अयोध्या में सरयू के जल से वजू करने और उसके ही तट पर नमाज़ पढ़ने के मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के कथित सौहार्द कार्यक्रम से आरएसएस के पल्ला झाड़ने के बाद पूरे आयोजन में बदलाव कर दिया गया.
‘अनभ्यासे विषं शास्त्रम्’ की इससे बेहतर मिसाल शायद ही कहीं और मिले.
सौहार्द और सद्भाव की स्थापना की कोई मुहिम शुरू करने या उससे जुड़ने का न राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कोई इतिहास है, न ही अभ्यास, इसलिए अपनी राजनीतिक फ्रंट भारतीय जनता पार्टी की सत्ता व राजनीति की मजबूरियों के वशीभूत होकर नए भ्रम रचने के लिए दिखावे के तौर पर भी वह ऐसी कोई कवायद शुरू करता है तो उसे अंजाम तक नहीं पहुंचा पाता.
उल्टे जगहंसाई का पात्र बन जाता है और उसके अंतर्विरोध हैं कि छिपाने की कोशिश में और बेपरदा हो जाते है. गत गुरुवार को अयोध्या में अपने आनुषंगिक संगठन मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की ऐसी ही एक कवायद आखिरी क्षणों में उसे खुद पर भारी पड़ती लगी तो उसने उससे किनारा कर लेने में ही भलाई समझी.
दरअसल, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की अवध प्रांत इकाई इधर जोर-शोर से प्रचार कर रही थी कि बारह जुलाई को उसके तत्वावधान में कोई डेढ़ हजार मुस्लिम धर्मगुरू राममंदिर निर्माण के प्रति अपने समुदाय का समर्थन जताने अयोध्या आयेंगे, जहां वे पुण्य सलिला सरयू के जल से वजू करके उसके ही तट पर नमाज पढ़ेंगे.
नमाज के साथ कुरानख्वानी होगी और देश में अमन-चैन व शांति की दुआएं मांगी जाएंगी. यह भी कहा जा रहा था कि उसके इस कार्यक्रम को उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार का समर्थन प्राप्त है.
यह समर्थन इससे भी जाहिर होता था कि संघ के एक नेता के साथ योगी सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण वक्फ मंत्री लक्ष्मीनारायण चौधरी को आयोजन का मुख्य अतिथि बनाया गया था.
स्वाभाविक ही मंच को उम्मीद थी कि उसके राममंदिर समर्थक मुस्लिम धर्मगुरुओं के पीछे हिंदू श्रद्धालुओं का रेला लग जाएगा, जिससे न सिर्फ अयोध्या बल्कि देश भर में सौहार्द का अप्रतिम संदेश जाएगा.
उसके द्वारा तय किए गए कार्यक्रम के अनुसार मुस्लिम धर्मगुरुओं को अयोध्या के सैकड़ों सूफी संतों के मजारों व मकबरों का भ्रमण भी करना था.
मंच की महिला नेता शबाना आजमी, जो लखनऊ विश्वविद्यालय में इस्लामिक स्टडीज की प्रोफेसर हैं, इस आयोजन को लेकर इतनी महत्वाकांक्षी हो उठी थीं कि उनका दावा था, ‘इससे यह प्रचार करने वालों को करारा जवाब मिलेगा कि अयोध्या में मुसलमानों को अपने धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन करने की अनुमति नहीं है और संघ उनके खिलाफ है. दुनिया भर में संदेश जाएगा कि अयोध्या हिंदू और मुसलमानों दोनों की है और संघ मुसलमानों का सच्चा दोस्त है.’
फिर भी निष्पक्ष जानकारों को इस बाबत कोई संदेह नहीं था कि मंच की यह सारी कवायद संघ परिवार की उस बड़ी परियोजना का ही हिस्सा है, जिसके तहत उसके प्रायः सारे संगठन नरेंद्र मोदी सरकार के आने के बाद से अभी कुछ महीने पहले तक अयोध्या में खुद को राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद के सद्भावपूर्ण समाधान का सबसे बड़ा पैरोकार सिद्ध करने में लगे हुए थे.
अलबत्ता, तब भी उन्हें मुस्लिम पक्ष का सम्पूर्ण आत्मसमर्पण ही अभीष्ट था और वे चाहते थे कि देश में मोदी और उत्तर प्रदेश में योगी की सत्ता से आतंकित मुसलमान एकतरफा तौर पर बाबरी मस्जिद पर अपना दावा वापस लेकर भव्य राममंदिर के निर्माण का रास्ता साफ कर दें.
हां, इधर इस लक्ष्य की प्राप्ति में सफल न हो पाने के अंदेशों से त्रस्त होकर, और साथ ही, अपनी ‘सद्भावकामना’ की पोल खुलती देख इन संगठनों ने अपना सुर बदल लिया था और मंदिर-मस्जिद विवाद को नए सिरे से गरमाने लगे थे. यकीनन, 2019 के लोकसभा चुनावों के मद्देनजर.
फिर भी मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की सक्रियता का संकेत यही था कि संघ नेतृत्व द्वारा इस परियोजना को एकदम से बंद नहीं किया गया है लेकिन अचानक अंतर्विरोध गहराए और लगा कि इस कवायद से तो लेने के देने पड़ जायेंगे यानी सद्भाव और सौहार्द का संदेश तो नहीं ही दिया जा सकेगा, उल्टे अपने ही शिविर में लतिहाव शुरू हो जायेगा, तो संघ ने ऐन वक्त पर उसको लेकर ऐसा रवैया अपना लिया जैसे मुस्लिम राष्ट्रीय मंच उसके परिवार का हो ही नहीं और न ही उसके आयोजन से संघ का कोई लेना-देना हो.
प्रसंगवश, 2002 में तत्कालीन संघ प्रमुख केएस सुदर्शन की पहल पर इंद्रेश कुमार के मार्गदर्शन में आनुषंगिक संगठन के तौर पर इस मंच का गठन किया गया था और अयोध्या विवाद के सिलसिले में उसकी अजाबोगरीब गतिविधियों के सहारे संघ व भाजपा द्वारा प्रायः प्रचारित किया जाता रहता है कि आम मुसलमानों ने राममंदिर निर्माण का विरोध व प्रतिरोध छोड़ दिया है और अब उसकी राह में नामुराद ‘सेकुलरिस्ट’ ही सबसे बड़ी बाधा हैं.
दिलचस्प यह कि जैसे ही खबर आई कि अयोध्या के कुछ साधु मंच के ‘सरयू जल से वजू करके नमाज पढ़ने’ का विरोध कर रहे हैं क्योंकि उन्हें लग रहा है कि इससे एक सर्वथा गलत परंपरा का जन्म होगा और हनुमानगढ़ी के एक पुजारी ने तो आत्मदाह तक की चेतावनी दे डाली है, संघ की सौहार्द व सद्भावकामना पूरी तरह पस्त हो गई.
उसके अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख अरुण कुमार ने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से ट्वीट कर दिया कि प्रचार माध्यमों में आया यह समाचार पूर्णतया निराधार एवं असत्य है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा अयोध्या में सरयू तट पर सामूहिक नमाज का आयोजन किया जा रहा है. उनके मुताबिक संघ ने ऐसे किसी कार्यक्रम का आयोजन किया ही नहीं.
संघ के यों पल्ला झाड़ लेने के बाद वही हुआ, जो उसके अब तक के सौहार्द के प्रायः सारे ‘नाटकों’ का होता आया है. रंग में भरपूर भंग के बाद मंच के राष्ट्रीय सहसंयोजक महिरध्वज उर्फ मुरारीदास ने सारा कार्यक्रम रुकवा दिया और अंतरराष्ट्रीय रामकथा संग्रहालय में एकत्र कथित मुस्लिम धर्मगुरुओं को ऐतिहासिक नौगजी कब्र ले गये, जहां वे सब अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री द्वारा मजार पर चादरपोशी के साक्षी बने.
कई मदरसों से आये मुस्लिम युवकों ने वहीं दरगाह के किनारे लगे हैंडपम्प के पानी से वजू कर कुरान की तिलावत की और आयत-ए-करीमा पढ़ा. मंत्री ने वहां यह साबित करने में पूरी शक्ति लगा दी कि मंच के कार्यक्रम पर कोई रोक नहीं लगाई गई.
उनके अनुसार ‘यह कार्यक्रम दोनों समुदायों के बीच एकता के लिए था, विवाद बढ़ाने के लिए नहीं, इसलिए कुछ लोगों ने ही सही, उस पर आपत्ति की तो आयोजकों ने खुद बदमजगी टालने के लिए उसकी जगह बदल दी.’
बाद में अल्पसंख्यक कल्याण की प्रदेश सरकार की योजनाएं गिनाते हुए उन्होंने इन आपत्ति करने वालों की यह कहकर आलोचना की कि वे अपनी दुकान चलाने के लिए दूसरों के धर्म के निंदक बने रहते हैं लेकिन इस आलोचना का कोई मतलब नहीं था, क्योंकि उनके सामने बैठे श्रोता जानते थे कि ऐसी दुकानदारियों के लिए तो समूची भारतीय जनता पार्टी ही ‘सन्नाम’ है.
प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि कार्यक्रम पर घोषित तौर पर रोक न होने के बावजूद पुलिस ने उसके तय वक्त पर सरयू पुल के पश्चिम के घाट पर मुस्लिम धर्मगुरुओं व मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के कार्यकर्ताओं के संदेह में आम श्रद्धालुओं को भी रोकना शुरू कर दिया था.
इसकी शिकायत होने पर उसने मंच के कार्यकर्ताओं को पहचानकर उन्हें अलग से रोकने की तैयारी की थी. इससे साफ है कि प्रशासन किसके साथ मिलीभगत से काम कर रहा था और क्यों मंच की नेता शबाना आजमी ने दो महिला नेताओं के साथ अलग से जैसे-तैसे सरयूतट जाकर वजू किया और उतने से ही संतुष्ट हो गईं?
ऐसे में सौहार्द की स्थापना तो नहीं ही होनी थी. सो नहीं हुई, लेकिन उससे भी ज्यादा दुःखद यह कि सौहार्द के इस खेल को कट्टरपंथियों ने अंततः हार-जीत के खेल में बदल डाला और अब इसे लेकर विजय भाव से भर गये हैं.
भरें भी क्यों नहीं, जिस देश के गंगातट पर बसे बनारस में मरहूम नजीर बनारसी ने कभी डंके की चोट पर ऐलान किया था कि ‘सोएंगे तेरी गोद में एक दिन मरके, हम दम भी जो तोड़ेंगे, तेरा दम भर के, हमने तो नमाजें भी पढ़ी हैं अक्सर, गंगा तेरे पानी से वजू करके’, उसी देश की अयोध्या में उन्होंने ‘सिद्ध’ कर दिया है कि आज कोई नजीर की ही तरह सरयू के तट पर उसके जल से वजू करके नमाज पढ़ने की हसरत पालता है, तो भले ही वह उनके अपनों की छांव में रहने का ही अभिलाषी हो, उनकी सदाशयता का पात्र नहीं है.
लेकिन अब सवाल सिर्फ अयोध्या और सरयू का नहीं है. यह है कि यह बड़ा देश कब तक इस तरह की बदतमीजियां झेलने को अभिशप्त रहेगा?
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और फ़ैज़ाबाद में रहते हैं.)