संपादकीय: योगी आदित्यनाथ और संघ के हिंदू राष्ट्र का सपना

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर योगी आदित्यनाथ की नियुक्ति इस बात का स्पष्ट संकेत है कि भाजपा और इसके पालक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एजेंडा सिर्फ़ चुनावी जीत हासिल करने तक सीमित नहीं है. वे इससे बहुत आगे की सोच रहे हैं.

/

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर योगी आदित्यनाथ की नियुक्ति इस बात का स्पष्ट संकेत है कि भाजपा और इसके पालक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एजेंडा सिर्फ़ चुनावी जीत हासिल करने तक सीमित नहीं है. वे इससे बहुत आगे की सोच रहे हैं.

Yogi Adityanath Modi PTI
योगी आदित्यनाथ का शपथ ग्रहण समारोह. (फोटो: पीटीआई)

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल के पहले सप्ताह ने यह साफ़ कर दिया है कि वे राज्य में किस तरह का शासन चलाने की मंशा रखते हैं.

अतीत में सांप्रदायिक नफरत फैलाने के रिकॉर्ड और हिंसा के कृत्यों में संलिप्तता के ठोस आरोपों के बावजूद भाजपा और इससे सहानुभूति रखने वालों, जिनमें मीडिया एक धड़ा भी शामिल है, ने योगी की तरफदारी यह कहते हुए की कि आदित्यनाथ को ‘एक मौका दिया जाना चाहिए’- वे अच्छे प्रशासक साबित हो सकते हैं.

ये भी मुमकिन है कि नफरत फैलाने वाली उनकी ज़्यादा घातक और विस्फोटक प्रवृत्तियां कुछ कम हो जाएं. खुशामदी में लगे पत्रकारों ने तो उनके खान-पान की आदतों और गायों के उनसे प्रेम के बारे में भी लिखा. इन सबका मकसद यह दिखलाना है कि योगी अब बदल गए हैं.

योगी का बचाव करने वालों की इन बचकानी उम्मीदों पर कुठाराघात, किसी और ने नहीं, योगी ने ही किया. मुख्यमंत्री के तौर पर वे तुरंत ही अपने रंग में आते दिखे.

उन्होंने जो दो सबसे अहम फैसले किए हैं, वे हैं- ‘अवैध’ बूचड़खानों पर तालाबंदी और उत्तर प्रदेश के युवाओं पर नैतिक पहरेदारी बैठाना. कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए अनुदान को दोगुना करके एक लाख रुपये कर दिया गया है.

उनकी सरकार दिल्ली में तीर्थ-यात्राओं के लिए एक केंद्र भी खोलेगी. ये सारे फैसले योगी ने बगैर कोई कैबिनेट बैठक किए ही कर डाले हैं और साफ तौर पर इनका मकसद भाजपा के धार्मिक वोट बैंक को खुश करना है.

फिर भी, हमें यह मानने को कहा जा रहा है कि पार्टी अब भी ‘विकास’ के प्रति समर्पित है और इसका प्रमाण यह है कि सरकारी अधिकारियों को समय पर आने को कहा गया है.

पहले हफ्ते का यह हिचकोलों से भरा सफर योगी और उनके वृहत्तर परिवार के केंद्रीय एजेंडे से मेल खाता है. बूचड़खानों, सामान्य तौर पर कहें, तो मांस के व्यापार के ख़िलाफ़ चलाए गए अभियान ने हजारों मुस्लिमों की आजीविका पर असर डाला है.

निगरानीकर्ताओं को खुली छूट देना और पुलिस को ‘रोमियो’ पर नकेल कसने के नाम पर रज़ामंद युवा जोड़ों पर कार्रवाई करने की ताकत देना, दरअसल उस प्रतिक्रियावादी विचार के अनुरूप है, जिसके मुताबिक अविवाहित स्त्री और पुरुष के बीच किसी किस्म का मेल-जोल नहीं होना चाहिए.

Wire Hindi Editorialआदित्यनाथ ने अब तक भले ही कोई भड़काऊ बयान न दिया हो लेकिन क्या यह बात भुलाई जा सकती है कि वे और उनका संगठन पिछले कुछ वर्षों में राज्य में सांप्रदायिक तनाव फैलाने के मामले में अग्रणी रहे हैं?

उनके ख़िलाफ़ आपराधिक धमकी देने, हत्या की कोशिश करने, दंगा भड़काने और यहां तक कि एक धर्म का अपमान करने के इरादे से इबादत की जगह को दूषित करने का भी आरोप है.

इतने समय तक हम यह सुनते आए थे कि योगी आदित्यनाथ जैसे लोग पार्टी की परिधि पर खड़े हैं, और उनके बयान या कृत्य पार्टी के पक्ष को प्रदर्शित नहीं करते. आज यह साफ़ हो चुका है कि वहां कोई परिधि नहीं है.

संघ परिवार में हद से हद श्रम का इस तरह विभाजन हो सकता है कि किस समय कोई व्यक्ति कौन सी भूमिका निभाएगा. लेकिन, पूरा परिवार एक ही जहरीले एजेंडे को आगे बढ़ाता है. और वह एजेंडा है मुस्लिमों के ख़िलाफ़ असंतोष, नफरत और यहां तक कि हिंसा को भी बढ़ावा देना.

आदित्यनाथ के ट्रैक रिकॉर्ड और संघ परिवार की विचारधारा को देखते हुए सवाल है कि राज्य सत्ता आख़िर उन पर किस तरह असर डालेगी? क्या वे सांप्रदायिक और सामाजिक सद्भाव के मसीहा बन जाएंगे?

या फिर वे अपने पद का इस्तेमाल अपने और संघ और भाजपा में अपने समर्थकों के दशकों पुराने सांप्रदायिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए करेंगे? मुख्यमंत्री के ऑफिस में उनके पहले सप्ताह ने इसका जवाब दे दिया है.

उनकी नियुक्ति इस बात का संकेत है कि 2019 में होने वाले आम चुनाव में भाजपा खुल कर हिंदुत्व कार्ड खेलेगी. लेकिन, मामला इतना भर नहीं है.

आदित्यनाथ की ताजपोशी इस बात का स्पष्ट संकेत है कि भाजपा और इसके पालक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एजेंडा सिर्फ चुनावों में विजय हासिल करना नहीं है. वे कहीं दूर की सोच रहे हैं. चुनावी जीत सिर्फ उस बड़े लक्ष्य को हासिल करने का एक औज़ार है.

आदित्यनाथ, मोदी और उनके जैसे लोग वे चेहरे हैं, जिन्हें संघ भारत को ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाने के अपने दशकों पुराने सपने को पूरा करने की बागडोर सौंपेगा.

उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री होने के नाते, आदित्यनाथ राज्य के हर नागरिक के कल्याण के बारे में सोचने और जाति, धर्म या खान-पान की आदतों की परवाह किए बगैर हर किसी के साथ समता और न्यायपूर्ण तरीके से व्यवहार करने के कर्तव्य से बंधे हैं.

यह ‘राजधर्म’ का वह विचार है, जो आंबेडकर और संविधान से हमें विरासत में मिला है. लेकिन, जिस तरह से उन्होंने अपने कार्यकाल की शुरुआत की है, वह यही संकेत दे रहा है कि वे किसी दूसरे ही लक्ष्य से संचालित हो रहे हैं.