस में शिकायत करती तो इनमें से कुछ को गिरफ्तार किया जा सकता था. हालांकि ट्रोलिंग स्वतंत्र रूप से कट्टरवादी लोगों का काम लगता है जो गुमनाम रहकर ताकतवर लोगों के खिलाफ जहर फैलाते हैं लेकिन यहां इस बात की बहुत संभावना है कि सुषमा स्वराज किसी सुनियोजित और संगठित हमले का शिकार हुई हैं.

संगठित ट्रोलिंग अपने ‘दुश्मनों’ जैसे उदारवादी, धर्मनिरपेक्ष सोच-समझ वाले लोग, पत्रकारों और मौजूदा व्यवस्था पर सवाल उठाने वालों के खिलाफ तो बहुत आम है. यहां ‘व्यवस्था’ का मतलब सिर्फ सरकार से नहीं है बल्कि एक व्यापक विचारधारात्मक पहचान से है जिसमें संघ परिवार, प्रधानमंत्री, भाजपा प्रमुख और कुछ चुनिंदा लोग आते हैं. ट्रोल्स अपनी भक्ति एक निश्चित पक्ष के प्रति रखते हैं.

लेकिन सुषमा स्वराज को जिसतरह से निशाना बनाया गया, उसकी उम्मीद नहीं थी. उनकी आलोचना करने वालों का मुख्य तर्क यह था कि उन्होंने एक मुस्लिम आदमी और उसकी हिंदू पत्नी की मदद कर के ‘धर्मनिरपेक्ष’ बनने की कोशिश की हैं जो कि शायद किसी भी तरह के हिंदुत्ववाद का सबसे बड़ा अपमान है.

मुसलमानों का पक्ष लेना फिर चाहे मानवता के आधार पर ही क्यों न हो, पूरी तरह से अस्विकार्य है और भाजपा के नेता के लिए ऐसा करना तो बिल्कुल बर्दाश्त के लायक नहीं. सुषमा स्वराज के रेटिंग में जबरदस्त गिरावट आई है. वो अब इन लोगों के लिए कोई सम्मानित नेता नहीं रह गईं.

कुछ ट्रोल्स उनके साथ जो हुआ उसे इस बुनियाद पर सही ठहराते हैं कि पासपोर्ट अधिकारी के साथ अनुचित कार्रवाई हुई है लेकिन ऐसा कर के वो अपने पूर्वाग्रहों को छिपाने की कोशिश करते हैं.

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गृहमंत्री राजनाथ सिंह को छोड़कर भाजपा का कोई भी नेता सुषमा स्वराज के समर्थन में सामने नहीं आया. कश्मीरियों को पूरी तरह से साफ कर देने की बात करने वाले की ट्विटर पर आलोचना करने की वजह से राजनाथ सिंह खुद भी इन कट्टर हिंदूवादी ट्रोल्स के एक बार शिकार हो चुके हैं.

अपनी पार्टी की नेता और वरिष्ठ मंत्री के समर्थन में पार्टी के बाकी सदस्यों का खड़ा होना तो भूल जाइए किसी की ओर से यह तक टिप्पणी नहीं आई कि इस तरह से महिलाओं पर हमला नहीं किया जाना चाहिए.

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सुषमा स्वराज के ‘नेतृत्व की मिसाल’ देते हुए ट्वीट किया और बताया कि बाहर रहने वाले भारतीयों की आकांक्षाएं कितनी ज्यादा है हमसे. लेकिन यह स्पष्ट नहीं था कि यह किसी भी तरह से ट्रोलिंग के संदर्भ में किया गया ट्वीट है.

सुषमा स्वराज ने बिना किसी दबाव के आराम से जवाब दिया. सबसे पहले उन्होंने कहा कि मैं बाहर थी और मैं नहीं जान पाई कि मेरी अनुपस्थिति में क्या हुआ है. ‘हालांकि कुछ ट्वीट्स में मुझे सम्मानित किया गया है. मैं वो आपसे शेयर कर रही हूं. मुझे वो पसंद आए हैं.’

इसके कुछ दिनों के बाद उन्होंने ट्विटर पर एक पोल किया, ‘दोस्तों, मैंने कुछ ट्वीट्स पसंद किए हैं. यह पिछले कुछ दिनों से हो रहा है. क्या आप ऐसे ट्वीट्स को अपना समर्थन देते हैं? कुपया अपनी राय दें.’

ट्विटर पोल शायद ही तर्कपरक और सही आंकड़े बताने वाले होते हो लेकिन फिर बी 43 फीसदी लोगों ने इन ‘ट्वीट्स’ को अपना समर्थन दिया.

इसके बाद उन्होंने फिर से ट्वीट किया कि मत भिन्नता एक सामान्य बात है लेकिन लोगों को सभ्य भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए न कि अभद्र भाषा का.

उन्होंने अपनी प्रतिक्रिया में गरिमा बनाई रखी और छींटाकशी करने वालों को नजरअंदाज किया. अब यह नहीं पता कि उन्होंने कितनों को अपने अकाउंट्स से ब्लॉक किया हालांकि वो पहले ऐसा करती रही हैं.

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कमजोर प्रतिक्रिया

अच्छा है कि उन्होंने गरिमामयी प्रतिक्रिया का इस्तेमाल किया लेकिन यह अपनी जिम्मेदारी से मुकरने जैसा था. हालांकि ऐसे मौके पर भी उनका गरिमा बरकरार रखना सराहनीय है लेकिन यह समस्या पैदा करने वाला भी है.

उनकी प्रतिक्रिया से ऐसा लगता है कि उन्हें जिस तरह ट्रोल किया गया और आम तौर पर जिस तरह  ट्रोल किया जाता है, उसमें कोई फर्क नहीं है. सभ्य व्यवहार एक ऐसी बात है जिसकी उनमें भारी कमी होती है और वो तो इस पर गर्व भी कर सकते हैं कि ‘उदारवादी’ मानकों का बोझ उनके ऊपर नहीं है.

वो अपने गहरे मुस्लिम-विरोधी पूर्वाग्रहों को ऐसे ही कैसे छोड़ सकते हैं. उनके लिए तो सुषमा स्वराज के साथ सहानुभूति रखना भी मुश्किल है. सुषमा स्वराज को भाजपा और उसकी विचारधारा का हिस्सा होने की वजह से यह पता होना चाहिए कि उनकी ही पार्टी के द्वारा पाले-पोषे गए ट्रोल्स से वे कैसे बची रह सकती है.

हालांकि उन्होंने एक मंत्री के तौर पर अपनी जिम्मेदारी में इसे रोड़ा नहीं बनने दिया है. अगर वो उस जोड़े को मदद देने से मना कर देती तो वो इन ट्रोल्स के नजर में नायिका बन गई होतीं. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया.

सुषमा स्वराज पर हमलों की शुरुआत होने के बाद उन्हें कोई शक नहीं रह गया होगा कि हर रोज महिलाएं ऑनलाइन कितना कुछ झेलती हैं. हालांकि कुछ महिलाएं जैसे सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार दूसरों से कहीं ज्यादा झेलती हैं.

औरतों के प्रति दुर्व्यवहार सोशल मीडिया पर बहुत आम है. ट्विटर इसे रोकने में सक्ष्म नहीं है और भारतीय कानून इन मामलों में कार्रवाई को लेकर बहुत सुस्त है. कांग्रेस की प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी ने हाल ही में बताया है कि उनकी 10 साल की बेटी को लेकर उन्हें धमकी मिली थी.

सुषमा स्वराज के लिए यह एक अच्छा मौका था कि वो दूसरी पीड़ित महिलाओं के समर्थन में आती. मसलन वे यह कह सकती थी कि ‘अब मैं जान चुकी हूं कि दूसरों को क्या झेलना पड़ता है और मैं समझती हूं कि अब समय आ गया है कि इस तरह के गलत संदेशों से निपटा जाए.’

वे यह भी बता सकती थी कि उन्होंने क्यों उस जोड़े को पासपोर्ट देने का फैसला लिया. वे दूसरी महिलाओं को इस तरह के ट्रोल्स का मुंहतोड़ जवाब देने के तरीके भी बता सकती थी. वे ट्विटर को भी इसतरह के संदेश नहीं रोक पाने की वजह से लताड़ सकती थी लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया.

उनकी ओर से आने वाली किसी भी आक्रमक प्रतिक्रिया को मौजूदा सरकार के समर्थकों के खिलाफ माना जाता क्योंकि हम सब को पता है कि ट्रोल्स की बड़ी संख्या उन लोगों की है जो वैचारिक रूप से हिंदुत्व के खेमे में हैं. उनकी नजर में सुषमा स्वराज ने एक जघन्य पाप किया है और शायद उनके सहयोगियों और साथियों को भी यही लगता है.

विनम्रता के साथ प्रतिक्रिया देकर उन्होंने अपमान के घूंट को पी लिया. उनके संयम के लिए उनकी तारीफ भी हुई लेकिन उन्होंने खुद के लिए और दूसरों के लिए खड़ा होने का मौका गंवा दिया.

उनके पति स्वराज कौशल ने ट्विटर पर अपनी प्रतिक्रिया में बताया कि कैसे इन घटनाओं से उनके परिवार को तकलीफ पहुंची है. उन्होंने एक ट्वीट डाला जो उन्हें किसी ने किया था. इस ट्वीट में उन्हें सुषमा स्वराज को ‘पीटने को’ कहा गया था.

(साभार: ट्विटर)
(साभार: ट्विटर)

सुषमा स्वराज किस तरह की इंसान है इसके बारे में उन्होंने भावुकतापूर्ण तरीके से बताया है. हालांकि इस बात में संदेह है कि उनकी इन बातों का कोई असर सुषमा स्वराज का विरोध करने वालों पर पड़ेगा. लेकिन उन्होंने भी इस तरह के जहरीले माहौल, जिसमें घिनौने और अनैतिक लोगों को प्रोत्साहित किया जा रहा है, पर कोई टिप्पणी न करने का पूरा ख्याल रखा. उन्हें अपनी सीमाओं के बारे में पता है.

सुषमा स्वराज पर होने वाले हमलों ने सारी सीमाएं पार कर दी हैं इसलिए नहीं क्योंकि मंत्री और दूसरे बड़े लोग ट्विटर पर पहले ट्रोल नहीं किए गए हैं बल्कि हिंदूवादी ट्रोल्स ने यह दिखाया है कि वो किसी को भी ट्रोल करने से हिचकेंगे नहीं भले ही वो इंसान व्यवहारिक तौर पर उनके ही खेमे या फिर मकसद वाला क्यों न हो. उनका विश्वास अडिग है.

वे ये मानते हैं कि उनके नायक सिर्फ उनके जैसे विचारों वाले न हो बल्कि वो अपने व्यवहार से इसे साबित भी करे. सुषमा स्वराज को तो सिर्फ बलि पर चढ़ाया गया है. इसमें कोई शक नहीं है कि वे यह बात नहीं जानती हों, लेकिन जब दूसरों के साथ यह हो रहा था तब जो खामोशी अख्तियार की गई, अब अपनी बारी आने पर उसी वजह से इस प्रवृत्ति से लड़ना मुश्किल हो रहा है.

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