मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय द्वारा ‘इंस्टिट्यूशन ऑफ एमिनेंस’ का दर्जा पाने वाले आईआईटी दिल्ली और मुंबई, आईआईएससी और बिट्स-पिलानी जैसे संस्थानों के साथ रिलायंस फाउंडेशन के इस कागज़ी इंस्टिट्यूट को जगह मिली है.
मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा सोमवार को 6 ऐसे संस्थानों की सूची जारी की गयी, जिन्हें मंत्रालय द्वारा इंस्टिट्यूशन ऑफ एमिनेंस (आईओई) का दर्जा दिया गया है. इनमें 3 निजी और 3 सरकारी संस्थान शामिल हैं, जिन्हें सरकार की ओर से विशेष फंड्स और पूर्ण स्वायत्तता दी जाएगी.
इस सूची में आईआईटी- दिल्ली और मुंबई के साथ रिलायंस फाउंडेशन के जियो इंस्टिट्यूट का भी नाम है. ज्ञात हो कि यह इंस्टिट्यूट अब तक नहीं खुला है.
हालांकि सरकार की ओर से जारी अधिकारिक सूची नहीं है, इसे मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर द्वारा ट्वीट किया गया था.
Yet another landmark quality initiative of @narendramodi Government. The #InstituteofEminence are selected by the Experts Panel & today we are releasing list of 6 universities – 3 each in public and private sector. #TransformingEducation #48MonthsOfTransformingIndia @PIB_India
— Prakash Javadekar (@PrakashJavdekar) July 9, 2018
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार यूजीसी ने प्रस्तावित 20 संस्थानों में से इन 6 संस्थानों को मंजूरी दी है.
अगस्त 2017 में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा यूजीसी के ‘इंस्टिट्यूशन ऑफ एमिनेंस डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी रेगुलेशन 2017 को मंजूरी दी गई थी. इसे लाने का उद्देश्य देश के 10 सरकारी और 10 निजी उच्च शिक्षा संस्थानों को विभिन्न सुविधाएं मुहैया करवाते हुए विश्व स्तरीय बनाना था क्योंकि शिक्षा संस्थानों की वैश्विक रैंकिंग में भारत का प्रतिनिधित्व बेहद कम है.
सरकार द्वारा दिए जाने वाले आईओई के दर्जे के लिए केवल वही उच्च शिक्षा संस्थान आवेदन कर सकते हैं, जो या तो ग्लोबल रैंकिंग में टॉप 500 में आये हों या जिन्हें नेशनल इंस्टिट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) में टॉप 50 में जगह मिली हो.
इसमें निजी संस्थान भी आईओई दर्जे में ग्रीनफील्ड वेंचर के बतौर जगह पा सकते हैं बशर्ते वे प्रायोजक अगले 15 सालों के लिए एक ठोस, विश्वसनीय योजना दे सकें.
अगर अधिकारों की बात करें तो अन्य किसी उच्च शिक्षा संस्थान की तुलना में एक आईओई को ज्यादा अधिकार मिले होते हैं. उनकी स्वायत्तता किसी अन्य किसी संस्थान से कहीं ज्यादा होती है मसलन वे भारतीय और विदेशी विद्यार्थियों के लिए अपने हिसाब से फीस तय कर सकते हैं, पाठ्यक्रम और इसके समय के बारे में अपने अनुसार फैसला ले सकते हैं.
उनके किसी विदेशी संस्थान से सहभागिता करने की स्थिति में उन्हें सरकार या यूजीसी से अनुमति लेने की जरूरत नहीं होगी, केवल विदेश मंत्रालय द्वारा प्रतिबंधित देशों के संस्थानों से सहभागिता नहीं कर सकेंगे.
एक बार आईओई का दर्जा मिल जाने के बाद इनका लक्ष्य 10 सालों के भीतर किसी प्रतिष्ठित विश्व स्तरीय रैंकिंग के टॉप 500 में जगह बनाना होगा, और समय के साथ टॉप 100 में आना होगा.
विश्व स्तरीय बनने के लिए इन आईओई दर्जा पाए 10 सरकारी संस्थानों को मानव संसाधन और विकास मंत्रालय द्वारा स्वायत्तता तो मिलेगी ही, साथ ही प्रत्येक को 1,000 करोड़ रुपये भी दिए जाएंगे. निजी संस्थानों को सरकार की तरफ से किसी तरह की वित्तीय मदद नहीं मिलेगी.
आईओई का दर्जा पाने के लिए देश भर से कुल 114 संस्थानों और विश्वविद्यालयों ने आवेदन किया था, जिसमें से 74 सरकारी और 40 निजी क्षेत्र के थे. इनमें 11 केंद्रीय विश्वविद्यालय, 27 राज्य विश्वविद्यालय, 10 राज्यों के निजी विश्वविद्यालय और ‘इंस्टिट्यूट ऑफ नेशनल इंपॉरटेंस’, डीम्ड यूनिवर्सिटी, (तकनीकी डिप्लोमा आदि देने वाले) स्टैंड-अलोन संस्थानों के अलावा यूनिवर्सिटी बनाने का इरादा रखने वाले संगठन भी थे.
इन 114 में से 20 को चुनने की जिम्मेदारी एम्पावर्ड एक्सपर्ट कमेटी (ईईसी) की थी, जो इनमें से केवल 11 का चयन कर पाई, जिसमें से फिलहाल 6 को आईओई का दर्जा दिया गया.
इस ईईसी के अध्यक्ष पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एन. गोपालस्वामी हैं, बाकी सदस्यों में यूनिवर्सिटी ऑफ ह्यूस्टन की अध्यक्ष रेनू खटोर, मैनेजमेंट डेवलपमेंट इंस्टिट्यूट के प्रीतम सिंह और हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के प्रोफेसर तरुण खन्ना शामिल हैं.
मालूम हो कि 114 आवेदकों से यह कमेटी मिली थी और उनके प्रस्ताव के बारे में बातचीत भी की थी. इतने लोगों से मिलने के बावजूद क्यों कमेटी को आईओई का दर्जा पाने लायक 20 संस्थान नहीं मिले?
कमेटी अध्यक्ष एन गोपालस्वामी ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए इसका जवाब दिया कि 20 अधिकतम संख्या थी. उन्होंने कहा, ‘क्या ऐसा कोई नियम है कि अगर सरकार की ओर से कोई अधिकतम संख्या तय की गई है तो हम उतने ही नाम देंगे भले ही वे उस लायक हों या न हों? मूल मापदंड संख्या नहीं है. यह है कि क्या उस संस्थान में ग्लोबल रैंकिंग के टॉप 100 में पहुंचने की काबिलियत है.’
सोमवार को प्रकाश जावड़ेकर के ट्वीट में आईओई दर्जा पाने वाले 6 संस्थानों में आईआईटी दिल्ली, आईआईटी मुंबई, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस (आईआईएससी), बिट्स-पिलानी, मनिपाल अकादमी ऑफ हाई एजुकेशन और रिलायंस फाउंडेशन के जियो इंस्टिट्यूट का नाम है.
बता दें कि जियो इंस्टिट्यूट अब तक बना नहीं है. यह केवल प्रस्तावित है. इसे ग्रीनफील्ड कैटेगरी के अंदर चुना गया है. आवेदन के साथ दिए गए प्रपोजल में रिलायंस फाउंडेशन ने मानविकी, इंजीनियरिंग, मेडिकल साइंसेज, स्पोर्ट्स, कानून, परफॉर्मिंग आर्ट्स, साइंसेज और अर्बन प्लानिंग समेत 50 से ज्यादा विषयों के 10 स्कूल खोलने का प्रस्ताव रखा है.
फाउंडेशन ने यह भी कहा है कि वे टॉप 500 ग्लोबल यूनिवर्सिटी से फैकल्टी लायेंगे, शिक्षकों के लिए भी आवासीय यूनिवर्सिटी होगी, असली चुनौतियों का समाधान ढूंढने के लिए इंटर-डिसिप्लिनरी रिसर्च सेंटर होंगे और बाकी सुविधाओं के अलावा 9,500 करोड़ रुपये इस इंस्टिट्यूट को दिए जाएंगे.
जियो इंस्टिट्यूट के चयन पर उठे सवालों के बाद मंत्रालय ने दी सफाई
जियो इंस्टिट्यूट के चयन पर उठे सवालों के बाद सोमवार को मानव संसाधन और विकास मंत्रालय द्वारा एक बयान जारी किया गया और कहा गया कि इसका प्रपोजल सभी मानकों पर खरा उतरता है. इस कैटेगरी के लिए जमीन की उपलब्धता, एक अनुभवी और उच्च शिक्षित कोर टीम, फंडिंग और एक योजना का मानक तय है, जिन्हें यह इंस्टिट्यूट पूरा करता है.
गोपालस्वामी ने कहा, ‘आवेदक को साबित करके यह बताना था कि उसका प्लान ऑफ एक्शन तैयार है और वे काम करने के लिए हर तरह से तैयार हैं. आप यह नहीं कह सकते ही आपने जमीन देख ली है, लेकिन उसका अधिग्रहण नहीं हुआ है या कोई कानूनी विवाद है. हमने हर एक उनकी योजना के बारे में सवाल किए फिर तय किया कि ऐसा व्यावहारिक है भी कि नहीं. इसके बाद कमेटी ने यह फैसला किया कि इन सभी में सबसे व्यावहारिक रिलायंस फाउंडेशन का प्रस्ताव है.’
हालांकि जियो इंस्टिट्यूट को आईओई का दर्जा तुरंत नहीं मिलेगा, उन्हें 3 सालों के लिए ‘लेटर ऑफ इंटेंट’ दिया जाएगा. इस दौरान उन्हें वे सभी लक्ष्य पूरे करने होंगे जो उन्होंने ईईसी को बताए हैं और उसके रिव्यू के बाद कमेटी संस्थान को आईओई का स्टेटस देगी.
जियो इंस्टिट्यूट को ग्रीनफील्ड कैटेगरी के अंदर चुना गया है. यह सवाल उठने पर कि जब निजी क्षेत्र में पहले से ही कई अच्छे संस्थान मौजूद हैं, तो ग्रीनफील्ड प्रोजेक्ट को चुनने का क्या कारण है, उच्च शिक्षा सचिव आर सुब्रह्मण्यम ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, ‘ग्रीनफील्ड क्यों नहीं चुना जाना चाहिए? आईडिया विश्व-स्तरीय संस्थान बनाने के लिए सर्वश्रेष्ठ को आमंत्रित करना है. अगर किसी नए व्यक्ति के पास इस मकसद के लिए पैसा और अन्य संस्थान हैं, तो कोई वजह नहीं है कि उसे प्रोत्साहित न किया जाए.’
विपक्ष ने शुरू की सरकार की घेराबंदी
वैसे प्रकाश जावड़ेकर द्वारा इस फैसले के बारे में ट्वीट करने के बाद इस पर विवाद शुरू हो गया. विपक्षी दलों ने जियो इंस्टिट्यूट को केंद्र सरकार द्वारा देश के छह प्रतिष्ठित संस्थानों की सूची में शामिल किए जाने को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अंबानी बंधुओं से करीबी रिश्तों का परिणाम बताया है.
कांग्रेस समेत तमाम लोगों ने ये सवाल उठाने शुरू किए कि ऐसा संस्थान जो अब तक खुला भी नहीं है, उसे उत्कृष्टता का दर्जा कैसे दिया जा सकता है. सरकार को यह बताना चाहिए कि किस आधार पर यह दर्जा दिया गया है.
The BJP Govt favours Mukesh & Nita Ambani yet again. The illusionary JIO Institute which is yet to see the light of day has been declared as an 'eminent' institute. The Govt needs to clarify the basis of classification for granting such a status.#SuitBootSarkar https://t.co/owxlh7Kgev
— Congress (@INCIndia) July 9, 2018
कुछ नेताओं ने यह भी कहा कि भाजपा अपने ‘कॉर्पोरेट दोस्तों’ को लगातार फायदा पहुंचा रहे हैं. असम के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता तरुण गोगोई ने ट्विटर पर मोदी सरकार के इस फैसले को आड़े हाथों लिया.
BJP Govt's bonanza of granting 'institution of eminence' to #JioInstitute which is yet to be set up by Reliance Foundation at par with other eminent institutions like IIT's, IISC, etc is ridiculous & exposes that Modi Govt continues to favour his corporate friends until the end. pic.twitter.com/6DFITA8Vq3
— Tarun Gogoi (@tarun_gogoi) July 10, 2018
वहीं माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने जियो संस्थान को देश को प्रतिष्ठित संस्थानों की सूची में डालने की तुलना उद्योगपतियों की कर्ज माफी से की.
येचुरी ने ट्वीट कर कहा, ‘अब तक वजूद में ही नहीं आये विश्वविद्यालय को प्रतिष्ठित संस्थान का तमगा देना कार्पोरेट जगत के तीन लाख करोड़ रुपये के गैरनिष्पादित कर्ज की तरह है जिसे सरकार ने चार साल में उद्योगपतियों से अपनी मित्रता निभाने के एवज में बट्टेखाते में डाल दिया.’
This granting of ‘Eminence’ tag to a non-existent university of a corporate is perfectly in line with a write-off of ₹ 3 lakh crore of unpaid bank loans for friendly corporates in the past four years. pic.twitter.com/7di8aOq5OH
— Sitaram Yechury (@SitaramYechury) July 10, 2018
सपा ने सरकार के इस फैसले को अंबानी बंधुओं से मोदी की नजदीकी का परिणाम बताया. सपा के राज्यसभा सदस्य जावेद अली खान ने कहा, ‘जियो के मालिक से प्रधानमंत्री के संबध जगजाहिर हैं. जियो के लिए मोदी जी पहले विज्ञापन भी कर चुके हैं. इसलिये इस फैसले से हमें कोई आश्चर्य नहीं है.’
राजद के प्रवक्ता और राज्यसभा सदस्य मनोज कुमार झा ने इस फैसले को मोदी सरकार की गरीब विरोधी मानसिकता का परिणाम बताया.
झा ने ट्वीट कर कहा, ‘जिस हुकूमत की प्राथमिकता में पहले पायदान पर जियो इंस्टिट्यूट हो, उन्हें आखिरी पायदान पर खड़े वंचित समूह दिखते नहीं. ये है न्यू इंडिया, जिसे बड़ी मशक्कत और कड़ी मेहनत से देश विदेश घूमकर हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने बनाया है. जय हिंद.’
भाकपा के सचिव अतुल कुमार अनजान ने इसे मोदी सरकार की जमीनी हकीकत से अनभिज्ञता का सबूत बताया. अनजान ने कहा कि जो संस्थान अभी अस्तित्व में ही नहीं आया है उसे देश के श्रेष्ठतम संस्थानों में शुमार करने से पता चलता है कि मोदी जी की अपनी सरकार पर कितनी पकड़ है और सरकार जमीनी हकीकत से कितनी वाकिफ है.
In response to some misinformation campaign in social media regarding "Institutes of Eminence", please find herewith clarifications on commonly raised questions #InstituteofEminence pic.twitter.com/K6IB5ILpfb
— Ministry of Education (@EduMinOfIndia) July 9, 2018
इस विवाद के बाद मानव संसाधन और विकास मंत्रालय द्वारा एक ट्वीट कर एक स्पष्टीकरण जारी किया गया, जिसमें बताया गया कि यूजीसी रेगुलेशन 2017, के अनुच्छेद 6.1 के मुताबिक आईओई के दर्जे के लिए नए संस्थानों का चयन किया जा सकता है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)