अलवर मामले में पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई, मारपीट के दौरान लगी चोट के सदमे से हुई रकबर की मौत.
जयपुर: राजस्थान के अलवर जिले के रामगढ़ थाना क्षेत्र में गो तस्करी के आरोप में भीड़ द्वारा पीट-पीट कर हत्या किए जाने के मामले में पुलिस की लापरवाही उभर कर सामने आई है, जिसके बाद चार पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की गई. हालांकि पुलिस ने कहा कि यह ‘हिरासत में मौत’ का मामला नहीं है, जो कुछ भी हुआ वह स्थानीय पुलिस की स्थिति को निपटने में लिए गए निर्णय की त्रुटि के कारण हुआ.
वहीं, पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक रकबर खान की मौत मारपीट के दौरान लगी चोट के सदमे से हुई है. मेडिकल बोर्ड ने शनिवार को खान के शव का पोस्टमार्टम किया. इसकी रिपोर्ट में मौत का कारण शरीर पर लगी चोट से हुआ सदमा बताया गया है. अलवर अस्पताल के तीन सदस्यीय मेडिकल बोर्ड में डॉक्टर संजय गुप्ता, डॉक्टर अमित मित्तल और डॉक्टर राजीव गुप्ता शामिल हैं.
दूसरी ओर, राजस्थान के गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया ने बताया है कि पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों के एक दल ने सोमवार को रामगढ़ का दौरा किया था और उसके बाद सहायक पुलिस उप निरीक्षक को निलंबित कर दिया गया और तीन पुलिस कर्मियों को लाईन में भेज दिया गया. कटारिया ने कहा कि पुलिस की तरफ से कुछ लापरवाही हुई है. पुलिस ने पहले गायों को गोशाला पहुंचाया और उसके बाद पीडित को अस्पताल पहुंचाया. पुलिस को पहले पीडित को थाने से लेकर अस्पताल जाना चाहिए था.
वहीं, इस मामले में अब पुलिस और रामगढ़ के स्थानीय भाजपा विधायक ज्ञानदेव आहूजा एक-दूसरे के आमने-सामने आ गए हैं.
इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर में दावा किया गया है कि मामले के जयपुर रेंज के अधिकारियों को स्थानांतरित किए जाने से पहले रविवार देर रात घटना के प्रत्यक्षदर्शी और रकबर के दोस्त असलम ने अलवर पुलिस को बयान दिया था, ‘कह रहे थे कि एमएलए साहिब हमारे साथ हैं. हमारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है.’ पुलिस ने यह भी बताया कि उसने पांच लोगों धमेंद्र, परमजीत, नरेश, सुरेश और विजय का नाम भी बताया है.
आपको बता दें कि पुलिस इसमें से तीन लोगों को पहले ही गिरफ्तार कर चुकी है. हालांकि घटना के तुरंत बाद मीडिया में आए असलम के बयान पुलिस को दिए गए बयान से अलग हैं. इंडियन एक्सप्रेस के ही मुताबिक तब असलम ने बयान दिया था कि उन्हें कुछ सुनाई नहीं पड़ा और हमले के कुछ देर बाद ही किसी व्यक्ति ने गोली चला दी थी. जिसके बाद वो भागने लगे.
गौरतलब है कि ज्ञानदेव वह पहले शख्स भी थे जिन्होंने गोरक्षकों का बचाव किया था और पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाए थे. हालांकि विधायक ने अब इस नए दावे को खारिज किया है और उन्होंने इसके पीछे भ्रष्ट पुलिसवालों की मिलीभगत बताया है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक़ असलम खान के बयान पर आहूजा ने कहा, ‘क्या कोई इस तरह की बात कह सकता है? असलम को भ्रष्ट आईपीएस अधिकारियों (सहायक एसपी) अनिल बेनीवाल और (पूर्व अलवर एसपी) राहुल प्रकाश द्वारा भड़काया जा रहा है.’
वे आगे कहते हैं, ‘अगर वह गंभीर रूप से घायल हो गया था तो पुलिस उसे तुरंत अस्पताल क्यों नहीं ले गई? उन्होंने 4 बजे तक उसके साथ क्या किया? मैंने राहुल प्रकाश के खिलाफ कार्रवाई शुरू की है.’
अहुजा ने कहा, ‘मैं पिछले 25 सालों से चुनाव लड़ रहा हूं और ऐसी चीज पहले कभी नहीं हुई है. ऐसा इसलिए है क्योंकि मैं उन्हें किसी को भी हमला करने से रोकता हूं और व्यक्ति को पुलिस को सौंपने के लिए कहता रहता हूं. उन लोगों ने कथित तस्कर को 3-4 थप्पड़ के बाद पुलिस को सौंप दिया था. मैंने खुद हजारों गाय, भैंस और बैल को बचाया है.’
गौरतलब है कि इससे पहले स्थानीय पुलिस पर लगे आरोपों की जांच के लिए पुलिस महानिदेशक ओपी गलहोत्रा ने एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया था. समिति ने ड्यूटी में लापरवाही बरतने वाले चार पुलिसकर्मियों को दोषी मानते हुए रामगढ़ पुलिस थाने के उस समय के प्रभारी सहायक पुलिस उपनिरीक्षक मोहन सिंह को निलंबित कर दिया और तीन पुलिस कर्मियों को पुलिसलाइन भेज दिया.
विशेष पुलिस महानिदेशक (कानून व्यवस्था) एनआरके रेड्डी ने बताया कि शनिवार को पुलिसकर्मी घटना स्थल पर देर रात करीब एक बजकर 15 मिनट या डेढ़ बजे पहुंचे और पीड़ित को मिट्टी से सना हुआ पाया.
अधिकारी ने बताया कि पुलिसकर्मियों ने रकबर के शरीर की सफाई की. उन्होंने सोचा कि पीड़ित की हालत गंभीर नहीं है, इसलिए उसे पहले पुलिस थाने लेकर गए और गायों को आसपास के गोशाला में स्थानांतरित करने के लिए वापस घटना स्थल पहुंचे और फिर थाने आकर पीड़ित को अस्पताल ले गए. पीड़ित को पानी, चाय भी पूछा था. उसे तड़के चार बजे स्थानीय अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. इसलिए यह निर्णय लेने की त्रुटि प्रतीत होती है.
रेड्डी ने दावा किया कि प्राथमिक जांच में पुलिसकर्मी पीड़ितों को मारने में शामिल नहीं पाए गए हैं. अधिकारी ने कहा कि यह ‘हिरासत में मौत’ का मामला नहीं है.
मामले में पुलिस ने तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया है और पुलिस की अलग-अलग टीम घटना में शामिल अन्य आरोपियों की तलाश कर रही है. पुलिस ने शनिवार को धर्मेंद्र यादव और परमजीत सिंह को गिरफ्तार किया था, जबकि तीसरे आरोपी नरेश सिंह को रविवार को गिरफ्तार किया. तीनों आरोपी पुलिस की पांच दिन की रिमांड पर है.
वहीं निलंबित किए गए सहायक पुलिस उपनिरीक्षक मोहन सिंह का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है, जिसमें अधिकारी अकबर खान उर्फ रकबर खान को अस्पताल ले जाने में हुई देरी की गलती को स्वीकारते दिखाई दे रहे हैं.
वीडियो में रामगढ़ थाने में तैनात सहायक उपनिरीक्षक मोहन सिंह यह कहते हुए दिखाई दे रहे हैं, ‘…मेरे से गलती हो गई…..कैसे भी मान लो….सजा दे दो या छोड़ दो….सीधी सी बात है.’ वीडियो सामने आने के बाद सहायक उपनिरीक्षक को निलंबित कर दिया गया.
इस घटना ने एक राजनीतिक हलचल पैदा कर दी है. विपक्षी कांग्रेस ने वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को घटना के लिए जिम्मेदार ठहराया है और निष्पक्ष जांच सुनिश्वित करने के लिये न्यायिक जांच या सीबीआई जांच की मांग की है. राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट ने मामले की न्यायायिक जांच की मांग की है.
उन्होंने कहा, ‘मामले में न्यायिक जांच की जरूरत है क्योंकि पुलिस अधिकारी की जांच पक्षपातपूर्ण हो सकती है. घटना की तह तक जाने के लिये न्यायिक जांच की जानी चाहिए.’
भाजपा सरकार पर हमला करते हुए पायलट ने कहा, ‘भीड़ द्वारा मारपीट और लोगों की हत्या भाजपा शासित राज्यों में आम हो गई है. कुछ साल पहले तक भीड़ द्वारा मारपीट शब्द कभी नहीं सुना जाता था. असामाजिक तत्वों को कानून हाथ में लेने, लोगों पर हमला करने, दिन दहाड़े लोगों को मारने की खुली छूट दे दी गई है.’
पायलट ने बताया, ‘राजस्थान में भाजपा सरकार विकास के मोर्चे पर असफल रही है, इसलिए अब विभाजनकारी राजनीति कर रही है और समाज में हिंसा और घृणा फैला रही है, जो सभ्य समाज में पूरी तरह से अस्वीकार्य है.’ उन्होंने कहा कि प्रशासन और पुलिस भाजपा के दबाव में काम कर रहे हैं.
उन्होंने कहा, ‘सरकार ने विश्वास खो दिया है और विकास के मोर्चों पर असफल रही है। इसलिए वे इस तरह की राजनीति का सहारा ले रहे हैं जो नागरिक समाज और देश के लोगों को नुकसान पहुंचा रहा है.’
अलवर के पूर्व कांग्रेस सांसद भंवर जितेंद्र सिंह ने भी घटना की न्यायिक जांच की मांग करते हुए कहा कि चुनाव के दौरान ऐसी घटनाएं होती रहती है.
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भीड़ द्वारा मारपीट की घटना की सीबीआई से जांच की मांग की है. उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ‘यह एक रहस्य की बात है. पीड़ित को अस्पताल ले जाना पुलिस का कर्तव्य था, लेकिन इसके बजाय पीड़ित को पुलिस स्टेशन ले जाया गया था. यह जांच का मामला है.’
उन्होंने सवाल किया कि क्या मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का कर्तव्य नहीं था कि घटना की निष्पक्ष जांच करवाई जाये? मेरे विचार से घटना की निष्पक्ष जांच के लिए इसे सीबीआई को सौंप देना चाहिए.