उत्तर प्रदेश के हापुड़ में गोहत्या के शक में भीड़ द्वारा किए हमले में बुरी तरह घायल हुए समीउद्दीन को महीने भर बाद अस्पताल से छुट्टी मिली है. उनका कहना है कि वे मामले के चश्मदीद हैं, लेकिन पुलिस उनका बयान नहीं ले रही है.
नई दिल्ली: पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के पिलखुआ थाना स्थित मदापुर गांव में कथित गोहत्या के आरोप में भीड़ ने दो लोगों की निर्मम पिटाई की थी. 16 जून को हुई इस घटना में मोहम्मद क़ासिम की मौत हो गई थी और मोहम्मद समीउद्दीन बुरी तरह जख़्मी हो गए थे.
अब हत्या के चश्मदीद समीउद्दीन अस्पताल से निकल चुके हैं और डॉक्टरों ने उन्हें लंबे समय तक आराम करने की सलाह दी है. द वायर से बात करते हुए उन्होंने बताया कि इस मामले में पुलिस या प्रशासन ने उनसे कोई बात नहीं की और न ही कोई बयान दर्ज़ किया और पुलिस अपने अनुसार जांच कर रही है, जो तथ्य से दूर है.
समीउद्दीन ने मेरठ के आईजी को पत्र लिखकर शिकायत की है और मामले में एक नई एफआईआर दर्ज़ करने को कहा है.
18 जून की घटना के बारे में द वायर से बात करते हुए समीउद्दीन ने बताया, ‘यह बात 18 जून की है. करीबी गांव में हमारी रिश्तेदारी में एक मौत हो गई थी. हमें वहां जाना था. इसलिए मैं और मेरा पड़ोसी हसन पहले चारा लेने के लिए अपने खेत पर गए. वहां खेत में एक तरफ़ मैं और हसन बैठ गए और हम दोनों बीड़ी पी रहे थे. बीड़ी पीते-पीते हम देखते हैं कि बझेढ़ा गांव की तरफ से 20-25 आदमी दौड़ते हुए आए और उन्होंने आते ही खेत पर क़ासिम के साथ मार-पीट शुरू कर दी. उसके बाद मैंने उनसे पूछा कि क्या बात है, क्या मामला है, क्यों मार रहे हो? तो वह मुझसे भी मार-पीट करने लगे और मेरी एक भी बात नहीं सुनी.’
समीउद्दीन ने आगे बताया, ‘उन्होंने मेरी दाढ़ी खींची और मुझे लात-घूंसे मारते रहे. उन्होंने मुझसे कहा कि तुम गाय काटते हो. तो मैंने कहा कि यहां ऐसा कोई मामला नहीं है. न तो कोई गाय है, न कोई छुरी है, न कोई कुल्हाड़ी है. पर उन्होंने हमारी कोई बात नहीं सुनी और हमें मारते हुए देवी मंदिर की तरफ बझेढ़ा गांव में ले गए. वे हमें लाठी, डंडों से पीटते रहे.’
उन्होंने आगे बताया, ‘मंदिर के पास ले जाने के बाद जो भी आ रहा था, वह हमें मारता था. तब तक भीड़ करीब 45-50 लोगों की हो गई थी और वे सब हमें मार रहे थे. हमें कड़ी धूप में देवी मंदिर के पास ज़मीन पर पटका और वहां भी मारते रहे. उसके बाद मुझे कुछ-कुछ होश रहा.’
पुलिस कब घटना स्थल पर पहुंची इस समय का समीउद्दीन को अंदाज़ा नहीं है. हालांकि, पुलिस बार-बार उन्हें एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल लेकर जा रही थी. साथ ही वे कहते हैं कि एंबुलेंस में किसी ने उनका अंगूठा भी लगवाया था.
समीउद्दीन आगे बताते हैं, ‘कुछ देर बाद पुलिस आई, मुझे पता नहीं कि कितनी देर बाद आई थी. पुलिसवाले हमें उठाकर ले गए. पहले वे मुझे रामा हॉस्पिटल में ले गए थे, पर उस हॉस्पिटल में भर्ती नहीं हुई. फिर कुछ देर बाद मैंने सुना कि पुलिस वाले जीएस मेडिकल कॉलेज का नाम ले रहे थे. वहां मैंने यह भी सुना कि शायद क़ासिम की मौत हो गई है. वहां मुझे कुछ दवाई और इंजेक्शन दिए गए और मेरे दोनो अंगूठे लगवाए.’
वे बताते हैं, ‘जब मेरे अंगूठे लग रहे थे तो मैं आधा बेहोश पड़ा हुआ था और मुझे बहुत दर्द था. पता नहीं कहां-कहां और किस-किस जगह मेरे अंगूठे लगवाए. उसके बाद मुझे देवनंदिनी अस्पताल लेकर आए. तब मेरी आंखें भी नहीं खुल रही थीं. उसके 24-25 घंटे बाद मुझे ढंग से होश आया.
जिस भीड़ ने क़ासिम और समीउद्दीन की पिटाई की थी, वो पास के ही बझेढ़ा गांव की थी, जहां बड़ी संख्या में हिंदू समुदाय के लोग रहते हैं. समीउद्दीन को जिन्होंने पीटा, उनमें से कुछ लोगों को वे पहचानते थे और उनका नाम भी पता है.
पीटने वाले लोगों के बारे में समीउद्दीन बताते हैं, ‘बझेढ़ा गांव के जिन लोगों ने मुझे और क़ासिम को मारा, उनमें से कई लोगों को मैं जानता और पहचानता हूं. मांगे पुत्र प्रेमपाल, करणपाल पुत्र गजराज, रिंकू राना, करणपाल का भतीजा हरिओम, ललित हैं. इसके अलावा बहुत से लोग थे जो मुझे मार रहे थे जिन्हें मैं देखकर पहचान लूंगा. इन सब ने मिलकर मुझे इतना मारा कि मेरे तलवों से लेकर मेरे सिर तक कोई जगह बची नहीं है. डंडे, लाठी, घूंसे, लातों से मुझे पीटा गया. मेरे सिर पर बहुत चोटें आईं, कान पर भी चोट आई. मेरे हाथ, टांग और पसलियां सब तोड़ दिए.’
समीउद्दीन ने पिलखुआ के सर्किल ऑफिसर (सीओ) पवन कुमार पर आरोप लगाया है कि उन्होंने अपराधियों को बचाने के लिए इस मामले की दिशा को बदलने का प्रयास किया और मामले को मोटर साइकिल से टक्कर के बाद हुआ विवाद बनाने की कोशिश की और इस मामले में पूरी झूठी रिपोर्ट लिख दी.
मालूम हो कि इस मामले के सिर्फ एक चश्मदीद गवाह हैं वो सिर्फ समीउद्दीन हैं और पुलिस ने अभी तक उनका बयान नहीं लिया है.
समीउद्दीन ने पुलिस के रवैये पर कहा है, ‘मुझे पुलिस की कार्रवाई और जांच पर भरोसा नहीं है. उन्होंने कहा, पिलखुआ थाने की पुलिस पर मुझे कोई भरोसा नहीं है. मुझे नहीं लगता कि वे निष्पक्ष और सच्ची कार्रवाई करेंगे. मुझे यह भी मालूम हुआ है कि एक आरोपी युधिष्ठिर सिंह को भारतीय दंड सहिंता 302/307 जैसे संगीन जुर्म के मामले में कोर्ट से ज़मानत मिल गई है और पुलिस ने कोर्ट के आगे सच्ची बात न रखते हुए आरोपियों की मदद की है. उनकी ज़मानत की अर्ज़ी का सही से विरोध नहीं किया. पुलिस बझेढ़ा गांव के आरोपियों से मिली हुई है.’
समीउद्दीन और क़ासिम के साथ हुई घटना की एफआईआर में शिकायतकर्ता मोहम्मद यासीन हैं जो कि समीउद्दीन के भाई हैं. यासीन का अब कहना है कि जो भी एफआईआर में उन्होंने उस समय हस्ताक्षर किए थे वो सीओ के दबाव के चलते किए थे. उन्होंने आरोप लगाया है कि एसओ ने धमका कर कहा था कि इस मामले की सच्चाई किसी को बताना नहीं.
यासीन ने द वायर से कहा, ‘मैं इतने दिनों तक चुप था क्योंकि मैं और समीउद्दीन पुलिस से डरे हुए थे. पुलिस ने मुझे 18 जून को धमकाते हुए कहा था कि मैं किसी को भी समीउद्दीन और क़ासिम पर हुए जानलेवा हमले का सच ना बताऊं और यह भी ना बताऊं कि यह जानलेवा हमला करने वाली भीड़ बझेढ़ा गांव के आदमियों की थी. उस समय मेरे सामने पहले अपने भाई का इलाज करवाने की फ़िक्र थी ताकि उनकी जान बच सके. इसी कारण मैं, समीउद्दीन और हमारा परिवार अब तक चुप रहे.’
उन्होंने आगे बताया, ‘मेरे भाई समीउद्दीन मदापुर गांव में अपने परिवार के साथ रहते हैं और खेती-बाड़ी करते हैं. मदापुर एक छोटा गांव है जिसकी अधिकतर आबादी मुस्लिम है. इसके पड़ोस में बझेढ़ा गांव है और दोनो गांव के बीच में खेत है. बझेढ़ा गांव में मुख्य रूप से हिंदू राजपूत और ठाकुर हैं और उस गांव की आबादी मदापुर से कई ज़्यादा है.’
आईजी को लिखे अपने शिकायत पत्र में यासीन ने पुलिसकर्मियों पर भी कार्रवाई की मांग की है. ख़ासकर सीओ पवन कुमार पर कार्रवाई की मांग है क्योंकि उन्होंने दबाव डालकर गलत रिपोर्ट लिखी.
18 जून की घटना के बारे में बताते हैं, ‘करीबन 11.30 बजे मुझे मदापुर गांव से फोन आया कि मेरे भाई समीउद्दीन के ऊपर जानलेवा हमला हुआ है. उसे कुछ लोगों ने बुरी तरह मारकर लहूलुहान कर दिया है. मैं गाज़ियाबाद के मसूरी गांव में अपने परिवार के साथ रहता हूं और रोजी-रोटी के लिए ट्रक चलाता हूं. मैं करीब एक बजे मदापुर गांव पहुंचा था.
उन्होंने आगे बताया, ‘मैं और मेरा भांजा अनस दोनों थाने के लिए रवाना हुए और वहां बझेढ़ा गांव के कुछ लोग बाहर खड़े थे. एक हवलदार ने बताया की समीउद्दीन को सरस्वती मेडिकल कॉलेज ले गए हैं और मैं और अनस दोनों अस्पताल के लिए निकल पड़े. रास्ते में फ़ोन आया कि समीउद्दीन को सरस्वती मेडिकल कॉलेज में नहीं, बल्कि रामा मेडिकल कॉलेज ले जाया गया है. जब हम वहां पहुंचे तो पता चला कि पुलिस वहां ले गई थी, लेकिन अस्पताल ने एडमिट करने से इनकार कर दिया था.
समीउद्दीन के न मिलने पर यासीन और अनस दोनों पिलखुआ थाना क़रीब पांच बजे पहुंचे. दोनों ने सीओ पवन कुमार से, समीउद्दीन किस अस्पताल में भर्ती हैं, इसकी जानकारी मांगी. यासीन ने बताया कि सीओ से जब जानकारी मांगी तब पवन कुमार ने धमकाते हुए कहा कि अपने भाई से मिलना चाहते हो तो जैसा कह रहा हूं वैसा करो.
यासीन ने सीओ पवन कुमार पर आरोप लगाते हुए कहा, ‘सीओ पवन कुमार ने मुझसे कहा कि वह जैसा बोलेंगे मुझे वैसी ही रिपोर्ट लिखनी और साइन करनी होगी, नहीं तो समीउद्दीन के साथ मुझे और मेरे परिवार के और लोगों को गौकशी के मामले में फंसा कर जेल में डाल देंगे. मेरे साथ हमारे गांव के प्रधान क़ामिल और हिंडालपुर गांव के दिनेश तोमर ने भी विरोध किया तो सीओ ने उनको भी धमकाते हुए कहा कि अगर वह उसकी बात नहीं मानेंगे, तो उन्हें झूठे केस में फंसा देंगें.’
यासीन ने बताया कि सीओ ने उन्हें धमकाते हुए कहा कि याद रखना अभी सरकार किसकी है और चुप रहने में में उन सबकी भलाई है.
उन्होंने बताया, ‘धमकी के बाद आख़िरकार मैंने इस झूठी, बेबुनियाद और फर्ज़ी रिपोर्ट पर दस्तखत कर दिया, तब पुलिस ने मुझे बताया कि मेरे भाई का इलाज जी.एस. मेडीकल कॉलेज, पिलखुवा में होरहा है. यह सुनते ही मैं और अनस जी.एस. मेडिकल कॉलेज के लिए रवाना हो गए. जब हम जी.एस. मेडिकल कॉलेज पहुंचे तो हमें बताया गया कि मेरे भाई को कई सारी चोटें आई थीं, इसलिए उसे एक एंबुलेंस से देवनंदिनी अस्पताल रैफर कर दिया गया है.’
यासीन और अनस देव नंदिनी अस्पताल में रात करीबन साढ़े सात-आठ के बीच पहुंचे. उन्होंने देखा कि समीउद्दीन इमरजेंसी वार्ड में बेहोशी की हालत में हैं. उनकी हालत बहुत गंभीर और नाजुक थी और सारे बदन पर गंभीर चोटों के घाव थे.
बता दें कि यासीन ने जिस तहरीर पर दस्तखत किए थे, उसे हिंडालपुर गांव के दिनेश तोमर ने लिखा था. यासीन को लिखना नहीं जानते इसलिए तोमर उस वक़्त यासीन और अनस के साथ थाने में समीउद्दीन के परिवार की पैरवी करने गए थे. तोमर का कहना है कि पुलिस के धमकाने के बाद उन्होंने वैसा ही लिखा था, जैसा सीओ ने लिखने कहा था. फिर यासीन ने उस पर दस्तखत किए थे.
तोमर ने बताया, ‘सीओ ने गांव के प्रधान को कहा कि ये लोग कम पढ़े लिखे हैं और जैसा कहता हूं लिख दो. कामिल ने मुझे लिखने को कहा. मुझे अपने दोस्त समीउद्दीन की चिंता थी क्योंकि पुलिस ने अब तक यह नहीं बताया था कि वो किस अस्पताल में भर्ती है. मैं उस वक़्त सीओ से झगड़ा नहीं मोल लेना चाहता था इसलिए मजबूर होकर मैंने जैसा सीओ ने लिखने कहा, लिख दिया.
ज्ञात हो कि मृतक कासिम के भाई नदीम ने पिछले महीने दिल्ली में एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान बताया था कि कासिम मवेशी और बकरियां खरीदने-बेचने का काम करता था.
18 जून को जब वो खेत में गया था, तब 50,000 रुपये भी ले गया था. घटना के बाद पुलिस ने शाम 6.30 बजे क़ासिम को लेकर जानकारी परिवार को दी और जब अस्पताल में पहुंचे, तो वहां शव पड़ा हुआ था और जेब में सिर्फ 14,000 रुपये मिले थे.
गौरतलब है कि 18 जून को हुई घटना के बाद पुलिस ने एफआईआर दर्ज़ कर मोटरसाइकिल की टक्कर के चलते दो पक्षों में हुआ विवाद बताया था, जिसके चलते आरोपियों ने मोटरसाइकिल सवार दो लोगों की पिटाई कर दी थी.
क़ासिम और समीउद्दीन की पिटाई का वीडियो भी सोशल मीडिया में वायरल हुआ था. एक अन्य वीडियो में भीड़ द्वारा समीउद्दीन को परेशान करते, उनकी दाढ़ी खींचते देखा जा सकता है.
इसके अलावा एक तस्वीर भी वायरल हुई थी, जिसमें घटना के बाद पुलिस क़ासिम को घसीटते हुए ले जा रही थी. पुलिस ने उस तस्वीर के लिए माफ़ी मांग ली थी.