कथित गोरक्षकों और भीड़ द्वारा हो रही हिंसा के ख़िलाफ़ दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि डर और अराजकता के माहौल से निपटना सरकार की ज़िम्मेदारी. नागरिक अपने आप में क़ानून नहीं बन सकते.
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि संसद को भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या के मामलों से प्रभावी तरीके से निपटने के लिए नया कानून बनाने पर विचार करना चाहिए. शीर्ष अदालत ने भीड़ द्वारा हिंसा और लोगों को पीट-पीटकर मारने की घटनाओं के लिए केंद्र ओर राज्य सरकारों को जवाबदेह बनाया.
साथ ही न्यायालय ने उनसे कहा कि वे सोशल मीडिया पर गैरकानूनी और विस्फोटक संदेशों तथा वीडियो के प्रचार प्रसार पर अंकुश पाने और रोकने के लिए कदम उठायें क्योंकि ये ऐसी घटनाओं के लिए प्रेरित करते हैं.
शीर्ष अदालत ने कहा कि ‘भीड़तंत्र की इन भयावह गतिविधियों’ को नया चलन नहीं बनने दिया जा सकता.
अदालत ने महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी और तहसीन पूनावाला जैसे लोगों की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया. इस याचिका में ऐसी हिंसक घटनाओं पर अंकुश पाने के लिये दिशा निर्देश बनाने का अनुरोध किया गया है.
इन याचिका पर न्यायालय ने ऐसी घटनाओं की रोकथाम, उपचार और दंडात्मक उपायों का प्रावधान करने के लिए अनेक निर्देश दिए. न्यायालय ने राज्य सरकारों से कहा कि वे प्रत्येक ज़िले में पुलिस अधीक्षक स्तर के वरिष्ठ अधिकारियों को नोडल अधिकारी मनोनीत करें.
न्यायालय ने कहा कि भीड़ की हिंसा और लोगों को पीट-पीटकर मारने की घटनाओं की रोकथाम के उचित कदम उठाने के लिए नोडल अधिकारियों की मदद हेतु उपाधीक्षक रैंक का एक अधिकारी रहना चाहिए.
पीठ ने कहा कि वे एक विशेष कार्य बल बनाएंगे ताकि ऐसे अपराध करने की संभावना वाले और नफरत फैलाने वाले भाषण, भड़काने वाले बयान तथा फर्जी खबरों में लिप्त लोगों के बारे में गुप्तचर सूचनाए प्राप्त की जाए.
Violence by vigilante groups/cow vigilantism: Supreme Court asks Parliament to see whether a new law can be made into the issue. Supreme Court fixed the matter for further hearing on August 28
— ANI (@ANI) July 17, 2018
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस धनंजय वाई. चंद्रचूड़ की पीठ ने किहा, ‘‘राज्य तत्काल ऐसे ज़िलों, उपमंडलों और गांवों की पहचान करेंगे जहां पिछले कम से कम पांच साल में पीट-पीटकर मारने और भीड़ की हिंसा की घटनाए हुयी हैं. इस तरह की पहचान की प्रक्रिया फैसले की तारीख से तीन सप्ताह के भीतर पूरी होनी चाहिए. त्वरित आंकड़े एकत्र करने के आज के दौर में यह काम पूरा करने के लिए यह समय पर्याप्त है.’
पीठ ने कहा कि विधि सम्मत शासन बना रहे यह सुनिश्चित करते हुए समाज में कानून-व्यवस्था कायम रखना राज्यों का काम है. उसने कहा, ‘नागरिक कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकते हैं, वे अपने-आप में कानून नहीं बन सकते.’
पीठ ने कहा, ‘भीड़तंत्र की भयावह गतिविधियों को नया चलन नहीं बनने दिया जा सकता, इनसे सख्ती से निपटने की जरूरत है.’ उन्होंने यह भी कहा कि राज्य ऐसी घटनाओं को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं.
न्यायालय ने अपने 45 पेज के फैसले में कहा, ‘संबंधित राज्यों के गृह विभाग के सचिव संबंधित ज़िलों के नोडल अधिकारियों के लिए निर्देश और परामर्श जारी करके यह सुनिश्चित करेंगे कि पहचाने गए इलाकों के थानों के प्रभारी अतिरिक्त सावधानी बरतें यदि उनके अधिकार क्षेत्र में भीड़ की हिंसा की किसी घटना के बारे में उन्हें जानकारी मिलती है.’
पीठ ने कहा कि नोडल अधिकारी को सभी थाना प्रभारियों के साथ महीने में कम से कम एक बार ज़िले की स्थानीय खुफिया इकाई के साथ बैठक करनी चाहिए.
न्यायालय ने कहा कि प्रत्येक पुलिस अधिकारी का यह कर्तव्य है कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 129 में प्रदत्त अधिकार का इस्तेमाल करके भीड़ को तितर-बितर करे जिसमें गोरक्षा की आड़ में लोगों को पीट-पीटकर मारने की प्रवृत्ति हो.
Supreme Court has said that it is the duty of the states to ensure inclusive social order, no mobocracy can be allowed: Tehseen Poonawalla, Petitioner in violence by vigilante groups matter pic.twitter.com/pwRvCUAqNF
— ANI (@ANI) July 17, 2018
शीर्ष अदालत ने कहा कि पुलिस महानिदेशक पिछली घटनाओं के मद्देनज़र संवेदनशील इलाकों में पुलिस की गश्त और महानिदेशक कार्यालय को मिली गोपनीय जानकारियों के बारे में पुलिस अधीक्षकों को परिपत्र जारी करेंगे.
पीठ ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों को रेडियो, टेलीविजन ओर दूसरे मीडिया मंचों, गृह मंत्रालय और पुलिस की वेबसाइट पर यह प्रसारित करना चाहिए कि पीट-पीटकर मारने और भीड़ की किसी भी प्रकार की हिंसा की स्थित में कानून के तहत गंभीर परिणाम होंगे.
पीठ ने यह भी कहा कि यदि कोई पुलिस अधिकारी या जिला प्रशासन का अधिकारी इन निर्देशों का पालन करने में असफल रहता है तो इसे जानबूझ कर लापरवाही करने और अथवा कदाचार का कृत्य माना जाएगा और इसके लिए उचित कार्रवाई की जानी चाहिए. विभागीय कार्रवाई को छह महीने के भीतर निष्कर्ष तक पहुंचाना होगा.
न्यायालय ने कहा कि विधि सम्मत शासन सुनिश्चित करते हुए समाज में कानून-व्यवस्था बनाये रखना राज्यों का काम है और नागरिक कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकते, वे अपनेआप में कानून नहीं बन सकते.
We were confident that Supreme Court would give us justice. No one should be killed in the name of cow smuggling: Salim, brother of the victim killed by cow vigilante groups in Hapur pic.twitter.com/13txTgjWYB
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) July 17, 2018
पीठ ने विधायिका से कहा कि भीड़ की हिंसा के अपराधों से निपटने के लिये नए दंडात्मक प्रावधानों वाला कानून बनाने और ऐसे अपराधियों के लिये इसमें कठोर सज़ा का प्रावधान करने पर विचार करना चाहिए.
न्यायालय ने अब इन जनहित याचिकाओं को आगे विचार के लिए 28 अगस्त को सूचीबद्ध किया है और केंद्र तथा राज्य सरकारों से कहा है कि उसके निर्देशों के आलोक में ऐसे अपराधों से निपटने के लिए कदम उठाए जाएं.
अदालत के आदेश के बाद पूनावाला ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि समाज में सभी के लिए सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने की ज़िम्मेदारी सरकार की है. भीड़ का शासन नहीं चलने दिया जा सकता.’
वहीं बीते दिनों उत्तर प्रदेश के हापुड़ में लिंचिंग का शिकार बने कासिम के भाई सलीम का कहना है, ‘हमें विश्वास है कि हमें सुप्रीम कोर्ट से इंसाफ मिलेगा. गोकशी के नाम पर किसी की हत्या नहीं होनी चाहिए.
हालांकि प्रधान न्यायाधीश ने इस तरह के अपराधों से निपटने के लिए न्यायालय द्वारा दिये गये निर्देशों को पढ़कर नहीं सुनाया.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)