सरकार ने एस्मा लगा दिया है, बावजूद हड़ताल जारी है. 20 जूनियर डॉक्टर बर्खास्त भी किए गए हैं. चिकित्सा शिक्षा विभाग के सचिव ने कहा है कि डॉक्टर अपना धर्म नहीं निभा रहे हैं. उनके रजिस्ट्रेशन रद्द करेंगे. प्रदेशभर में मरीज़ों के 220 ऑपरेशन टाले गए हैं.
भोपाल: मध्य प्रदेश में भोपाल, इंदौर सहित पांच शासकीय मेडिकल कॉलेजों के लगभग 1500 जूनियर डॉक्टरों ने अपनी हड़ताल के दूसरे दिन मंगलवार को सामूहिक तौर पर इस्तीफा दे दिया. जूनियर डॉक्टर मानदेय बढ़ाने सहित अन्य मांगों को लेकर सोमवार से अनिश्चतकालीन हड़ताल पर हैं.
जूनियर डॉक्टर एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर सचेत सक्सेना ने बताया कि सरकार जूनियर डॉक्टरों के प्रति दोहरा मापदंड अपना रही है. एक तरफ तो हमें विद्यार्थी बताकर हमारा मानदेय नहीं बढ़ाया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर हड़ताल पर जाने के बाद हमें सरकारी कर्मचारी मानकर और हमारी सेवाओं को अत्यावश्यक घोषित करते हुए एस्मा लागू कर दिया है. इसके साथ ही हमारे पांच साथियों को ग्वालियर में बर्खास्त कर दिया गया है.
दैनिक भास्कर के मुताबिक, मंगलवार को ग्वालियर के गजराराजा मेडिकल कॉलेज, जबलपुर के नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज, इंदौर के एमजीएम मेडिकल कॉलेज और रीवा के श्यामशाह मेडिकल कॉलेज में पांच-पांच जूनियर डॉक्टरों को बर्खास्त किया गया है.
वहीं, भोपाल में तीन डॉक्टरों को बर्खास्तगी के लिए चिन्हित किया गया है. ग्वालियर में हड़ताल में गए बाकी जूनियर डॉक्टरों को कारण बताओ नोटिस जारी किए गए हैं.
तो वहीं, जबलपुर में चार नर्सों को हटा दिया.
सक्सेना ने बताया कि जूनियर डॉक्टर अपना मानदेय बढ़ाने के साथ ही मध्य प्रदेश मेडिकल यूनिवर्सिटी द्वारा लगाई जा रही फीस कम करने तथा पोस्ट ग्रेजुएशन (पीजी) के बाद डॉक्टरों को ग्रामीण सेवा बांड के तहत दिये जा रहे मानदेय को 36,000 से बढ़ाकर 65,000 रूपये प्रतिमाह करने की मांग प्रमुख तौर पर कर रहे हैं.
सक्सेना ने बताया कि प्रदेश में जूनियर डॉक्टरों ने इस्तीफे सौंपने के बाद अपने हॉस्टल खाली करना शुरू कर दिया है.
इस मामले में प्रतिक्रिया के लिए प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री रुस्तम सिंह से कई बार प्रयास करने के बावजूद संपर्क नहीं हो सका.
मालूम हो कि राजधानी के हमीदिया अस्पताल सहित प्रदेश के पांच शासकीय मेडिकल कॉलेजों से संबद्ध अस्पतालों में जूनियर डॉक्टरों के हड़ताल पर जाने से वहां स्वास्थ्य सेवाएं ठप पड़ गई हैं. मरीज परेशान हो रहे हैं. ऑपरेशन टाल दिए गए हैं. इससे अस्पतालों में भर्ती मरीजों के इलाज और जांच की व्यवस्थाएं बिगड़ गई हैं.
गौरतलब है कि प्रदेश भर में जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल होने से पहले ही सरकार ने आवश्यक सेवा अनुरक्षण कानून (एस्मा) लगा दिया गया था. बावजूद इसके जूनियर डॉक्टर हड़ताल पर चले गए हैं.
दैनिक भास्कर के मुताबिक, हड़ताल में शामिल उन मेडिकल छात्रों पर भी कार्यवाही होने वाली है, जिन्होंने हाल ही में नीट के जरिये पीजी में एडमिशन लिया है.
बुधवार को चिकित्सा शिक्षा विभाग मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया और भारत सरकार से सभी स्थितियों पर बात करेगा और इन छात्रों के दाखिले निरस्त करने की प्रक्रिया शुरू करेगा.
सरकार का कहना है कि एक माह पहले दाखिला लेने वाले हड़ताल कर रहे हैं. इसीलिए एमसीआई और भारत सरकार से बात करके इनके दाखिले निरस्त करके दोबारा काउंसलिंग कराई जाएगी, ताकि नए लोग आ सकें. जरूरत पड़ी तो चिकित्सा शिक्षा विभाग सुप्रीम कोर्ट तक जाएगा.
तब तक राज्य सरकार ने सात नए मेडिकल कॉलेज में पदस्थ किए गए 250 सहायक प्रोफेसरों को आपात सेवाओं में लगा दिया है, ताकि स्वास्थ्य सुविधाओं पर असर नहीं पड़े. हड़ताली डॉक्टरों से कहा गया है कि वे बिना शर्त हड़ताल खत्म करें.
वहीं, हड़ताल से मरीजों के इलाज के लिए भारी मुसीबत खड़ी हो गई है. भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर और रीवा के सरकारी मेडिकल कॉलेज में हड़ताल की वजह से इनसे संबद्ध अस्पतालों में भर्ती 220 मरीजों के ऑपरेशन टाल दिए गए हैं.
भोपाल में 55, इंदौर में 40, ग्वालियर में 60, जबलपुर में 50 और रीवा में 50 ऑपरेशन टाले गए हैं.
इसके अलावा अस्पतालों की ओपीडी में मरीजों की संख्या 60 प्रतिशत तक घट गई है.
चिकित्सा शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव राधेश्याम जुलानिया ने डॉक्टरों पर आरोप लगाते हुए कहा है कि मरीजों के लिए जिनकी भावना नहीं, उनके साथ सहानुभूति रखने का क्या मतलब? वे अपना धर्म नहीं निभा रहे.
उन्होंने कहा, ‘एस्मा लगा होने के बावजूद हड़ताल की गई. मरीजों के प्रति लापरवाही का यह गलत तरीका है. कोई भी वापस नहीं होगा. रजिस्ट्रेशन भी कैंसिल करेंगे. डॉक्टरी के पेशे में जो सेवा भाव रखेंगे, ऐसे नए लोगों को लाया जाएगा.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)